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296 · Dec 2024
Helpless
Joginder Singh Dec 2024
To feel like a puppet makes me sad.
Am I  merely a dependent upon others to exist in life?
I am unable to take decisions regarding my life.
This indecisiveness in life makes me miserable in my own eyes.
That' s why ?
A puppet cry always silently !

To feel like a puppet makes life miserable.
Even inaccessible to self.
All such situations
usually disturbed  the life.
The haunting memories of the past life also disturbed  peace of the mind.
All such shades of time compels me to think myself that I am simply a helpless person living a miserable life.
Joginder Singh Dec 2024
जीवन में
कुछ लोग बिना परिश्रम किए
चर्चित रहना चाहते हैं ।
वे बगैर किए धरे
सुर्ख़ियों में बने रहना चाहते हैं।
भला ऐसा घटित होता है कभी।

उनकी चाहत को
महसूस कर
कभी कभी सोचता हूं कि आजकल
भाड़े के टट्टू
क्यों बनते जा रहे हैं निखट्टू ?
ये दिहाड़ियां करते हुए
कभी कभार
अधिक दिहाड़ी मिलने पर
झट से पाला बदल लेते हैं।
अपने निखट्टूपन को
एक अवसर में बदल जाते हैं।
जिसका काम होता है प्रभावित ,
उसे भीतर तक चिड़चिड़ा बना देते हैं।

उन्हें जब कोई
क्रोध में आकर
भाड़े का टट्टू कहता है ,
तो उनमें बेहिसाब गुस्सा
भर जाता है।
वे तिलमिलाए हुए
उत्पात करने पर
उतारू हो जाते हैं।
वे भाड़े के टट्टू नहीं
बल्कि
टैटू की तरह
दिखाई देना चाहते हैं।
सभी के बीच
अपनी पैठ बनाना चाहते हैं ।
वे हमेशा चर्चाओं में
बने रहना चाहते हैं।
वे इसी चाहत के वशीभूत होकर
जीवन भर भटकते रहते हैं।
आखिरकार थक-हारकर
शीशे की तरह
चकनाचूर होते जाते हैं।

१२/०१/२०१७.
Joginder Singh Dec 2024
यह कैसा अपनापन ?
...कि आदमी का अचानक
अपमान हो
और अपनापन
परायापन सरीखा लगने लगे।
कोई क्रोध, नाराजगी जताने की
बजाय अपनापन दिखलाने वाला
खामोशी ओढ़ ले।

यह ठीक नहीं है।
इससे अच्छा तो वह अजनबी है ,
जो आदमी की पीड़ा को
सहानुभूति दर्शाते हुए सुन ले।
उसे दिलासा और तसल्ली दे
आदमी के भीतर हौसला और हिम्मत भर दे ।

इसे बढ़ावा देने वाले से क्या कहूं?
अपनेपन का दिखावा न करे ,
कम अज कम
बेवजह बेवकूफ बनाना बंद कर दे ।
इस सब से अच्छा तो परायापन ,
जो कभी कभार
शिष्टाचार वश
इज़्ज़त ,मान सम्मान प्रदर्शित कर दे ,
और तन मन के भीतर जिजीविषा भर दे ,
आदमी में जीने की ललक भरने का चमत्कार कर दे ।
अतः दोस्त सभी से सद्व्यवहार करो।
भूले से भी किसी का तिरस्कार न करो।
दुखी आदमी इस हद तक चला जाए
कि वह गुस्से से ही सही ,
हिसाब किताब की गर्ज से
ज़िंदगी की बही में बदला दर्ज कर जाए ,
ताकि अपमान और परायेपन का दर्द कम हो पाए।

१८/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
इस देश में
अब सब को शिखर
छूने का है
हक़।
शिखर पर पहुंचने के लिए
अथक मेहनत करनी
पड़ती है
बेशक।
देश में दंगा फ़साद
क्यों होता रहे ?
अब सब को
तालीम मिले
ताकि
सभी को निर्विवाद रूप से
शिखर पर पहुंचने की
संभावना दिखे !
सभी इसके
लिए
प्रयास करें
और एक दिन
शेख साहिब शिखर को छूएं !
मेरी आंखें
उन्हें सफलता का दामन थामते हुए देखें ।

यह छोटी सी अर्ज़ है
कि तालीम की ताली से
सफलता का ताला
सब को खोलने का अवसर मिले।
इसकी खातिर सम्मिलित
प्रयास करना
हम सब का फर्ज़ है।
यह कुदरत का सब पर कर्ज़ है।
क्यों न सब इस के लिए
प्रयास करें ?
ताकि
देश समाज में
शांतिपूर्वक संपन्नता और सौहार्दपूर्ण वातावरण बने
और
जीवन गुलाब सा गुलज़ार रहे !
कोई भी साज़िश का शिकार न बने।
सब आगे बढ़ें, कोई भी तिरस्कृत न रहे।
कोई भी दंगा फ़साद न करे।
बेशक कोई भी अपनी योग्यता के कारण
जीवन में सफलता के शिखर पर पहुंचकर
राष्ट्र और समाज का नेतृत्व करे ।
देश दुनिया को सुरक्षित करे ।
२२/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
यदि बोलोगे तुम झूठ,
बोलते ही रहोगे झूठ के बाद झूठ,
तुम एक दिन स्वयं को
एक झूठी दुनिया में गिरा पाओगे,
कभी ढंग से भी न पछता पाओगे,
शीघ्रातिशीघ्र
दुनिया से रुखसत कर जाओगे,
तब तुम कुछ भी हासिल नहीं कर पाओगे।
कुछ पाने के लिए
तुम मतवातर बोल रहे झूठ ,
क्यों बना रहे खुद को ही मूर्ख ?

जीवन में इतनी जल्दी
पीनी पड़ेगी ज़हर की घूट।
यह कभी सोचा नहीं था।
मुझ पर  मेरा दोस्त,
दुम कटा  कुत्ता
जो कभी भौंका तक न था,
अब लगता है कि वह भी
आज लगातार भौंक भौंक कर,
कर रहा है आगाह ,
अब और झूठ ना बोल ,
वरना हो जाएगा
इस जहान से  बिस्तर गोल ।
अब वह अपना सच बोलकर
मुझे काटने को रहता है उद्यत।

मुझे याद है
अच्छी तरह से ,
बचपन में एक दफा
झूठ बोलते पकड़े जाने पर
मिला था एक झन्नाटेदार चांटा ।

परंतु मैं बना रहा ढीठ!
और अब तो लगता है
कि मैंने ढीठपने की
लांघ दी हैं सब हदें।


अब मुझे तुम्हारा डांटना,
बार-बार आगाह करना,
नहीं  अखरता है ।
तुम्हारा यह कहा कि
यदि झूठ बोलूंगा,
तो काला कौआ भी भी बार-बार काटने से
करेगा गुरेज,
वह भी पीछे हट जाएगा,
सोचेगा, बार-बार काटूंगा,  
तो इस ढीठ पर होगा नहीं कोई  असर ।
मैं खुद को बेवजह  थकाऊंगा ।

आजकल
हरदम
मौत के क़दमों
की आहट,
मेरा पीछा नहीं छोड़ती।
कर देती है,
मेरी बोलती बंद।

वह घूरती आंखों से
मेरे भीतर बरपा रही है कहर,
मैं लगातार रहा हूं डर,
मेरे भीतर
सहम भर गया है।
जीवन कुछ रुक सा
गया है ।

अब आ रहा है याद
तुम्हारा कहा हुआ ,
" दोस्त,
झूठ बोलने से पहले
आईना देख लिया करो।
क्या पता कभी
आईने में सच देख लो ?
और झूठ से गुरेज कर लो !
झूठ के पीछे भागने से
तौबा कर लो।"

मैं  पछता रहा हूं।
जिंदगी की दौड़ में
पिछड़ता जा रहा हूं,
क्योंकि मेरे चरित्र पर
झूठा होने का ठप्पा लगा है।
सच! मुझे अपने ओछेपन की वज़ह से
जीवन में बड़ा भारी धक्का लगा है।
मेरा भविष्य भी अब हक्का-बक्का सा खड़ा है।
सोचता हूं,
मेरे साथ क्या हुआ है?
कोई भी मेरे साथ नहीं खड़ा है।
२९/०१/२०१५.
178 · Jan 20
Surfing
The waves of ups and downs
in life
makes us
feel quite happy and exciting
while surfing in the ocean of emotions.

All such adventurous situations and  sufferings in life
make the journey of life
too some extent challenging.
Surfing 🌊 on the waves of sufferings
proves the life worth living.
It is just the fun of wandering and giggling.
176 · Dec 2024
Caring
Joginder Singh Dec 2024
To live life
among under privileged persons for caring them needs a sense of dedication in the depths of mind ,
is very rare these days.

It inspires to all of us
to control our nerves
in hard times of life.

So, take care of them,
to maintain  rhythm of life in them .
Don't restrained yourself to take care and helpful for neglected , helpless persons in our lives.

If we are successful in our lives, we have achieved a special purpose in our minds to keep intact our unmatchable smiles during the journey of life.

Caring is blessings of God for all,
big or small.
176 · Nov 2024
Time
Joginder Singh Nov 2024
Time! Time!
Wash out my timidness.
I want to be a good person for the dignity of life.
But my timidness is a hurdle in my way.
So wash out my timidness.
To find the way of lost happiness.
Joginder Singh Dec 2024
ਸ਼ਰਾਬ ਨਾ ਪੀਓ,
ਇਸ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਖੁੱਲ ਕੇ ਜੀਓ।

ਇਹ ਖੋਹ ਲੈਂਦੀ
ਬੰਦੇ ਤੋਂ ਖ਼ਵਾਬ ਤੇ ਸ਼ਬਾਬ
ਪਰੰਤੂ
ਬੰਦਾ ਇਸ ਸੱਚ ਨੂੰ
ਸਮਝਦਾ ਹੀ ਨਹੀਂ ।
ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ
ਹਮੇਸ਼ਾ ਮੰਨਦਾ ਸਹੀ।
ਸ਼ਰਾਬ ਨਾ ਪੀਓ ,
ਇਸ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਖੁੱਲ ਕੇ ਜੀਓ।

ਬੰਦਾ ਸੋਚੇ ਮੈਂ ਇਸ ਨੂੰ ਪੀ ਰਿਹਾ ਹਾਂ।
ਖ਼ਬਰੇ ਸ਼ਰਾਬ ਸੋਚਦੀ ਹੋਵੇ ,
ਮੈਂ ਬੰਦੇ ਨੂੰ ਪੀ ਰਹੀ ਹਾਂ।
Joginder Singh Nov 2024
कभी कभी
अप्रत्याशित घट जाता है
आदमी इसकी वज़ह तक
जान नहीं पाता है,
वह संयम को खुद से अलहदा पाता है
फलत: वह खुद को बहस करने में
उलझाता रहता है,वह बंदी सा जकड़ा जाता है।

कभी कभी
अच्छे भले की अकल घास
चरने चली जाती है
और काम के बिगड़ते चले जाने,
भीतर तक तड़पने के बाद
उदासी
भीतर प्रवेश कर जाती है।
कभी कभी की चूक
हृदय की उमंग तरंग पर
प्रश्नचिन्ह अंकित कर जाती है ।
यही नहीं
अभिव्यक्ति तक
बाधित हो जाती है।
सुख और चैन की आकांक्षी
जिंदगी ढंग से
कुछ भी नहीं कर पाती है।
वह स्वयं को
निरीह और निराश,
मूक, एकदम जड़ से रुका पाती है।

कभी कभी
अचानक हुई चूक
खुद की बहुत बड़ी कमी
सरीखी नज़र आती है,
जो इंसान को
दर बदर कर, ठोकरें दे जाती है।
यही भटकन और ठोकरें
उसे एकदम
बाहर भीतर से
दयनीय और हास्यास्पद बनाती है।
फलत: अकल्पनीय अप्रत्याशित दुर्घटनाएं
सिलसिलेवार घटती जाती हैं।
   १६ /१०/२०२४.
जीवन में
सब को लाभ उठाना आना चाहिए ,
सबका भला होना चाहिए।
यह सब स्वत:
कभी होगा नहीं।
इस के लिए
सभी को
सही दिशा में
खुद को आगे बढ़ाना चाहिए।
छोटी-छोटी उपलब्धियों से ही
संतुष्ट नहीं रह जाना चाहिए।
बल्कि सतत् मेहनत करने की आदत
अपने ज़िंदगी में  
अपनानी चाहिए।
लाभ सबका भला करता है ,
यह जीवन में सुख का अहसास भरता है ,
बस अनुचित लाभ कमाना
समाज और देश दुनिया को
निर्धन करता है,
यह जीवन में
असंतोष तक भर सकता है।
सब को  लाभ होना ही चाहिए
परन्तु इसका कुछ अंश भी
समय समय पर
लोक कल्याण के हेतु
निवेश किया जाना चाहिए
ताकि समरसता और समानता का आदर्श
व्यक्ति व समाज में
सहिष्णुता का संस्पर्श करा सके ,
और लाभ
लोक भलाई के आयाम निर्मित कर
उज्ज्वल, उजास , ऊर्जा भरपूर होकर
जीवन धारा को आगे ही आगे बढ़ाता रहे।
जीवन सुख समृद्धि और सम्पन्नता की प्रतीति करा सके।
१०/०१/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
मैं उन्नीस मार्च को
स्कूल में रसोई घर बंद कर
लौट आया था अपने घर ।
इस सोच के साथ
कि बीस मार्च को पंजाब बंद के बाद
लौटूंगा स्कूल।

इक्कीस, मार्च को स्कूल वापसी के साथ , सालाना नतीजा तैयार करने के लिए
अपने सहयोगियों से करूंगा बात
और सालाना नतीजा चौबीस
मार्च तक कर लूंगा तैयार‌।


पर! अफसोस !!स्कूल में हो गईं
असमय कोरोना काल की  छुट्टियां ही छुट्टियां ।
बाइस मार्च को लग गया जनता कर्फ्यू ।
पच्चीस मार्च से पहला लॉकडाउन ।
फिर एक एक करके पांच बार लॉकडाउन लगे।
लॉकडाउन खुलने के बाद
स्कूल पहुंचा तो अचानक
खबर मिली स्कूल की आया से
कि छुट्टियों के दौरान
एक बिल्ली का  बच्चा (बलूंगड़ा)
उन्नीस मार्च को
स्कूल बंद करते समय
स्कूल के रसोई घर में हो गया था
मानवीय चूक और अपनी ही गलती से
स्कूल के रसोई घर में कैद।
यह सुनकर मुझे धक्का लगा ।
मैं भीतर तक हो गया शोकाकुल‌ ,
सचमुच था व्याकुल ।
एक-एक करके मेरी आंखों के सामने
स्कूल की रसोई में बिल्ली  के बच्चे का बंद होना,
पंजाब बंद का होना ,
जनता कर्फ्यू का लगना ,
और लंबे समय तक लॉकडाउन का लगना,
और बहुत कुछ
आंखों के आगे दृश्यमान  हो गया।
मैं व्याकुल हो गया।
सोच रहा था यह क्या हो गया ?
मेरा जमीर
कहां गया था सो ?
मैं क्यों न पड़ा रो??
सच !मैं एक भारी वजन को भीतर तक  हो रहा था।
बेचारी बिल्ली लॉकडाउन का हो गई थी शिकार।
मैं रहा था खुद को धिक्कार।
उसके मर जाने के कारण ,मैं खुद को दोषी मान रहा था ।
आया बहन जी मुझे कह रही थीं,
सर जी,बहुत बुरा हुआ ।
कई दिनों के बाद
बिल्ली के क्षतिग्रस्त शव को बाहर निकाला गया
तो बड़ी तीखी बदबू आ रही थी।
सच मुझे तो उल्टी आने को हुई थी।
घर जब मैं आई
तो बड़ी देर तक
मृत बिल्ली की तस्वीर
आंखों के आगे नाचती रही
यही नहीं ,कई दिनों तक
वह बिल्ली रह रहकर मेरे सपनों में आती रही।
सर ,सचमुच बड़ी अभागी बिल्ली थी।
अब आगे और क्या कहूं?
यह सब सुन मैं चुप रहा।
भीतर तक कराह रहा था।
उस दिन एक जून था।
मेरी आंखों के आगे तैर रहा खून ही खून था।
दिल के अंदर आक्रोश था।
कुछ हद तक डरा हुआ था, पछतावा मेरे भीतर भरा था ।
मुझे लगा
मैं भी दुनिया के विशाल रसोई घर में
एक बिल्ली की मानिंद हूं कैद ।
क्या कोरोना के इस दौर में
मेरा भी अंत हो जाएगा ?
कोरोना का यह चक्रव्यूह
कब समाप्ति की ओर बढ़ेगा ?
इंसान रुकी हुई प्रगति के दौर में
फिर कब से नया आगाज करेगा।
हां ,कुछ समय तो प्राणी जगत बिन आई मौत मरेगा।
पता नहीं,
मेरी मृत्यु का समाचार,
कभी मेरे दायरे से बाहर,
निकल पाएगा या नहीं निकल पाएगा ।
क्या मेरा हासिल भी,
और साथ ही सर्वस्व
मिट्टी में मिल जाएगा ।
मृत्यु का पंजीकरण भी
बुहान पीड़ितों की तरह
मृतकों के पंजीकरण रजिस्टर में
मेरा नाम भी दर्ज होने से रह जाएगा ।
लगता है यह दुखांत मुझे प्रेत बनाएगा ।
मरने के बाद भी मुझे धरा पर भटकाएगा।
Joginder Singh Nov 2024
आज कल
इंसान होना बहुत मुश्किल है  
क्यों कि
उसके सामने
मुश्किलें बढ़ाने वाला कल है।
सो, यदि इंसान कहलाना चाहते हो
तो यह भी समझ लो,
तेज भागते समय को
अच्छे से समझ लो।

क्रोध करने से पहले
आदमी के पास
सच सुनने का जिगरा होना चाहिए
और साथ ही
उस के पास
झूठ को झुठलाने का  
हुनर होना चाहिए।

कभी कभार
दिल की जुस्तजू को पीछे रख
खुद से गुफ्तगू करते हुए
दिल को बहलाने का भी
हुनर होना चाहिए।
यदा कदा दिल
बहलाते रहना चाहिए।
उसे हल्के हल्के
मुस्कराते रहना चाहिए।




अब तो
मुस्करा प्यारे
तुझे जीवन भर
अपनों से सम्मान मिलेगा,
जिससे स्वत:
जीवन धारा में निखार दिखेगा।
देश और समाज को
स्वस्थ,साधन, सम्पन्न
संसार मिलेगा।
मुस्करा प्यारे मुस्करा।
अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ा।
१६/०७/२०२२
यह उदासी ही है
जो जीवन को कभी कभी
विरक्ति की ओर ले जाती है ,
आदमी को थोड़ा ठहरना,
चिंतन मनन करना सिखाती है।

उस उदासी का क्या करें ?
जो हमें निष्क्रिय करे ,
जीवन धारा में बाधक बने।
क्यों न सब इस उदासी को
जीवन के आकर्षण में बदलने का
सब समयोचित प्रयास करें !
उदासी को देखने की दृष्टि में तब्दील करें !!
११/०२/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
हे कामदेव!
जब तुम
तन मन में
एक खुमारी बनकर
देहवीणा को
अपना स्पर्श कराते हो
तो तन मन को भीतर तक को
झंकृत कर
जीवन में  राग और रागिनी के सुर
भर जाते हो।

ऐसे में
सब कुछ
तुम्हारे सम्मोहन में
अपनी सुध बुध ,भूल बिसार
दुनिया की सब शर्मोहया छोड़ कर
इक अजब-गजब सी
मदहोशी की
लहरों में
डूब डूब

कहीं
दूर चला जाता है,
यह सब आदमी
के भीतर
सुख तृप्ति के पल
भर जाता है।

इन्द्रियां
अपने कर्म भूल
कामुकता के शूल
चुभने से
कुछ-कुछ मूक हुईं
अपने भीतर
सनसनाहट महसूस
पहले पहल
रह जातीं सन्न !
तन और मन
कहीं गहरे तक
होते प्रसन्न!!

और  सब
इन आनंदित क्षणों को
दिल ओ दिमाग में
उतार
निरंतर
अपना शुद्धीकरण
करते हैं।

कभी-कभी
भीतर
सन्नाटा पसर जाता है।
इंसान
अपनी सुध-बुध खोकर
रोमांस और मस्ती की
डगर पर चल देता है।

हे कामदेव!
तुम देह मेरी में ठहरकर
आज वसन्तोत्सव मनाओ।
काम
तुम मेरी नीरस
काया के भीतर
करो प्रवेश।
मेरी नीरसता का हरण करो।
तुम और के दर पर न जाओ।

हे कामदेव!
तुम मेरे भीतर रस बोध कराकर
मुझे पुनर्जीवित कर जाओ।
ताकि
सुलगते अरमानों की
मृत्युशैया के हवाले कर
मुझे समय से पहले बूढ़ा  न कर पाओ।

हे कामदेव!
तुम समय समय पर
अपने रंग
मुझ पर
छिड़का कर
मुझे
अपनी अनुभूति कराओ ।
काम मेरे भीतर
सुरक्षा का आभास करवाओ।
यही नहीं तुम
सभी के भीतर
जीवंतता की प्रतीति करवाओ।
143 · Jan 2
The Performer
Who is a perfect person ,
a reformer or a performer in the world?
The performance speaks itself
despite  talking about the achievements in an effective way.
While reformer gives simply a justification  regarding the demerits and merits of a social setup.
He can try to rectify the issue with expressing his voice in the public .
I think none is perfect in life.
Only the performance speaks itself accurately in one's life.
The performer always survives in the ups and downs of ever changing world.
Joginder Singh Dec 2024
कितना अच्छा हो
आदमी सदैव सच्चा बना रहे
वह जीवन में
अपने आदर्श के अनुरूप
स्वयं को उतार चढ़ाव के बीच ढालता रहे।

कितना अच्छा हो
अगर आदमी
अपना जीवन
सत्य और अहिंसा का
अनुसरण करता हुआ
जीवन जिंदादिली से गुजार पाए ,
अपनी चेतना को
शुचिता सम्पन्न बनाकर
दिव्यता के पथ प्रदर्शक के
रूप में बदल पाए।

कितना अच्छा हो
आदमी का चरित्र
जीवन जीने के साथ साथ
उत्तरोत्तर निखरता जाए।
पर आदमी तो आदमी ठहरा ,
उसमें गुण अवगुण ,
अच्छाई और बुराई का होना,
उतार चढ़ाव का आना
एकदम स्वाभाविक है,
बस अस्वाभाविक है तो
उसके प्रियजनों द्वारा सताया जाना ,
उसके चरित्र को कुरेदते रहना ,
हर पल इस ताक में रहना कि कभी तो
उसकी कमियां और कमजोरियां पता चलें
फिर कैसे नहीं उसे पटखनी दे देते ?
...और खोल देते सब के सामने उसकी जीवन की बही।

कितना अच्छा हो
आदमी की चाहतें पूरी होतीं रहें ,
उसे स्वार्थी परिवारजनों और मित्र मंडली की
आवश्यकता कभी नहीं रहे ,
बल्कि उसका जीवन
समय के प्रवाह के साथ साथ बहता रहे।

आदमी का चरित्र उत्तरोत्तर निखरे ,
ताकि स्वप्नों का इंद्रधनुष कभी न बिखरे ।
२८/१२/२०२४.
Joginder Singh Nov 2024
जब सोचा मैंने
अचानक
विदूषक
अर्से से हंसी-मजाक नहीं कर रहा।
मैं बड़ी देर तक
उसकी इस मनोदशा को महसूस कर
बहुत बेचैन रहा।
वह जगत तमाशे से
अब तक क्यों दूर रहा ?
वह दुनियादारी के पचड़े में
अभी तक क्यों फंसा नहीं है ?


फिर भी
आज ही क्यों
उसकी हंसी हुई है गायब ।
जरूर कुछ गड़बड़झाला है!
क्या दुनिया के रंगमंच से
अपना यार
जो लुटाता रहा है सब पर प्यार,
रोनी सूरत के साथ प्यारा,सब से न्यारा
विदूषक प्रस्थान करने वाला है?

मैं जो भी उल जलूल, फिजूल
विदूषक की बाबत सोच रहा था।
मेरी कल्पना
कहीं से भी
सत्य के पास नहीं थी।
वह महज कपाल कल्पित रही होगी।
एकदम निराधार।

सच तो यह था कि
अचानक
विदूषक ने
खुद के बारे में सोचा,
मैं अर्से से हंसा नहीं हूं,

तभी पास ही
दीवार पर लटके दर्पण को
विदूषक के दर्प को
खंडित करने की युक्ति सूझी।
उसने विदूषक भाई से
हंसी ठिठोली करनी चाही।

सुना है
कि दर्पण व्यक्ति के
अंतर्वैयक्तिक भावों को पकड़ लेता है,
उसको कहीं गहरे से जकड़ लेता है।

यहीं
विदूषक खा गया मात।
दर्पण ने दिखला दी थी अपनी करामात।
उसके वह राज जान गया,
अतः विदूषक हुआ उदास।
और उसकी हंसी छीनी गई थी।


कृपया
विदूषक को हंसाइए।
उसके चेहरे पर मुस्कान लेकर आइए।
आप स्वयं एक विदूषक बन जाइए।
३१/०५/२०२०.
कभी कभी
पिता अपना आपा खो
बैठते हैं ,
जब वह अपने लाडले को
निठल्ला बैठे
देखते हैं ।

उनके क्रोध में भी
छिपा रहता है
लाड,दुलार और स्नेह।
पिता के इस रूप से
पुत्र होता है
भली भांति परिचित ,
फलत: वह रह जाता है चुप।
अक्सर वह पिता के आदेश का
करता है निर्विरोध पालन।
बेशक अन्दर ही अन्दर कुढ़ता रहे !
चाहता है पिता का साया हमेशा बना रहे !!

पिता के आक्रोश का क्या है ?
थोड़ी देर बाद एक दम से
ठोस से द्रव्य बन जाएगा !
कभी कभी वह छलक भी जाएगा !
जब पिता अपनी आंखों में दुलार भरकर ,
झट से पुत्र के लिए चाय बना कर
प्रेमपूर्वक लेकर आएगा।
...और जब पिता पुत्र
दोनों एक साथ मिलकर  
चाय और स्नैक्स के साथ
दुनिया भर की बातें
गहन आत्मीयता के साथ करेंगे ,
तब क्रोध और तल्खी के बादल
स्वत: छंटते चले जाएंगे।

पिता अपने आप ही
क्रोध पर
नियंत्रण का करने का करेंगे प्रयास
और
पुत्र पिता की डांट डपट को
यह तो है
महज़
मन के भीतर की गर्द और गुबार
समझ कर भूल जाएगा।
वह और ज़्यादा समझदार बनकर
पिता की खिदमत करता देखा जाएगा।

पिता और पुत्र का रिश्ता
किसी अलौकिक अहसास से कम नहीं।
दोनों ही अपनी अपनी जगह होते हैं सही।
बस उनमें कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए।
उनमें निरन्तर सहन शक्ति बनी रहनी चाहिए।

२२/०१/२०२५.
131 · Nov 2024
A Vicious Circle ⭕
Joginder Singh Nov 2024
In a world of full 🌝 time activities
People seems to me ,are trapped in a vicious circle ⭕.
They have lost their way of progress,
peace and prosperity.

As I am also trapped engaging myself in the never ending game of uploading and downloading like the world running parallel to almighty Time.
The Super King  of creativity, construction ,destruction , suppression of lives wandering in the lap of mother Earth 🌎.
Joginder Singh Dec 2024
The future is
knocking at your door
to open the window of a mesmerizing
wonderful world.
But you have engaged yourself in the deep sleep.
It seems me you are in the grip of a horrible dream.
Be awake and aware
the present is the right time to achieve for the betterment of the life.
Nothing is impossible and beyond your reach and access.
Be become a self sufficient and successful person in this  life span.

The future is waiting for your initiatives to execute your plans in forthcoming life.
That is why , he wants to address you.
And you are merely lost in your ambitious life style and dreams.
Awake as soon as possible.
Nothing is impossible in the battlefield of life to achieve or self deceive.
इस धरा पर
जीवन कहाँ से आया ?
शायद कहीं कायनात में
छिपे उस क्षण से ,
जिससे सृष्टि में
उल्का पिंड और विभिन्न तत्वों के
उत्पन्न होने की
शुरूआत हुई।

सुनता हूँ
इस धरा पर
उल्का पिंडों से
धरा पर
जीवन का आविर्भाव हुआ।

यह भी सुनता हूँ कि
दशावतार की गाथा में
जीवन यात्रा का
छिपा हुआ है उद्गम।
यह सोच बड़ी है सूक्ष्म।
जीवों की जीवन यात्रा में
निहित है
जीवन का मर्म !
इसे समझना और पल्लवित करना
जीवन के उद्गम से लेकर
विकसित होने तक
बना हुआ है जीव धर्म।
हरेक जीव अपने अस्तित्व को
बनाए रखने के लिए
संतति को बढ़ाता है,
जिससे जीवन धारा विकसित होती है,
जीवन यात्रा
उत्तरोत्तर अपने आप
सतत
पीढ़ी दर पीढ़ी
आगे बढ़ती है,
जीवों को
जीवन की सार्थकता की
अनुभूति होती है।

चुपचाप
जीवन की गति
पूर्णता को प्राप्त करती है,
जीवन यात्रा आगे बढ़ती है।
०८/०२/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
सूरज के उदय और अस्त के
अंतहीन चक्र के बीच
तितली
जिंदगी को
बना रही है आकर्षक।
यह
पुष्पों, लताओं, वृक्षों के
इर्द गिर्द फैली
सुगन्धित बयार के संग
उड़ती
भर रही है
निरन्तर
चेतन प्राणियों के घट भीतर
उत्साह,उमंग, तरंग
ताकि कोई असमय
ना जाए
जीवन के द्वंद्वों, अंतर्द्वंद्वों से हार
और कर दे समर्पण
जीवन रण में मरण वर कर।

तितली को
बेहतर ढंग से
समझा जा सकता है
उस जैसा बन कर।
जैसे ही जीवन को
जानने की चाहत
मन के भीतर जगे
तो आदमी डूबा दे
निज के पूर्वाग्रह को
धुर गहन समंदर अंदर
अपने को जीवन सरिता में
खपा दे,...अपनी सोच को
चिंतन के समन्दर सा
बना दे।


और खुद को
तितली सा उड़ना
और...
उड़ना भर ही
सिखा दे।

वह
अपने समानांतर
उड़ती तितली से
कल्पना के पंख उधार लेकर
अपने लक्ष्यों की ओर
पग बढ़ा दे।
चलते चलते
स्वयं को
इस हद तक थका दे, वह तितली से
प्रेरणा लेकर
अपने भीतर आगे बढ़ने,
जीवन रण में लड़ने,उड़ने का जुनून भर ले।
अपने अंदर प्रेरणा के दीप जगा ले।
जीवन बगिया में खुद को तितली सा बना ले।
कल ख़बर आई थी कि
शहर में
अचानक
सुबह सात बजे
एक इमारत
धराशाई हो गई
गनीमत यह रही कि
प्रशासन ने
एक सप्ताह पूर्व
इस इमारत को
असुरक्षित घोषित
करवा दिया था
वरना जान और माल का
हो सकता था
बड़ा भारी भरकम नुक्सान।

आज इस बाबत
अख़बार में ख़बर पढ़ी
यह महफ़िल रेस्टोरेंट वाली
इमारत थी
वहीं पास की इमारत में
मेरे पिता नौकरी करते थे।
इस पर मुझे लगा कि
कहीं मेरे भीतर से भी
कुछ भुर-भुरा कर
झर रहा है ,
समय बीतने के साथ साथ
मेरे भीतर से भी
इस कुछ का झरना  
मतवातर बढ़ता जा रहा है ,
यह तन और मन भी
किसी हद तक धीरे धीरे
खोखला होता जा रहा है।
जीवन में से कुछ
महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दों का कम होना
जीवन में  खालीपन को भरता जा रहा है।
मुझे यकायक अहसास हुआ कि इर्द-गिर्द
कुछ नया बन रहा है ,
कुछ पुराना धीरे-धीरे
मरता जा रहा है ,
जीवन के इर्द-गिर्द कोई
चुपचाप मकड़जाल बुन रहा है।

ज्यों ज्यों शहर
तरक्की कर रहा है,
त्यों त्यों बाज़ार
अपनी कीमत बढ़ा रहा है।
यह इमारत भी कीमती होकर
तीस करोड़ी हो चुकी थी।
आजकल इस के भीतर
रेनोवेशन का काम चल रहा था।
वह भी बिना किसी से
प्रशासनिक अनुमति लिए।

प्रशासन ने बगैर कोई देरी किए
शहर भर की पुरानी पड़ चुकी इमारतों का
स्ट्रक्चरल आडिट करवाने का दे दिया है आदेश।

मैं भी एक पचास साल से भी
ज़्यादा पुराने मकान में रह रहा हूं ,
मैं चाहता हूं कि
बुढ़ाते शहर की पुरानी इमारतों को
स्ट्रक्चरल आडिट रिपोर्ट के
नियम के तहत लाया जाए ।
असमय शहरी जनसंख्या को
दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाया जाए।

और हां, यह बताना तो
मैं भूल ही गया कि मेरा शहर
भूकम्प की संभावना वाली
एक अतिसंवेदनशील श्रेणी में आता है।
फिर भी यहां बहुत कुछ
उल्टा-सीधा होता नज़र आता है ,
यहां का सब कुछ भ्रष्टाचार से मुक्त होना चाहता है।
पर विडंबना है कि अचानक इमारत के
गिरने जैसी दुर्घटना के इंतजार में
इस शहर की व्यवस्था
आदमी के असुरक्षित होने का
हरपल अमानुषिक अहसास करवाती है।
क्यों यहां सब कुछ ,
कुछ कुछ अराजकता के
यत्र तत्र सर्वत्र व्यापे  होने का
बोध करा रहा है ?
क्या यहां सब कुछ  
मलियामेट होने के लिए सृजित हुआ है ?
कभी कभी यह शहर
अस्त व्यस्त और ध्वस्त जैसे
अनचाहे दृश्य दिखाता दिखाई देता है ,
चुपके से मन को ठेस पहुंचा देता है।
०७/०१/२०२५.
हम कितनी ही फराखदिली
और सहिष्णुता की बात
आपस में कर लें ,
हमारे मन में
मान सम्मान जैसी
मानवीय कमज़ोरी
अवचेतन में
पड़ी रह जाती है,
जब जीवन में
उपेक्षित रह जाने का दंश
दर्प को ठोकर
अचानक अप्रत्याशित ही
दे जाता है
तब मानव सहज नहीं रह पाता है ,
वह भीतर तक तिलमिला जाता है ,
वह प्रतिद्वंद्वी को झकझोरना चाहता है।

इस समय मन में गांठ पड़ जाती है
जो आदमी के समस्त ठाट-बाठ को
धराशायी कर जाती है ,
यह सब घटनाक्रम
आदमी के भीतर को
अशांत और व्यथित कर जाता है।
वह प्रतिद्वंद्वी को
नीचा दिखाने की ताक में लग जाता है।

विनाश काल , विपरीत बुद्धि वाले
दौर में विवेक का अपहरण हो जाता है,
आदमी अपना बुरा भला तक सोच नहीं पाता है।
ऐसा अक्सर सभी के साथ होता है ,
इस नुकसान की भरपाई की चेष्टा करते हुए
दिन रात सतत प्रयास करने पड़ते हैं ,
तब भी वह पहले जैसी बात नहीं बनती है ,
मन के भीतर पछतावे की छतरी रह रह कर तनती है।
यह मनोदशा मरने तक
आदमी को हैरान व परेशान मतवातर करती रहती है।
पर विपरीत परिस्थितियों के आगे किसकी चलती है ?
यह उलझन आदमी का पीछा कभी नहीं छोड़ती है।
२७/०१/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
अगड़ों पिछड़ों
वंचितों शोषितों के बीच
मतभेद और मनभेद बढ़ाकर
कुछ लोग और नेता
कर रहे हैं राजनीति
बेशक इसकी खातिर
उन्हें अराजकता फैलानी पड़े ,
देशभर में अशांति, हिंसा, मनमुटाव,
नफ़रत, दंगें फ़साद, नक्सलवादी सोच अपनानी पड़े।
इस ओर राजनीति नहीं जानी चाहिए।
कभी तो स्वार्थ की राजनीति पर रोक लगनी चाहिए।
राजनीति राज्यनीति से जुड़नी चाहिए।
इसमें सकारात्मकता दिखनी चाहिए।
सभ्यता और संस्कृति से तटस्थ रहकर
देश समाज और दुनिया में
राजनीतिक माहौल बनाया जाना चाहिए।
टूची राजनीतिक सोच को
राज्य के संचालन हेतु
राजनीतिक परिदृश्य से अलगाया जाना चाहिए।
आम जनजीवन और जनता को राजनीति प्रताड़ित न करे,
इस बाबत बदलाव की हवा राजनीति में आनी चाहिए।
समय आ गया है कि स्वार्थ से ऊपर उठकर
राजनीति राज्यनीति से जुड़ी रहकर आगे बढ़नी चाहिए।
२४/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
यह जीवन जितना दिखता है सरल ,
उतना ही है यह जटिल।
इसमें जीने की खातिर
चली जाती हैं चालें बड़ी कुटिलता से
ताकि जीवन धारा को सतत्
ज़ारी रखा जा सके।
इसे उपलब्धियों के साथ
आगे ही आगे बढ़ाया जा सके।

जिन्दगी की राह में
यदि अड़चनें आती हैं बार बार
तब भी आप धीरज और सब्र संतोष को
संघर्ष और सूझ बूझ से बनाए रखें।
अपने भीतर सुधार और परिष्कार की
गुंजाइश बनाते हुए
आगे बढ़ने के करते रहें प्रयास,
ताकि क़दम क़दम पर
जिन्दगी की राह हमें
उपहार स्वरूप कराती रहे
आशा और संभावना से जुड़े
समय समय पर
जीवन के सार्थक होने का अहसास।

जिंदगी की राह
मुश्किलों और दुश्वारियों से है भरी हुई,
इस पर चलते हुए
फिसले नहीं कि
सब कुछ तबाह
और नष्ट,
मिलने लगता कष्ट।

इस राह पर आगे बढ़ते हुए
हरएक को रहना चाहिए सतर्क ,
जिन्दगी को सलीके से जीने के लिए
गढ़ने ही पड़ते हैं अपने लिए अनूठे तर्क ,
इनके अभाव में हो सकती है इसकी राह गर्क।
जिन्दगी की राह को आसान करने के लिए दिन रात
करनी पड़ती है मेहनत
और तब कहीं जाकर सफलता मिल पाती है,
अन्यथा कभी कभी इस की राह में रूकावटें बढ़ जाती हैं,
और जिंदगी के तमाम उतार चढ़ावों के बावजूद
हासिल कुछ नहीं होता , आदमी हाथ मलते रह जाते हैं।
३०/१२/२०२४.
सब कुछ
मेरे वश में रहे।
यह सब सोच
जीवन में भागता रहा,
बस भागता रहा
और हांफता हुआ
खुद का नुक़सान किया,
भीतर ही भीतर
वेदना झेलता रहा।

मैं भी बस एक मूर्ख निकला।
खुद से ही बस लड़ता रहा ,
मतवातर खुद की
महत्वाकांक्षाओं के बोझ से
दबता रहा , सच कहने से
हरदम बचने की कशमकश में रहकर
भीतर ही भीतर डरता रहा।
जीवन पर्यन्त कायर बना रहा।
लेकिन अब मैं सच कह कर रहूंगा।
अपना तनाव कम करके रहूंगा।
कब तक मैं दबाव सहूंगा ?
ऐसे ही चलता रहा, तो मैं
अपने को खोखला करूंगा।
बस! बहुत हुआ , अब और नहीं ?
मैं खुद को सही इस क्षण करूंगा।
तभी जीवन में आगे बढ़ सकूंगा।
04/01/2025.
दुनिया
सेंट वेलेंटाइन के सद्कर्मों की स्मृति को
जन जन में याद कराने ,
विस्मृतियों से बाहर निकाल कर
स्मृति में बसाने की गर्ज़ से
उनकी याद में
वेलेंटाइन डे
मनाती है ,
पर
मेरे देश में
कई बार
इस दिन
अचानक
छुप छुप कर
मिलने वाले
प्रेमी युगलों की
शामत आ जाती है।
इस बार भी
कुछ ऐसा घटित हो सकता है,
प्रेम की आकांक्षाओं से भरे
युवा और वृद्ध दिल
टूट सकते हैं
वह भी संस्कृति को
बचाने के नाम पर।
शायद
वे अजंता एलोरा की
कंदराओं में
दर्ज़
काम और अध्यात्म के
जीवन्त दस्तावेज़ो को
भूल जाते हैं ,
जहां जीवन का मूल
कलात्मक अभिव्यक्ति पाता है।
हमारे मंदिरों में प्रेम का उदात्त स्वरूप
देखने को मिलता है ,
हमारे पुरखे काम के महत्व को
गहराई तक आत्मसात कर
जीवन का ताना बाना बुनने में
सिद्धहस्त रहे हैं।
फिर हम क्यों जीवन के इस वैभव से मुँह चुराएं ?
क्यों न हम
इस वेलेंटाइन डे पर
प्रेम भाव का प्रचार प्रसार करने में
पहल करें !
कम से कम
हम प्रेम के कोमल भावों को
नफ़रत की कठोरता में
बदलने से गुरेज़ करें ,
बेशक हम अपने मन की शांति के लिए
अपनी संततियों को
संस्कारों की ऊर्जा से
जीवन्त करने का प्रयास करें ,
बस प्रेम में आकंठ डूबे
प्रेमीजनों को अपमानित करने का
दुस्साहस न करें,
उनका उपहास न करें।
आज सुबह एक युवा स्त्री को
बस सफ़र के दौरान इंग्लिश बुक हेट पढ़ते देखा
तो मुझे मूवी हेट स्टोरी का ख्याल आया।
मैंने शहर और गांव में भटकते हुए
वेलेंटाइन डे मनाया।
आप भी कभी जी भर कर
उच्छृंखल होकर
जीवन जीने का प्रयास करें,
क्या पता कुछ अचरज़ भरा घटित हो जाए !
इस दिन कोई जीवन में नया मोड़ आ जाए !!
तन और मन में से तनाव कम हो जाए!
आदमी निडर होकर सलीके से जीना सीख पाए।
१४/०२/२०२५.
99 · Feb 6
मौका
आज
लोगों को
कामयाब होने का
मिले
यदि कोई
मौका
तो वे कतई
करें न गुरेज
कुछ भी करने से,
अपनों को
धोखा देने से !
चोरी सीनाज़ोरी करने से !
छीना झपटी करने से !

आज का सच है
जो जितना बड़ा धोखेबाज़ ,
उतना कामयाब !
बेशक यह सही नहीं !
कुछ नासमझ इसे मानते हैं सही !
आगे निकलने का मौका
मयस्सर हो तो सही !
पाप और पुण्य का निकष
मरने के उपरांत देखा जाएगा।
आगे बढ़ने का मौका
कब कब हाथ आएगा ?
असफलता मिली तो जीवन रौंदा जाएगा !
०६/०२/२०२५.
मन में कोई बात
कहने से रह जाए
तो होती है
कहीं गहरे तक
परेशानी।
कौन करता है
एक आध को छोड़कर
मनमानी ?
असल में है यह
नादानी।
इस दुनिया जहान में
बहुत से हिम्मती
सच का पक्ष
सबके समक्ष
रखने की खातिर
दे दिया करते हैं
अपना बलिदान।
अभी अभी सुनी है
हृदय विदारक
एक ख़बर कि
सच के पुरोधाओं को
पड़ोसी देश में
किया जा रहा है
प्रताड़ित।

यह सुन कर मैं सुन्न रह गया।
अभिव्यक्ति की आज़ादी का पक्षधर
आज चुप क्यों रह गया ?
शायद ज़िन्दगी सबको प्यारी है।
पर यह भी है एक कड़वा सच कि
बिना अभिव्यक्ति की आज़ादी के
सर्वस्व
बन जाया करता
भिखारी है।
यह सब चहुं ओर फैली
अराजकता
क्या व्यक्ति और क्या देश दुनिया
सब पर पड़ जाया करती भारी है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बंदिशें लगाना
आजकल बनती जा रही
देश दुनिया भर में व्याप्त
एक असाध्य बीमारी है।
१५/०१/२०२५.
आज आदमी ने
बाहर और भीतर को
इतना कर दिया है
प्रदूषण युक्त
इस हद तक
कि कभी कभी
लगने लगता है डर...
पर्यावरण बच पाएगा भी कि नहीं ?
जीवन का दरिया
निर्बाध रूप से
बह पाएगा भी कि नहीं ?
हम सब इस धरा पर
ढंग से रह पाएंगे भी कि नहीं ?
इससे पहले कि
कुछ अवांछित घटे
हम सब
अपने अपने ‌ढंग से
पर्यावरण को सुरक्षित रखने के निमित्त
दिन रात सतत प्रयास करें।
क्यों न हम !
प्रतिदिन
अपना अनमोल समय
परिवेश को सुरक्षित करने के निमित्त
दिन भर चिंतन मनन और व्यवहार में निवेश करें।
हम सब सादा जीवन उच्च विचार को अपनाएं।
जीवन की आपाधापी में
समष्टि के रक्षार्थ
अपनी जीवन शैली को
जंगल ,जल, जमीन, हवा,
धरा, पहाड़,जीवनादि के अनुरूप ढालकर
स्वयं को निरंतर संतुलित और जागृत करते जाएं।
आज जरूरत है
आदमी अपनी संवेदना को
समय रहते बचा पाए।
वह प्रकृति के सान्निध्य में रहकर
पर्यावरण को बचाने के लिए
पुरज़ोर कोशिशें करे
ताकि चेतना परिवेश और पर्यावरण के रक्षार्थ
आदमी को क़दम क़दम पर
न केवल मार्गदर्शन करें
बल्कि वह समय-समय पर
विनाश की चेतावनी भी देती रहे ,
आदमी जागरूक और चौकन्ना बना रहे।
आदमजात अपना विकास
समयबद्ध और सुनियोजित तरीके से करे
ना कि विकास के नाम पर
इस धरा पर
विनाश का तांडव होता रहे !!!
प्रकृति रुदन करती दिखाई दे !!!
आओ हम सब परिवेश के रक्षार्थ
अपने अपने जीवन काल में
किसी न किसी तरह से
समर्थन, समर्पण, संघर्ष करते हुए
तन , मन , धन  का  निवेश  करें
ताकि परिवेश और पर्यावरण को बचाया जा सके,
प्रकृति के सान्निध्य में रहकर
जीवन धारा को स्वाभाविक गति से
आगे बढ़ाया जा सके।
जीवन को सुख ,समृद्धि और सम्पन्नता से
भरपूर बनाया जा सके।
इस जीवन में सार्थकता का आधार
निर्मित किया जा सके ,
ताकि आदमी को
कभी भी अपना जीवन
आधा अधूरा न लगे।
वह पूर्णता का अहसास कर सके।
जीवन में क्षुद्रताओं का त्याग कर सके।
२५/०१/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
"दंभ से भरा मानस
नरक ही तो भोगता है, ... । "
इसका अहसास
दंभी होने पर ही हुआ।
वरना इससे पहले मैं
नासमझी से भरा
जीवन को समझता फिरा
महज़ एक जुआ।
अब मानता हूँ,
"जब जब हार मिली,
तब तब आत्मविश्वास की चूल हिली ।"
  १७/१०/२०२४
चोरी करना
नहीं है कोई आसान काम।
यह नहीं कि
कोई चीज़ देखी और चोरी कर ली।
चोरी के लिए जुगत लड़ानी पड़ती है ,
कभी कभी
चोरी और सीनाज़ोरी की नौबत भी
आ जाती है।
इसके लिए
हर ढंग और तरीका अपनाना पड़ता है ,
यही नहीं
घोर अपमान तक सहना पड़ता है।
फिर जाकर
चोरी की वारदात
सफल हो पाती है ,
कभी कभी तो जान भी
सूखती लगती है,
सच में
चोरी करते हुए
कभी कभी तो
उलझन भी होती है।

आज चोरी के क्षेत्र में
बहुत ज़्यादा
प्रतिस्पर्धा हो गई है ,
इसलिए हर पल
चौकस और चौकन्ना
रहना पड़ता है,
तब कहीं जाकर
सफलता होती है मयस्सर।
कभी कभी इसमें रह जाती है कौर कसर ,
मन के भीतर पनपने लगता है डर।
आज चोर को शिकायत है कि
अब बड़े बड़े लोग भी इसमें उतर रहे हैं ,
अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
वे नए नए हथकंडे आजमा रहे हैं।
चोर की भी अपनी एक नैतिकता होती है ,
वे इस पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं।
चोरी करने वाले कभी कभी बेवज़ह पकड़े जा रहे हैं,
बस शक की गुंजाइश की वज़ह से !
बेवज़ह की ज़ोर आजमाइश की वज़ह से !
सभी चोर इस बाबत सतर्क हो जाएं !
कभी भी आसानी से पकड़ में न आएं !!
१७/०२/२०२५.
आज के दिन  
तीस जनवरी की तारीख को
अचानक
देशवासियों को
झेलना पड़ा था आघात ,
जब किसी ने
राजनीति के चाणक्य को
दिया था
चिर निद्रा में सुला ,
सत्य अहिंसा और सत्ता के
केन्द्रबिन्दु रहे
महात्मा पर
गोलियां चला ।
वज़ह
स्पष्ट थी ,
आदमी के भीतर बसी ,
अकड़ और हठधर्मिता ,
छीन लेती है
आदमी का विवेक।

दोनों पक्ष
स्वयं को
मानते हैं सही।  
वे नहीं चाहते करना
अपने दृष्टिकोण में
समयोचित सुधार करना,
फलत: झेलते हुए पीड़ा,
दोनों ही समाप्त हो जाते हैं,
अपने आगे बढ़ने की संभावना के सम्मुख
प्रश्नचिह्न अंकित कर जाते हैं।

राजनीति के चाणक्य की
सलाह
कभी भी राजनीतिज्ञों ने
दिल से मानी नहीं,
फलत:
महात्मा को कुर्बानी देनी पड़ी।

आज देश
अराजकता के मुहाने पर खड़ा है।
देश अपनी टीस को भूलकर
तीस जनवरी को
सायरन की आवाज़ के साथ  
मौन श्रद्धांजलि देने को होता है उद्यत।
सब शीघ्रातिशीघ्र आदर्शों को भूलकर
अपनी जीवनचर्या में व्यस्त हो जाते हैं ।
वे ‌फिर से नव वर्ष के आगमन
और तीस जनवरी के इंतजार में रहते हैं
ताकि फिर से महात्मा को याद किया जा सके,
उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी जा सके।
मुझे क्या सभी को
तीस जनवरी का व्यग्रता से
रहता है इंतज़ार
ताकि महात्मा को याद कर सकें ,
बेशक उनके आदर्शों से सब मुंह मोड़े रहें।
३०/०२/२०२५.
,
आज मेरे भीतर अंतर्कलह है
मैं अपने पिता के साथ
सरकारी स्वास्थ्य विभाग द्वारा
संचालित सेवाओं का लाभ उठाने आया हूँ ।
बहुत से लोग सरकारी स्वास्थ्य सेवा से
असंतुष्ट प्राइवेट अस्पताल से
करवाना चाहते हैं इलाज़।
इसका कारण स्पष्ट है कि
उन्हें नहीं है विश्वास,
सरकारी चिकित्सा से
वे कर पाएंगे स्वास्थ्य लाभ।
वे प्राइवेट अस्पताल में
लूटे जाते हैं।
वहाँ के डॉक्टर भी तो
कभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में
इलाज़ करने की अनुभव प्राप्ति के बाद
प्राइवेट अस्पताल में
चिकित्सा कार्य को निभाते हैं।
अच्छा रहे , यदि आम आदमी समय रहते
सरकारी अस्पताल से
अपने रोग की
चिकित्सा करवाए,
ताकि वह अपनी जिन्दगी में
बेहतर और प्रभावी चिकित्सा विकल्प को तलाश पाए।

मेरे पिता खुद भी एक स्वास्थ्य विभाग से
जुड़े पदाधिकारी रहे हैं,
वे अपने विभाग के कार्यों की गुणवत्ता को
अच्छे से पहचानते हैं।
यदि सभी सरकारी चिकित्सा कार्यों का लाभ उठाएं
तो किसी हद तक आम आदमी
सुरक्षित जीवन की आस रख सकता है ,
सचेत रह कर जीवन में संघर्ष ज़ारी रख सकता है।

इस फरवरी महीने में
मेरे पिता जी नब्बे साल के हो जाएंगे ।
वे बहुत
ज़्यादा बीमार हैं
पर उनके भीतर की जिजीविषा ने
उन्हें जीवन की दुश्वारियों के बावजूद
हौंसले वाला बनाया हुआ है,
मरणासन्न स्थिति में
सकारात्मक विचारों से जोड़ कर
जीवन्त बनाया हुआ है।

उनके जीवन जीने के ढंग ने
मुझे यह सिखाया है कि
बुढ़ापे में कैसे आदमी अपनी कर्मठता से
जीवन को सक्रिय रूप से जी सकता है।
वह जिंदादिली से मौत के ख़ौफ़ को
अपने वजूद से दूर रख
स्वयं को शांत चित्त बनाए रख सकता है,
जबकि आम आदमी जल्दी घबरा जाता है,
वह समय आने से पहले
विचलित, हताश और निराश हो
अपने स्वजनों को दुखी कर देता है,
आप भी कष्ट झेलता है
और परिजनों को भी दुःख,तकलीफ व पीड़ा देता है।

सालों पहले सपरिवार पिता जी के साथ
पहाड़ों की सैर करने गया था।
वहाँ का एक नियम है कि
अगर चलते चलते सांस फूल जाए
तो मतवातर चलने की बजाए
थोड़ा रुक रुक कर आगे बढ़ो।
आज पिता को पहाड़ नहीं ,
मैदान में चलते हुए
उसी नियम का पालन करते देखता हूँ
तो मुझे खरगोश और कछुए की कहानी याद आती है,
लेकिन बदले संदर्भ में
कभी पिता जी खरगोश की तरह
तेज गति से मंज़िल की ओर बढ़ते थे
और आज वे बहुत धीरे धीरे चलते हैं,
सांस फूलने पर रुकते हैं,
दम लेते हैं और आगे बढ़ते हैं।
तकलीफ़ होने पर वे चिल्लाते नहीं,
बल्कि प्रभु का नाम लेते हैं ।
उनके आसपास घर परिवार के सदस्य
समझ जाते हैं कि वे पीड़ा में हैं।
सभी सदस्य चौकन्ने और शांत हो जाते हैं।
वे उनके साथ मन ही मन प्रार्थना करते हैं,
अब जीवन प्रभु तुम्हारे हाथ में है,
आप ही जीवन की डोर को संभालना,
और जीवात्मा को उसकी मंज़िल तक पहुँचा देना।
०३/०२/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
श्री मान
रख रहा हूं आपके सम्मुख सत्ता का चरित्र कि
सत्ता सताती भर है ।
दीन,हीन,शोषित,वंचित,
सब होते रहे हैं इसके अत्याचार का शिकार ।

सत्ता का चरित्र
बेझिझक, बेहिचक मौत बांटना है ,
चूंकि उसने व्यवस्था को साधना है।

सत्ता की दृष्टि में
क्रूरता जरूरी है,
इस बिन व्यवस्था पर पकड़ अधूरी है।
जिस सत्ता पक्ष ने
व्यवस्था नियंत्रण के मामले में
नरमी दिखलाई है, उसने सदैव मुँह की खाई है।
अतः यह कहना मुनासिब है,जो क्रूर है,वही साहिब है,
हरेक नरमदिल वाला अपना भाई है,
जिससे उस के घर बाहर की व्यवस्था
लगातार चरमराई है,
वज़ह साफ़ है,
ऐसी अवस्था में चमचों, चाटुकारों की बन आई है।
यदि शासक को अच्छे से प्रशासन चलाना है  
तो लुच्चों,लफंगों,बदमाशों,अपराधियों पर
लगाम कसनी अनिवार्य हो जाती है।
यदि दबंगों के भीतर सत्ता का डर कायम रहेगा
तभी सभी से
ढंग से काम लिया जाएगा,
थोड़ी नरमी दिखाने पर तो कोई भी सिर पर चढ़ जाएगा।
क्रूर किस्म का आदमी,
जो देखने में कठोर लगे,बेशक वह नरमदिल और सहृदय हो,सुव्यवस्थित तरीके से राजकाज चला पाता है।

सत्ता डर पैदा करती है।
यह अनुशासन के नाम पर
सब को एक रखती है।
यह निरंकुशता से नहीं चल सकती,
अतः अंकुश अनिवार्य है।
बिना अंकुश
व्यक्ति
सत्ता में होने के बावजूद
अपना सिक्का चला नहीं पाता।
अपना रंग जमा नहीं पाता।
श्री मान,
सत्ता केवल साधनहीन को तंग करती है।
मायाधारी के सामने
तो सत्ता खुद ही नरमदिल बन जाती है,
वह कुछ भी कर सकती है।
सत्ता का चरित्र विचित्र है ,
वह सदा ,सर्वदा शोषकों का साथ देती आई है
और वंचितों को बलि का बकरा समझती आई है।
वह शोषकों की परम मित्र है।
इन से तालमेल बना कर सत्ता शासन निर्मित करती  है। वंचितों को यह उस हद तक प्रताड़ित करती है,
जब तक वह घुटने नहीं टेकते।
सत्ता अपनी जिद्दी प्रवृत्ति के कारण बनी रहती है,
बेशक सत्ता को
शराफत का कोट पहन कर
अपनी बात जबरिया मनवानी पड़े,
सत्ता अड़ जाए,तो जिद्दी को भी हार माननी पड़ती है।

यही विचित्र चरित्र सत्ता का है।
यह जैसे को तैसा की नीति पर चलती है,
यह अपना विजय रथ
नरमी , गरमी,बेशर्मी से आगे बढ़ाती है।
यह चोरी सीनाज़ोरी के बल पर
चुपके-चुपके सिंहासन पर आसीन हो जाती है।
Joginder Singh Nov 2024
निजता को
यदि बचाना है
तो कीजिए एक काम।
मोबाइल तंत्र से
प्रतिदिन
कुछ घंटों के लिए
ले लीजिए विश्राम।
ताकि तनाव भी
तन से दूर रहे,
निज देह में
नेह और संवेदना बनी रहे।
Joginder Singh Nov 2024
शब्द
कुछ कहते हैं सबसे,
हम अनंत काल से
समय सरिता के संग
बह रहे हैं।

कोई
हमें दिल से
पकड़े तो सही,
समझे तो सही।
हम खोल देंगे
उसके सम्मुख
काल चेतना की बही।

कैसे न कर देंगे हम
जीवन में,आमूल चूल कायाकल्प।
भर दें, जीवन घट के भीतर असीम सुख।
२६/१२/२००८.
Joginder Singh Nov 2024
मौत को मात
अभी तक
कौन दे पाया?

कोई विरला
इससे पंजे लड़ाकर,
अविचल खड़ा रहकर
लौट आता है
जीवन धारा में
कुछ समय बहने के लिए।

बहुत से सिरफिरे
मौत को मात देना चाहकर भी
इसके सम्मुख घुटने टेक देते हैं।
मौत का आगमन
जीवन धारा के संग
बहने के लिए
अपरिहार्य है!
सब जीवों को
यह घटना स्वीकार्य है!!

कोई इसे चुनौती नहीं दे पाया।
सब इसे अपने भीतर बसाकर,
जीवन की डोर थाम कर ,
चल रहे हैं...अंत कथा के समानांतर ,
होने अपनी कर्मभूमि से यकायक छूमंतर।

महाकाल के विशालकाय समन्दर में
सम्पूर्ण समर्पण और स्व विसर्जन के
अनूठे क्षण सृजित कर रहे ,
जीवन से प्रस्थान करने की घटना का चित्र
प्रस्तुत करते हुए एक अनोखी अंतर्कथा।
मान्यता है यह पटकथा तो
जन्म के साथ ही लिखी जाती है।
इस बाबत आपकी समझ क्या कहती है?
Joginder Singh Nov 2024
" काटने दौड़ा घर
अचानक मेरे पीछे,
जब जिन्दगी बितानी पड़ी,
तुम्हारी अम्मा के हरि चरणों में
जा विराजने के बाद,उस भाग्यवान के बगैर।"


"यह सब अक्सर
बाबू जी दोहराया करते थे,
हमें देर तक समझाया करते थे,
वे रह रह कर के कहते थे,
"मिल जुल कर रहा करो।
छोटी छोटी बातों पर
कुत्ते बिल्ली सा न लड़ा करो ।"


एक दिन अचानक
बाबूजी भी अम्मा की राह चले गए।
अनजाने ही एकदम हमें बड़ा कर गए।
पर अफ़सोस...
हम आपस में लड़ते रहे,
घर के अंदर भी गुंडागर्दी करते रहे।
परस्पर एक दूसरे के अंदर
वहशत और हुड़दंग भरते रहे।


आप ही बताइए।
हम सभी कभी बड़े होंगे भी कि नहीं?
या बस जीवन भर मूर्ख बने रहेंगे!
बंदर बाँट के कारण लड़ते रहेंगे।
जीवन भर दुःख देते और दुखी करते रहेंगे।
ताउम्र दुःख, पीड़ा, तकलीफ़ सहेंगे!!
मगर समझौता नहीं करेंगे!
अहंकारी बने रहेंगे।

बस आप हमें समझाते रहें जी।
हमें अम्मा बापू की याद आती रहे।
हम उनके बगैर अधूरे हैं जी।
२०/०३/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
ਵੀਰੋ, ਕੀਰਤੀਆਂ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਰਹੇ।
ਹਰ ਵਰ੍ਹੇ ਇੱਕ ਮਈ ਦਾ ਦਿਹਾੜਾ ਇਹ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਕਹੇ।
ਅਫ਼ਸੋਸ ਇਸ ਸੱਚਾਈ ਨੂੰ ਕੋਈ ਵਿਰਲਾ ਸਾਥੀ ਹੀ ਸੁਣੇ।
ਇੱਕ ਹੋਰ ਵੱਡਾ ਅਫ਼ਸੋਸ ਕੋਈ ਕੋਈ ਇਸ ਤੇ ਅਮਲ ਕਰੇ।


ਵੀਰੋ, ਕੀਰਤੀਆਂ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿਰੋਧੀਆਂ ਕੋਲ ਗਿਰਵੀ ਨਾ ਰੱਖੋ।
ਉਨੀਂਦੇ ਮਿਹਨਤ ਕਸ਼ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਜਗਾਈ ਤੁਸੀਂ ਰੱਖੋ।
ਅਜੇ ਸੱਚੇ ਸੁੱਚੇ ਇਨਕਲਾਬ ਨੇ, ਹੋਂਦ ਚ ਆਉਣਾ ਹੈ ਸਮੇਂ ਦੀ ਕੁੱਖੋਂ,
ਤੁਸੀਂ ਕਾਮੇ , ਕੀਰਤੀਆਂ ਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ‌ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਖੁਦ ਨੂੰ ਜਗਾਈ ਰੱਖੋ।


ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਰਹੇ, ਸਮੇਂ ਸਾਨੂੰ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਬਤ ਸੁਚੇਤ ਕਰੇ।
ਸਾਥੀਓ ,ਸਮੇਂ ਸਾਨੂੰ ਹਰ ਵੇਲੇ ‌ ਦੂਜੇ ਸੱਚ ਵੀ ਕਹਿੰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।
ਇਸ ਕਾਇਨਾਤ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਵੀ ਜੀਵ ਵੇਲਾ ਨਾ ਰਹੇ।
ਹਰ ਕੋਈ ਮਿਹਨਤ ਚ ਦਿਨ ਰਾਤ ਰੁਝਿਆ ਰਹੇ।
28/04/2017.
ਅੱਜ ਲੋਹੜੀ ਹੈ
ਦੁੱਲਾ ਭੱਟੀ ਨੂੰ ਯਾਦ ਕਰਨ ਦਾ ਦਿਹਾੜਾ,
ਸਾਡੇ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦਾ ਰੋਬਿਨ ਹੁੱਡ ।

ਅੱਜ ਲੋੜ ਹੈ
ਇੱਕ ਵਾਰ ਫਿਰ
ਦੁੱਲਾ ਭੱਟੀ ਦੀ ,
ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਧੀਆਂ
ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ
ਖਾਂਦੀਆਂ ਪਈਆਂ ਨੇ ਧੱਕੇ ,
ਅੱਜ ਕੱਲ ਦੇ ਔਖੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ
ਉਹ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ
ਕਦੇ ਕਦੇ
ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ
ਉਹ ਭਾਲ ਦੀਆਂ ਨੇ
ਦੁੱਲਾ ਭੱਟੀ ਵਰਗਾ ਪਿਓ
ਜਿਹੜਾ ਰੱਖ ਸਕੇ ਖ਼ਿਆਲ
ਧੀਆਂ ਦਾ
ਔਖੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ।
ਅੱਜ ਕੱਲ ਕੁੜੀਆਂ ਦੀਆਂ
ਲੋਹੜੀ ਮਨਾਉਣ ਦਾ
ਵੱਧ ਗਿਆ ਹੈ ਰਿਵਾਜ,
ਪਰ ਜਦੋਂ ਅਗਲੇ ਦਿਨ
ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਧੱਕਾ ਹੁੰਦਾ ਵੇਖਦਾ ਹਾਂ
ਤਾਂ ਮਨ ਵਿੱਚ ਉਠੱਣ ਲੱਗ ਪੈਂਦੇ ਹਨ
ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਵਾਲ ।
ਇਹ ਸਵਾਲ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਕੇ
ਦਿਲੋਂ ਦਿਮਾਗ ਵਿੱਚ
ਪੈਦਾ ਕਰ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ਬਵਾਲ।
ਅੱਜ ਧੀਆਂ ਨੂੰ ਹੈ ਇੰਤਜ਼ਾਰ
ਦੁੱਲਾ ਭੱਟੀ ਦਾ
ਜਿਹੜਾ ਦਿਲਾ ਸਕੇ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ ਸੁਰੱਖਿਆ ਦਾ ਅਹਿਸਾਸ।
ਅੱਜਕੱਲ੍ਹ ਦੁੱਲਾ ਭੱਟੀ ਵਰਗੇ ਦਿਲਾਵਰ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰ
ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਨਜ਼ਰ ਆਉਂਦੇ ਹਨ
ਜਿਹੜੇ ਆਪਣੇ ਰਸੂਖ਼ ਦੇ ਕਾਰਨ
ਧੀਆਂ ਦੇ ਵੈਰੀਆਂ ਨੂੰ
ਸੌਖੇ ਤੇ ਸਹਿਜੇ ਹੀ ਧੂੜ ਚੱਟਾ ਸੱਕਣ,
ਉਨ੍ਹਾਂ ਉੱਤੇ ਨਕੇਲ ਪਾਉਣ ਲਈ ਉਪਰਾਲੇ ਕਰ ਸੱਕਣ।

ਬੇਸ਼ੱਕ ਅੱਜ ਲੋਹੜੀ ਹੈ
ਤੇ ਕੱਲ ਲੋਕ ਮਾਘੀ ਵੀ ਮਨਾਉਣਗੇ,
ਪਰ ਕਦੋਂ ਉਹ ਆਪਣਾ ਸੱਚਾ ਸੁੱਚਾ ਕਿਰਦਾਰ ਨਿਭਾਉਣਗੇ ?

ਅਸੀਂ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਾਂ ਕਿ
ਸਭਨਾਂ ਦੀ ਲੋਹੜੀ ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਭਰਪੂਰ ਹੋਵੇ ,
ਨਾਲ ਹੀ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਮਨਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ
ਕਦਰਾਂ ਤੇ ਕੀਮਤਾਂ ਦਾ ਅਹਿਸਾਸ ਹੋਵੇ।
13/01/2025.
Joginder Singh Nov 2024
जिस्म
सर्द मौसम में
तपती आग को
ढूंढना है चाहता।

जिस्म
गर्म मौसम में
बर्फ़ सरीखी
शीतलता है चाहता।

जिस्म
अपनी मियाद
पूरी होने पर
टूट कर बिखर है जाता।

नष्ट होने पर
उसे जलाओ या दफनाओ,
चील,गिद्ध, कौओं को खिलाओ।
क्या फ़र्क पड़ता है?
क्यों न उसे दान कर पुण्य कमाओ!
क्या फ़र्क पड़ता है?
जगत तो अपने रंग ढंग से
प्रगति पथ पर बढ़ता है ।
73 · Nov 2024
During These Days
Joginder Singh Nov 2024
Waves of illusions are floating towards us.
During these days all of us are perplexed.
What is our future and fate?
Let us  think and
decide in this regard immediate.
72 · Nov 2024
बुढ़ापा
Joginder Singh Nov 2024
समय की धुंध में
धुंधला जाती हैं यादें !
विस्मृति में की गर्त में
खो जाती हैं मुलाकातें !!
रह रह कर स्मृति में
गूंजती है खोए हुए संगी साथियों की बातें !!!

आजकल बढ़ती उम्र के दौर से गुज़र रहा हूं मैं,
इससे पहले की कुछ अवांछित घटे ,
घर पहुंचना चाहता हूं।
जीवन की पहली भोर में पहुंचकर
अंतर्मंथन करना चाहता हूं !
जिंदगी की 'रील 'की पुनरावृत्ति चाहता हूं !

अब अक्सर कतराता हूं ,
चहल पहल और शोर से।

समय की धुंध में से गुज़र कर ,
आदमी वर लेता है अपनी मंज़िल आखिरकार ।

उसे होने लगता है जब तब ,
रह ,रह कर ,यह अहसास !
कि 'कुछ अनिष्ट की शंका  है ,
जीवन में मृत्यु का बजता डंका है।'
इससे पहले की ज़िंदगी में
कुछ अवांछित घटे,
सब जीवन संघर्ष में आकर जुटें।

यदि यकायक अंदर बाहर हलचल रुकी ,
तो समझो जीवन की होने वाली है समाप्ति ।
सबको हतप्रभ करता हुआ,
समस्त स्वप्न ध्वस्त करता हुआ,
समय की धुंधयाली चादर को
झीनी करता हुआ , उड़ने को तत्पर है पंछी ।

इस सच को झेलता हूं,
यादों की गठरी को
सिर पर धरे हुए
निज को सतत ठेलता हूं !
सुख दुःख को मेलता हूं !!
जीवन के संग खेलता हूं!!!

२२/०१/२०११.
72 · Nov 2024
Impossible
Joginder Singh Nov 2024
My hero often repeats a sentence,
"Nothing is impossible in the world of love and war."
And, his opponent oftenly repeats a sentence ,"I want peace on rent in this cunning world."
And myself while thinking about their destiny , suddenly conclude that both are wrong to follow their ways .
The world of love and war is like a toy made of clay to play in the hands of dictators and lovers.
Peace on rent is absolutely a ridiculous  impossible idea which cannot be executed in the world of love, hate , rivalries, inequality, dissatisfaction,jealousy and war.
The warmth of life is still miles away from us and so is the peace, contentment,love,affection,attraction and also satisfaction in day to day lives of ambitious human beings.
Joginder Singh Nov 2024
अचानक
एकदम से
अप्रत्याशित
चेतन ने आगाह किया
और मुझसे कहा,
" अरे! क्या कर रहे हो?
खुद से क्यों डर रहे हो?
इधर उधर दौड़ धूप कर
छिद्रान्वेषण भर कर रहे हो।
अपना जीवन क्यों जाया कर रहे हो?"
बस तब से मैं बदल गया।
मुझे एक लक्ष्य स्व सुधार का मिल गया।
Joginder Singh Dec 2024
मौनी बाबा को याद करते हुए ,
जीवन धारा के साथ बहते हुए ,
जब कभी किसी वृक्ष को कटते देखता हूं,
तब मुझे आता है यह विचार कि
ये मौनी बाबा सरीखे
तपस्वी होते हैं।
सारी उम्र
वे
धैर्य टूटने की हद तक
सदैव खड़े होकर
श्वास परश्वास की क्रिया को
दोहराते हुए
अपनी जीवन यात्रा को पूरा करते हैं !
मौन का संगीत रचते हैं !!


आओ हम उनकी देख रेख करें,
उनकी सेवा सुश्रुषा करते रहें ।

आओ,
हम उनकी आयु बढ़ाने के प्रयास करें ,
न कि उन्हें
अकारण धरा पर
बिछाने का दुस्साहस करें।

यदि वे
सतत चिंतनरत से
धरा पर रहते हैं खड़े
तो वे न केवल
आकाश रखेंगे साफ़,
हवा , बादल , वर्षा को भी
करते रहेंगे
आमंत्रित ।

बल्कि
वे हमारे प्राण रक्षक बनकर
हमारी श्रीवृद्धि में भी बनेंगे
सहायक।

ऐसे दानिश्वर से
कब तक हम छल कपट करते रहेंगे ?
यदि हम ऐसा करेंगे
तो यकीनन जीवन को
और ज्यादा नारकीय करेंगे।
व्यक्तिगत स्तर पर
'डा.फास्टस' की मौत को करेंगे।

पेड़
ऋषिकेश वाले
मौनी बाबा की याद
दिलाते हैं।
वे प्रति दानी होकर
साधारण जीवों से
कहीं आगे बढ़ जाते हैं,
यश की पताका फहरा पाते हैं।

मानव रूप में
मौनी बाबा
अख़बार पढ़ते देखें जाते हैं
पर शांत तपस्वी से पेड़
खड़े खड़े जीवन की ख़बर बन जाते हैं ,
पर कोई विरला ही
उनका मौन पाता है पढ़।
उनसे प्रेरणा प्राप्त करते हुए
जीवन पथ पर आगे बढ़ने का
जुटा पाता है साहस !
कर पाता है सात्विक प्रयास !!
  ०८/१०/२००७.
Joginder Singh Dec 2024
कैसे कहूं तुमसे ? , दोस्त!
अब कुछ याद नहीं रहता।
याद दिलाने पर
भीतर
बुढ़ाते जाने का अहसास
सर्प दंश सा होकर
अंतर्मन को छलनी है कर जाता!!


अजब विडंबना है!
निज पर चोट करते
भीतरी कमियों को इंगित करते
कटु कसैले मर्म भेदी शब्द
कभी भुला नहीं पाया।
भले ही यह अहसास
कभी-कभी रुला है जाता।


सोचता हूं ...
स्मृति विस्मृति के संग
जीवन के बियावान जंगल में
भटकते जाना
आदमी की है
एक विडंबना भर ।

आदमी भी क्या करें?
जीवन यात्रा के दौरान
पीछे छूट जाते बचपन के घर ,
वर्तमान के ठिकाने
तो लगते हैं सराय भर !
भले ही हम सब
अपनी सुविधा की खातिर
इन्हें  कहें घर।

२९/१०/२००९.
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