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श्री मान,
सुनिए,
दिल से निकली बात ,
जिसने
मानस पटल पर
छोड़ा अमिट प्रभाव।
  
बहुत सी समस्याओं का समाधान,
लेकर आता जीवन में मान सम्मान।
और
बहुधा
समस्या का हल
सीधा और सरल
होता है।
समस्या को सुलझाने के
प्रयासों की वज़ह से
कभी कभी
हम उलझ जाते हैं,
उलझन में पड़ते जाते हैं।
समाधान
कुछ ऐसा है,
समस्या को
बिल्कुल समस्या न समझें,
बल्कि
समस्या के संग
जीवन जीने का तरीका सीखें।
देखना,समस्या छूमंतर हो जाएगी।
वह कुछ सकारात्मकता उत्पन्न कर
जीवन में बदलाव लाकर
जन जन में उमंग तरंग भर जाएगी।
  ११/०५/२०२०.
बेशक
तुमने जीवन पर्यन्त की है
सदैव नेक कमाई
पर
आज आरोपों की
हो रही तुझ पर बारिश
है नहीं तेरे पास,

कोई सिफारिश
खुद को पाक साफ़
सिद्ध किए जाने की ।
फल
यह निकला
तुम्हें मिला अदालत में आने
अपना बयान दर्ज़ करने के लिए
स्वयं का पक्ष रखने निमित्त
फ़रमान।
अब श्री मान
कटघरे में
पहुँच चुकी है साख।
यहाँ निज के पूर्वाग्रह को
ताक पर रख कर कहो सच ।
निज के उन्माद को थाम,
रखो अपना पक्ष, रह कर निष्पक्ष।
यहाँ
झूठ बोलने के मायने हैं
अदालत की अवमानना
और इन्साफ के आईने से
मतवातर मुँह चुराना,
स्वयं को भटकाना।
मित्र! सच कह ही दो
ताकि/ घर परिवार की/अस्मिता पर
लगे ना कोई दाग़।
आज
कटघरे में
है साख।
न्याय मंदिर की
इस चौखट से
तो कतई न भाग!
भगोड़े को बेआरामी ही मिलती है।
भागते भागते गर्दनें
स्वत: कट जाया करती हैं ,
कटे हुए मुंड
दहशत फैलाने के निमित्त
इस स्वप्निल दुनिया में
अट्टहास किया करते हैं।
आतंक को
चुपचाप
नैनों और मनों में भर दिया करते हैं।
आजकल
सियासत
दूसरे के कंधे पर
बंदूक रखकर
चलाना है।
इसे अब
तथाकथित
आज़ादी के
उपासकों ने
बना लिया
एक बहाना है।

ऐसी
सियासत का
बोझ सब को
उठाना पड़
रहा है,
आदमी
व्यर्थ ही
इससे डर
रहा है।
२१/०५/२०२०.
जिन्दगी में
तना तनी,
छीन लेती
सुख की नागमणि!
२५/०४/२०२०
सुनो उपभोक्ता!
बाजार का सच ।
आज
बाजार की गिद्ध नज़र
तुम्हारी जेब पर है।


हे उपभोक्ता जी,
अपनी जेब संभालो ,
उसमें बची खुची रेज़गारी भी डालो ।
भले ही
रेज़गारी को
आप नजरअंदाज करें,
इसे महत्व  न दें, लेकिन ना भूलें,
बूंद बूंद से घट भर जाता है,
व्यापारी भान जोड़कर ही  
धन कमाने का हुनर जान पाता है,
जब कि बहुत बार उपभोक्ता
अठन्नी जैसी रेज़गारी छोड़ देता है।
दिन भर की बीस अठन्नियां जुड़े,
तो दस रुपए की कीमत रखतीं हैं।
मत भूलो,
कभी-कभी खोटा सिक्का भी खुद को
कारगर साबित कर जाता है।  
कंगाली में नैया पार लगा देता है,
इज़्ज़त भी बचा देता है।

सुनो उपभोक्ता!
तुम उपभोग्य सामग्री तो कतई न बनना।
तुम उपभोगवादी सभ्यता में
जन्मे, पले-बढ़े,चमके हो,
उपभोग संयम से करो।
बाजार को
अपनी ताकत का अहसास करा दो।
उसे अपने चौकन्नेपन से चौंका दो ।

व्यापारी भ्रष्टाचार के पंख
आपसी मिली-भगत से फैला न पाएं ,
तुम्हारी जागरूकता है ,इस समस्या का सटीक उपाय।
बाजार का गणित
यानि अर्थशास्त्र
मांग और पूर्ति के सिद्धांत पर चलता है।
इन दोनों में रहे संतुलन तो बाजार फलता-फूलता है।
ध्यान रहे,मांग और पूर्ति का संतुलन
उपभोक्ता के चित्त पर निर्भर करता है।
तुम्हारा चित्त डोला नहीं
कि बाजार तुम पर हावी हुआ।
बाजार में चोरी  , मक्कारी,
मंहगाई ,लूट खसोट,
हेराफेरी का दुष्चक्र शुरू हुआ।
भाई मेरे,
किसी के मकड़जाल
और उसके चालाकी से
निर्मित घेरे में न फंसना।
तुम फंसे नहीं कि
बाजार बहुत बड़ा खेल, खेल देगा।
इसे आजकल खेला (वस्तुत: झमेला)
कह  दिया जाता है।
ऐसे में
सुख ,सुरक्षा का भरोसा
छिन्न भिन्न होता है।
उपभोक्ता ठगा सा महसूस करता है,
और थक हार कर,सिर पकड़ कर बैठ जाता है,
उसका माथा ठनकता है,
वह हतप्रभ हुआ,हताश, निराश हुआ
स्वयं को अकेला करता जाता है।

कुछ ऐसा ही
खेला शेयरों में, सट्टेबाजी में भी है ,
जिस में
अनाड़ी से लेकर खिलाड़ी तक
भरे पड़े हैं।
कल तक
जो हवा में उड़ रहे थे,
वे आज औंधे मुंह गिरे हुए पत्ते जैसा महसूस कर रहे हैं।
सुनो उपभोक्ता!
इस दुनिया के बाजार में
सब गोलमाल है।
यहां सतर्क रहना जरूरी है।
अन्यथा मन में
अंतर्कलह होने से
आदमी अन्यमनस्क हो जाता है।
वह खुद को रुका हुआ
और रूठा हुआ पाता है ।
उसे कहीं ठौर नहीं मिलता है,
वह भीतर तक
इस हद तक
हिल जाता है,
जैसे किसी ने उसे दिया हो
अचानक , अप्रत्याशित  घटनाक्रम बनकर
झकझोर और झिंझोड़,
ऐसे में
धरी की धरी रह जाती मरोड़।
सुनो उपभोक्ता, मेरी बात गौर से सुनो,
इस पर अमल भी करो
ताकि ठगे न जाओ।

बाजार से सामान लेने के बाद
सुरक्षित घर पहुंच पाओ।

डिजिटल खरीददारी भी
सोच समझकर करो ,
अपने भेद अपने भीतर रखो,
निडर,सतर्क रहना तुम्हारा दायित्व है,
कोई क्या करे, मामला वित्त और चित्त का है।१२/०८/२०२०.
सब्र,संतोष
भीतर
व्याप जाएं,
इसके लिए
कर्मठता जरूरी है।
कर्म करने से पीछे हटा नहीं जाए ।
इसे ढंग से निष्पादित किया जाए।
इस हेतु निरन्तर डट कर संघर्ष किया जाए।
सतत
सब्र, संतोष, सहृदयता,
व्यक्ति को संत सरीखा
कर देती है,
लालसा और वासना तक
हर लेती है।
कभी कभी
देह में से नेह और संतुष्टि का
नहीं होना,
मन को अशांत
कर देता है।
अतः
जीवन में संतुष्टि का होना
निहायत जरूरी है,
इस बिन जीवन यात्रा
रह जाती अधूरी है,
जिससे
रिश्तों में
बढ़ जाती दूरी है,
इसी वज़ह से मन भटकता है,
आदमी क़दम क़दम पर अटकता है,
और जीव जीवन भर
संतुष्टि के द्वार पर
दस्तक देने की कोशिश करता है,
अपने भीतर कशिश भरना चाहता है,
परन्तु
कभो कभी ही
आदमी सफल हो पाता है,
हर कोई संतुष्टि को
अनुभव करना चाहता है।
आज देश में
संविधान बचाने के
मुद्दे पर
नेता प्रति पक्ष
और सत्ताधीन नेतृत्व के बीच
एक होड़ा  होड़ी लगी हुई है।
दोनों , संविधान खतरे में है, कहते हैं,
असंख्य लोग अन्याय, शोषण के दंश को सहते हैं।
नेता प्रति पक्ष का कहना है,
सत्ता पक्ष ने
संविधान पढ़ा नहीं, सो वो
संविधान को खोखला बता रहे।
' अगर संविधान पढ़ा होता,
तो उन्होंने अलग नीतियां अपनाईं होतीं।'
सत्ता पक्ष ने भी  
नेता प्रति पक्ष के ऊपर
आरोप लगाया कि
विपक्ष
देश के एक संवेदनशील राज्य में
एक अलग संविधान बनाने की योजना पर
अड़ा हुआ है।
आप ही बताइए
एक देश,एक संविधान,
होना चाहिए कि नहीं।
आप ही फ़ैसला कीजिए,
कौन है सही।
देश में संविधान को लेकर
बहस छेड़ने का मुद्दा गर्म है।
हर कोई बना देश में बेशर्म है।
सब के अपने अपने पाले हैं।
क्या नेतागण
नागरिकों को मूर्ख बना रहे हैं?
आज
देश में संविधान सर्वोपरि रहना चाहिए।
यह देश की अस्मिता का वाहक होना चाहिए।
संविधान को लेकर
पड़ोसी देश में भी विवाद चल रहा है।
यहां वहां,सब जगह
संविधान को विवादित किया जा रहा है।
संविधान से धर्मनिरपेक्ष, समाजवाद, जैसे
अप्रासंगिक हो चुके मुद्दों को
एक परिवर्तनकारी आंदोलन का
आधार बनाया जा रहा है।  
बहुत से देश उलझे हैं, उनके  सुलझाव के लिए
संविधान जरूरी है कि नहीं?
यह देश की तकदीर,दशा, दिशा निर्मित करता है।
इस सच को
देश दुनिया के
समस्त नेताओं को समझना चाहिए,
अपने दुराग्रह, पूर्वाग्रह छोड़ने चाहिएं।
विकास के मौके देश दुनिया में बढ़ने चाहिएं ।
१५/११/२०२४.
हमें
जो संस्कार मिले हैं,
वे हमें सच से जोड़ते हैं,
झूठ से मुख मोड़ना बतलाते हैं।

हम
सच बोलने के आदी हैं
ना कि
ज़ुल्म ओ सितम के आगे
घुटने टेकने वाले
नैतिकता के अपराधी हैं।


हम तो बस फरियादी हैं।
जीवन के रस से पले बढ़े हैं!
जीवन संघर्षों में सीना तान खड़े हैं!!

हमें जो संस्कार मिले हैं,
उनसे हमें जीवनाधार मिला है।
इन संस्कारों ने हमें निर्मित किया है ,
और बतौर उपहार , हमारा व्यक्तित्व गढ़ा है।
  १४/०५/२०२०.

— The End —