Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
पाप को अंग्रेज़ी में कहते हैं सिन,
मरणोपरांत व्यक्ति बहुधा नरक को जाता है।
कलयुग के व्यक्ति
दिन रात बेख़ौफ़ होकर
पाप करते हैं ,
इससे ही मिलता है उन्हें सुख।
दुःख पहुंचाने में उन्हें मज़ा आता है ,
जब पाप कर्म हाथ धोकर पीछे पड़ जाता है
तब उनका जीवन मज़ाक सरीखा बन जाता है।
ऐसे में शीघ्रातिशीघ्र
उन्हें पाप का द्वार
दूर से आता है नज़र।
जिस में प्रवेश करने से पूर्व
तन मन में अवसाद भर जाता है ,
जीवन का स्वाद फीका पड़ जाता है।
नरक का द्वार
आदमी के पास ही स्थित होता है ,
यह वो तिलिस्म है
जो जीवित को नहीं दिख पड़ता है ,
केवल मृत ही इसे
ढंग से महसूस कर पाता है।

देश में ऑपरेशन सिंदूर जारी है।
जो आतंकियों को बनाने वाला भिखारी है।
देखना आतंकी अब प्राणों की भीख मांगते दिखेंगे।
सिन और डोर को जोड़ने से बनता है शब्द सिंदूर ,
जो सुहागिन महिलाओं की माँग में पहुँच कर
अखंड सौभाग्य का प्रतीक बन जाता है।
कायर आतंकी इसे पोंछने पर उतारू हो जाते हैं ,
उन्हें बस अपनी वासना नजर आती है ,
सुहागिन की साधना उन अंधों को दिख नहीं है पड़ती।
वासना तीखी मिर्च बन कर उन्हें अक्ल का अंधा है कर देती।
पहलगाम के दूरगामी नतीजे अब दिखने लगे हैं।
पड़ोसी देश के आतंकी शिविरों पर
अब बॉम्ब, गोले, मिसाइल, रॉकेट दागे जा रहे हैं।
इस की मार के तले आकर आतंक के मसीहा अब कराहने लगे हैं।
यह युद्ध पाप के खिलाफ़ है।
इसके लिए पुण्य ने ओढ़ा नकाब है।
क्या करे सवाब , पापी ,देवता से बेख़ौफ़ रहता है ,
वह अच्छे और सच्चे को चुटकियों में मसलना चाहता है ,
अतः पुण्यात्मा को पापी के मन में डर पैदा करने के लिए
न केवल नकाब
बल्कि भीतर तक रौद्र रूप धारण करना पड़ता है ,
साक्षात काली सम बनना पड़ता है।
भारत माता के काली बनने ‌की अब बारी है।
आतंक के खात्मे के लिए  ऑपरेशन सिंदूर ज़ारी है !
अब देश दुनिया और समाज में परिवर्तन की तैयारी है !!
०८/०५/२०२५.
परीक्षा सिर पर हो ,
अधूरी रह जाए तैयारी
यह स्वाभाविक है कि
अक्ल जाती मारी।
ऐसी नौबत क्यों आई ?
इस बाबत भी
कभी सोच मेरे भाई।
आदमी में
एक अवगुण है
टाल मटोल करने का।
यही अवगुण
यथा समय परिश्रम करने से
रोकता है
और परीक्षा सिर पर
आने पर
विचलित कर देता है।
आत्मविश्वास को तोड़
भीतर पछतावा भरता है।
अब क्या हो सकता है ?
अच्छा रहेगा
टाल मटोल की प्रवृत्ति पर
रोक लगाई जाए।
समय रहते
अपनी ऊर्जा और शक्ति
परीक्षा को ध्यान में रखकर
केन्द्रित की जाए।
हड़बड़ी और गड़बड़ी से
बचा जाए।
टाल मटोल करने से
सदैव बचा जाए
ताकि  परीक्षा ढंग से दे
सफल हो सकें !
चिंता को
स्वयं से दूर रख सकें !!
जीवन में आगे बढ़ सकें !!
०८/०५/२०२५.
बचपन में
उम्र पांच साल रही होगी
साल उन्नीस सौ इकहत्तर
महीना दिसंबर
शहर चंडीगढ़
सायरन की आवाज़ सुन कर
सब चौकन्ने हो जाते
रात हुई तो रोशनी,आग सब बंद
लोग भी अपने घर में बंद हो जाते
एक दिन रात्रि के समय
सायरन बजा  
लोग चौकन्ने और सतर्क
कंप्लीट ब्लैक आउट
मैं , मां और बहन
सब घर में कैद
सीढ़ियों के नीचे
लुक छुप कर बैठे
तभी  
बाहर को झांका
तो आसमान में रंग बिरंगी
रोशनियों को देख कर
दीवाली के होने का भ्रम हुआ
यह बाद में विदित हुआ कि
यह रंग बिरंगी रोशनी तो शत्रु के हवाई जहाज को
निशाना बनाने वाले तोप के गोलों से हुई थी।
उन दिनों मैं अबोध था ,
ब्लैक आउट डेज
मेरे इर्द गिर्द बगैर ख़ौफ़ पैदा किए निकल गए।
उन दिनों पाकिस्तानी जासूस पकड़े जाने की ख़बर
मुझे परी कथा की तरह लगती थी।
मैने इस बाबत दो चार बार
अपनी मां से चर्चा की थी।

मुझे यह भी याद है भली भांति
यदि कोई ब्लैक आउट डेज के समय
घर पर गलती से बल्ब जलता छोड़ता
तो उसी समय कोई पत्थर दनदनाता आता
और झट से बल्ब को तोड़ देता ,
वह नहीं टूटता तो खिड़की का कांच ही तोड़ देता।
बल्ब झट से ऑफ करना पड़ता।
गालियां जो सुनने को मिलतीं ,वो अलग।
वे दिन अजब थे, कुछ लोग डर और अज़ाब से भरे थे।
लोग देशप्रेम से ओतप्रोत चौकीदार बन देश सेवा को तत्पर रहते थे।

ये ब्लैकआउट डेज
बड़ा होने के बाद भी स्वप्नों में
आ आ कर मुझे सताते रहे हैं।
मेरे भीतर डर दहशत वहशत जगाते रहे हैं।
आज छप्पन साल बाद
शहर में ब्लैक आउट की रिहर्सल की गई है।
एक बार फिर सायरन बजा।
रोशनी बंद की गई।
किसी किसी के घर की रोशनी बंद नहीं थी।
उन्हें क्या ही कहा जाए ?
आज आधी रात ऑपरेशन सिंदूर किया गया।
देश की सेनाओं ने दहशतगर्दों के नौ ठिकानों पर हमला किया।
कल पड़ोसी देश भी निश्चय ही हवाई हमले करेगा।
कभी न कभी ब्लैकआउट भी होगा।
यदि इस समय किसी ने लापरवाही की तो क्या होगा ?
ब्लैकआउट धन,जान माल की सुरक्षा के लिए है।
इस बाबत सब जागरूक हों तो सही।
आजकल पार्कों में सोलर लाइटें लगी हैं।
सी सी टी वी कैमरे भी गलियों, दुकानों,मकानों ,चौराहों पर
चौकीदार का काम कर रहें हैं।
इन के साथ रोशनी का प्रबंध भी किया गया है ,
जो अंधेरा होते ही स्वयंमेव रोशन हो जाते हैं।
आप ही बताइए ब्लैकआउट के समय इनका क्या करें ?
इन पर जरूरत पड़ने पर रोक कैसे लगे ?
क्या इन पर काला लिफाफा बांध दिया जाए ?
फिलहाल कुछ काले दिनों के लिए !
स्थिति सामान्य होने पर काले लिफ़ाफ़ों को हटा दिया जाए !
जैसे जीवन में कुछ बड़े होने तक
ब्लैक आउट डेज अपने आप स्मृतियों में धुंधलाते चले गए।
और आपातकाल में ये फिर से शुभ चिंतक बन कर लौट आए हैं।
०७/०५/२०२५.
कोई भी
युद्ध को अपने कन्धों पर
ढोना नहीं चाहता।
फिर भी यह
कालचक्र का हिस्सा बनकर,
विध्वंस का किस्सा बनकर,
तबाही के मंज़र दिखलाने
लौट लौट कर है आता।
यह शांति व्यवस्था पर
करारा प्रहार है।
विडंबना है कि इसके बग़ैर
शान्ति कायम नहीं रह सकती।
युद्ध की मार से
सहन शक्ति स्वयंमेव विकसित हो जाती।

युद्ध शांति के लिए
अपरिहार्य है।
क्या तुम्हें यह स्वीकार्य है ?
हथियार भी पड़े पड़े
कभी कभी हो जाते हैं बेकार ।
युद्ध के भय से ही
विध्वंसक हथियार विकसित हुए हैं।
इनके साए में ही सब सुरक्षित रहते हैं।
युद्ध विहीन और हथियार विहीन
दुनिया के स्वप्न देखने वाले
भले नामचीन बन जाएं ,
वे प्रबुद्ध कहलाएं।
वे एक काल्पनिक दुनिया में रहते हैं।
उनकी वज़ह से
लोग असुरक्षित हो जाते हैं।
वे नृशंसता व विनाश का कारण बन जाते हैं।
यदि देश दुनिया को शान्ति चाहिए
तो युद्ध के लिए
सभी को रहना चाहिए तैयार।
शान्ति के नाम पर
कायरता को
गले लगाना सचमुच है बेकार।
यह आत्म संहार
जैसा कृत्य है।
संघर्ष करने से पीछे हटना
दासता स्वीकारने जैसा है।
यह बिना लड़े हारने
जैसा दुष्कृत्य है।
यह बिना तनख्वाह का
भृत्य होने जैसा है।
ऐसे दास का सब उपहास उड़ाते हैं।
गुलाम
कभी सुखी नहीं रह पाते।
यही नहीं
वे ढंग से जीना भी नहीं सीख पाते।
वे सदैव भिखारी तुल्य ही है बने रहते।
वे हमेशा दुःख, तकलीफ़ ,
बेआरामी से जूझने को बाध्य रहते।
इससे अच्छा है कि वे युद्धाभ्यास में लिप्त हो जाते।
यह सच है कि युद्ध के बाद
सदैव शांति काल का होता है आगमन।
युद्ध परिवर्तन का आगाज भी करते हैं।
साथ ही ये देश दुनिया का परिदृश्य बदल देते हैं।
०७/०५/२०२५.
बस अचानक ही
अख़बार तक को भी
शत्रु पक्ष के साथ ही
झेलनी पड़ जाती
सर्जिकल स्ट्राइक।
आधी रात को
शत्रु के शिविरों पर
सेना ने की
मिसाइल अटैक से
सर्जिकल स्ट्राइक।
अख़बार
इस से पूर्व ही गया था छप।
अब जब
इस बाबत पाठक को
अख़बार की मार्फ़त मिलेगा समाचार ,
तब तक देर हो चुकी होगी।
ताज़ा ख़बर
बासी पड़ चुकी होगी।
है न यह अख़बार पर सर्जिकल स्ट्राइक !
जैसे अख़बार की भी एक सीमा होती है !
ठीक वैसे ही सभी की ,होती है एक हद !
सब इसे समझें!
खुद को गफलत में रहने से बख्शें !!
०७/०५/२०२५.
अब उत्तर मिल गया है
मिसाइल अटैक के रूप में
पहलगाम आंतकी हमले से
देश दुनिया से सवाल पूछने का
दुस्साहस करने का
पड़ोसी देश को।
आधी रात को
मिसाइल अटैक कर
देश ने अपना आक्रोश प्रकट किया है ,
उसने स्वयं को संतुलित किया है ,
किसी हद तक घुटन मुक्त होकर
चैन का सांस लिया है।
युद्ध का सांप अब भी गले पड़ा है ,
यह सर्प रह रह कर फुंफकार रहा है।
देश अभी भी जाग रहा है।
वह सोया नहीं ,
अभी तो कुछ हुआ ही नहीं !
जंगी मसाइल का समाधान मिलने में समय लगेगा।
तब तक आरोप प्रत्यारोप की मिसाइलों से
युद्ध को जारी रखा जाएगा।
युद्धाभ्यास करते हुए
आत्म सम्मान को बरकरार रखा जाएगा।
यदाकदा अपनी मौजूदगी का अहसास
छोटे मोटे प्रहार करते हुए
मतवातर करवाया जाएगा।
अब भी क्या कोई देशभक्त को
कायर समझने की गुस्ताखी करना चाहेगा ?
०७/०५/२०२५.
लुच्चे को अच्छी लगती है
अय्याशी।
यह वह राह है
जहां आदमी क्या औरत
सीख ही जाता
करना बदमाशी।
आज कल गलत रास्ते पर
लोग
देखा-देखी
चल पड़ते हैं ,
बिन आई मौत को
जाने अनजाने
चुन लेते हैं ,
अचानक
गर्त में गिर पड़ते हैं ,
किरदार को
भूल कर
अपने भीतर का
अमन चैन गंवा दिया करते हैं।
वे दिन रात नंगे होने से ,
भेद खुलने से
हरदम डरते हैं।
नहीं पता उन्हें कि
कुछ लोग मुखौटा पहने हुए
उन्हें नचाते हैं ,
उन्हें भरमाते हैं।
वे सहानुभूति की आड़ में
चुपचाप हर पल शोषण कर जाते हैं।
अच्छा है
जीवन में
कभी कभी
बेहयाई की चादर ओढ़ लो
ताकि जीवन भर
कठपुतली न बने रहो
और
देर तक शोषित व वंचित न बने रहो।
कम से कम अपना जीवन
अपनी शर्तों पर जी सको।
यूं ही पग पग पर न डरो।
कभी तो बहादुरी से जीओ।
दोस्त ,
यदि संभव हो तो
अय्याशी से बचो ,
अपनी संभावना को न डसो
क्यों कि
आदमी को
एक अवगुण भी
अर्श से
गिरा देता है ,
उसकी हस्ती को
फर्श पर पहुंचा देता है।
यह नाम ,पहचान ,वजूद को
मिट्टी में मिला देता है।


०६/०५/२०२५.
Next page