निकालो तुम जरा लम्हें कहीं से आज फुर्सत के, सुनाऊँ मैं तराने फिर तुम्हें अपनी इबादत के, तुम्हें रब मानता हूँ मैं तभी ये चाहता कहना गजल मेरी सदा गाये फ़सानें अब मुहब्बत के। ~ अक्षय 'अमृत' www.facebook.com/AkshayAmritlalSharma
बात न आए समझ हमारी कैसी तुमसे दूरी है, आज बता भी दो तुम हमको कैसी ये मजबूरी है, प्रेम किया है सदा तुम्हीं से तुमसे ही ये कहता हूँ घट पनघट हैं लाखों लेकिन मेरी प्यास अधूरी है।
कभी ख्वाबों में आता है, कभी यूँ ही सताता है, कभी जीना सिखाता है, कभी मरना सिखाता है, तेरे बारे में क्या बातें करूँ मैं आज दुनिया से तेरा हँसना हँसाता है, तेरा रोना रुलाता है।
"इन फ़िज़ाओं में, हवाओं में घुली आपकी खुमारी है, जहाँ देखो वहाँ दिखती आप ही की बेशुमारी है, अब क्या मांगें, क्या न मांगें आप के लिए मिले खूब धन और खुशियाँ भी यही दुआ हमारी है।"