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Shrivastva MK Oct 2018
दर्द तब नही होता जब कोई अपना हमें छोड़ जाता है,
दर्द तो तब होता है जब ख़ुद का विश्वास टूट जाता है,

ना कोई अपना था,ना कोई अपना है इस दुनिया मे,
बस ये दिल पागल है जो हर किसी को अपना समझ जाता है,

यहाँ आपके आँसुओ की क़द्र नही है साहब,
जिससे होती हमें समझ मोहब्बत की अक्सर वही टूट जाता है,

अक्सर देखा है हमने यहाँ फरेबी निगाहों को बदलते,
मौसम वक़्त के साथ बदलता पर लोगों के दिल बेवक़्त ही बदल जाता हैं,

रिश्तों की परिभाषा तो उसी दिन बदल जाती जब कोई अपना कह हमें अपना बना लेता,
पर क्या करें जहाँ से शुरू होते है रिश्ते एक दिन वही टूट कर बिखर जाता है......
Shrivastva MK Sep 2018
प्यार एक एहसास है इसे लफ्ज़ों में जताने की जरूरत क्या है,
मोहब्बत तो दिल से होती हैं फ़िर जुबां से बताने की जरूरत क्या हैं,

इस फ़रेबी दुनिया का तो काम है आपको ज़ख्म देकर मुस्कुराना,
फिर उसी ज़ख्म को याद कर अश्क़ बहाने की जरूरत क्या है,

ये उल्फ़त हमें आपके ज़िस्म से नही मुक्कमल हयात से है,
फ़िर हरबार ख़ुद को अकेला जताने की जरूरत क्या है,

बिन आपके तो हमें ख़ुद से नफ़रत होती है मेरे माहिया,
फ़िर"छोड़ चले जायेंगे"ये सोचकर दिल दुखाने की जरूरत क्या है,

अरे हम तो रोज लड़ते है अपनी किस्मत से सिर्फ आपके लिए,
फ़िर आपको मुख़्तसर गर्दीशें में टूट जाने की जरूरत क्या है,

आपकी एक मुस्कान मेरे साथिया मेरी जीने की वजह हैं,
ये जानते हुए भी "हम खुश है" ये बहाने बनाने की जरूरत क्या है,

ये साँसे सिर्फ़ आपकी उम्मीदों की वजह से चल रही हैं,
फ़िर उन सारे उम्मीदों को जलाने की जरूरत क्या हैं,
जरूरत क्या हैं.........
Shrivastva MK Sep 2018
क्यों खड़े हो दूर इतना आना तुझे दिल-ए-दस्तूर बना लूँ,
छुपा के इस फ़रेबी दुनिया से आना तुझे हमगुरूर बना लूँ,

नज़दीकियां भी होगी,दूरियाँ भी होगी हमारे दरमियां,
भूल जाओ सारे ज़ख्म को आना तुझे अपनी फ़ितूर बना लूँ,

मौसम भी बदलेंगें वक़्त भी बदलेगा खैर सुन
भूल इन सभी बातों को आना तुझे ब-दस्तूर बना लूँ,

छुप जाने दे चाँद को बादलों में मेरे हमसफ़र,
आना मेरे पास तुझे ताउम्र के लिए अपना नूर बना लूँ,

चाहत की शुरुआत तो तेरे आने के बाद हुई है,
खैर छोड़ इन सभी बातों को आना तुझे मुहब्बत-ए-सुरूर बना लूँ।
Shrivastva MK Sep 2018
हम शायर नहीं बस अपने अश्क़,ज़ख्म ख़ुमार को लिखते हैं,
कल जीत गया था ख़ुद को आज मोहब्बत में हार कर लिखते है,

कहीं चंद लफ्ज़ों से सजाये जाते है खूबसूरत महफ़िल,
यहाँ हम अपनी अल्फ़ाज़ों से ज़िन्दगी के सार को लिखते हैं,

कल जो हयात थे हमारे जिनके उल्फ़त के हम दीवाने थे,
आज हम उन्हें नही इस वक़्त-ए-इख़्तियार को लिखते है,

फ़क्र होता है हमें आज भी अपनी तक़दीर अपनी हार पे,
कल उनके थे हम और आज उनके मोहब्बत-ए-इनकार को लिखते हैं...

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Shrivastva MK Sep 2018
ना हमे खुशी चाहिए ना तेरा शहर चाहिए,
बहुत प्यासा हूँ मैं बस थोड़ा ज़हर चाहिए,

ना दिन की ज़रूरत है ना ख्वाईश है रात की,
जी लूँ मैं जीभर के वो वक़्त मुख़्तसर चाहिए,

वक़्त से इल्तज़ा नही की वो ताउम्र हमारी रहे,
बस देखता रहूँ उन्हें वो मुसलसल पहर चाहिए,

ना सुकूँ की आरज़ू है ना तमन्ना है सिला की,
जो डूबा दे हमे उनकी उल्फ़त में  वो पुरजोश लहर चाहिए,

खूबसूरत ज़िस्म का क्या जो मिट्टी में मिल जाए,
जिसमें देख सकें हम खुद को वो चमकता हुआ नज़र चाहिए,

अग़र बिन उनके जीना पड़े तो ऐ मेरे ख़ुदा सुन,
जो मिटा दें हमें पूरी तरह  एक वैसा तेरा क़हर चाहिए.....
Shrivastva MK Sep 2018
मसरूफ़ थे हम उनकी मोहब्बत में और उन्हें लगा हम कहीं दूर चले गए,
अल्फ़ाज़ भी वही थे,लहज़े भी वही था और उन्हें लगा हमारे सुरूर बदल गए,

हमारी कशिश बढ़ती गयी उनके उल्फ़त में और उनकी गलतफहमियां,
अपनी क़िस्मत से फ़िर कैसी रुशवाई जब पलभर में उनके सुर बदल गए,

अब वो ना टूटता तारा नज़र आता,ना आती है नज़र उनकी फ़रेबी निगाहें,
फ़िर कैसी शिकायत ख़ुद की क़िस्मत से जब उनके सारे दस्तूर बदल गए,

दूरियां बढ़ती गयी,एहसास मरते गए फिर उन्हें दलील क्या दे,
जब वर्षो से चला आ रहा उनके चाहत के सारे फ़ितूर बदल गए,

आहिस्ता आहिस्ता वो दौर सिमट गए,जला दिए अपने सारे ख़्वाब,
अब मतलब उस ज़न्नत से क्या जब उस ज़न्नत के सारे हूर बदल गए,

मुड़कर देखा जब फ़लक को तो अश्क़ से भर चुकी थी निगाहें,
जिस चाँद को देख कभी मिलती थी खुशी,उस चाँद के सारे नूर बदल गए.....
Shrivastva MK Sep 2018
जो कभी थे ही नहीं हमारे उन्हें फ़िर याद क्या करना,
हमारी खुशी तो दर्दों में छिपी है फिर खुशी के लिए फरियाद क्या करना,

सुबह उठते ही सारे ख़्वाब टूट कर बिखर चुके थे हमारे,
फिर हर रोज ख़्वाबे सजाने में वक़्त बर्बाद क्या करना,

लोग तो कल भी नही सुनते थे हमारे और आज भी नही सुनते,
फ़िर अपनी बातें सुनाने के लिए किसी से विवाद क्या करना,

आजकल तो मोहब्बत में सिर्फ़ आँसू ही नसीब होते है साहब,
फिर मोहब्बत को समझने के लिए इसका अनुवाद क्या करना,

हम तो कल भी गलत थे और आज भी गलत है,
फ़िर खुद को सही बताने के लिए किसी से संवाद क्या करना,

ना कद्र है ना क़वायद है प्यार की इस दुनियां में,
फ़िर ख़ुद को मोहब्बत में आबाद क्या करना.......

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