Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Joginder Singh Nov 2024
आज फिर बंदर
दादा जी को छेड़ने
आ पहुंचा।
दादा ने छड़ी दिखाई, कहा,"भाग।"
जब नहीं भागा तो दादू  पुनः चिल्लाए,"भाग, सत्यानाशी...।"
तत्काल,बंदर ने कुलाठी लगाई
और नीम के पेड़ पर चढ़कर
पेड़ के साथ लगी, ग्लो की बेल,
जिसकी लताएं  ,  नीम पर चढ़ी थीं,से एक टहनी तोड़,
दांतों से चबाने लगा।
मुझे लगा, चबाने के साथ,वह कुछ सतर्कता भी
दिखा रहा था।
बूढ़े दादू उस पर लगातार चिल्ला रहे थे ,
उसे भगा रहे थे।
पर वह भी ढीठ था,पेड़ की शाखा पर बैठा रहा,
अपनी ग्लो की डंडी चबाने की क्रिया को सतत करता रहा।
  उसने आराम किया और बंदरों की टोली से जा मिला।

दादू अपने पुत्र और पोते को समझा रहे थे।
ये होते हैं समझदार।
वही खाते हैं,जो स्वास्थ्यवर्धक हो ।
इंसान की तरह   बीमार करने वाला भोजन नहीं करते।

मुझे ध्यान आया,
बस यात्रा के दौरान पढ़ा एक सूचना पट्ट,
जिस पर लिखा था,
"वन क्षेत्र शुरू।
कृपया बंदरों को खाद्य सामग्री न दें,
यह उन्हें बीमार करती है ।"
मुझे अपने बस के कंडक्टर द्वारा
बंदरों के लिए केले खरीदने और बाँटने का भी ध्यान आया।
साथ ही भद्दी से नूरपुरबेदी जाते समय
बंदरों के लिए केले,ब्रेड खरीदने
और बाँटने वाले धार्मिक कृत्य का ख्याल भी।

हम कितने नासमझ और गलत हैं।
यदि उनका ध्यान ही रखना है तो क्यों नहीं
उनके लिए उनकी प्रकृति के अनुरूप वनस्पति लगाते?
इसके साथ साथ उनके लिए
शेड्स और पीने के पानी का इंतजाम करवाते।
  
भिखारियों को दान देने से
अच्छा है
वन विभाग के सहयोग से
वन्य जीव संरक्षण का काम किया जाए।
प्रकृति मां ने
जो हमें अमूल्य धन  सम्पदा
और जीवन दिया है ,
उससे ऋण मुक्त हुआ जाए।
प्रकृति को बचाने,उसे बढ़ाने के लिए
मानव जीवन में जागरूकता बढ़ाई जाए।
समाज को वनवासियों के जीवन
और उनकी संस्कृति से जोड़ा जाए।
निज जीवन में भी
सकारात्मक सोच विकसित की जाए ,
ताकि जीवन शैली प्रकृति सम्मत हो पाए।
बचपन में
उम्र पांच साल रही होगी
साल उन्नीस सौ इकहत्तर
महीना दिसंबर
शहर चंडीगढ़
सायरन की आवाज़ सुन कर
सब चौकन्ने हो जाते
रात हुई तो रोशनी,आग सब बंद
लोग भी अपने घर में बंद हो जाते
एक दिन रात्रि के समय
सायरन बजा  
लोग चौकन्ने और सतर्क
कंप्लीट ब्लैक आउट
मैं , मां और बहन
सब घर में कैद
सीढ़ियों के नीचे
लुक छुप कर बैठे
तभी  
बाहर को झांका
तो आसमान में रंग बिरंगी
रोशनियों को देख कर
दीवाली के होने का भ्रम हुआ
यह बाद में विदित हुआ कि
यह रंग बिरंगी रोशनी तो शत्रु के हवाई जहाज को
निशाना बनाने वाले तोप के गोलों से हुई थी।
उन दिनों मैं अबोध था ,
ब्लैक आउट डेज
मेरे इर्द गिर्द बगैर ख़ौफ़ पैदा किए निकल गए।
उन दिनों पाकिस्तानी जासूस पकड़े जाने की ख़बर
मुझे परी कथा की तरह लगती थी।
मैने इस बाबत दो चार बार
अपनी मां से चर्चा की थी।

मुझे यह भी याद है भली भांति
यदि कोई ब्लैक आउट डेज के समय
घर पर गलती से बल्ब जलता छोड़ता
तो उसी समय कोई पत्थर दनदनाता आता
और झट से बल्ब को तोड़ देता ,
वह नहीं टूटता तो खिड़की का कांच ही तोड़ देता।
बल्ब झट से ऑफ करना पड़ता।
गालियां जो सुनने को मिलतीं ,वो अलग।
वे दिन अजब थे, कुछ लोग डर और अज़ाब से भरे थे।
लोग देशप्रेम से ओतप्रोत चौकीदार बन देश सेवा को तत्पर रहते थे।

ये ब्लैकआउट डेज
बड़ा होने के बाद भी स्वप्नों में
आ आ कर मुझे सताते रहे हैं।
मेरे भीतर डर दहशत वहशत जगाते रहे हैं।
आज छप्पन साल बाद
शहर में ब्लैक आउट की रिहर्सल की गई है।
एक बार फिर सायरन बजा।
रोशनी बंद की गई।
किसी किसी के घर की रोशनी बंद नहीं थी।
उन्हें क्या ही कहा जाए ?
आज आधी रात ऑपरेशन सिंदूर किया गया।
देश की सेनाओं ने दहशतगर्दों के नौ ठिकानों पर हमला किया।
कल पड़ोसी देश भी निश्चय ही हवाई हमले करेगा।
कभी न कभी ब्लैकआउट भी होगा।
यदि इस समय किसी ने लापरवाही की तो क्या होगा ?
ब्लैकआउट धन,जान माल की सुरक्षा के लिए है।
इस बाबत सब जागरूक हों तो सही।
आजकल पार्कों में सोलर लाइटें लगी हैं।
सी सी टी वी कैमरे भी गलियों, दुकानों,मकानों ,चौराहों पर
चौकीदार का काम कर रहें हैं।
इन के साथ रोशनी का प्रबंध भी किया गया है ,
जो अंधेरा होते ही स्वयंमेव रोशन हो जाते हैं।
आप ही बताइए ब्लैकआउट के समय इनका क्या करें ?
इन पर जरूरत पड़ने पर रोक कैसे लगे ?
क्या इन पर काला लिफाफा बांध दिया जाए ?
फिलहाल कुछ काले दिनों के लिए !
स्थिति सामान्य होने पर काले लिफ़ाफ़ों को हटा दिया जाए !
जैसे जीवन में कुछ बड़े होने तक
ब्लैक आउट डेज अपने आप स्मृतियों में धुंधलाते चले गए।
और आपातकाल में ये फिर से शुभ चिंतक बन कर लौट आए हैं।
०७/०५/२०२५.
प्रशासन ने
आम जनता को
ब्लैक आउट के संबंध में
इस हद तक कर दिया है जागरूक

लोग निर्धारित समय तक
घर लौट आते हैं ,
समय रहते लाइट्स ऑफ कर देते हैं।
समय पर सोने और सुबह
जल्दी उठने की आदत को अपना रहे हैं।
अच्छा है
लोगों की सेहत सुधरेगी
रात जंगी सायरन बजा था
मैं थका हुआ गहरी नींद में सोया रहा
सुबह जगा तो देखा कि
खिड़कियों और रोशनदान पर
काले पर्दे टंगे थे
मुझे अच्छा लगा

सोचा कि समय रहते
ब्लैक आउट प्रिकॉशन ले लिया जाए !
जीवन की सार्थकता को समझा जाए !!
जीवन दीप को प्रकाशमान रखा जाए !!!
जीवन यात्रा को जारी रखने में ही है अक्लमंदी।
ब्लैक आउट प्रिकॉशन को तोड़ने का अर्थ होगा...
जीवन की संभावना को नष्ट करना।
सुख समृद्धि और संपन्नता के द्वार को असमय बंद करना।
१०/०५/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
सुध बुध भूली ,
राम की हो ली ,
मन के भीतर
जब से सुनी ,
झंकार रे !
जीवन में बढ़ गया
अगाध विश्वास रे !
यह जीवन
अपने आप में
अद्भुत प्रभु का
श्रृंगार रे!

भोले इसे संवार रे!!
भक्त में श्रद्धा भरी
अपार  रे!
तुम्हें जाना है
भव सागर के पार
प्रभु आसरे रे!
बन जा अब परम का
दास रे!
काहे को होय
अधीर रे!
निज को अब बस
सुधार रे!
यह जीवन
एक कर्म स्थली है
बाकी सब मायाधारी का
चमत्कार रे!
कुछ कुछ एक व्यापार रे!!
मनुष्य के समस्त  कार्यकलापों का
है आधार,
भावनाओं का व्यापार।
कोई भी
व्यवसाय को
देखिए और समझिए,
एक सीधा सा
गणित नज़र आता है,
वह है
भावनाओं को समझना
और तदनुरूप
अपना कार्य करना ,
अपने को ढालना।
यह भावनाएं ही हैं
जो हमें जीवन धारा से
जोड़े रखती हैं,
हमारे भीतर जीवंतता
बनाए रखती हैं।
जिसने भी
इन्हें समझ लिया,
उसने अपना उन्नति पथ
प्रशस्त कर लिया।
यह वह व्यापार है
जो कभी फीका नहीं पड़ता,
इसे करने वाला
जीवन में न केवल प्रखर
है होता रहता ,
बल्कि वह संतुलित दृष्टिकोण से
निरन्तर आगे ही आगे है बढ़ता।
भावनाओं का व्यापारी
दर्शन और मनोविज्ञान का
है ज्ञाता होता ,और वह सतत्
अपना परिष्कार करता रहता,
जीवन यात्रा को
आसानी से गंतव्य तक पहुंचाता।
०८/०३/२०२५.
कभी कभी अज्ञान वश
आदमी एक शव
जैसा लगने लग जाता है
और दुराग्रह ,पूर्वाग्रह की वजह से
करने लगता है
किसी भाषा विशेष का विरोध।
ऐसे मनुष्य से है अनुरोध
वह अपनी भाषा की
सुंदर और प्रभावशाली कृतियों को
अनुवाद के माध्यम से
करे प्रस्तुत और अभिव्यक्त
ताकि जीवन बने सशक्त।
भाषा विचार अभिव्यक्ति का साधन है।
यह सुनने ,बोलने,पढ़ने और लिखने से
अपना समुचित आकार ग्रहण करती है।
सभी को मातृ भाषा अच्छी लगती है ?
पर क्या इस एक भाषा के ज्ञान से
जीवन चल सकता है ?
आदमी आगे बढ़ना चाहता है।
यदि वह रोज़गार को ध्यान में रख कर
और भाषाएं सीख ले तो क्या हर्ज़ है ?
बल्कि आप जितनी अधिक भाषाएं सीखते हैं ,
उतने ही आप प्रखर बनते हैं।
अतः आप व्यर्थ का भाषा विरोध छोड़िए ।
हो सके तो कोई नई भाषा सीखिए।
आपको पता है कि हमारी लापरवाही से
बहुत सी भाषाएं दिन प्रति दिन हो रहीं हैं लुप्त।
उनकी खातिर आप अपने जीवन में
कुछ भूली बिसरीं भाषाएं भी जोड़िए।
ये विस्मृत भाषाएं
आप की मातृ भाषा का
बन सकती हैं श्रृंगार।
इससे क्या आप करेंगे इंकार ?
हो सके तो आप मेरे क्षेत्र विशेष में आकर
अपनी मातृभाषा के जीवन सौंदर्य का परिचय करवाइए।
अपनी मातृभाषा को पूरे मनोयोग से पढ़ाइएगा।
हमें ‌ज्ञान का दान देकर उपकृत कर जाइएगा।
१२/०१/२०२५.
व्यर्थ का भाषा विवाद
न केवल
संवाद में
बाधक सिद्ध होता है ,
बल्कि
यह एक झूठ बोलने से भी अधिक
ख़तरनाक है ,
जो देश, दुनिया में
आदमी की अस्मिता पर
करता कुठाराघात है।
यही नहीं
यह समाज विशेष की
प्रगति को भी देता है रोक।
यह प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों में
उत्पन्न कर देता है
आदमी को
झकझोर देने में सक्षम
अंतर्चेतना को उद्वेलित करती
शोक की लहरें।

इस समय देश में
भाषा विवाद को
भड़काया जा रहा है ,
हिंदी का भय दिखलाकर
अपनी राजनीतिक रोटियों को
सेका जा रहा है।
कितना अच्छा हो , हिंदीभाषी भी
दक्षिण की भाषाएं सीख लें।
वे हिंदी में डब्ब की
दक्षिण भारत की फिल्में
मूल भाषा में देखकर
संस्कृति का आनंद उठाएं,
अपनी समझ बढ़ाएं।

एक  ऐसे समय में
जब कुछ भाषाएं
मरण शैय्या के नजदीक
विलुप्ति की कगार पर हैं,
तो क्यों न उनको अपनाया जाए।
क्यों व्यर्थ के भाषा प्रकरण पर
विवाद बढ़ाया जाए ?
आओ इस बाबत संवाद रचाया जाए।
राष्ट्रीय एकता के स्वरों से
देश को आगे बढ़ाया जाए।
२०/०३/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
बूढ़े के भीतर
रहना चाहिए
सदैव एक बच्चा ।
जो झूठ को झाड़ कर
करता रहे
जीवन धारा को सच्चा ,
ताकि अंत
शांतिपूर्वक हो सके
और बन सके बूढ़ा
अनंत के आनंद  की
अनुभूति का हिस्सा।
इसलिए आदमी के भीतर
रहना चाहिए
भीतर सदैव एक बच्चा।
हवा में झूलने
जैसा हो गया है
अब उम्र बढ़ने से ,
याददाश्त कमज़ोर होने से ,
बार बार भूलना ,
और किसी नज़दीकी का
याद दिलाना ,
याद दिलवाने की
प्रक्रिया रह रहकर दोहराना ।
आदमी का
फिर भी भूलते जाना ।
स्मृतियों का हवा हवाई हो जाना ,
भीतर तक
कर देता है बेचैन !
बरबस
कभी कभी
बरस जाते हैं नैन !
जिन्दगी की धूप छाँव में
स्मृति की बदलियां
कभी कभी
बरस जाती हैं ,  
याददाश्त की किरणें
अचानक मन के भीतर
प्रवेश कर
आदमी को सुकून दे जाती हैं ,
मन को कमल सा खिला देती हैं।
भूलना लग सकता है
आदमी को शूल
मगर यह जिंदगी का स्वप्निल दौर भी
कभी हो जाता है
समय की धूल जैसा।
जिसे कोई स्मृति अचानक कौंध कर
कर देती है साफ़ !
सब कुछ याद आने लगता है ,
फिर झट से आदमी
अपना आस पास जाता है भूल,
उसकी चेतना पर पड़ जाती अचानक समय की धूल,
आदमी जाता भूल, अपना मूल !
यहीं है जीवन पथ पर बिखरे शूल !!
भूलना हवा में
झूलने जैसा हो गया है,
ऐसा लगता है कभी कभी
जीवन पथ कहीं खो गया है ,
चेतन तक  
कहीं नाराज़ होकर सो गया है।
भूलना हवा में झूलने जैसा होता है जब,
आदमी अपना अता पता खोकर,
लापता हो जाता है।
कभी कभी ही वह लौट पाता है !
वापसी के दौरान वह फिर अपनी सुध बुध भूल
कहीं भटकने लगता है।
ऐसी दशा देख कर
कोई उसका प्यारा
तड़पने लगता है।
०३/०३/२०२५.
आदमी
आज का
कितनी भी
कर ले चालाकियां ,
वह रहेगा
भोलू का भोलू!
कोई भी अपने बुद्धि बल से
चतुर सुजान तक को
दे सकता है
मौका पड़ने पर धोखा।
भोलू जीवन में
धोखे खाता रहा है,
ठगी ठगौरी का शिकार
बनता रहा है,
मन ही मन
कसमसाकर
रह जाता रहा है ।
एक दिन
अचानक भोलू सोच रहा था
अपनी और दुनिया की बाबत
कि जब तक
वह जिन्दगी के
मेले में था,
खुश था,
मेले झमेले में था ,
उसकी दिनचर्या में था।

भीड़ भड़क्का !
धक्कम धक्का !!
वह रह जाता था
अक्सर हक्का बक्का !!
अब वह इस सब से
घबराता है।
भूल कर भी भीड़ का हिस्सा
बनना नहीं चाहता है।
०८/०२/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
मजाक उड़ाना ,
मजे की खातिर
अच्छे भले को मज़ाक का पात्र बनाना ,
कतई नहीं है उचित।

जिसका है मज़ाक उड़ता ,
उसका मूड ठीक ही है उखड़ता।
यही नहीं,
यदि यह दिल को ठेस पहुंचाए ,
तो उमंग तरंग में डूबा आदमी तक
असमय ही बिखर जाए ,
मैं उड़ाना तक भूल जाए ।


मजाक उड़ाना,
मज़े मज़े में मुस्कुराते हुए
किसी को उकसाना ।
उकसाहट को साज़िश में बदलना,
अपनी स्वार्थ को सर्वोपरि रखना,
यह सब है अपने लिए गड्ढा खोदना।


मज़ाक में कोई मज़ा नहीं है ,
बेवजह मज़ाक के बहाने ढूंढना
कभी-कभी आपके भीतर
बौखलाहट भर सकता है ,
जब कोई जिंदा दिल आदमी
आपकी परवाह नहीं करता है
और शहर की आपको नजर अंदाज करता है,
तब आप खुद एक मज़ाक बन जाते हैं ।
लोग आपको इंगित कर ठहाके लगाते हैं !
आप भीतर तक शर्मसार हो जाते हैं

आप मज़ाक उड़ाना और मज़े लेना बिल्कुल भूल जाते हैं।


पता है दोस्त, नकाब यह दुनिया है नकाबपोश,
जहां पर तुम विचरते हो ,
वहां के लोग नितांत तमाशबीन हैं।
दोस्त, भूल कर मजाक में भी मजा न ढूंढ,
यह सब करना मति को बनाता है मूढ़!
ऐसा करने से आदमी जाने अनजाने मूढ़ मति  बनता है।
वह अपने आप में मज़ाक का पात्र बनता है।
हर कोई उस पर रह रह कर हंसता है।
ऐसा होने पर आदमी खिसिया कर रह जाता है।
अपना दुःख दर्द चाह कर भी व्यक्त नहीं कर पाता है।
आदमी हरदम अपने को एक लूटे-पीटे मोहरे सा पाता है।
०९/०२/२०१७.
मटर छिलते समय
कभी नहीं आते आंसू ,
जबकि प्याज काटते समय
आँखें आंसुओं को बहाती है !
ऐसा क्यों ?
कुदरत भी अजीब है,
यह सब और सच के करीब है !
कोई बनता है मटर ,
कोई रुलाने वाला,
कोई कोई प्याज और टमाटर भी।
यह सब कुदरत का है खेल।
इसे देखता जा, और सीखता जा।
जीवन सभी से कहता है,
वह मतवातर समय के संग बहता है।

मटर छिलते समय
कोई कोई दाना छिपा रह जाता है,
मटर के छिलके
कूड़ेदान में फेंकते समय
मटर का दाना
अचानक दिख जाता है ,
आदमी सोचता है कभी कभी
यह कैसे बच गया ?
बिल्कुल इसी तरह
सच भी
स्वयं को
अनावृत्त करने से
रह जाता है,
वह मटर के दाने की तरह
पकड़ में आने से बच जाता है।
15/03/2025.
Joginder Singh Dec 2024
जीवन में
बेशक चलो
सभी से हंसी-मजाक करते हुए ,
प्यार और लगाव से बतियाते हुए ,
क़दम क़दम पर
स्वयं को
जीवन के उतार चढ़ाव से भरे सफर में
हरदम चेताते हुए ।
पर
हर्गिज न बोलो
कभी किसी से
बड़बोले बोल ।
यह
जीवन
अनिश्चितताओं से भरा हुआ है ,
क्या पता?
कब क्या घट जाए?
कहीं बीच सफ़र
ढोल की पोल खुल जाए ।
अतः सोच समझ कर बोलना चाहिए।
कठिनाइयों का सामना
बहादुरी से किया जाना चाहिए।

भूलकर भी मत बोल ,
कभी भी बड़बोले बोल।
कुछ भी कहो,
मगर कहने से पहले
उसे अंतर्घट में लो तोल।
इस जहान में
जीवन की गरिमा बची रहे ,
इस अनमोल जीवन में
अस्तित्व को कोई झिंझोड़ न सके,
आदमी अपनी अस्मिता कायम  रख सकें ,
इसकी खातिर हमेशा
बड़बोले बोलों से बचा जाना चाहिए।
ऐसे बिना सोचे-समझे
कुछ भी कहने से
ख़ुद का पर्दाफाश होता है।
और दुनिया को
हंसी ठिठोली का अवसर मिलता है,
ऐसे में
आत्म सम्मान मिट्टी में मिल जाता है,
आत्म विश्वास भी डांवाडोल हो जाता है।
यही नहीं, आदमी देर तक
भीतर ही भीतर
लज्जित और शर्मिंदा होता रहता है।

०८/१२/२०२४.
उम्र बढ़ने के साथ साथ
भूलना एकदम स्वाभाविक है ,
परन्तु अस्वाभाविक है ,
विपरीत हालातों में
आदमी की
जिजीविषा का
कागज़ की पुड़िया की तरह
पानी में घुल मिल जाना ,
उसका लड़ने से पीछे हटते जाना ,
लड़ने , संघर्ष करने की वेला में ,
भीतर की उमंग तरंग का
यकायक घट जाना ,
भीतर घबराहट का भर जाना ,
छोटी छोटी बातों पर डर जाना।
ऐसी दशा में
आदमी अपने को कैसे संभाले ?
क्या वह तमाम तीर
और व्यंग्योक्तियों को
अपने गिरते ढहते ज़मीर पर आज़मा ले ?
क्या वह आत्महंता बन कर धीरू कहलवाना पसंद करे ?
क्यों न वह मूल्यों के गिरते दौर में
धराशाई होने से पहले
खुद को अंतिम संघर्ष के लिए तैयार करे ?
जीवन में अपने आप को
विशिष्ट सिद्ध करने के लिए हाड़ तोड़ प्रयास करे ?

वह जीवन में
लड़ना कतई न भूले ,
वरना सर्वनाश सुनिश्चित है ,
त्रिशंकु बनकर लटके रहना , पछताना भी निश्चित है।
अनिश्चित है तो खुद की नज़रों में फिर से उठ पाना।
ऐसे हालातों से निकल पाने के निमित्त
तो फिर
आदमी अपने आप को
क्यों न जीवन पथ पर लड़ने के काबिल बनाए ?
वह बिना लड़े भिड़े ही क्यों खुद को पंगु बनाए ?
वह अपने को जीवन धारा के उत्सव से जोड़े।
जीवन की उत्कृष्टता के साक्षात दर्शनार्थ
अपने भीतर उत्साह,उमंग तरंग,
अमृत संचार के भाव
निज के अंदर क्यों न समाहित करे ?
वह बस बिना लड़े घुटने टेकने से ही जीवन में डरे।
अतः मत भूलो तुम जीवन में मनुष्योचित लड़ना।
लड़ना भूले तो निश्चित है ,
आदमजात की अस्मिता का
अज्ञानता के नरक में जाकर धंसना।
पल पल मृत्यु से भी
बदतर जीवन को
क़दम क़दम पर अनुभूत करना।
खुद को सहर्ष हारने के लिए प्रस्तुत करना।
भला ऐसा कभी होता है ?
आदमी विजेता कहलवाने के लिए ही तो जीता है !
०२/०४/२०२५.
महाभारत में कौन थी मत्स्य कन्या
जिसने किया था विवाह
राजा शांतनु से और
जिसका संबंध
भीष्म पितामह से
आजीवन ब्रह्मचर्य  का पालन करने
और कुरु वंश  का संरक्षक बने रहने के
वचन लेने से
जोड़ा जाता
है ?
इस बाबत मुझे सूचित कीजिए !
मेरे भीतर व्याप्त भ्रम को  तनिक दूर कीजिए !!
हो सकता है कि  मैं गलत हूं।
मां सत्यवती के बारे में
मेरी जिज्ञासा शान्त कीजिए।

मरमेड की बाबत आपने सुना होगा।
अपने जीवन में भी एक जलपरी की खोज कीजिए।
सतरंगी इंद्रधनुषी मछली
और
गिप्पी मछली के बारे में भी
कुछ खोजबीन कीजिए ,
अपनी सोच में
एक मीन को भी जगह दीजिए।
शायद कोई मीन जैसी आंखों वाली
कोई गुड़िया दिख जाए।
जीवन के प्रति आकर्षण बढ़ जाए।
जीवन में धरा पर ही नहीं जीवन है ,
बल्कि यह आकाश और जल में भी पनपता है ,
इस बाबत भी सोचिए।
उनके लिए भी सोचिए
जो धरा से इतर
जल और वायु में श्वास ले रहे हैं !
जीवन को आकर्षक बनाने में भरपूर योगदान दे रहे हैं!!
०७/०१/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
रात सपने में
मुझे एक मदारी दिखा
जो 'मंदारिन ' बोलता था!
वह जी भर कर कुफ्र तोलता था!!
अपनी धमकियों से वह
मेरे भीतर डर भर गया ।
कहीं
गहराई में
एक आवाज सुनी ,
'.. डर गया सो मर गया...'  
मैं डरपोक !
कायम कैसे रखूं अपने होश ?
भीतर कैसे भरूं जिजीविषा और जोश?
यह सब सोचता रह गया ।
देखते ही देखते
सपने का तिलिस्म सब ढह गया।
जागा तो सोचा मैंने
अरे !मदारी तो
सामर्थ्यवान बनने के लिए कह गया।
अब तक मेरा देश
कैसे जुल्मों सितम सह गया?
हम कितनी ही फराखदिली
और सहिष्णुता की बात
आपस में कर लें ,
हमारे मन में
मान सम्मान जैसी
मानवीय कमज़ोरी
अवचेतन में
पड़ी रह जाती है,
जब जीवन में
उपेक्षित रह जाने का दंश
दर्प को ठोकर
अचानक अप्रत्याशित ही
दे जाता है
तब मानव सहज नहीं रह पाता है ,
वह भीतर तक तिलमिला जाता है ,
वह प्रतिद्वंद्वी को झकझोरना चाहता है।

इस समय मन में गांठ पड़ जाती है
जो आदमी के समस्त ठाट-बाठ को
धराशायी कर जाती है ,
यह सब घटनाक्रम
आदमी के भीतर को
अशांत और व्यथित कर जाता है।
वह प्रतिद्वंद्वी को
नीचा दिखाने की ताक में लग जाता है।

विनाश काल , विपरीत बुद्धि वाले
दौर में विवेक का अपहरण हो जाता है,
आदमी अपना बुरा भला तक सोच नहीं पाता है।
ऐसा अक्सर सभी के साथ होता है ,
इस नुकसान की भरपाई की चेष्टा करते हुए
दिन रात सतत प्रयास करने पड़ते हैं ,
तब भी वह पहले जैसी बात नहीं बनती है ,
मन के भीतर पछतावे की छतरी रह रह कर तनती है।
यह मनोदशा मरने तक
आदमी को हैरान व परेशान मतवातर करती रहती है।
पर विपरीत परिस्थितियों के आगे किसकी चलती है ?
यह उलझन आदमी का पीछा कभी नहीं छोड़ती है।
२७/०१/२०२५.
पहलगाम के
नृशंस हत्याकांड के बाद
आज के रविवार
पी. एम. सर
अपनी मन की बात को
सुरक्षा के संदर्भ में
आगे बढ़ाएंगे।
देखें , उन द्वारा व्यक्त विचार
घायल राष्ट्र को
कितना मरहम लगाते हैं।
वे देश भक्ति के जज्बात को
किस तरह भविष्य की रणनीति से जोड़ेंगे।
वे राष्ट्र की अस्मिता को
किस दृष्टिकोण से
देश के नागरिकों के सम्मुख रखेंगे।
देश अब भी किसी पड़ोसी देश का अहित
नहीं करना चाहता।
वह तो अपनी सरहदों को
सुरक्षित देखना चाहता।
वह देश दुनिया में अमन चैन का परचम
लहराते देखना चाहता ।
हाँ, देश यह जरूर चाहेगा कि
राष्ट्र के आंतरिक शत्रुओं पर
लगाम कसी जाए
ताकि देश भर में
आंतरिक एकता को दृढ़ किया जा सके,
सुख , समृद्धि और संपन्नता भरपूर
राष्ट्र को बनाया जा सके।
उसका हरेक नागरिक
उसकी आन बान शान को बढ़ा सके।
मन की बात में निहित अंतर्ध्वनि को सब सुनें ,
यहां तक कि पड़ोसी देशों के नागरिक भी ,
ताकि सभी देशों के नागरिक
हालात के अनुरूप खुद को ढाल सकें।
वे अपने अपने राष्ट्र की ढाल बनने में सक्षम हो सकें।
देश में अमन शांति कायम रहें ।
बेशक सब अपने अपने स्तर पर
सजग और चौकन्ने बने रहें।
२७/०४/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
व्यथित मन
आजकल मनमानियों पर
उतारू है,
इस ने बनाया हुआ
बहुतों को
बीमारू है।
उसके अंदर व्याप्त
प्रदूषण पर कैसे रोक लगे।
आओ,इस बाबत जरा बात करें ।
मन के भीतर का
सूख चुका जंगल तनिक हो सके हरा भरा।

मन के प्रदूषण पर रोक लगे,
कुछ तो हो कि
मानव का व्यक्तित्व
आकर्षण का केंद्र बने ।

जब मन
मनमानियां करने लगे,
और आदमी
अनुशासन भंग करने लगे ,
तो कैसे नहीं ?
आदमी औंधे मुँह गिरे!
फिर तो मतवातर
भीतर डर भरे।
अब सब सोचें,
मन की मनमानी कैसे रुके?

मन की उच्छृंखलता पर
लगाम कसने की
सब कोशिश करें,
ताकि आदमी
सच से नाता जोड़ सके,
और वह पूर्ववत के
अपने अधूरे छूट चुके कामों को
निष्पादित करने का यत्न करे।

इसी प्रक्रिया से आदमी निज को गुजारे।
उसके भीतर
खोया हुआ आत्मविश्वास लौटे
और शनै: शनै:
उसकी मनोदशा में सुधार हो,
वह आगे बढ़ने के लिए तैयार हो।

उसके मन की संपन्नता बढ़े,
और मन में जो मुफलिसी के ख्यालात भर चुके हैं,
वे धीरे धीरे से समाप्त हों।
मन के आकाश में से
दुश्चिंतता,अनिश्चितता, अस्पष्टता,
अंधेरे के बादल
छंटने लगें,
मन के भीतर
फिर से
उजास भर जाए।
सब आगे बढ़ने के प्रयास करते जाएं।

मन का उदास जंगल
फिर से खिल उठे,
सब इस खातिर प्रयास करें।
आओ,इस मुरझाए
मन के जंगल में
हरियाली के बीज फैलाएं।
यह हरा भरा होता चला जाए।

आओ,
मन के जंगल में
कुछ
प्रसन्नता, संपन्नता की खाद डालकर ,
वहां अंकुरित बीजों को
सुरक्षा का आवरण प्रदान करें,
ताकि वहां शांति वन बनाया जा सके।

कालांतर में
यही वन
व्यक्ति,समाज,देश को
अशांति, दुःख,दर्द, मुफलिसी के दौर में
तेज तीखी धूप में
छाया देते प्रतीत हों।
मन में कुछ ठंडक महसूस हो।

जब मन के भीतर खुशियां भर जाती हैं,
तब मन को नियंत्रित करना सरल है,
मन के भीतर से कड़वाहट खत्म होती जाती है,
एक पल सुख सुकून का भी आता है,
उस समय मन की मनमानी पर रोक लग ही जाती है।
और मन का वातावरण
हरियाली के बढ़ने,
पुष्पों के खिलने,
परिंदों के चहकने,
बयार के चलने से
सुवासित हो जाता है।
मन के भीतर कमल खिल जाता है!
आदमी स्वत: खिल खिल जाता है।!!
यह सब कुछ
भीतर के ताप को
कम कर देता है।
आदमी शीतलता की अनुभूति करता है।
धीरे धीरे मन के प्रदूषण पर रोक लग जाती है।
मन के भीतर सकारात्मकता भर जाती है।
आदमी  के मन की मरुभूमि
नखलिस्तान सरीखी हो जाती है।
हर किसी की सोच बदल जाती है।
मन का प्रदूषण दूर हुआ तो
अमन चैन की दुनिया घर में बस जाती है।
ऐसे में
संपन्नता की खनक भी सुनी जाती है।
Joginder Singh Dec 2024
कुछ ग़लत होने पर
हर कोई
और सब कुछ
शक एवं संदेह के
घेरे में आता है।
यहां तक कि जीवन में
बेशुमार रुकावटें
उत्पन्न होना शुरू हो जाती हैं।
इससे न केवल मन का करार
खत्म होता है
और
जीवन टूटने के कगार पर
पहुंच जाता है
बल्कि
धीरे-धीरे
जीने की उमंग तरंग भी
जीवन में मोहभंग व तनाव से
निस्सृत बीज के तले
दबने और बिखरने लगती है।
आदमी की दिनचर्या में
दरारें साफ़ साफ़ दिख पड़ती हैं।
उसे अपना जीवन
फीका और नीरस
लगने लगता है।

यदि
जीवन में
कुछ ग़लत घटित हो ही जाए ,
तो आदमी को चाहिए
तत्काल
वह अपने को जागृत करें
और अपनी ग़लती को ले समय रहते सुधार।
वरना सतत् पछतावे का अहसास
मन के भीतर बढ़ा देता है अत्याधिक भार ।
आदमी परेशान होकर इधर-उधर भटकता नज़र आता है।
उसे कभी भी सुख समृद्धि ,
संपन्नता और चैन नही मिल पाता है।
२५/१२/२०२४.
जीवन बेइंतहा दौड़ धूप से
कहीं एक तमाशा न लगने लग जाए ,
इससे पहले ही अपने हृदय के भीतर
आशा के फूल खिलाओ।
ये सुगंधित पुष्प सहज रहने से
जीवन वाटिका में लेते हैं आकार
अतः स्वयं को व्यर्थ की भाग दौड़ से बचाओ।
निज जीवन धारा में निखार लाकर
अपने को मानसिक तौर से भी
स्वच्छ और उज्ज्वल बनाने में सक्षम बनाओ।
इसलिए श्रम साध्य जीवन शैली
और सार्थक सोच को
अपने व्यक्त्तिव के भीतर विकसित करो।
जीवन के उतार चढ़ावों से न डरते फिरो।
अपने आप को सुख समृद्धि
और संपन्नता से भरपूर करो।
जीवन निराशा और हताशा की गर्त में न डूब जाए ,
इसे ध्यान में रखकर अपने जीवन को सार्थक बनाओ।
अपने और दूसरों के जीवन में सहयोग से
जीवन में ऊर्जा, सद्भावना
और जिजीविषा की सुगंध फैलाओ।
सदैव मन में आशा के पुष्प खिलाओ।
१४/०१/२०२५.
मन की गति बड़ी तीव्र है !
इसे समझना भी विचित्र है!
मन का अधिवास है कहां ?
शायद तन के किसी कोने में!
या फिर स्वयं के अवचेतन में!
मन इधर उधर भटकता है !
पर कभी कभी यह अटकता है!!
यह मन , मस्तिष्क में वास करता है।
आदमी सतत इस पर काबू पाने के
निमित्त प्रयास करता रहता है।
यदि एक बार यह नियंत्रित हो जाए ,
तो यह आदमी के भीतर बदलाव लाता है।
आदमी बदला लेना तक भूल जाता है।
उसके भीतर बाहर ठहराव जो आ जाता है।
यह जीव को मंत्र मुग्ध करता हुआ
जीवन के प्रति अगाध विश्वास जगाता है।
यह जीवंतता की अनुभूति बन कर
मतवातर जीवन में उजास भरता जाता है
आदमी अपने मन पर नियंत्रण करने पर
मनस्वी और मस्तमौला बन जाता है।
वह हर पल एक तपस्वी सा आता है नज़र,
उसका जीवन  और दृष्टिकोण
आमूल चूल परिवर्तित होकर
नितांत जड़ता को चेतनता में बदल देता है।
वह जीवन में उत्तरोत्तर सहिष्णु बनता चला जाता है।
मन हर पल मग्न रहता है।
वह जीवन की संवेदना और सार्थकता का संस्पर्श करता है।
मन जीवन के अनुभवों और अनुभूतियों से जुड़कर
सदैव
क्रियाशील रहता है।
सक्रिय जीवन ही मन को
स्वस्थ और निर्मल बनाता है।
इस के लिए
अपरिहार्य है कि
मन रहे हर पल कार्यरत और मग्न ,
यह एक खुली किताब होकर
सब को सहज ही शिखर की और ले जाए।
इस दिशा में
आदमी कितना बढ़ पाता है ?
यह मन के ऊपर
स्व के नियंत्रण पर निर्भर करता है ,
वरना निष्क्रियता से मन बेकाबू होकर
जीवन की संभावना तक को
तहस नहस कर देता है।
कभी कभी मन की तीव्र गति
अनियंत्रित होकर जीवन में लाती है बिखराव।
जो जीवन में तनाव की बन जाती है वज़ह ,
फलस्वरूप जीवन में व्याप्त जाती है कलह और क्लेश।
इस मनःस्थिति से बचना है तो मन को रखें हर पल मग्न।


०६/०१/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
हे मेरे मन!
अब और न करो निर्मित
बंधनयुक्त घेरे
स्वयं की कैद से
मुझे इस पल
मुक्त करो।
अशांति हरो।

हे मन!
तुमने मुझे खूब भटकाया है,
नित्य नूतन चाहतों को जन्म दे
बहुत सताया है।
अब
मैं कोई
भ्रांति नहीं, शान्ति चाहता हूँ।
जर्जर देह और चेहरे पर
कांति चाहता हूँ।
देश समाज में क्रांति का
आकांक्षी हूँ।

हे मेरे मन!
यदि तुम रहते शांत हो
तो बसता मेरे भीतर विराट है
और यदि रहते कभी अशांत हो
तो आत्म की शरण स्थली में,
देह नेह की दुनिया में
होता हाहाकार है।

हे मन!
सर्वस्व तुम्हें समर्पण!
तुम से एक अनुरोध है
अंतिम श्वास तक
जीवन धारा के प्रति
दृढ़ करते रहो पूर्व संचित विश्वास।
त्याग सकूँ
अपने समस्त दुराग्रह और पूर्वाग्रह ,
ताकि ढूंढ सकूँ
तुम्हारे अनुग्रह और सहयोग से
सनातन का सत्य प्रकाश,
छू सकूँ
दिव्य अनुभूतियुक्त आकाश।

हे मेरे मन!
अकेले में मुझे
कामनाओं के मकड़जाल में
उलझाया न करो।
तुम तो पथ प्रदर्शक हो।
भूले भटकों को राह दिखाया करो।
अंततः तुम से विनम्र प्रार्थना है...
सभी को अपनी दिव्यता और प्रबल शक्ति के
चमत्कार की अनुभूति के रंग में रंग
यह जीवन एक सत्संग है, की प्रतीति कराया करो।
बेवजह अब और अधिक जीवन यात्रा में भटकाया न करो।


हे मेरे मन!
नमो नमः

मन मंदिर में सहजता से
प्रवेश करवाया करो,
सब को सहज बना दरवेश बनाया करो।
सभी का सहजता से साक्षात्कार कराया करो,
हे मन के दरवेश!
Joginder Singh Nov 2024
मन से
करो अपने काम
ताकि उठाना न पड़े
और अधिक नुक्सान।
यदि तुम
बेमन से काम करोगे
तो बेबसी के गर्त में
तुम जा पड़ोगे!
पल प्रति पल
खुद से तुम लड़ोगे!!
जल्द ही तुम जा थकोगे।
बीच रास्ते जा गिरोगे ।
फिर अपनी मंज़िल कैसे वरोगे?
अतः दोस्त,
मन को काबू में रखा करो।
अपने और पराए की परख
सोच समझकर किया करो।
तभी सच को
कहीं गहरे से जान सकोगे।
अपने लिए एक सुरक्षा कवच निर्मित कर पाओगे।
यदि ऐसा तुम कर लेते हो
तो सचमुच!!
तुम मनस्वी बनने की ओर
क़दम उठा पाओगे।
अपने भीतर व्याप्त संभावना का
सहर्ष  संस्पर्श कर पाओगे।
ईर्ष्या की अगन को
निज से दूर रख पाओगे।
हां ,तभी तुम !
जीवन में कुंदन बन पाओगे।
और देखना तुम, खुद तो प्रसन्न चित्त रहोगे ,
बल्कि पड़ोसियों तक को
सुखी कर जाओगे।
अपने इर्द-गिर्द
सुख ,समृद्धि, संपन्नता के बीजों को फैला पाओगे ।
तुम स्वत: अपनी नई पहचान बनाओगे।
२८/०८/२०१५.
जन्म और मरण
इन्सान के हाथ में नहीं।
जैसे जन्मना और मरना
किसी के वश में नहीं।
बीमार -लाचार  
हताश-निराश
आदमी
कभी कभी
मरना चाहता है
पर यह कतई आसान नहीं।
असमय मरने को तुला व्यक्ति
यदि मर भी जाता है
तो वह करता है
किसी पर
कोई अहसान नहीं।
बल्कि वह दुनिया में
कायर ‌कहलाता है,
और उसे भुला दिया जाता है।

आदमी अपने को सक्रिय रखें
ताकि वह सहजता से जीवन पथ पर आगे बढ़े,
अपने अंतर्मन को दृढ़ करते हुए ,
अपनी क्षुद्रताओं से लड़ने का हौसला मन में भरे ,
वह जीवन में संयम से काम लेते हुए
सुख समृद्धि और सम्पन्नता का वरण कर सके।
सक्रियता जीवन है और निष्क्रियता मरण।
कर्मठता से आदमी बन सकता है असाधारण।
मरना और जीना,संघर्ष करते हुए टिके रहना, आसान नहीं।
जीवन को सार्थक दिशा में आगे बढ़ाना ही है सही।
२७/०१/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
मर्यादा
माया से डरे नहीं
बल्कि
वह अपनी सीमा से बंधी रहे।
कुछ ऐसा
तुम पार्थ करो,
सार्थक जीवन के लिए
जन जन के
प्रेरक बनो ।
कहे है इतिहास सभी से
कृष्ण सा चेतना पुंज बनो।
जीवन युद्ध के संघर्षों में  
शत्रुहंता होने के निमित्त
धनुष पर राम बाण से होकर तनो ।
जीवन के वर्चस्व को  
राष्ट्र प्रथम के सिद्धांत की तरह चुनो।
मनुष्य
जब तक स्वयं को
संयम में
रखता है
मर्यादा बनी रहती है ,
जीवन में
शुचिता
सुगंध बिखेरती रहती है,
संबंध सुखदायक बने रहते हैं
और जैसे ही
मनुष्य
मर्यादा की
लक्ष्मण रेखा को भूला ,
वैसे ही
हुआ उसका अधोपतन !
जीवन का सद्भभाव बिखर गया !
जीवन में दुःख और अभाव का
आगमन हुआ !
आदमी को तुच्छता का बोध हुआ ,
जिजीविषा ने भी घुटने टेक दिए !
समझो आस के दीप भी बुझ गए !
मर्यादाहीन मनुष्य ने अपने कर्म
अनमने होकर करने शुरू किए !
सुख के पुष्प भी धीरे धीरे सूख गए !!
मर्यादा में रहना है
सुख , समृद्धि और संपन्नता से जुड़े रहना !
मर्यादा भंग करना
बन जाता है अक्सर
जीवन को बदरंग करना !
अस्तित्व के सम्मुख
प्रश्नचिह्न अंकित करना !!
मन की शांति हरना !!
१२/०३/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
जब-जब युग
युगल गीत गुनगुनाना
चाहता है
लेकर अपने संग
जनता जनार्दन की उमंग तरंग ,
तब तब
मन का
बावरा पंछी
उन्मुक्त गगन का
ओर छोर
पाना चाहता है !
पर...
वह उड़ नहीं पाता है
और अपने को भीतर तक
भग्न पाता है।

और
यह मसखरा
उन्हें  उनकी  
नियति व बेबसी की
प्रतीति कराने के निमित्त
प्रतिक्रिया वश अकेले ही
शुगलगीत
गाता है,
मतवातर
अपने में डूबना
चाहता है !!

पर
कोई उसे
अपने में डूबने तो दे!
अपने अंतर्करण को
ढूंढने तो दे !
कोई उसे
नख से शिख तक
प्रदूषित न करे !!

२५/०४/२०१०.
Joginder Singh Nov 2024
किसे लिखें ?
अपने हाल ए दर्द की तफ़्सील।
महंगाई ने कर दिया
अवाम का फटे हाल।


पिछले साल तक
चार पैसे खर्च के बावजूद
बच जाते थे!
तीज त्योहार भी
मन को भाते थे!!

अब त्योहार की आमद पर
होने लगी है घबराहट
सब रह गए ठाठ बाठ!
डर दिल ओ दिमाग पर
हावी हो कर, करता है
मन की शांति भंग!
राकेट सी बढ़ती महंगाई ने
किया अब सचमुच नंग!
अब वेतनभोगी, क्या व्यापारी
सब महंगाई से त्रस्त एवं तंग!!
किस से कहें?
अपनी बदहाली का हाल!
अब तो इस महंगाई ने
बिगाड़ दी है अच्छे अच्छों की चाल!
सब लड़खड़ाते से, दुर्दिनों को कोसते हैं
सब लाचारी के मारे हैं!
बहुत जल्दी बन बैठे बेचारे हैं!!
सब लगने लगे थके हारे हैं!!
कोई उनका दामन थाम लो।
कहीं तो इस मंहगाई रानी पर लगाम लगे ।
सब में सुख चैन की आस जगे।
  १६/०२/२०१०.
दुनिया के भीतर
आदमी का सुरक्षा कवच
होती है मां
और मां को सुरक्षा
देता है उसका पुत्र।
मां ही
पुत्र की दृष्टि में
दुनिया के भीतर
सबसे सुंदर होती है
क्योंकि कि
मां पुत्र की
पहली शिक्षिका होती है
जिसके सान्निध्य में
जीवन का बीज
अंकुरित होता है
और यह पुष्पित पल्लवित भी
मां की अपार कृपा से होता है।
ममत्व की मूर्ति मां की आत्मा
पुत्र में बसती है
और पुत्र की कमज़ोरी
उसकी मां होती है।
पुत्र मां को दुखी नहीं देख सकता।
उसके लिए वह लड़ भी है पड़ता।
एक सच कहूं
पुत्र की नज़र में
मां की सुन्दरता
अनुपम होती है।
मां में कायनात बसती है।
मां में जीवन की खुशबू रहती है।
मां के न रहने पर
सुध बुध सुख की गठरिया
बिखर जाती है।
अकेले होने पर
मां बहुत याद आती है।
उसकी अनुभूति
जीवन की शुचिता की
प्रतीति कराती है।
मां होती है सबसे सुंदर
उसकी यादों में बसता है
भावनाओं  का समन्दर।
११/०५/२०२५.
माँ , माँ
होती है।
उससे
बेटी का दुःख
देखा नहीं जाता।
बेटी को दुःखी देख कर
माँ का मन है भर आता।
माँ सदैव चाहती है कि
बिटिया रानी सदैव सुखी रहे ,
यदि कोई उतार चढ़ाव और कष्ट
बिटिया की राह में आन पड़े ,
तो भी वह बिटिया का सहारा बने।
बेशक उसे रूढ़ियों और ज़माने से
लड़ना पड़े !
वह संतान सुख की खातिर
दुनिया भर से संघर्ष करे !!
बिटिया की रक्षार्थ वह शेरनी बन
विपदाओं का सामना ख़ुशी ख़ुशी करे !!
माँ सदैव बिटिया रानी की खातिर
अपना जीवन कुर्बान करने के लिए तत्पर रहे।
१२/०३/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
आज
अचानक मां की याद आई ,
मेरी आंखें भर आईं।
मां
आखिरी समय में
कुछ-कुछ
जिद्दी हो गईं थीं
मानो
उन्हें इस
जगमग जगमग करते जगत से
विरक्ति हो गई हो।
उन्हें समस्त
सांसारिक चमक दमक
फीकी और बेकार
लगने लगी हो।
वह
तस्वीर खिंचवाने से
कतराने लगी थीं।

आज
अचानक
नए वर्ष के दिन
बस में यात्रा करते हुए
उगते सूरज का
अक्स
खिड़की के शीशे में देखकर,
इसके साथ ही
अपनी काया में
बुढ़ापे के लक्षण महसूस कर
अपनी देह के भग्नावशेष
दर्पण में देख
मैं रह गया था सन्न !
मुझे मां की याद आई थी ।
मेरी आंखें भर आईं थीं ।
वर्षों बाद
अब अचानक
मां की व्यथा
मेरी समझ में आई थी।
मां क्यों तस्वीर खिंचवाने से
कतराईं थीं।
मां
मौत की परछाई को
आसपास मंडराते देख
आगत की आहट को समझ पाई थीं।
शायद यही वजह रही हो
मां के जिद्दी हो जाने की ।
मेरी चेतना में
अचानक मां की जो तस्वीर उभरी थी
उसे मैंने नमन किया ।
देखते ही देखते
मां की वह स्मृति अदृश्य हुई।
आंखें खुलीं
तो मुझे एहसास हुआ
कि मैं बस में हूं
और
मेरा गंतव्य आ गया है।
मैं बस से उतरने की तैयारी करने लगा ।
मां मेरी स्मृतियों में सदैव बसी हैं।
मेरी आंखें भरी हैं।
Joginder Singh Nov 2024
मन का मीत करता रहता मुझे आगाह।
तू अनाप शनाप खर्च न किया कर।
कठिन समय है,कुछ बचत किया कर।
खुदगर्ज़ी छिपाने की मंशा से दान देता है,
बिना वज़ह धन को लुटाने से बचा कर।
मन का मीत करता रहता मुझे आगाह।
मत बन बेपरवाह, मितव्ययिता अपना,
अनाप शनाप खर्च से जीवन होता तबाह।
धोखा खाने, पछताने से अपना आप बचा।
देख, कहीं यह जीवन बन न जाए एक सज़ा।।
अब उत्तर मिल गया है
मिसाइल अटैक के रूप में
पहलगाम आंतकी हमले से
देश दुनिया से सवाल पूछने का
दुस्साहस करने का
पड़ोसी देश को।
आधी रात को
मिसाइल अटैक कर
देश ने अपना आक्रोश प्रकट किया है ,
उसने स्वयं को संतुलित किया है ,
किसी हद तक घुटन मुक्त होकर
चैन का सांस लिया है।
युद्ध का सांप अब भी गले पड़ा है ,
यह सर्प रह रह कर फुंफकार रहा है।
देश अभी भी जाग रहा है।
वह सोया नहीं ,
अभी तो कुछ हुआ ही नहीं !
जंगी मसाइल का समाधान मिलने में समय लगेगा।
तब तक आरोप प्रत्यारोप की मिसाइलों से
युद्ध को जारी रखा जाएगा।
युद्धाभ्यास करते हुए
आत्म सम्मान को बरकरार रखा जाएगा।
यदाकदा अपनी मौजूदगी का अहसास
छोटे मोटे प्रहार करते हुए
मतवातर करवाया जाएगा।
अब भी क्या कोई देशभक्त को
कायर समझने की गुस्ताखी करना चाहेगा ?
०७/०५/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
तुम मुझ से
स्व शिक्षितों की सामर्थ्य के विषय में
अक्सर पूछते हो।
उन जैसा सामर्थ्य प्राप्त कर लेना
कोई आसान नहीं।
इस की खातिर अथक प्रयास करने पड़ते हैं,
तब कहीं जाकर मेहनत
अंततः मेहनत फलीभूत होती है।


पर यही सवाल तुम मुझ से
अनपढ़ों की बाबत करते,
तो तुम्हे यह जवाब मिलता।

काश!अब
आगे बढ़ती दुनिया में
कोई भी न रहे अशिक्षित ।
कोई भी न कहलाए
अब कतई अंगूठा छाप।
अनपढ़ता कलंक है
सभ्य समाज के माथे पर।
यह इंसानों को
पर कटे परिंदे जैसी बना देती है,
उनकी परवाज़ पर रोक लगा देती है।

जन जन के सदप्रयासों से
अनपढ़ता का उन्मूलन किया जाना चाहिए।
शिक्षा,प्रौढ़ शिक्षा का अधिकार
सब तक पहुंचना चाहिए।

आप जैसा जागरुक
अनपढ़ों तक ,
'शिक्षा बेशकीमती गहना है,
इसे सभी ने पहनना है ।,'का पैगाम
पहुँचा दे,तो एक क्रांति हो सकती है।
देश,समाज,परिवार का कायाकल्प हो सकता है।
अतः आज जरूरत है
अनपढ़ों को
शिक्षा का महत्त्व बताने की,
उन्हें जीवन की राह दिखाने की
उनकी जीवन पुस्तक पढ़ पाने की।
यदि ऐसा हुआ तो
कोई नहीं करेगा खता।
उन्हें सहजता से सुलभ हो जाएगा,
मुक्ति का पता।
जिसे शोषितों, वंचितों से छुपाया गया,
उन्हें अज्ञानी रखकर बंधक बनाया गया।
Joginder Singh Nov 2024
मुख मुरझा गया अचानक
जब सुख की जगह पर पहुंच दुःख
सोचता रहा बड़ी देर तक
कि कहां हुई मुझ से भूल ?
अब कदम कदम पर चुप रहे हैं शूल।


उसी समय
रखकर मुखौटा अपने मुख से अति दूर
मैं कर रहा था अपने विगत पर विचार,
ऐसा करने से
मुझे मिला
अप्रत्याशित ही
सुख चैन और सुकून।
सच !उस समय
मैंने पाया स्वयं को तनाव मुक्त ।


दोस्त,
मुद्दत हुए
मैं अपनी पहचान खो चुका था।
अपनी दिशा भूल गया था।
हुआ मैं किंकर्तव्यविमूढ़,
असमंजस का हुआ शिकार ,
था मैं भीतर तक बीमार,
खो चुका था अपने जीवन का आधार।
ऐसे में
मेरे साथ एक अजब घटना घटी ।
अचानक
मैंने एक फिल्म देखी, आया मन में एक ख्याल।
मन के भीतर दुःख ,दर्द ,चिंता और तनाव लिए
क्यों भटक रहे हो?
क्यों तड़प रहे हो?
तुम्हें अपने टूटे बिखरे जीवन को जोड़ना है ना !
तुम विदूषक बनो ।
अपने दुःख दर्द भूलकर ,
औरों को प्रसन्न करो।
ऐसा करने से
शायद तुम
अपनी को
चिंता फिक्रों के मकड़ जाल से मुक्त कर पाओ।
जाओ, अपने लिए ,
कहीं से एक मुखौटा लेकर आओ।
यह मुखौटा ही है
जो इंसान को सुखी करता है,
वरना सच कहने वाले इंसान से
सारा जमाना डरता है।
इसलिए मैं तुमसे कहता हूं ,
अपनी जिंदगी अपने ढंग से जियो।
खुद को
तनाव रहित करो ,
तनाव की नाव पर ना बहो।
तो फिर
सर्कस के जोकर की तरह अपने को करो।
भीतर की तकलीफ भूल कर, हंसो और खिलखिलाओ।
दूसरों के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव जगाओ।


उसे दिन के बाद
मैं खुद को बदल चुका हूं।

सदैव
एक मुखौटा पहने रखता हूं,
ताकि
निज को सुरक्षित रख सकूं।

दोस्त,
अभी-अभी
मैं अपना प्यारा मुखौटा
रख कर गया हूं भूल।

यदि वह तुमको मिले
तो उसे मुझ को दो सौंप,
वरना मुखौटा खोने का ऋण
एक सांप में बदल
मुझे लेगा डस,
जीवन यात्रा थम जाएगी
और वेब सी मेरे भीतर
करने के बाद भी भरती जाएगी,
जो मुझे एक प्रेत सरीखा बनाएगी।

मुझे अच्छी तरह से पता है
कि यदि मैं मुखौटा ओढ़ता हूं,
तो तुम भी कम नहीं हो,
हमेशा एक नक़ाब पहने  रहते-रहते
बन चुके हो एक शातिर ।
हरदम इस फ़िराक़ में रहते हो,
कब कोई नजरों से गिरे,
और मैं उसका उपहास उड़ाऊं।
मेरे नकाबपोश दोस्त,
अब और ना मुझे भरमाओ।
जल्दी से मेरा मुखौटा ढूंढ कर लाओ।
मुझे अब और ज़्यादा न सताओ।
तुम मुझे भली भांति पहचानते हो!
मेरे उत्स तक के मूल को जानते हो।

मेरा सच है कि
अब मुखौटे में निहित है अस्तित्व का मूल।
दोस्त , नक़ाब तुम्हारी तक पर
पहुंच चुकी है मेरे मुखौटे की धूल।
तुमने ही मुझसे मेरा मुखौटा चुराया है।
अभी-अभी मुझे यह समझ आया है।
तुम इस समय नकाब छोड़ , मेरा मुखौटा ओढ़े हो।
मेरे मुखौटे की बू, अब तुम्हारे भीतर रच चुकी है।
मेरी तरह ,अब तुम्हारी
नक़ाब पहनने की
जिंदगी का खुल गया है भेद।


मुझे विदित हो चुका है कि
कृत्रिमता की जिंदगी जी कर
व्यक्ति जीवन में
छेदों वाली नौका की सवारी करता है
और पता नहीं,
कब उसकी नौका
जीवन के भंवर में जाए डूब।
कुछ ऐसा तुम्हारे साथ घटित होने वाला है।
यह सुनना था कि
मेरे नकाबपोश मित्र ने
झट से
मेरा मुखौटा दिया फैंक।

उस उसे मुखौटे को अब मैं पहनता नहीं हूं ।
उसे पहन कर मुझे घिन आती है।
इसीलिए मैंने मुखौटे का
अर्से से नहीं किया है इस्तेमाल।

आज बड़े दिनों के बाद
मुझे मुखौटे का ख्याल आया है।
सोचता हूं कि
मुखौटा मुझ से
अभी तक
अलहदा नहीं हो पाया है।

आज भी
कभी-कभी
मुखौटा मेरे साथ
अजब से खेल खेलता है।

शायद उसे भी डर है कि
कहीं मैं उसे जीवन में अनुपयोगी न समझने लगूं।

कभी-कभी वह
तुम्हारी नक़ाब के
इशारे पर
नाचता  नाचता
चला जाना चाहता है
मुझ से बहुत दूर
ताकि हो सके
मेरा स्व सम्मोहन
शीशे सा चकनाचूर ।

हकीकत है...
अब मैं उसके बगैर
हर पल रहता हूं बेचैन
कमबख़्त,
दिन रात जागते रहते हैं
अब उसे दिन मेरे नैन।

कभी-कभी जब भी मेरा मुखौटा
मुझे छोड़ कहीं दूर भाग जाता है
तू रह रहकर मुझे तुम्हारा ख्याल आता है।

मैं सनकी सा होकर
बार-बार दोहराने लगता हूं।
दोस्त , मेरा मुखौटा मुझे लौटा दो।
मेरे सच को मुझ से मिला दो ।
अन्यथा मुझे शहर से कर दो निर्वासित ।
दे दो मुझे वनवास,
ताकि कर सकूं मैं
आत्म चिंतन।

मैं दोनों, मुखौटे और सच से
मुखातिब होना चाहता हूं ।
कहीं ऐसा न हो जाए कभी ।
दोनों के अभाव में,
कि कर न सकूं
मैं अपना अस्तित्व साबित।
बस कराहता ही नज़र आऊं !
फिर कभी अपनी परवाज़ न भर पाऊं !!

१७/०३/२००६. मूल प्रारूप।
संशोधन ३०/११/२००८.
और २४/११/२०२४.
Joginder Singh Nov 2024
टटपुंजिया हूँ।
क्यों टटोलते हो ?
सारी जिंदगी निठल्ला रहा।
अब ढोल की पोल खोलते हो!
मेरे मुंह पर
सच क्यों नहीं कह देते ?
कह ही दो
मन में रखी बात।
अवहेलना के दंश
सहता आया हूं।

एक बार फिर
दर्द सह जाऊंगा।
काश! तुम मेरी व्यथा को
समझो तो सही।
यदि ऐसा हुआ तो निस्संदेह
मैं जिंदगी की दुश्वारियों को सह जाऊंगा।
दुश्मनों से लोहा ले पाऊंगा।
सामने खड़ी हार को
विजय के  उन्माद में बदल जाऊंगा ।
  २६/०७/२०२०.
राजनीति में
मुद्दाविहीन होना
नेतृत्व का
मुर्दा होना है।
नेतृत्व
इसे शिद्दत से
महसूस कर गया।
अब इस सब की खातिर
कुछ कुछ शातिर बन रहा है।
यही समकालीन
राजनीतिक परिदृश्य में
यत्र तत्र सर्वत्र
चल रहा है।
बस यही रोना धोना
जी का जंजाल
बन रहा है।
नेता दुःखी है तो बस
इसीलिए कि
उसका हलवा मांडा
पहले की तरह
नहीं मिल रहा है।
उसका और उसके समर्थकों का
काम धंधा ढंग से
नहीं चल रहा है।
जनता जनार्दन
अब दिन प्रतिदिन
समझदार होती जा रही है।
फलत:
आजकल
उनकी दाल
नहीं गल रही है।
समझिए!
ज़िन्दगी दुर्दशा काल से
गुज़र रही है।
राजनीति
अब बर्बादी के
मुहाने पर है!
बात बस अवसर
भुनाने भर की है ,
दुकानदारी
चलाने भर की है।
मुद्दाविहीन
हो जाना तो बस
एक बहाना भर है।
असली दिक्कत
ज़मीर और किरदार के
मर जाने की है ,
हम सब में
निर्दयता के
भीतर भरते जाने की है।
इसका समाधान बस
गड़े मुर्दों को
समय रहते दफनाना भर है ,
मुद्दाविहीन होकर
निर्द्वंद्व होना है
ताकि मुद्दों के न रहने के बावजूद
सब सार्थक और सुरक्षित
जीवन पथ पर चलते रहें।
वे सकारात्मक सोच के साथ
जीवन में दुविधारहित होकर आगे बढ़ सकें ,
आपातकाल में
डटे रहकर संघर्ष कर सकें।
०४/०४/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
अभी मुमकिन नहीं
कम से कम.... मेरे लिए
खुली किताब बन पाऊं!
निर्भीक रहकर
जीवन जी जाऊं !!
समय के साथ
अपने लिए खड़ाऊं हो पाऊं!
उसके साथ अपने अतीत को याद कर पाऊं!!


अभी
मुमकिन है
खुद को जान जाऊं!
अपनी कमियों को सुधारता जाऊं !!
सतत् अपनी कमियों को कम करता जाऊं !!
जो मुमकिन है ,
वह मेरा सच है ।
जो नामुमकिन है
कम से कम.... मेरे लिए
झूठ है।
उतना ही मिथ्या
जितना रात्रि को देखा गया सपना,
जो हकीकत की दुनिया में
खत्म हो जाता है ,
ठीक वैसा ही
जैसे मैं चाहता हूं
सारे काम हों सही-सही।
हकीकत यह है कि
कुछ काम सही ढंग से हो पाते हैं,
और कुछ अधूरे ही रह जाते हैं।

मैं मुमकिन कामों को पूरा करना चाहता हूं ,
भले ही मेरे हिस्से में असफलता हाथ आए ।
बेशक विजयश्री कहीं पीछे छूट जाए !
क़दम दर क़दम नाकामी हाथ आए!!
दोस्तों को मेरी सोहबत भले न भाए !!

मेरी चाहत है,
मुमकिन ही मेरा स्वप्न बने ।
बेशक नामुमकिन
मरने के बाद राह का कांटा बने।

दोस्त,
मुमकिन ही हमारा संवाद बने  ,
नामुमकिन की काली छाया हमसे न जुड़े ।


२७/०८/२०१६.
अब कभी किसी से
मिलने का मन करता है ,
तो उससे मुलाकात करने का
सबसे बढ़िया ढंग
दूरभाष
या फिर
मोबाइल फोन से
वार्तालाप करना है।

मुलाकात आजकल
संक्षिप्त ही होती है ,
मतलब की बात की ,
अपना पक्ष रखा
और अपनी राह ली।

पहले आदमी में
आत्मीयता भरी रहती थी ,
अब जीवन की दौड़ धूप ने
आदमी को अति व्यस्त
कर दिया है ,
उसे किसी हद तक
स्वार्थी बना दिया है ,
मतलबपरस्ती ने
आदमी के भीतर को
नीरसता से भर दिया है ,
और जीवन में
मुलाकात के आकर्षण को
लिया है छीन।
मिलने और मिलाने के
जादू को कर दिया है क्षीण।
आदमी अब मुलायम करने से
बहुधा बचना चाहता है।
ले देकर पास उसके बचा है यह विकल्प
मन किया तो मोबाइल फोन पर
बतिया लिया जाए।
दर्शन की अति उत्कंठा होने पर
वीडियो कान्फ्रेंसिंग से
संवाद रचा लिया जाए।
हींग लगे न फिटकरी
रंग भी चोखा होय , की तर्ज़ पर
घर बैठे बैठे बिना कोई कष्ट उठाए
बगैर अतिथि बने
मुलाकात कर ली जाए
और हाल चाल पूछ कर
अपने जीवन में
दौड़ धूप कर
अपनी उपस्थिति दर्ज की जाए।
मुलाकात आजकल
सिमट कर रह गई है ,
जीवन की अत्याधिक
दौड़ धूप
मनुष्य की
समस्त आत्मीयता को
खा गई है।
इस बाबत अब
क्या बात करूं ?
मन के आकाश में
उदासीनता की बदली
छाई हुई है।
मुलाकात की चाहत
छुई-मुई सी हुई ,हुई
मुरझाई और उदास है।
जाने कहां गया
जीवन में से मधुमास है ?
फलत: जीवन धारा
लगने लगी कुछ उदास है !
अब लुप्त हुआ हास परिहास है !!
०२/०५/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
अब
दोस्तों से
मुलाकात
कभी कभार
भूले भटके से
होती है
और
जीवन के बीते दिनों के
भूले बिसरे लम्हों की
आती है याद।

ये भूले बिसरे लम्हे
रचाना चाहते संवाद।
ऐसा होने पर
मैं अक्सर रह जाता मौन ।


आजकल
मैं बना हूं भुलक्कड़
मिलने, याद दिलाने,,..के बावजूद
कुछ ख़ास नहीं रहता याद
नहीं कायम कर पाता संवाद।

हां, कभी-कभी भीतर
एक प्रतिक्रिया होती है,
'हम कभी साथ साथ रहें हैं,
यकीन नहीं होता!
कसमें वादे करने और तोड़ने के जुर्म में
हम शरीक रहे हैं,
दोस्ती में हम शरीफ़ रहे हैं,
यकीन नहीं होता।'

अपने और जमाने की
खुद ग़र्ज हवा के बीच
        यारी  दोस्ती,
गुमशुदा अहसास सी
होकर रह गई है
एकदम संवेदनहीन!
और जड़ विहीन भी।


अब
दोस्तों से
मुलाकात
कभी कभार
अख़बार, रेडियो पर बजते नगमों,
टैलीविजन पर टेलीकास्ट हो रहे
इंटरव्यू के रूप में
होती है।
सच यह है कि
दोस्त की उपलब्धि से जलन,
अपनी  नाकामियों से घुटन,
आलोचक वक्त की मीठी मीठी चुभन,सरीखी
तीखी प्रतिक्रियाएं होती हैं भीतर
पर... अपने भीतर व्यापे शातिरपने की बदौलत,
सब संभाल जाता हूं...
खुद को खड़ा रख पाता हूं,बस!
खुद को समझा लेता हूं,

....कि समय पर नहीं चलता किसी का वश!!
यह किसी को देता यश, किसी को अपयश,बस!!

अब
कभी कभार
दोस्त, दोस्ती का उलाहना देते हुए मिलते हैं,
तो उनके सामने नतमस्तक हो जाता हूं
उन को हाथ जोड़कर,
उन से हाथ मिलाया,
और अंत में
नज़रों नज़रों से
फिर से मिलने के वास्ते वायदा करता हूं
भीतर ही भीतर
न मिल सकने का डर
सतत् सिर उठाता है, इस डर को दबा कर
घर वापसी के लिए
भारी मन से क़दम बढ़ाता हूं।
कभी कभी
दोस्तों से मुलाक़ात
किसी दुस्वप्न सरीखी होती है
एकदम समय की तेज तर्रार छुरी से कटने की मानिंद।
९/६/२०१६.
आदमी
मुख से
कुछ न कहे ,
तब भी उसकी
मुस्कान बहुत कुछ
चुपके से
सब कुछ कह देती है।
इसका अहसास
आज मुझे हुआ
जब ऑटो चालक
राज कुमार के संग
कर रहा था मैं यात्रा ,
साथ में मेरे साहिल बैठा था
जो मेरा विद्यार्थी था
और जिसे मैंने
बल्लोवाल सौंखड़ी में
आयोजित क्षेत्रीय कृषि मेले को
देखने के लिए अपने साथ ले लिया था
ताकि वह कृषि से संबंधित उत्पादों को जान ले,
और आगे चलकर कृषि को
अपनी रोजी रोटी का जरिया बना ले।

पास ही राजकुमार की
परिचिता दुकान में बैठी हुई थी
वह मुस्कुराईं ,
ऑटो चालक राजकुमार ने भी
मुस्कान के साथ
हल्के से सिर
दिया था हिला।
दोनों में से बोला कोई भी नहीं,
पर कुशल क्षेम का
हो गया था आदान-प्रदान।
ऑटो चालक रुका नहीं,
परिचिता भी उठी नहीं,
परंतु
उनकी मुस्कान ने
दिल का हाल चाल
बख़ूबी दिया था बता।
दोनों ने अपनी गहरी मुस्कान से
जीवन का सौंदर्य बोध
सहज ही दिया था जता।
मैं इस मूक मुस्कान के
आदान प्रदान से
मन ही मन हो गया था प्रसन्न।
मैने सहजता से
मुस्कान का जादू जान लिया था।

आप भी हर हाल में मुस्कुराया कीजिए!
अपने भीतर और आसपास की जीवंतता का
अहसास मौन रहकर किया कीजिए।
इस दुनिया में बहुत से लोग हैं परेशान,
पर यदि आदमी हर पल मुस्कराए
तो स्वत: ही देखा देखी
बहुत से लोग मुस्कुराना जाएं सीख!
और उनकी चेतना जीवन का सौंदर्य
अर्थात मुस्कान को आत्मसात कर पाए ,
और जीवन में आदमी
कठिनाइयों का सामना
ख़ुशी ख़ुशी सहजता से
मुस्कान सहित करता देखा जाए।

०७/०३/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
जीवन में होती नहीं
जब कोई बनावट ।
मन मस्तिष्क में भी
जब तब सफल होने की ,
होने लगती है आहट ।

ऐसे में
चेहरे की बढ़ जाती है रौनक ,
होठों पर आन विराजती
रह रह कर मुस्कुराहट !
जो लेती हर , हरेक थकावट !!
२१/१२/२०१६.
Joginder Singh Nov 2024
याद रखो ,दोस्त !
मुंहफट
कभी उर में
कुछ
छुपा कर
नहीं रखते।
इधर सुना नहीं कि मुंह खुला नहीं ।
वे
तत्काल कर देते हैं हिसाब किताब।
तुम अब भी
उनके मुंह लगना चाहोगे।
तुम कभी उन्हें
वाद विवाद संवाद में
पराजित नहीं कर पाओगे।
मुंह फट को हार जाने,
हार कर मुँह फुलाने की आदत नहीं होती।
आज तो तुम
ढूंढ़ ही लो
मुंहफट भाई को
मज़ा चखाने का कोई नुस्खा
या फिर कोई नुक्ता।
तुम उसकी नुक्ताचीनी ही न करो तो अच्छा।
वो
समझता है तुम्हें बच्चा ,
और तुम उसके सामने तनना चाहते हो।
रहने दो,झुक जाओ।
अपने अंतर्मन से
संवाद रचाने के प्रयास करो।
नाहक मुंहफट को
न गले लगाया करो।
अपने भीतर के अहंकार को
कुछ तो दबाया करो।
हो सकता हे कि वह चुप रह जाए।
और तुम को करार मिल पाए।
Joginder Singh Nov 2024
सुख की खोज,
दुःख की खीझ,

सचमुच!

रूप बदल देती।

यह दर्द भी है देती!

यह मृगतृष्णा बनकर
सतत चुभती रहती।

२५/०४/२०२०
Joginder Singh Dec 2024
जीवन में  
सुख ढूंढते ढूंढते
जीव
उठाता है
दुःख ही दुःख ।

आखिरकार
जीव
छोटी-छोटी उपलब्धियों में
ढूंढ लेता है प्रसन्नता दायक सुख।

यह सुख देता है
कुछ समय तक
समृद्धि और सम्पन्नता का अहसास
फिर अचानक
निन्यानवे के फेर में पड़ कर
उठाने लगता है
कष्टप्रद ‌जीवन में
सुख की आस में
दुःख , दर्द , तकलीफ़
आखिरकार थक-हारकर
जब देने लगती
जीवन के द्वार पर
मृत्यु धीरे-धीरे दस्तक ,
जीवात्मा
झुका देती अपने समस्त
सुख और वैभव ‌भूल भाल कर
मृत्यु के सम्मुख
अपना मस्तक।
जब जीव
आखिर में
जीवन की उठकर पटक ,
भाग दौड़ को भूलकर
अपने मूल की ओर
लौटना है चाहता
मन में तीव्र चाहत उत्पन्न कर,
तब अचानक
अप्रत्याशित
जीवन में जीव के सम्मुख
होता है मृत्यु का आगमन।
ऐसे में
जीवात्मा
रह जाती चुप ,
वह ढूंढ लेती मृत्यु बोध में चरम सुख ,
समाप्त हो ही जाते तमाम दुःख दर्द।

मृत्यु का आगमन
जीवन को सार्थक करने वाला
एक क्षण होता है,
निर्थकता के बोध से लबालब भरा
जीवन शीघ्रातिशीघ्र
समाप्त होता है।
लगता है मानो कोई दीपक
अपना भरपूर प्रकाश फैला कर
गया हो अपने उद्गम की ओर लौट ,
और गया हो बुझ !
जीवन में और बहुत से
दीपकों को ज्योतिर्गमय कर ।

इस बाबत सोचता हूं तो रह जाता चुप।
आदमी सुख की नींद पाकर
पता नहीं कब सो जाता है ?
गूढ़ी नींद सोया ‌ही रहता है ,
जब तक मृत्यु आकर
जीवात्मा को यमलोक की सैर
कराने के लिए
नहीं जगाती।
मृत्यु का आगमन
जीवात्मा को निद्रा सुख से जगाना भर है ,
जीवन धारा अजर अमर है,
जन्म और मरण अलौकिक क्षण भर हैं ।
०३/०८/२००८.
Joginder Singh Dec 2024
अच्छे का निधन
सबको कर देता है निर्धन !
सोच के स्तर पर
मृत्यु लगा जाती एक नश्तर ।
यही नहीं, वह मानव के कान के पास
अपनी अनुभूति का आभास करा कर
चुपचाप फुसफुसाते हुए कराती है अपनी प्रतीति कि-
" बांध ले भइया! अपना बोरिया बिस्तर ,
आत्मा करना चाहती है , अब धारण नए वस्त्र!"
मौत जीवन की सहचरी है ,
जिसने  जीवन में करुणा भरी है।
यह वह क्षण है ,
जब आत्मा अपने उद्गम की ओर
लौट जाती है।
यह हमें हतप्रभ कर जाती है ।

०६/०१/२०१७.
अचानक मेरे मनोमस्तिष्क में
कौंधा है एक ख्याल कि
क्या होगा
यदि यह जीवन
पूर्णतः मृत्युहीन हो जाए ?
मन ने तत्क्षण अविलम्ब उत्तर दिया
इस जीवन में बुझ ही जाएगा
आनंद का दिया।
जीवजगत निर्जीवता से
ज़िंदगी को ढ़ोता नज़र आएगा।
जीना साक्षात नर्क में रहने जैसा लगेगा।
सर्वस्व का आंतरिक विकास
जड़ से रुक जाएगा।
जीवन उत्तरोत्तर बोझिल होता जाएगा।
जीना दुश्वार हो जाएगा।
समस्त वैभव
अस्त व्यस्त ,‌ तहस नहस
बिखरा हुआ दिखाई देगा।
जीवंतता का अहसास तक लुप्त होगा।
जीवन में सर्वांग सुप्तावस्था की प्रतीति कराएगा।
मृत्युशैयाविहीन जीवन
भले ही
मृत्युहीनता का अहसास कराए ,
यह जीवन को निर्थकता से भर जाएगा।
जहां हर कोई त्रिशंकु होगा ,
अधर में लटका हुआ।
०८/०१/२०२५.
किसे नहीं जीवन
अच्छा लगेगा ?
जब जीवन के प्रति
मतवातर आकर्षण जगेगा।
मृत्यंजय क्यों कभी कभी
मौत के आगोश में चला जाता है?
जिसका नाम मृत्यु को जीतने वाला हो ,
वह क्यों जीवन के संघर्षों से हार जाता है?
अभी अभी पढ़ी है एक ख़बर कि
मृत्युंजय ने फंदा लगा लिया।
वह जीवन से कुछ निराश और हताश था।
आओ हम करें प्रयास
कि सब पल प्रति पल
बनाए रखें जीवन में
सकारात्मक घटनाक्रम की आस
ताकि आसपास हो सके उजास,
भीतर भी सुख ,समृद्धि और संपन्नता का
सतत होता रहे अहसास।
अचानक शिवशक्ति को
अपने नाम मृत्यंजय में समाहित
करने वाला जीवात्मा
असमय जीवन में न जाए हार।
वह जीवन को अपनी उपस्थिति से
आह्लादित करने में सक्षम बना रहे।
वह अचानक सभी को
शोकाकुल न कर सके।
वह जीवन को हंसते हंसते वर सके।
२०/०१/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
खंडहर होते ख़्वाब
अब कभी कभी मेरे ख्यालों में आकर
मुझे तड़पाने लगे हैं।
मुझे अपने जैसा खंडहर बनाने पर तुले हैं।

खंडहर होते ख़्वाब
देने लगे हैं  
अब
आदमी की अकर्मण्यता को
मुंह तोड़ जवाब!

खंडहर होते ख्वाब
मांगते हैं अब
बीते पलों का हिसाब ,
ज़िन्दगी
अब
लगने लगी है  एक श्राप ।

कभी सोचा है आपने
ख्वाब खंडित क्यों होते हैं?
बिना ख्वाबों के जीने वाले लोग
मुरझाए फूल सरीखे क्यों होते हैं?
जबकि हकीकत यह है कि
ख्वाबों के मुरझाने से पहले
वे तीखे नश्तर होते हैं।
कहीं भीतर तक
असहिष्णु, लड़ने - लड़ाने,
मरने - मारने पर उतारू,
कहीं गहरे तक जूझारू।

ख्वाबगाह
जब तक गुलज़ार रहती है,
हिम्मत हर पल छलकने और भड़कने को
तैयार रहती है,
जैसे ही यौवन ढला,
जिस्म तनिक कमज़ोर हुआ,
हिम्मत ज़वाब दे जाती है।
ख़्वाब की तरह खंडहर होने की
नियति से जूझने को अभिशप्त
हर समय तना रहने वाला आदमी
ज़िंदगी की सांझ में
झुकता चला जाता है ,
वह समाप्त प्रायः हो जाता है।
अपने पुश्तैनी घर की तरह
शांत, अकेला, चुपचाप सा वीरान हो जाता है।
वह करता रहता है इंतज़ार
खंडहर होते ख़्वाब के खंड खंड होकर खंडित होने का,
प्रस्थान वेला आने का।
ज़िंदगी के मेले झमेले के बीत जाने का।
खुद के रीत जाने का।
खुद के गुज़रा हुआ कल होने का।
रीतते  रीतते ,बीतते बीतते,
अतीत बन ,
समय के भीतर खो जाने का अहसास भर होना
खंडहर होते ख़्वाब को जीना नहीं तो क्या है ?
यह सब अपने भीतर घटता महसूस करने से मैं चुप हूं।
०२/१२/२०२४.
Next page