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पहले आदमी की सोच
नैतिकता से जुड़ी थी।
उसे हेराफेरी चोरी चकारी से
घिन आती थी।
आजकल
उसे यह सब आम लगता है।
वह अनैतिक भी हो जाए,
तो उसे बुरा नहीं लगता है।
उसकी सोच बन गई है कि
आजकल सब अच्छा बुरा चलता है।
कम से कम आदमी को आराम तो मिलता है।
मरने के बाद देखा जाएगा।
आज को तो ढंग से जी लो।
कल नाम कलह का,
वर्तमान को सुविधाजनक बना लो।
यही वजह है कि घूस का कीड़ा
आदमी के भीतर इस हद तक गया है घुस,
जो घूस लेता नहीं, वह आदमी लगने लगता मनहूस।
हेराफेरी,चोरी सीनाजोरी,लड़ना झगड़ना,
मकर फ़रेब, लूटमार,हत्या, बलात्कार तक के
दुष्परिणामों को वह नज़रअंदाज़ करता है,
उसे संवेदना के धरातल पर कुछ नहीं होता महसूस।
पशु भी संवेदना से बंधा है,
पर आज का आदमी निरा गधा बन चुका है।
आजकल वह चौबीसों घंटे अपना स्वार्थ साधने में लगा है।
०६/०५/२०२५.
71 · Nov 2024
Lessons From Listening
Joginder Singh Nov 2024
I want to learn endless lessons from the listening.
The sounds of the surroundings inspire me to connect with the sensitivity of the living beings and also non living beings.
These days I am not able to hear the sounds of life which is closely associated with my existence.
And as a natural result,due to hearing loss, it haunts me.
I am now almost  helpless and  starts feeling the undetected sounds of the mind .
These sounds teach me, how to make life full of happiness and kindness.
So,these days,I am engaged myself to listen and learn endless lessons from the life and the time.
My expiry date is very near,and I am listening the sounds of the life to clear my doubts regarding the fear of the death as well as rebirth,dear..!
In spite of the lack of the listening power ,I am waiting for my last hours of the life with a tearful eyes and fearful mind.
Oh !I am astonished to hear the foot steps of the life during  waiting for the death hours.

All of sudden the Life assured me that she is granting me a bonus chance to listen and learn lessons from the life. Now I am happy with the presence of the sounds.
71 · Dec 2024
मन पर भार
Joginder Singh Dec 2024
कुछ ग़लत होने पर
हर कोई
और सब कुछ
शक एवं संदेह के
घेरे में आता है।
यहां तक कि जीवन में
बेशुमार रुकावटें
उत्पन्न होना शुरू हो जाती हैं।
इससे न केवल मन का करार
खत्म होता है
और
जीवन टूटने के कगार पर
पहुंच जाता है
बल्कि
धीरे-धीरे
जीने की उमंग तरंग भी
जीवन में मोहभंग व तनाव से
निस्सृत बीज के तले
दबने और बिखरने लगती है।
आदमी की दिनचर्या में
दरारें साफ़ साफ़ दिख पड़ती हैं।
उसे अपना जीवन
फीका और नीरस
लगने लगता है।

यदि
जीवन में
कुछ ग़लत घटित हो ही जाए ,
तो आदमी को चाहिए
तत्काल
वह अपने को जागृत करें
और अपनी ग़लती को ले समय रहते सुधार।
वरना सतत् पछतावे का अहसास
मन के भीतर बढ़ा देता है अत्याधिक भार ।
आदमी परेशान होकर इधर-उधर भटकता नज़र आता है।
उसे कभी भी सुख समृद्धि ,
संपन्नता और चैन नही मिल पाता है।
२५/१२/२०२४.
Joginder Singh Nov 2024
किसे लिखें ?
अपने हाल ए दर्द की तफ़्सील।
महंगाई ने कर दिया
अवाम का फटे हाल।


पिछले साल तक
चार पैसे खर्च के बावजूद
बच जाते थे!
तीज त्योहार भी
मन को भाते थे!!

अब त्योहार की आमद पर
होने लगी है घबराहट
सब रह गए ठाठ बाठ!
डर दिल ओ दिमाग पर
हावी हो कर, करता है
मन की शांति भंग!
राकेट सी बढ़ती महंगाई ने
किया अब सचमुच नंग!
अब वेतनभोगी, क्या व्यापारी
सब महंगाई से त्रस्त एवं तंग!!
किस से कहें?
अपनी बदहाली का हाल!
अब तो इस महंगाई ने
बिगाड़ दी है अच्छे अच्छों की चाल!
सब लड़खड़ाते से, दुर्दिनों को कोसते हैं
सब लाचारी के मारे हैं!
बहुत जल्दी बन बैठे बेचारे हैं!!
सब लगने लगे थके हारे हैं!!
कोई उनका दामन थाम लो।
कहीं तो इस मंहगाई रानी पर लगाम लगे ।
सब में सुख चैन की आस जगे।
  १६/०२/२०१०.
71 · Nov 2024
विस्फोट
Joginder Singh Nov 2024
दुनिया को कर भी ले विजित
किसी चमकदार दिन
कोई सिकंदर
और कर ले हस्तगत सर्वस्व।
धरा की सम्पदा को लूट ले।
तब भी माया बटोरने में मशगूल,
लोभ,लालच, प्रलोभन के मकड़जाल में जकड़ा
वह,महसूस
करेगा
किसी क्षण
भले वह विजयी हुआ है,
पर ...यह सब है  व्यर्थ!
करता रहा जीवन को
अभिमान युक्त।
पता नहीं कब होऊंगा?
अपनी कुंठा से मुक्त।!

कभी कभी वजूद
अपना होना,न होना को  परे छोड़कर
खो देता है
अपनी मौजूदगी का अहसास।
यह सब घटना-क्रम
एक विस्फोट से कम नहीं होता।


सच है कि यह विस्फोट
कभी कभार ही होता है।
ऐसे समय में  
रीतने का अहसास होता है।
अचानक एक विस्फोट
अन्तश्चेतना में होता है,
विजेता को नींद से जगाने के लिए!
मन के भीतर व्यापे
अंधेरे को दूर भगाने के लिए!!
Joginder Singh Nov 2024
अब
कभी कभी
झूठ
बोलने की
खुजली
सिर उठाने
लगी है।
जो सरासर
एक ठगी है।

अक्सर
सोचता हूँ,
कौन सा
झूठ कहूँ?
... कि बने न
भूले से कभी भी
झूठ की खुजली
अपमान की वज़ह।
होना न पड़े
बलि का बकरा बन
बेवजह
दिन दिहाड़े
झूठे दंभ का शिकार।
न ही किसी दुष्ट का
कोप भाजन
पड़े बनना
  और कहीं
लग न जाए
घर के सामने
कोई धरना।

अचानक
उठने लगता है
एक ख्याल,
मन में फितूर बन कर

अतः कहता हूँ...
चुपके से , खुद को ही,
एक नेता जी
जो थे अच्छे भले
मंहगाई के मारे
दिन दिहाड़े
चल बसे!
(बतौर झूठ!!)

आप सोचेंगे
एक बार जरूर
... कि नेता मंहगाई से
लाभ उठाते हैं,
वे भ्रष्टाचार के बूते
माया बटोर कर
मंहगाई को लगाते हैं पर!
फिर वे कैसे
मंहगाई की वज़ह से
चल बसे।

मैं झूठ बोलकर
अपनी खारिश
मिटाना चाहता था
कुछ इस तरह कि...
लाठी भी न टूटे,
भैंस भी बच जाए,
और चोर भी मर जाए।

इस ख्याल ने
रह रह कर सिर उठाया।
मैंने भी मंहगाई की आड़ ले
तथा कथित नेता जी को
जहन्नुम जा पहुंचाया।
कभी कभी
झूठ भी अच्छा लगता है
सच की तरह।
(है कि नहीं?)
बहुत से मंहगाई त्रस्त
जरूर चाहते होंगे कि...
आदमी झूठ तो बोले
मगर उसकी टांगें
छुटभैये नेता के
गुर्गों के हाथों न टूटें!
बल्कि मन को मिले
कैफ़ियत, खैरियत के झूले।


अब जब कभी भी
झूठ बोलने की खुजली
सिर उठाने लगती है,
मुझे बेशर्म मानस को
शिकार बनाने का
करने लगती है इशारा।
मैं खुद को काबू में करता हूँ।
मुझे भली भांति विदित है,
झूठ हमेशा मारक होता है,
भले वह युद्ध के मैदान में
किसी धर्मात्मा के मुखारविंद से निकला हो।
झूठ के बाद की ठोकरें
झूठे सच्चे को सहज ही
अकलबंद से अकलमंद बना देती हैं,
झूठ की खुजली पर लगाम लगा देती हैं।
Joginder Singh Nov 2024
झुकी कंधों वाले आदमी से
आप न्याय की अपेक्षा रखते हैं,
सोचते हैं कि
वह कभी लड़ेगा न्याय की खातिर ,
वह बनेगा नहीं कभी शातिर ।
आप गलत सोचते हैं ,
अपने को क्यों नोचते हैं ?
कहीं वह शख़्स आप तो नहीं ?
श्रीमान जी,
आप अच्छी तरह जान लें ,
जीवन सत्य को पहचान लें ।

दुनिया का बोझ
झुके कंधों वाला आदमी
कभी उठा सकता नहीं,
वह जीवन  की राह को
कभी आसान बना सकता नहीं ।
अतः बेशक आप
झुके कंधे वाले आदमी को
ज़रूर ऊपर उठाइए ,
आप आदमी होने जैसी
मुद्रा को तोअपनाइए ।

फिर कैसे नहीं
आदमी
अन्याय और शोषण के
दुष्चक्र को रोक पाएगा ?

वह कैसे नहीं
झुके कंधे वाले आदमी की
व्यथा को
जड़ से मिटा पाएगा ?
बस आदमी के अंदर
हौंसला होना चाहिए ।
परंतु
झुके कंधों वाले आदमी को
कभी हिम्मत और हौंसला
नसीब होते नहीं ।
वे तो अर्जित करने पड़ते हैं
जीवन में लड़कर ,
निरंतर संघर्ष जारी रख कर ,
अपने भीतर जोश बनाए रखकर
लगातार विपदाओं से जूझ कर ,
न कि जीवन की कठिनाइयों से भाग कर ,
इसलिए आगे बढ़ाने की खातिर
सुख सुविधाओं को त्याग कर
कष्टों और पीड़ाओं को सहने के लिए
आदमी खुद को
भीतरी ही भीतर तैयार करें ,
ताकि झुके कंधों वाला आदमी होने से
न केवल खुद को
बचा सके ,
बल्कि
जीवन में कामयाबी को भी अपना सके।

अतः इस समय
तुम जीवन को
सुख , समृद्धि , संपन्नता, सौहार्दपूर्ण बनाने की सोचो ,
न कि जीवन को प्रलोभन की आग से जलाओ।
इसके लिए तुम निरंतर प्रयास करो,
अपने भीतर
चेतना का बोध जगाओ।

यदि आप कभी
झुके कंधों वाले आदमी को ग़ौर से देखें
तो वह यकीनन
आपके भीतर
सौंदर्य बोध नहीं जगा पाएगा ,
बल्कि
वह आपके भीतर
दुःख और करूणा का अहसास कराएगा ।

झुके कंधों वाले आदमी को देखकर
बेशक  भीतर
कुछ वितृष्णा और खीझ पैदा होती है।
यही नहीं
ऐसा आदमी
कई बार
उलझा पुलझा सा
आता है नज़र,
इसे देख जाने अनजाने
लग जाती है नज़र
अपनी उसको ,
और उसकी किसी दूसरे को।

सच तो यह है कि
झुके कंधों वाला आदमी
कभी भी
दुनिया को पसंद नहीं आता ।
कोई भी उससे जुड़ना नहीं चाहता।
भले ही वह कितना ही काबिल हो।

पता नहीं हम कब
जीवन को देखने का
अपना नज़रिया बदलेंगे ?
यदि ऐसा हो जाए
तो झुके कंधों वाला आदमी भी
सुख-चैन को प्राप्त कर पाए।
वरना वह जीवन भर भटकता ही जाए।
२१/११/२००८.
Always dream about
a pollution free social setup.
Keep courage to say shut up
to pollutant minds in life
for cleanliness
and the safe journey of human beings.
05/05/2025.
Joginder Singh Nov 2024
श्री मान,
सुनिए,
दिल से निकली बात ,
जिसने
मानस पटल पर
छोड़ा अमिट प्रभाव।
  
बहुत सी समस्याओं का समाधान,
लेकर आता जीवन में मान सम्मान।
और
बहुधा
समस्या का हल
सीधा और सरल
होता है।
समस्या को सुलझाने के
प्रयासों की वज़ह से
कभी कभी
हम उलझ जाते हैं,
उलझन में पड़ते जाते हैं।
समाधान
कुछ ऐसा है,
समस्या को
बिल्कुल समस्या न समझें,
बल्कि
समस्या के संग
जीवन जीने का तरीका सीखें।
देखना,समस्या छूमंतर हो जाएगी।
वह कुछ सकारात्मकता उत्पन्न कर
जीवन में बदलाव लाकर
जन जन में उमंग तरंग भर जाएगी।
  ११/०५/२०२०.
Joginder Singh Dec 2024
ਸੁਖ ਦੇ ਦਿਨਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੀ ਕਵਿਤਾ
ਬਹੁਤ ਕੋਮਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ,
ਪਰ ਜਦੋਂ ਕਵਿਤਾ ਰਚੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ,
ਭੁੱਖ ਤੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੇ ਦਿਨਾਂ ਵਿੱਚ
ਉਦੋਂ ਕਵਿਤਾ ਡੂੰਘੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
ਇਹ ਸਾਨੂੰ ਲਗਾਤਾਰ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਨ ਦੀ
ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਦਿੰਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ,
ਹਮੇਸ਼ਾ ਚੜ੍ਹਦੀ ਕਲਾ ਵਿੱਚ ਰੱਖਦੀ ਹੈ।

ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਸਮਾਂ ,
ਜਦੋਂ ਵੀ ਕਵਿਤਾ
ਭੁੱਖ ਤੇ ਦੁੱਖ ਦੀ ਕੁੱਖੋਂ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ,
ਉਦੋਂ ਉਦੋਂ ਕਵਿਤਾ
ਮਜ਼ਲੂਮ ਤੇ ਨਿਮਾਣਿਆਂ ਵਿੱਚ
ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਨ ਤੇ ਜੂਝਣ ਦੀ
ਸਮਰਥਾ ਪੈਦਾ ਕਰਦੀ ਹੈ।

ਵੇਖਿਓ ਇੱਕ ਦਿਨ ਇਹ ਕਵਿਤਾ
ਭੁਖ ਤੇ ਬਦਹਾਲੀ ਨੂੰ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚੋਂ ਕੱਢਣ ਲਈ
ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਬਣਦੀ ਰਹੇਗੀ ।
ਇਹ ਹਰੇਕ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ ਦੁਖ ਦਰਦਾਂ ਨੂੰ ਹਰੇਗੀ ।
ਇਸ ਸਮੇਂ ਸਮੇਂ ਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਅਗੁਵਾਈ ਵੀ ਕਰੇਗੀ।

ਇਹ ਸਭ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਸਮਾਂ,
ਨਾਲ ਹੀ ਉਹ ਮੰਗ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਸਭਨਾਂ ਤੋਂ ਖਿਮਾ ।

ਅੱਜ ਕੱਲ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ
ਸਮੇਂ ਵੀ ਸੋਚ ਸਮਝ ਕੇ ਬੋਲਦਾ ਹੈ,
ਉਹ ਆਪਣੇ ਮਨ ਦੀਆਂ ਘੁੰਡੀਆਂ
ਕਦੇ ਕਦੇ ਹੀ ਖੋਲ੍ਹਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ।
16/12/2024.
दोस्त ,
अंधेरे से डरना ,
अंधेरे में जीना और मरना
अब भाता नहीं है।
मुझे रोशनी चाहिए।
शुभ कर्मों की चांदनी चाहिए।

अब मैं
अंधेरे और उजाले में
ज़िंदगी के रंगों को देखता हूं।
धूप और छाया से सजे
ज़िंदगी के दरख्त को सींचता हूं।

बगैर रोशनी के
खोये हुए
स्मृति चिन्हों को ढूंढ़ना
आजकल मेरा प्रिय कर्म है!
रोशनी के संग
सुकून खोजना धर्म है।
अंधेरे और उजाले के
घेरे में रहकर
जीवन चिंतन करते हुए
सतत् आगे बढ़ना ही
अब बना जीवन का मर्म है।
यह जीव का कर्म है।
जीवंतता का धर्म है।

वैसे तो अंधेरे से डरना
कोई अच्छी बात नहीं है,
परन्तु यह भी सच है कि
आदमी कभी कभी
रोशनी से भी डरने लगता है।
आदमी कहीं भी मरे ,
रोशनी में या अंधेरे में,
बस वह निकल जाए
डर के शिकंजे में से।
मरने वाले रोशनी के
होते हुए भी अंधेरे में खो जाते हैं,
शलभ की तरह नियति पाते हैं।
इससे पहले कि
जीवन ढोने जैसा लगने लगे ,
हम आत्मचिंतन करते हुए
जीवन के पथ पर
अपने तमाम डरों पर
जीत हासिल करते हुए ‌बढ़ें।
अपने भीतर जीवन ऊर्जा भर लें।
२२/०९/२००५.
Joginder Singh Nov 2024
हैं! मास्टर कुंदन जी चले गए।
अभी कल ही तो मिले थे,
उन्होंने चलते चलते हाथ हिलाया था,
मैं मोटरसाइकिल पर
अपने मित्र के साथ घर जा रहा था,
और मुझे थोड़ी जल्दी थी,
सो मैने भी
प्रतिक्रिया वश अपने हाथ को टाटा के अंदाज में
हिलाया था,
वे चिर परिचित अंदाज में मुस्कराए थे,
मैं भी अपने गंतव्य की ओर बढ़ गया था।

आज
ख़बर मिली,मास्टर जी
अपनी मंजिल की ओर चले गए,
दिल के दौरे से
उनका देहांत हुआ।

एक विचार पुंज शांत हुआ।
पर मेरा मन अशांत हुआ,
अब कर रहा मैं,
उन के लिए
परम से
अपने चरणों में लेने के लिए
अनुरोध भरी याचना ,
और दुआ भी
क्यों कि
वे सच्चे और अच्छे थे,
करते थे यथा शक्ति मदद ,
सही  में थे मेहरबान !
दुर्दिनों और संकट में
सहायता के साथ साथ
नेक और व्याहारिक सलाह भी दी थी।।

सोचता हूँ
उनकी बाबत तो यही  अंतर्ध्वनि
मन के भीतर से आती है
कि
मास्टर कुंदन लाल सचमुच गुदड़ी के लाल थे,
एक नेक और सच्चे इंसान थे,
सहकर्मियों और विद्यार्थियों की
हरपल मदद के लिए रहते थे तैयार।
और हां,वे मेरी तरह
बाइसाइकिल पर घूमने,
संवेदना को ढूंढने के शौकीन थे।
वे रंगीन दुनिया को
एक साधु की नजर से देखते थे, सचमुच वे प्रखर थे।
...और अखबार पढ़ने,तर्क सम्मत अपने विचार व्यक्त करने में
निष्णात।
इलाके में सादगी,मिलनसारिता के लिए विख्यात।
उन जैसा बनना बहुत कठिन है जी।
मस्त मौला मास्टर की तरह
ईमानदार और समझदार ,
अपने नाम कुंदन लाल के अनुरूप
वे सचमुच कुंदन थे ,
जो ऊर्जा,जिजीविषा,सद्भावना से भरपूर।
आज वे  हम सब से चले गए बहुत दूर,
ईश्वर का साक्षात्कार करने के लिए,
परम सत्ता से ढेर सारी बातें करने, और
दुनिया जहां की खबरें परमात्मा तक पहुंचाने के लिए।
वे सारी उमर सादा जीवन,उच्च  विचार, के आदर्श को
आत्मसात करते हुए अपना जीवन जी कर गए।
सब को अकेला छोड़ गए
70 · Dec 2024
Sometimes
Joginder Singh Dec 2024
Sometimes
natural intelligence
behaves like AI
in emergency only!
It brings a break down during sleep
to take care of diseased family member
or
to watch at midnight
surroundings !
It is ok .
You can keep continue to 💤 💤 💤 sleep!
Now you can enjoy your sound sleep!
Natural intelligence wishes sometimes ....very....very....good...and.....happy good morning !! 🌄 🌞!!
Ha! Ha !! Ha !!!
कभी सुना था कि
आदमी की पहली शिक्षक
उसकी माँ है
जो उसे जीने का सलीका सिखाती है।
अभी अभी एक सुविचार
अख़बार के माध्यम से पढ़ा है कि
आपका सबसे अच्छा शिक्षक
वह व्यक्ति है , जो आपको सबसे
बड़ी चुनौती देता है।
सोचता हू
यह  विचार कितना विरोधाभास
मेरे भीतर भर गया।
माँ
अक्सर
बच्चे की बेहतरीन शिक्षिका होती है,
जो जन्म से जीवन में आगे बढ़ने तक
जीवन में निरन्तर
प्रेरणा बनी रहती है।
वह तो कभी चुनौती देती नहीं !
हाँ, किसी द्वारा चुनौती दिए जाने पर
संबल अवश्य बनती है।
माँ और समय,
दोनों को ही
इस विचार को
जीवन में कसौटी पर
खरा उतरते जरूर देखता हूँ।
जीवन यात्रा में
सबसे खरा शिक्षक समय है,
जो न केवल आदमी को चुनौती देता है,
बल्कि उसे उत्तरोत्तर समझदार और प्रखर बनाता है ,
और एक दिन जीवन वैतरणी के पार पहुँचा देता है।
समय सभी को सफलता की राह दिखा देता है।
२०/०३/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
यह कतई झूठ नहीं
कि अधिकार पात्र व्यक्ति को मिलते हैं।
तुम्हीं बताओ...
कितने लोग
अधिकारी बनने के वास्ते
सतत संघर्ष करते हैं?


मुठ्ठी भर लोग
भूल कर दुःख,  दर्द , शोक
जीवन में तपस्या कर पाते हैं;
वे निज को खरा सिद्ध कर
कुंदन बन पाते हैं।
    
ये चन्द मानस
रखें हैं अपने भीतर अदम्य साहस
और समय आने पर
तमाशबीनों का
उड़ा पाते हैं उपहास।

सच है, तमाशबीन मानस
अधिकारों को
नहीं कर पाते हैं प्राप्त।
वे समय आने पर
निज दृष्टि में
सतत गिरते जाते हैं,
कभी उठ नहीं पाते हैं,
जीवन को नरक बनाते हैं,
सदा बने रहते हैं,
अधिकार वंचित।
जीवन में नहीं कर पाते
पर्याप्त सुख सुविधाएं संचित।

उठो, गिरने से न डरो,
आगे बढ़ने का साहस भीतर भरो।
सतत बढ़ो ,आगे ही आगे।
अपने अधिकारों की आवश्यकता के वास्ते ।
इसके साथ साथ कर्तव्यों का पालन कर,
खोजो,समरसता, सामंजस्य, सद्भावना के रक्षार्थ
नित्य नूतन रास्ते।

तभी अधिकार बचेंगे
अन्यथा
एक दिन
सभी यतीमों सरीखे होकर
दर बदर ठोकरें खाकर
गुलाम बने हुए
शत्रुओं का घट भरते फिरेंगे।
फिर हम कैसे खुद को विजयपथ पर आगे बढ़ाएंगे?
70 · Mar 17
जंगल राज
जंगल राज का ताज
जिसके पुरखों के सिर पर
कभी सजा था ,
उस वंश के
नौनिहाल के
मुखारविंद से
सुनने को मिले कि
राज में कानून व्यवस्था
चौपट है ।
यह सब कई बार अजीब सा
लगता है।
शुक्र है कि यह नहीं कहा गया ...
यह जंगलराज
राज के नसीब में
लिखा गया लगता है।
हर दौर में
व्यवस्था सुधार की और
बढ़ती है,परंतु कुटिलता
विकास को पटरी से
उतार दिया करती है।
ऐसे में सुशासन भी
कुशासन की प्रतीति
कराने लगता है !
यह आम आदमी के भीतर
डर पैदा कर देता है।
आदमी बदलाव के स्वप्न
देखने लगता है।
बदलाव हो भी जाता है ,
यह बदलाव बहुधा
जंगल राज लेकर आता है ,
इसका अहसास भी  बहुत देर बाद होता है ,
तब तक चमन लुटपिट चुका होता है,
जीवन का हरेक कोना
अस्त व्यस्त हो चुका होता है।
अच्छा है कि
नेतागण बयान देने से पहले
अपने गिरेबान में झांकें ,
और तत्पश्चात देश समाज और राज्य को
विकसित करने का बीड़ा उठाएं।
जीवन को सुख, समृद्धि और संपन्नता से भरपूर बनाएं।
जीवन को जंगल राज के गर्त में जाने से बचाएं।
१७/०३/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
आतंक
आग सा बनकर
बाहर ही नहीं
भीतर भी बसता है ,
बशर्ते
आप उसे  
समय रहते
सकें पकड़
ताकि
शांति के
तमाम रास्ते
सदैव खुले रहें ।

आतंक
हमेशा
एक अप्रत्याशित
घटनाक्रम बनकर
जन गण में
भय और उत्तेजना भरकर
दिखाता रहा है
अपनी मौजूदगी का असर ।

पर
जीवन का
एक सच यह भी है कि
समय पर लिए गए निर्णय ,
किया गया
मानवीय जिजीविषा की खातिर संघर्ष ,
शासन-प्रशासन
और जनसाधारण का विवेक
आतंकी गतिविधियों को
कर देते हैं बेअसर ,
बल्कि
ये आतंकित करने वाले
दुस्साहसिक दुष्कृत्यों को
निरुत्साहित करने में रहते हैं सफल।
ये न केवल जीवन धारा में
अवरोध उत्पन्न करने से रोकते हैं,
अपितु विकास के पहियों को
सार्थक दिशा में मोड़ते हैं।
अंततः
कर्मठता के बल पर
आतंक के बदरंगों को
और ज्यादा फैलने से रोकते हैं।


दोस्त,
अब आतंक से मुक्ति की बाबत सोच ,
इससे तो कतई न डरा कर
बस समय समय पर
अपने भीतर व्याप्त उपद्रवी की
खबर जरूर नियमित अंतराल पर ले लिया कर ,
ताकि जीवन के इर्द-गिर्द
विष वृक्ष जमा न सकें
कभी भी अपनी जड़ों को ।

और
किसी आंधी तूफ़ान के बगैर
मानसजात को
सुरक्षा का अहसास कराने वाला
जीवन का वटवृक्ष
हम सब का संबल बना रहे ,
यह टिका रहे , कभी न उखड़े !
न ही कभी कोई
दुनिया भर का
गांव ,शहर , कस्बा,देश , विदेश उजड़े।
न ही किसी को
निर्वासित होकर
अपना घर बार छोड़ने को
बाधित होना पड़े ।
१६/०६/२००७.
70 · Nov 2024
In search of alternative
Joginder Singh Nov 2024
I have no choice.
And you are talking with me
about alternatives of love.
It surprises me oftentimes.
My mind warns me sometimes,
you are wasting your time in life to make search for alternative of love as well as hate in life.
Don't spoil your native natural life style.
It keeps your face to smile in hard times,dear.
Is it clear in your mind,dear?
Your present life is a mirror of past life,dear.
Do you heard my words, dear.
You need a very sharp mind to cut the silence and sounds of past  life.
Try to live in the present,
as you are well aware about the significance of time in an individual 's struggle full life.
You can't revind your past life.
Past life is far away from your present life,dear.
So live like a brave person in present life.
Present itself is a wonderful and unique present 🎁 for all of us.
70 · Dec 2024
Be A Performer In Life
Joginder Singh Dec 2024
Performance is utmost important in life.
It plays a vital role in a country 's economic development and stability.
To achieve such realistic and imaginary targets, you must show the ability to absorb tensions and restlessness in the fast changing lives of common country men.
For this  you must learn yourself to read your worker's psychology and needs.
Never put yourself in an adversive circumstances in life while dealing with your subordinates and staff.

Whatever they say regarding the working atmosphere, you have no need to react, only listen their difficulties carefully.

They have right to express their problems .

Respect their attitudes
towards their lives.
You have no need to fear ,and also haven't any way to criticize them.
They are working day and night to achieve targets set by employers.

You have also need to perform in real life.
Be a performer in life like them to attain rhythm in our financial activities.
Here accountability is highly required for all of us to handle our lives.
Otherwise we are living in a topsy turvey  and merciless world.
70 · Nov 2024
The Defeat
Joginder Singh Nov 2024
I am on back foot because of my surroundings.
Defeat makes me unhappy.
It brings the gloomy season of winter in me.
Where 🥶 shivering makes me miserable and I
starts avoiding to engage in my public dealings.
Defeat seems me a silent killer.
Defeat after defeat make us cowards.

Let us struggle ourselves to change defeat in to a victory,where hope appears in the form of miracles and sensitiveness of lively lights of forthcoming festivals.
I feel a transformation period of life is waiting for all.
Be a laborious person,so that all defeated fellows would enjoy their lives.
यदि कोई काम कम करे
और शोर ज़्यादा ,
तो उसका किसी को
है कितना फ़ायदा ?
ऐसे कर्मचारी को
कौन नौकर रखना चाहेगा ?
मौका देख कर
उसे बहाने से
कौन नहीं निकालना चाहेगा ?
अतः काम ज़्यादा करो
और बातें कम से कम
ताकि सभी पर अच्छा प्रभाव पड़े।
सभी ऐसे कर्मचारी की सराहना करें।
जीवन में कद्र
काम की होती है ,
आलोचना अनावश्यक
आराम करने वाले की होती है।
सचमुच ! एक मज़दूर की जिन्दगी
बेहद कठिन और कठोर होती है।
बेशक यह दिखने में सरल लगे ,
उसकी जीवन डगर संघर्षों से भरी होती है
और उसके मन मस्तिष्क में
कार्य कुशलता व हुनर की समझ
औरों की अपेक्षा अधिक होती है।
तभी उसकी पूछ हर जगह होती रही है।
काम ज़्यादा और बातें कम करना
आदमी को दमदार बनाता है ,
ऐसा मानस ही आजकल खुद्दार बना रहता है।
ऐसा मनुष्य ही उपयोगी बना रहता है ,
और स्वाभिमान ऐसे कर्मचारी की
अलहदा पहचान बना देता है।
१३/०२/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
पूर्णरूपेण
अतिशयोक्ति पूर्ण
जीवन का क्लाइमैक्स
चल रहा है यहाँ !
ढूंढ़ भाई
जीवन में वक्रोक्ति ,
न कि जीवन में
अतिशयोक्ति पूर्ण
अभिव्यक्ति यहाँ ।

बड़े पर्दे वाली
फिल्मी इल्मी दुनिया में
अतिशयोक्ति पूर्ण
जीवन दिखाया जा रहा है।
जनसाधारण को
बहकाया जा रहा है यहाँ।

और
कभी कभी
जीवन
कवि से कहता
होता है प्रतीत...,
तुम अतीत में डूबे रहते हो,
कभी वर्तमान की भी
सुध बुध ले लिया करो।
अपनी वक्रोक्तियों  से न डरो।
ये तल्ख़ सच्चाइयों को बयान करतीं हैं।

अभी तो तुम्हें
महाकवि कबीरदास जी की
उलटबांसियों को आत्मसात करना है ,
फिर इन्हें सनातन के पीछे पड़े
षड्यंत्रकारियों को समझाना है।
तब कहीं जाकर उन्हें अहसास होगा
कि उनके जीवन में
आने वाली परेशानियों के
समाधान क्या क्या हैं?
जो उन्हें मतवातर भयभीत कर रहीं हैं !
बिना डकार लिए उनके अस्तित्व को
हज़्म और ज़ज्ब करतीं जा रहीं हैं !
उनका जीवन जीना असहज करतीं जा रहीं हैं!!

तुम उन्हें सब कुछ नहीं बताओगे।
उन्हें संकेत सूत्र देते हुए जगाना है।
तुम उन्हें क्या की बाबत ही बताओगे ।
क्यों भूल कर भी नहीं।
वे इतने प्रबुद्ध और चतुर हैं,
वे  ...क्यों ...की बाबत खुद ही जान लेंगे!
स्वयं ही क्यों के पीछे छुपी जिज्ञासा को जान लेंगे !
खोजते खोजते अपने ज़ख्मों पर मरहम लगा ही लेंगे!!

यह अतिशयोक्तिपूर्ण जीवन
किसी मिथ्या व भ्रामक
अनुभव से कम नहीं !
यहाँ कोई किसी से कम नहीं!!
जैसे ही मौका मिलता है,
छिपकलियाँ मच्छरों कीड़ों को हड़प कर जाती हैं।

यह अतिश्योक्ति पूर्ण जीवन
अब हमारे संबल है।
जैसे ही अपना मूल भूले नहीं कि देश दुनिया में
संभल जैसा घटनाक्रम घट जाता है।
आदमी हकीक़त जानकर भौंचक्का
और हक्का-बक्का रह जाता है।
बस! अक्लमंद की बुद्धि का कपाट
तक बंद हो जाता है।
देश और समाज हांफने, पछताने लगता है।
देश दुनिया के ताने सुनने को हो जाता है विवश।
कहीं पीछे छूट जाती है जीवन में कशिश और दबिश।

१३/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
दैत्यों से अकेली
लड़ सकती है देवी ।
उसे न समझो कमज़ोर।
जब सभी ओर से
दैत्य उस पर
अपनी क्रूरता
प्रदर्शित करते से
टूट पड़ें ,
तब क्या वह बिना संघर्ष किए
आत्मसमपर्ण  कर दे ?
आप ही बताइए
क्या वह अबला कहलाती रहे ?
अन्याय सहती रहे ?
भीतर तक भयभीत रहे ?
दैत्यों की ताकत से
थर थर थर्राहट लिए
रहे कांपती ... थर थर
बाहर भीतर तक जाए डर ।
और समर्पण कर दे
निज अस्तित्व को
अत्याचारियों के सम्मुख ।
वह भी तो स्वाभिमानिनी है !
अपने हित अहित के बारे में
कर सकती है सोच विचार ,
चिंतन मनन और मंथन तक।
वह कर ले अपनी जीवन धारा को मैली !
कलंकित कर ले अपना उज्ज्वल वर्तमान!
फिर कैसे रह पाएगा सुरक्षित आत्म सम्मान ?

वह अबला नहीं है।
भीरू मानसिकता ने
उसे वर्जनाओं की बेड़ियों में जकड़
कमज़ोर दिखाने की साजिशें रची हैं।
आज वह
अपने इर्द गिर्द व्याप्त
दैत्यों को
समाप्त करने में है
सक्षम और समर्थ।
बिना संघर्ष जीवनयापन करना व्यर्थ !
इसलिए वे
सतत जीवन में
कर रही हैं
संघर्ष ,
जीवन में कई कई मोर्चों पर जूझती हुईं ।
वे चाहतीं हैं जीवन में उत्कर्ष!!
वे सिद्ध करना चाहतीं हैं  स्वयं को उत्कृष्ट!!
उनकी जीवन दृष्टि है आज स्पष्ट!!
भले ही यह क्षणिक जीवन जाए बिखर ।
यह क्षण भंगुर तन और मन भी
चल पड़े बिखराव की राह पर !

देवी का आदिकालीन संघर्ष
सदैव चलता रहता है सतत!
बगैर परवाह किए विघ्न और बाधाओं के!
प्रगति पथ पर बढ़ते जीवनोत्कर्ष के दौर में ,
रक्त बीज सरीखे दैत्यों का
जन्मते रहना
एकदम प्राकृतिक ,
सहज स्वाभाविक है।
यह दैवीय संघर्ष युग युग से जारी है।
१६/०६/२००७.
Joginder Singh Nov 2024
ਨੀਮ ਪਹਾੜੀ
ਪਿੰਡ ਦੀ
ਉਦਾਸ ਜ਼ਿੰਦਗੀ  ਵਿੱਚ
ਚਿੰਤਾ ਗ੍ਰਸਤ ਪਿੰਡ ਦਾ ਆਦਮੀ
ਧੁਰ ਅੰਦਰ ਤੱਕ ਚੁੱਪ ਹੈ ।
ਚੰਨ
ਸਿਆਹ ਕਾਲੀਆਂ  ਬਦਲੀਆਂ ਨਾਲ
ਰਿਹਾ ਹੈ ਖੇਡ ।
ਤੇਜ਼ ਹਵਾਵਾਂ  ਚੱਲ ਰਹੀਆਂ ਹਨ,
ਵਿੱਚ  ਵਿੱਚ ਤੇਜ਼ ਗਰਜ਼ ਦੇ ਨਾਲ਼
ਬੱਦਲਾਂ ਦੇ ਝੁਰਮੁਟ ਵਿੱਚੋਂ
ਬਿਜਲੀ ਮਾਰਦੀ ਪਈ ਹੈ ਲਿਸ਼ਕਾਰੇ ।

ਇੰਜ਼ ਜਾਪਦਾ ਹੈ ਕਿ
ਬਿਜਲੀ
ਪਿੰਡ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ
ਆਪਣੀਆਂ ਯਾਦਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ
ਵਸਾ ਕੇ ਰੱਖਣ ਦੇ ਵਾਸਤੇ
ਖਿੱਚ ਰਹੀ ਹੋਵੇ
ਨੀਮ ਪਹਾੜੀ ਪਿੰਡ ਦੀ ਤਸਵੀਰ ।

ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਕਿਉਂ ਬਿਜਲੀ
ਖਿੱਚ ਰਹੀ ਹੈ
ਰਹਿ ਰਹਿ ਕੇ
ਪਿੰਡ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਤਸਵੀਰਾਂ।
ਅਚਾਨਕ ਬਾਰਿਸ਼ ਹੋਣ ਲੱਗੀ,
ਮਨ ਨੂੰ ਕੁਝ ਠੰਡਕ ਮਿਲਣ ਲੱਗੀ।
ਇਸੇ
ਨੀਮ ਪਹਾੜੀ ਪਿੰਡ ਦੀ
ਕੈਦ ਨੂੰ ਝਲਦਾ ਹੋਇਆ ਇਕ ਆਦਮੀ
ਸੋਚਦਾ ਹੈ ਕਿ
ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਲਾਈਟ ਕਦੋਂ ਆਵੇਗੀ,
ਕਦੋਂ ਲਿਖ ਸਕਾਂਗਾ ਮੈਂ ,
ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਾਉਣ  ਵਾਸਤੇ
ਕੁਝ ਔਖੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ
ਆਪਣੀ ਨੋਟ ਬੁੱਕ ਵਿੱਚ।

ਸਾਲ ਬੀਤ ਚੱਲਿਆ ਹੈ,
ਪਰ ਸਿਲੇਬਸ ਹੁਣ ਤੱਕ ਪੂਰਾ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ।

ਜਦੋਂ ਉਹ ਆਦਮੀ
ਸੋਚ ਰਿਹਾ ਸੀ
ਆਪਣੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ
ਸਕੂਲ ਤੱਕ ਸੀਮਿਤ ਕਰਕੇ ,
ਓਹ
ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ ਜੰਜਾਲ ਵਿੱਚ
ਰਿਹਾ ਸੀ ਜਕੜ।

ਠੀਕ ਉਸੀ ਸਮੇਂ
ਚੰਨ ਹਨੇਰੀ ਰਾਤ ਵਿੱਚ
ਉਸ ਆਦਮੀ ਦੇ ਘਰ ਉੱਪਰ
ਕਾਲੀਆਂ ਬਦਲੀਆਂ ਨਾਲ
ਰਿਹਾ ਸੀ ਖੇਡ।


ਉਹ ਆਦਮੀ
ਫਿਕਰਾਂ ਨਾਲ  ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਜਕੜ,
ਸਮਝ ਰਿਹਾ ਸੀ ਖੁਦ ਨੂੰ ਇੱਕ ਕੈਦ ਵਿੱਚ।

ਅਚਾਨਕ
ਚੰਨ ਨੂੰ
ਸਿਆਹ  ਕਾਲੀਆਂ ਬਦਲੀਆਂ ਨੇ
ਲਿਆ ਸੀ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਢੱਕ।

ਉਸੀ ਵੇਲੇ
ਉਹ ਆਦਮੀ ਸੋਚ ਰਿਹਾ ਸੀ,
ਮੈਨੂੰ ਕਦੋਂ ਮਿਲੇਗੀ ਮੁਕਤੀ,
ਤੇ ਆਪਣਾ ਫਲਕ ।

ਉਸੀ ਸਮੇਂ
ਬਿਜਲੀ
ਹਨੇਰੀ ਬਦਲੀਆਂ ਵਿੱਚੋਂ
ਘੁੱਪ ਹਨੇਰੀ ਰਾਤ ਵਿੱਚ
ਅੱਧ ਸੁੱਤੇ , ਹਨੇਰੇ ਚ ਡੁੱਬੇ ਪਿੰਡ ਉੱਪਰ ਚਮਕੀ।

ਨੀਮ ਪਹਾੜੀ ਪਿੰਡ ਦਾ ਆਦਮੀ
ਆਪਣੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬਾਰੇ ਸੋਚ ਰਿਹਾ ਸੀ,
ਉਹ ਚੰਨ, ਹਨੇਰੀ ਰਾਤ ਵਿੱਚ ਕਾਲੀਆਂ ਬਦਲੀਆਂ,
ਗਰਜ਼ਦੇ ਬੱਦਲਾਂ, ਅੱਧ ਸੁੱਤੇ ਪਿੰਡ ਵਿੱਚ ਭੌਂਕਦੇ ਕੁੱਤਿਆਂ,
ਦਮ ਘੋਟੂ ਮਾਹੌਲ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ
ਆਪਣੇ ਮੰਜੇ ਤੇ ਪਿਆ ਸੌਣ  ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ,
ਪਰ ਨਿੰਦਰ ਉਸ ਤੋਂ ਕੋਹਾਂ ਦੂਰ ਸੀ।
ਹੌਲੀ ਹੌਲੀ
ਉਸਦੇ ਮਨ ਅੰਦਰ ਵੀ
ਹਨੇਰਾ ਪਸਰ ਗਿਆ।
ਉਹ ਸੁਖ ਦੀ ਸਾਹ
ਲੈਣ ਲਈ
ਸੀ ਤਰਸ ਗਿਆ।

23/11/2024.
Joginder Singh Nov 2024
प्रिया!

मैं
तुम्हारे
मन के भावों को चुराकर,
तुम्हारे
कहने से पहले,
तुम्हारे
सम्मुख व्यक्त करना चाहता हूँ।
..... ताकि
तुम्हारी
मुखाकृति पर
होने वाले प्रतिक्षण  
भाव परिवर्तन को
पढ़ सकूँ ,
तुम्हें  हतप्रभ
कर सकूँ ।

तुम्हारे भीतर
उतर सकूँ ।
तुम्हारी और अपनी खातिर ही
बेदर्द ,  बेरहम दुनिया से
लड़ सकूँ ।


तुम्हारा ,
अहसास चोर !!

८/६/२०१६..
Joginder Singh Dec 2024
क्या कभी सोचा आपने
आखिर हम क्यों लड़ते हैं ?
छोटी छोटी बातों पर
लड़ने झगड़ने बिगड़ने लगते हैं ।
जिन बातों को नजर अंदाज किया जाना चाहिए ,
उनसे चिपके रहकर
तिल का ताड़ बना देते हैं।
कभी कभी राई को पहाड़ बना देते हैं।
यही नहीं बात का बतंगड़ बनाने से नहीं चूकते।
आखिर क्या हासिल करने के वास्ते
हम अच्छे भले रास्ते से
अपना ध्यान हटा कर
जीवन में भटकते हैं।
कभी कभी अकेले होकर
छुप छुप कर सिसकते हैं।

क्या पाने के लिए हम लड़ते हैं ?
लड़कर हम किससे जीतते हैं ?
उससे , इससे , या फिर स्वयं से !
आखिकार हम सब थकते , टूटते, हारते हैं ,
फिर भी जीवन भर ज़िद्दी बने भटकते रहते हैं ।

क्या हम सभी कभी समझदार होंगे भी ?
या कुत्ते बिल्लियों की तरह लड़ते और बहसते रहेंगे !
लोग हमें अपनी हँसी और स्वार्थपरकता का
शिकार बनाकर
हमें मूर्ख बनाने में कामयाब होते रहेंगे ।
उम्मीद है कि कभी हम
अपने को संभाल खुद के पैरों पर खड़े होंगे।
शायद तभी हमारे लड़ाई झगड़े ख़त्म होंगे।

३०/१२/२०२४.
69 · Dec 2024
Cleanliness
Joginder Singh Dec 2024
Let's think about cleanliness in life.
So that we can achieve unparalleled transparency in our self.
To keep intact purity, positivity, prosperity in day to day activities associated with human existence.

Let's keep away from self destructive activities in life for cleanliness of body as well as  mind.
So that we can become psychologically sound and stable, too some extent humble.
Is this possible or merely a imagination only?
Watch ourselves our internal consciousness closely and boldly.
Joginder Singh Dec 2024
बेशक
कोयल सुरीला कूकती है।
मुझे गाने को उकसाती है।

मैं भी मूर्ख हूं ।
बहकाई में जल्दी आ जाता हूं।
सो कुछ गाता हूं,...
कांव! कांव!! कांव!!!
तारों की छांव में
मैं मैना अंडे ढूंढता हूं।  
कांव! कांव!! कांव !!!
लगाऊं मैं दांव!
कांव!कांव!!  कांव!!!
(घर के) श्रोताओं को
मेरा बेसुरापन अखरता है।
इसे बखूबी समझता हूं।
पर क्या करूं?
आदत से मजबूर हूं।
उनके टोकने पर
सकपका जाता हूं।
कभी कभी यह भी सोचता हूं कि
काश ! मैं कोयल सा कूक पाऊं।
वह कितना अच्छा गाती है।
मन को बड़ा लुभाती है ।
वह कभी कभार
कौए को ,
उस  को खुद के जानने बूझने के बावजूद
मूर्ख बना जाती है।


यह बात नहीं कि
कोयल
कौए की चाहत को
न समझती हो,
पर
यह सच है कि
वसंत ऋतु में
कौवा यदि
कोयल से
गाने की करेगा होड़
तो कोयल के साथ-साथ
दुनिया भी हंसेंगी तो सही ।

वह यदि तानसेन बनना चाहेगा,
तो खिल्ली तो उड़ेगी ही।
कौआ मूर्ख बनेगा सही।

आप मुझे बताना जरूर।
कोयल कौए को बूद्धू बना कर
क्या सोचती होगी?
और
कौआ कैसा महसूसता होगा,
भद्दे तरीके से
पिट जाने के बाद ?
क्या कोयल भी
कभी कहती होगी, 'आया स्वाद।'

बेशक
कोयल सुरीला गाती है।
कभी-कभी कौवे को गाने के लिए उकसाती है।
बेचारा कौवा मान भी जाता है।
ऐसा करके वह मुंह की खाता है।
कौआ इसे खुले मन से स्वीकारता भी है।
कौआ हमेशा छला जाता है।
भले ही गाना गाने की बात हो
या फिर
कौए के द्वारा
अपने घौंसले में
किसी और के अंडे सेने
जैसा काम हो।
भले यह लगे
हमें एक मजाक हो।
है यह कुदरत में घटने वाला
एक स्वाभाविक क्रिया कलाप ही।
हर बार ग़लती करने के बाद
करनी पड़ती अपनी गलती स्वीकार जी।
माननी पड़ती अपनी हार जी।
१६/०७/२००८.
69 · Nov 2024
खेला
Joginder Singh Nov 2024
सन २०२३और २०२४ के दौर में राजनीति
नित्य नूतन खेल ,खेल रही है।  
मेरे शब्दकोश में एक नया शब्द " खेला" शामिल हुआ है। समसामयिक परिदृश्य में राजनीति करने वाले सभी दल
उठा पटक के खेल में मशगूल हैं।
सन २००५ में
लिखे शब्द उद्धृत कर रहा हूँ....,
"इन दिनों
एक अजब खेल खेलता हूँ...
जिन्हें/ मैं/दिल से/चाहता नहीं ,
उनके संग/सुबह और शाम
जिंदगी की गाड़ी ठेलता हूँ!
अपनी बाट मेल ता हूँ।"

आप ही बतलाइए
२००५ से लेकर २०२४ में क्या परिवर्तन हुआ है ?
या बस / व्यक्ति,परिवार,समाज और राजनीति में/
नर्तन ही हुआ है ।
उम्मीद है ,यह सब ज़ारी रहने वाला है।
याद रखें,अच्छा समय आने वाला है।
Joginder Singh Nov 2024
गुनाह
जाने अनजाने हो जाए
तो आदमी करे क्या?
मन पर
बोझ पड़ जाए
तो आदमी करे क्या?
वो पगला जाए क्या??

आदमी
आदमियत का परिचय दे ।
अपने गुनाह
स्वीकार लें
तो ही अच्छा!
समय रहते
अपने आप को संभाल ले,
तो ही अच्छा!
गुनाह
आदमी को
रहने नहीं देते सच्चा।

यह ठीक नहीं
आदमी गुनाह करे
और चिकना घड़ा बन जाए ।
वह कतई न पछताए
बल्कि चोरी सीनाज़ोरी पर उतर आए
तो भी बुरा,
आदमी
बना रहता ताउम्र अधूरा।
अरे भाई!
तुम बेशक गुनाहगार हो,
पर मेरे दोस्त हो।
मित्र वर, सुनो एक अर्ज़
हम भूले न अपने फ़र्ज़
आजकल भूले जा रहे दायित्व
इनको निभाया जाना चाहिए।
सो समय रहते
हम गलती सुधार लें।

सुन, संभलना सीख
यह जीवन नहीं कोई भीख

यह मौका है बंदगी का,
यह अवसर है दरिंदगी से
निजात पाने का ।
परम के आगे शीश नवाने का।
आओ, प्रार्थना कर लें।
जाने अनजाने जो गुनाह हुए हैं हम से ,
उनके लिए आज प्रायश्चित कर लें ।
अपने सीने के अंदर दबे पड़े बोझ को हल्का कर लें।
   ९/६/२०१६.

Written by
69 · Nov 2024
ਜ਼ਿੰਦਗੀ
Joginder Singh Nov 2024
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚੋਂ ਲੰਘ ਰਿਹਾ
ਇੱਕ ਪੜ੍ਹਾਅ ਭਰ ਹੈ ,
ਇੱਥੇ ਆਦਮੀ ਜਨਮਦਾ ਹੈ ,
ਆਪਣੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਜਿਉਂਦਾ ਹੈ,
ਤੇ ਸਮੇਂ ਪੂਰਾ ਹੋਣ ਤੇ
ਸਮੇਂ ਦੇ ਧੁਰ ਅੰਦਰ ਗੁਆਚ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।


ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਸਮੇਂ ਦੇਵਤਾ ਨੂੰ ਕੀਤੀ ਗਈ ਬੰਦਗੀ ਹੈ ,
ਇਸ ਬੰਦਗੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਰਵਾਨਗੀ ਹੈ ,
ਇਸ ਬਾਬਤ ਨਹੀਂ ਹੋਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈਰਾਨਗੀ ਹੈ ।
69 · Nov 2024
Chess board
Joginder Singh Nov 2024
I am worried to see the climatic change.
It is beyond my range.
The whole world 🌎 seems me
like a chess board where
ups and downs related to 🌡️☁️🌡️☁️ weather change
is  disturbing to all of us.

Where all human beings,are playing the role of puppets.
Because nowadays
they have lost control over their destiny.
I am in a deep state of worries
from where I can see the finishing point of my planet 's life.
Who will cry 😢 with me to express sorrows for our beautiful mother Earth 🌍🌎🌍🌎!
Climatic changes made us like disturbed helpless souls wandering
here  and there on Earth.
Joginder Singh Nov 2024
अर्से पहले
मेरे मुहल्ले में
आया करते थे कभी कभी
तमाशा दिखलाने
मदारी और बाज़ीगर
मनोरंजन करने
और धन कमाने
ताकि परिवार का
हो सके भरण पोषण।

मैं उस समय बच्चा था
उनके साथ चल पड़ता था
किसी और कूचे गली में
तमाशा देखने के निमित्त।
उस समय जीवन लगता था
एकदम शांत चित्त।
आसपास,देश समाज की हलचलों से अनभिज्ञ।

अब समय बदल चुका है
रंग तमाशे का दौर हो चुका समाप्त।
उस समय का बालक
अब एक सेवानिवृत्त बूढ़ा
वरिष्ठ नागरिक हो चुका है,
एक भरपूर जीवन जी चुका है।

अब गली कूचे मुहल्ले
पहले सी हलचलों से
हो चुके हैं मुक्त,
शहर और कस्बे में,
यहां तक कि गांवों में भी
संयुक्त परिवार  
कोई विरले,विरले बचे हैं
एकल परिवार उनका स्थान ले चुके हैं।
इन छोटे और एकाकी परिवारों में
रिश्ते और रास्ते बिखर गए हैं
स्वार्थ का सर्प अपना फन उठाए
अब व्यक्ति व्यक्ति को भयभीत रहा है कर
और कभी कभी कष्ट,दर्द के रूबरू देता है कर।


आजकल
मेरे देश,घर,समाज, परिवार के सिर पर
हर पल लटकी रहती तलवार
मतवातर कर्ज़,मर्ज का बोझ
लगातार रहा है बढ़
मन में फैला रहता डर
असमय व्यवस्था के दरकने की व्यापी है शंका,आशंका।

ऐसे में
आप ही बताएं,
देश ,समाज , परिवार को
एकजुट, इकठ्ठा रखने का
कोई कारगर उपाय।

डीप स्टेट का आतंक
चारों और फैल रहा है ,
विपक्ष मदारी बना हुआ
खेल रहा है खेल,
रच रहा है सतत साज़िश,
सत्ता पर आसीन नेतृत्व को
धूल चटाने के लिए
कर रहा है षडयंत्र
ताकि रहे न कोई स्वतंत्र
और देश पर फिर से
विदेशी ताकतें करने लगें राज।
वे साधन सम्पन्न लोग
वर्तमान
सत्ता के सिंहासन पर आसीन
नेता का अक्स
एक तानाशाह के रूप में
करने लगे हैं चित्रित।

अब आगे क्या कहूँ?
पीठासीन तानाशाह,
और सत्ता से हटाए तानाशाह की
आपसी तकरार पर
कोई ढंग का फैसला कीजिए।
लोकतंत्र को ठगतंत्र से मुक्ति दिलवाइए।
आओ !सब मिलकर
इन हालातों को अपने अनुकूल बनाएं।
वैसे तानाशाहों का तमाशा ज़ारी है।
लगता है ...
अब तक तो
अपने प्यारे वतन पर
गैरों ने कब्ज़ा करने की,की हुई तैयारी है।
जनता के संघर्ष करने की अब आई बारी है।
उम्मीद है...
इस तमाशे से देश,समाज
बहुत जल्दी बाहर आएगा।
आम आदमी निकट भविष्य में
अपने भीतर सोए विजेता को बाहर लाएगा,
देश और  दुनिया पर
मंडराते संकट से
निजात दिलवाएगा।
कोई न कोई
इस आपातकाल को नेस्तनाबूद करने का
साहस जुटाएगा।
तभी सांस में सांस आएगा।
समय
इस दौर की कहानी
इतिहास का हिस्सा बन
सभी को सुनाएगा ताकि लोग
स्वार्थ की आंधी से
अपने अपने घर,परिवार बचा सकें।
निर्विघ्न कहीं भी आ जा सकें।
Joginder Singh Nov 2024
ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੀ ਹੋਂਦ
ਮੇਰੇ ਤੋਂ ਪਿੱਛੇ ਛੁਡਾਵੇ
ਕਿਉਂ ਨਾ ਮੈਂ
ਗਹਿਰੀ ਨੀਂਦ ਵਿੱਚ ਸੋ ਜਾਵਾਂ।
ਸੂਰਜ ਦੇ ਦਸਤਕ ਦੇਣ ਤੇ ਵੀ
ਕਦੀ ਨਾ ਉੱਠ ਪਾਵਾਂ।


ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾ ਕਿ
ਕੁਝ ਅਣਸੁਖਾਵਾਂ ਘਟੇ।
ਮੈਂ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ ,
ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ
ਗੁੜੀ ਨੀਂਦੋਂ ਜਗਾ ਪਾਵਾਂ।
ਤਾਂ ਜੋ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬਚੀ ਰਹੇ,
ਹੋਰ ਜੀਵਾਂ ਵਾਂਗ
ਆਪਣੇ ਲਈ ਸੁਫਨੇ ਬੁਣਦੀ ਰਹੇ।


ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿ
ਅਸੀਂ ਆਪਸ ਚ ਲੜ ਮਰੀਏ।
ਦੋਸਤ ,ਅਸੀਂ ਖੁਸ਼ੀ ਖੁਸ਼ੀ ਵਿਦਾਈ ਲਈਏ।
ਆਪਣੇ ਸਫਰ ਵੱਲ ਤੁਰ ਪਈਐ।
26/12/2017.
Joginder Singh Nov 2024
आज का आदमी
दौड़ धूप में उलझ
कल और कल के बीच
फंसा हुआ सा
लगा रहा है
अस्तित्व अपने पर ग्रहण।


आज की दुनिया में
नाकामयाब को
लगता है
हर कोई एक जालसाज़!
कुटिल व दग़ाबाज़!!


वज़ह....
आज के आदमी की
धड़कन ,
कलयुग के दौर में
हो चुकी है
एक भटकन भर,
पल पल आज आदमी रहा मर।


आज आदमी
अपने आप में
एक मशीन हो गया है।
'कल' युग में उसका
सुख, चैन,करार
सर्वस्व
भेड़ चाल के कारण
कहीं खो गया है।


ख़ुद को न समझ पाना
उसके सम्मुख
आज
एक  संगीन जुर्म सा
हो गया है।


जिस दिन
वह समय की नदिया की
कल  कल से
खुद को जोड़ेगा,
वह  उस दिन
दुर्दिनों के दौर में भी
सुख,सुविधा, ऐश्वर्य को भोगेगा।
फिर कभी
नहीं
वह लोभ लालच का
शिकार होकर ,
अधिक देर तक
अंधी दौड़ का
अनुसरण कर भागेगा।
कभी कभी
रंगों से गुरेज़ करने वाले को
अपने ऊपर
रंगों की बौछार
सहन करनी पड़ती है।
यही होली की
मस्ती है।
अपने को एक कैनवास में
बदलना पड़ता है
कि कोई चुपके से आए ,
रंग लगाए ,
अपनी जगह बनाए ,
और रंग लगा
चोरी चोरी
खिसक जाए ,
इस डर से
कि कोई सिसक न जाए।
विरह में सिसकारी ,
मिलन में पिचकारी ,
होली के रंग ही तो हैं।
ये अबीर और गुलाल बनकर
कब अंतर्मन को रंग देते हैं !
पता ही नहीं चलता !!
कभी कभी
होली आती है
और हो ली होकर
निकल जाती है।
पता ही नहीं चलता !
जब तक मन में
मौज है,
उमंग तरंग है ,
खेल ली जाए होली ।
जीवन में रंगों और बेरंगों के
बीच चलती रहे
आँख मिचौली !
ऐसी  कामना कीजिए !
अबीर की सौगात
ख़ुशी ख़ुशी
जिन्दगी की झोली में
डालिए
और हो सके तो
आप अपने भीतर
जीवन के रंगों सहित
अपने भीतर झांकिए
ताकि अंतर्मन से मैल धुल जाए !
चेहरा भी मुस्कुराता हुआ खिल पाए !!
अब की होली सब डर
पीछे छोड़कर
मस्ती कर ली जाए!
क्या पता अनिश्चितता के दौर में
कब आदमी की
हस्ती मिट जाए!
क्या पता पछतावा भी
हाथ न आए !
क्यों न जिन्दगी खुलकर
जी ली जाए !
होली भी हो ली हो जाए !!
१४/०३/२०२५.
माँ , माँ
होती है।
उससे
बेटी का दुःख
देखा नहीं जाता।
बेटी को दुःखी देख कर
माँ का मन है भर आता।
माँ सदैव चाहती है कि
बिटिया रानी सदैव सुखी रहे ,
यदि कोई उतार चढ़ाव और कष्ट
बिटिया की राह में आन पड़े ,
तो भी वह बिटिया का सहारा बने।
बेशक उसे रूढ़ियों और ज़माने से
लड़ना पड़े !
वह संतान सुख की खातिर
दुनिया भर से संघर्ष करे !!
बिटिया की रक्षार्थ वह शेरनी बन
विपदाओं का सामना ख़ुशी ख़ुशी करे !!
माँ सदैव बिटिया रानी की खातिर
अपना जीवन कुर्बान करने के लिए तत्पर रहे।
१२/०३/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
मुफलिसी के दौर में
ज़िंदगी को
हंसते हंसते हुए जीना
हरदम मुस्कुराते रहना
छोटी छोटी बातों पर
खिलखिलाते हुए
मन को बहलाना
चौड़ा कर देता है सीना ।
ऐसे संघर्षों में
सकारात्मकता के साथ
जीवन को सार्थक दिशा में
आगे ही आगे बढ़ाना
जिजीविषा को दिखाता है।

आदमी का
उधड़ी पतलून को
सीकर पहनना,
फटी कमीज़ में
समय को काट लेना ,
मांग मांगकर
अपना पेट भर लेना,
मजदूरी मिले तो चंद दिनों के लिए
खुशी खुशी दिहाड़ियों को करना,
लैंप पोस्ट की रोशनी में
इधर-उधर से रद्दी हो चुके
अख़बार के पन्नों को जिज्ञासा से पढ़ना ,
उसके भीतर व्यापी जिजीविषा को दर्शाता है।

फिर क्यों अख़बार में
कभी कभी
आदमी के आत्मघात करने,
हत्या, लूटपाट, चोरी, बलात्कारी बनने
जैसी नकारात्मक खबरें
पढ़ने को मिलती हैं ?

आओ ,
आज हम अपने भीतर झांक कर
स्वयं और आसपास के हालात का
करें विश्लेषण
ताकि जीवन में
नकारात्मकता को
रोका जा सके,
जीवन धारा को स्वाभाविक परिणति तक
पहुंचाया जा सके,
उसे सकारात्मक सोच से जोड़कर
आगे बढ़ने को आतुर
मानवीय जिजीविषा से सज्जित किया जा सके।
यह जीवन प्राकृतिक रूप से गतिमान रह सकें ,
इसे अराजकता के दंश से बचाया जा सके।
२६/१२/२०२४.
68 · Nov 2024
Missing
Joginder Singh Nov 2024
I know very well.
Nowadays for friends as well as foes
I am missing from home and work place, because of my misbehaving with family members and colleagues.



I am running constantly towards my comfort zone ,being silent and I am in a fix, totally indecisive .


I remain most of time silence 🤐.
Violence within me has lost all energy
and enthusiasm.



My inner consciousness, in common language,it is known as mind, always warn me to keep control on anger,and to realise the reality of life .

I ignored all the warnings and advice of my friend mind.As a result my well organised life is changed to a miserable and pathetic life.
I cries from time to time ,due to my
ignorance and hurriedness .


I want to enter in my comfortable zone.But now there is only exit,they have blocked the entrance. And,as a result,I am missing the contentment in life, wandering here and there.

I am a missing person for them.
I have lost the rhythm and freedom in life.My memories are also wandering towards a pathway which is full ofdarkness.The decline of bright and peaceful days is constantly haunting me.I want to correct my previous mistakes of past life.
I strongly need a comfortable life...,which I am missing.
हरेक के भीतर
हल्के हल्के
धीरे धीरे
जब निरर्थकता का
होने लगता है बोध
तब आदमी को
निद्रा सुख को छोड़
जीवन के कठोर धरातल पर
उतरना पड़ता है,
सच का सामना
करना पड़ता है।
हर कदम अत्यन्त सोच समझ कर
उठाना पड़ता है,
खुद को गहन निद्रा से
जगाना पड़ता है।

उदासी का समय
मन को व्याकुल करने वाला होता है,
यही वह क्षण है,
जब खुद को
जीवन रण के लिए
आदमी तैयार करे ,
अपनी जड़ता और उदासीनता पर
प्रहार करे
ताकि आदमी
जीवन पथ पर बढ़ सके।
वह जीवन धारा को समझ पाए ,
और अपने  मन में
सद्भावना के पुष्प खिला जाए ,
जीवन यात्रा को गंतव्य तक ले जाए।

११/०२/२०२५.
वह हठी है
इस हद तक
कि सदा
अपनी बात
मनवा कर छोड़ता है।
उसके पास
अपना पक्ष रखने के लिए
तर्क तो होते ही हैं ,
बल्कि जरूरत पड़ने पर
वह कुतर्क, वाद विवाद का भी
सहारा लेने से
कभी पीछे नहीं हटता।
वह हठी है
और इस जिद्द के कारण
मेरी कभी उससे नहीं बनी है,
छोटी छोटी बातों को लेकर
हमारी आपस में ठनती रही है।
हठी के मुंह लगना क्या ?...
सोच कर मैं अपनी हार मानता रहा हूं।
वह  अपने हठ की वज़ह से
अपने वजूद को
क़ायम रखने में सफल रहा है ,
इसके लिए वह कई बार
विरोधियों से
बिना किसी वज़ह से लड़ा है ,
तभी वह जीवन संघर्ष में टिक पाया है ,
अपनी मौजूदगी का अहसास करा पाया है।
उसकी हठ मुझे कभी अच्छी लगी नहीं ,
इसके बावजूद
मुझे उससे बहस कभी रुचि नहीं।
मेरा मानना है कि वह सदैव
जीवन में आगे बढ़ चढ़ कर
अपने को अभिव्यक्त करता रहे।
उसका बहस के लिए उतावला होना
उसके हठी स्वभाव को भले ही रुचता है ,
मुझे यह अखरता भी जरूर है ,
मगर उसके मुंह न लगना
मुझे उससे क़दम क़दम पर बचाता है।
हठी के मुंह लगने से सदैव बचो।
अपने सुख को
सब कुछ समझते हुए
तो न हरो।
बहस कर के
अपने सुख को तो न सुखाओ ।
इसे ध्यान में रखकर
मैं  उस जैसे हठी के आगे
अकड़ने से परहेज़ करता हूं।
आप भी इसका ध्यान रखें कि
...हठी के मुंह लगना क्या ?
बेवजह जीवन पथ में लड़ भिड़कर अटकना क्या ?
इन से इतर खुद को समझ लो,
खुद को समझा लो,
बस यही काफी है।
कभी कभी
हठी से बहस करने
और उलझने की निस्बत
खुद ही आत्म समर्पण कर देना ,
अपनी हार मान लेना बुद्धिमत्ता है।
०५/०४/२०२५.
असली आज़ादी को
कौन
मौन रहकर
भोग पाता है ?
एक योगी या फिर कोई भोगी ?? ‌
या फिर
जिसने जीवन में
शेरनी का दूध पिया है ?
अभी अभी
पढ़ा है कि
दुनिया में
कोई विरला ही होता है ,
जिसे असल में
यानी कि सचमुच
शेरनी का दूध पीने का
सौभाग्य मिला हो।
एक या दो चम्मच से ज्यादा
शेरनी का दूध
पीने से
यह आदमी को यमपुरी की राह ले जा सकता है
क्यों कि
इस दूध की तासीर गर्म है ,
इसे पचाना है जरा मुश्किल।
वैसे भी दूध पर पहला हक
पशु के शावक का है ,
जिससे उन्हें वंचित रखा जाता है।

बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर जी ने
शिक्षा को
शेरनी का दूध कहा है।
यदि इस दूध को
शोषित मानस पीये
और स्वयं को
इस योग्य बना ले
कि वह अपना संतुलित विकास कर ले
तो वह अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत होकर
सिंहनाद करने में हो सकता है सक्षम।
वह समर्थ बनकर
देश दुनिया और समाज का
कह सकता है भला।
ऐसा शिक्षा रूपी
शेरनी का दूध पीकर
सब निर्भीक बनें ,
ताकि सभी आत्म सम्मान से जीवनयापन कर सकें,
जीवन रण को
संघर्ष के बलबूते
समस्त वंचित जन जीत सकें।
आओ आज हम सब इस बाबत मंगल कामना करें।
कोई भी शिक्षा से महरूम न रहे।
सब
स्वपोषित साधनों से
सजगता और जागरूकता को फैलाकर ,
शेर सरीखे बनकर
देश , दुनिया और समाज को
सुख , समृद्धि और सम्पन्नता की राह पर ले जाएं ,
जीवन पथ पर किसी को भी हारना न पड़े।
ऐसे लक्ष्य को
हासिल करने के निमित्त
सब एकजुट होकर आगे बढ़ें।
०२/०५/२०२५.
67 · Nov 2024
Pearl of love
Joginder Singh Nov 2024
Oh dear!

Find the pearl of love
  
in the ocean of emotions

for me and self .

It  will strengthen the bonds of affection
for me and you.

Nowadays attractions of life,sun and smiles is turned into affection.

So avoid distractions in present life.
Time is passing through us rapidly.
You must understand it clearly.

Yours
Hours of Life.
Joginder Singh Nov 2024
जिन्दगी में
तना तनी,
छीन लेती
सुख की नागमणि!
२५/०४/२०२०
Joginder Singh Dec 2024
जीवन में
कोई कोई पल
बगैर कोई कोशिश किए
सुखद अहसास
बनकर आता है।
सच! इस पल
आदमी
अपने विगत के
कड़वे कसैले अनुभवों को
भूल पाता है।

यदि कभी अचानक
बेबसी का बोझ
किसी एक पल
अगर दिमाग से
निकल जाए
और
दिल अपने भीतर
हल्कापन
महसूस कर पाएं
तो आदमी
अधिक देर तक
तनाव से निर्मित वजन
नहीं सहता
बल्कि
उसे अपने जीवन में
जिजीविषा और ऊर्जा की
उपस्थिति होती है अनुभूत।
ऐसे में
जीवन एक खिले फूल सा
लगता है
और
कोई  कोई पल
अनपेक्षित वरदान सरीखा होकर
जीवन को
पुष्पित, पल्लवित और सुगंधित कर
ईश्वरीय अनुकंपा की
प्रतीति कराता है।
यह सब जब घटता है ,
तब जीवन
तनाव मुक्त हो जाता है
यही चिरप्रतीक्षित पल
जीवन में
आनंद और सार्थकता की
अनुभूति बन जाता है।

सभी को
अपने जीवन काल में
इन्हीं पलों के
जीवनोपहार का
इंतज़ार रहता है।
समय
मौन रहकर
इन्हीं पलों का
साक्षी बनता है।
इन्हीं पलों को याद कर
आदमी स्मृति पटल में
जीवन धारा को
जीवंतता से सज्जित करता है!
मतवातर जीवन पथ पर आगे बढ़ता है !!
२२/१२/२०२४.
67 · Dec 2024
थूक गटकना
Joginder Singh Dec 2024
अच्छा खासा आदमी था,
रास्ता भटक गया।
बहुत देर बाद
मुंह में निवाला पाया था ,
गले में अटक गया ।

थोड़ी तकलीफ़ हुई ,
कुछ देर खांसी हुई ,
फिर सब कुछ शांत हुआ,
अच्छा खासा आदमी परेशान हुआ।
समय बीतते बीतते
थोड़ा पानी पीने के बाद
अटका निवाला
पेट के भीतर ले जाने में सक्षम हुआ ,
तब कहीं जाकर कुछ आराम मिला।
अपनी भटकन
और छाती में जकड़न से  
थोड़ी राहत मिली,
दर्द कुछ कम हुआ,
धीरे-धीरे
मन शांत हुआ, तन को भी सुख मिला।
अपनी खाने पीने की जल्दबाजी से
पहले पहल लगा कि
अब जीवन में पूर्ण विराम लगा,
जैसे मदारी का खेल  
खनखनाते सिक्कों को पाने के साथ बंद हुआ।


अच्छा खासा आदमी था
ज़िंदगी को जुआ समझ कर  खेल गया।
मुझ कुछ पल के लिए
जीवन रुक गया सा लगा,
अपनी हार को स्वीकार करना पड़ा,
इस बेबसी के अहसास के साथ
बहुत देर बाद
निवाला निगला गया था।

अपनी बर्बादी के इस मंजर को देख और महसूस कर
निवाला गले में अटका रह गया था।
सच! उस पल थूक गटक गया था ,
पर ठीक अगले ही पल
भीतर मेरे
शर्मिंदगी का अहसास
भरा गया था।
बाल बाल बचने का अहसास
भीतर एक कीड़े सा कुलबुला रहा था।
मैं बड़ी देर तक अशांत रहा था।
१६/०६/२००७.
Joginder Singh Nov 2024
अब तो बस!
यादों में
खंडहर रह गए।
हम हो बेबस
जिन्दगी में
लूटे, पीटे, ठगे रह गए।
छोटे छोटे गुनाह
करते हुए
वक़्त के
हर सितम को सह गए।

पर...
अब सहन नहीं होता
खड़े खड़े
और
धराशाई गिरे पड़े होने के
बावजूद
हर ऐरा गेरा घड़ी दो घड़ी में
हमें आईना दिखलाए,
शर्मिंदगी का अहसास कराए,
मन के भीतर गहरे उतर नश्तर चुभोए
तो कैसे न कोई तिलमिलाए !
अब तो यह चाहत
भीतर हमारे पल रही है,
जैसे जैसे यह जिंदगी सिमट रही है
कि कोई ऐसा मिले जिंदगी में,
जो हमें सही डगर ले जाए।
बेशक वह
रही सही श्वासों की पूंजी के आगे
विरामचिन्ह,प्रश्नचिन्ह,विस्मयादि बोधक चिन्ह लगा दे ।
बस यह चाहत है,
वह मन के भीतर
जीने ,मरने,लड़ने,भटकने,तड़पने का उन्माद जगा दे।
९/६/२०१६.
जब चाहकर भी
नींद नहीं आती,
सोचिए जरा
उस समय
क्या जिन्दगी में
कुछ अच्छा लगता है ?
जिन्दगी का पल पल
थका थका सा लगता है।
नींद की चाहत
शेयर मार्केट की तेज़ी सी
बढ़ जाती है।
ऐसे समय में
सोना अर्थात नींद की चाहत
सोने से भी
अधिक मूल्यवान लगने लगती है।
आंखों की पलकों पर
नींद की खुमारी दस्तक
देने लगे तो सब कुछ
अच्छा अच्छा लगता है।
समय पर सो पाना ही
जीवन में सच्चा
और आनन्ददायक ,
सुख का अहसास
होने की प्रतीति कराने लगता है।
समुचित नींद न मिल पाए
तो सचमुच आदमी को
झटका लगता है ,
उसे जीवन में
सब कुछ भटकाता हुआ ,
खोया खोया सा लगता है।
पल पल मन में कुछ खटकता है।
जीवन यात्रा में भीतर धक्का लगता सा लगता है।
नींद का इंतज़ार बढ़ जाता है।
आदमी को कुछ भी नहीं भाता है ,
भीतर का सुकून कहीं लापता हो जाता है।
१९/०२/२०२५.
67 · Feb 11
आकर्षण
जीव के भीतर
जीवन के प्रति
बना रहना चाहिए आकर्षण
ताकि जीवन के रंगों को देखने की
उत्कंठा
जीव , जीव के भीतर
स्पष्टता और संवेदना के
अहसासों को भरती रहे ,
उन्हें लक्ष्य सिद्धि के लिए
प्रेरित करती रहे ,
मन में उमंग तरंग बनी रहे।

कभी अचानक
जीवन में
अस्पष्टता का
हुआ प्रवेश कि
समझो
जीवन की गति पर
लग गया विराम।
देर तक
रुके रहने से
जीवन में
मिलती है असफलता ,
जो सतत चुभती है ,
असहज करती है ,
व्यथित करती है ,
व्यवहार में उग्रता भर देती है।
यह जिन्दगी को कष्टदायक कर देती है।

अक्सर
यह आदमी को
असमय थका देती है ,
उसे झट से बूढ़ा बना देती है।

यह सब न केवल
जीवन में रूकावटें पैदा करती है ,
बल्कि यह जिन्दगी में
निराशा और हताशा भर कर
समस्त उत्साह और उमंग को
लेती है छीन ,
भीतर का संबल
आत्मबल होता जाता क्षीण।
आदमी धीरे धीरे होने लगता समाप्त।
वह अचानक छोड़ देता करने प्रयास।
फलत: वह जीवन की दौड़ में से हो जाता बाहर ,
वह बिना लड़े ही जाता , जीवन रण को हार।
यही नहीं वह भीतर तक हो जाता भयभीत
कि पता नहीं किस क्षण
अब उड़ने लगेगा उसका उपहास !
यही सोच कर वह होने लगता उदास !!
जीवन का आकर्षण महज एक तिलिस्म लगने लगता !
धीरे धीरे निरर्थकता बोध से जनित
जीवन में अपकर्षण बढ़ने है लगता !!
११/०२/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
निज के रक्षार्थ
दूर रखिए
स्वयं से स्वार्थ।
कैसे नहीं अनुभूत होगा परमार्थ?
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