Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
देश
अब युद्ध के लिए
तैयार है ,
अब शत्रु पर
प्रहार के लिए
इंतज़ार है।

इस के लिए
हमें क्या रसद का
संग्रह करना चाहिए ?
इस बाबत
अपने बुजुर्ग से
पूछता हूँ...
उत्तर मिलता है
बिल्कुल नहीं !
देश पहले भी
आधी रोटी खाकर
युद्ध को लड़ चुका है।
इससे कुछ अधिक ही
देश भक्ति
और जिजीविषा का जज़्बा
देशवासियों में भर चुका है।
अब रणभेरी का इंतज़ार है।
युद्ध में जीतने का जुनून
सब पर सवार है।
देखना है अब आर पार की लड़ाई
किस करवट बैठेगी ?
विजयश्री किस प्रकार से
देशवासियों के अंतर्मन में झांकेगी ?
शहादत कितने युद्धवीरों की बलि मांगेगी ?
अब युद्ध
विशुद्ध युद्ध होगा।
इस युद्ध से जनमानस
प्रबुद्ध होगा।
हर जीत के बाद
देशवासियों का अंतर्मन
नैतिकता की दृष्टि से
शुद्ध होगा !
यह बिछड़े देशवासियों से
पुनर्मिलन का
एक ऐतिहासिक अवसर होगा।
सभी परिवर्तन के स्वागतार्थ आगे बढ़ेंगे।
वे अवश्य ही
विजयोत्सव की खातिर चिंतन मनन करेंगे ,
जीवन के आदर्शों की कसौटी पर
खरा उतरने की कोशिश करेंगे।
०६/०५/२०२५.
पहले आदमी की सोच
नैतिकता से जुड़ी थी।
उसे हेराफेरी चोरी चकारी से
घिन आती थी।
आजकल
उसे यह सब आम लगता है।
वह अनैतिक भी हो जाए,
तो उसे बुरा नहीं लगता है।
उसकी सोच बन गई है कि
आजकल सब अच्छा बुरा चलता है।
कम से कम आदमी को आराम तो मिलता है।
मरने के बाद देखा जाएगा।
आज को तो ढंग से जी लो।
कल नाम कलह का,
वर्तमान को सुविधाजनक बना लो।
यही वजह है कि घूस का कीड़ा
आदमी के भीतर इस हद तक गया है घुस,
जो घूस लेता नहीं, वह आदमी लगने लगता मनहूस।
हेराफेरी,चोरी सीनाजोरी,लड़ना झगड़ना,
मकर फ़रेब, लूटमार,हत्या, बलात्कार तक के
दुष्परिणामों को वह नज़रअंदाज़ करता है,
उसे संवेदना के धरातल पर कुछ नहीं होता महसूस।
पशु भी संवेदना से बंधा है,
पर आज का आदमी निरा गधा बन चुका है।
आजकल वह चौबीसों घंटे अपना स्वार्थ साधने में लगा है।
०६/०५/२०२५.
बेहयाई
बेशक मन को ठेस
पहुंचाए
परन्तु
यह समाज में
व्याप्त
गन्दगी और बदबू
जितनी खतरनाक नहीं।
पहले इस की सफ़ाई पर
ध्यान देंगे,
फिर बेहयाई पर
किसी हद तक
रोक लगाएंगे।
तन ,मन,धन की शुचिता
पर अपनी ऊर्जा और ध्यान केंद्रित
करने का प्रयास करेंगे।
अपने को संयमित कर
जीवन शैली को संतुलित कर
मानवीय गरिमा का वरण करेंगे ,
जीवन यात्रा को सार्थक करेंगे
ताकि सब स्व से जुड़ सकें !
आत्मानुसंधान करते हुए आगे बढ़ सकें !!
०६/०५/२०२५.
किसी की शक्ति
यदि छीन जाए
तो वह क्या करे ?
वह बस मतवातर डरे !
ऐसा ही कुछ
पड़ोसी देश के साथ हुआ है।
वह बाहर भीतर तक हिल गया है।

खोखला करता है
बहुत ज़्यादा ढकोसला।
वह भी क्या करे ?
भीतर बचा नहीं हौंसला।
अशक्त किस पर हो आसक्त ?
वह आतंक को दे रहा है बढ़ावा,
इस आस उम्मीद के साथ
ज़ोर आजमाइश करने से
बढ़ जाए उसको मिलने वाला चढ़ावा
वह एक लुटेरा देश है।
धर्म के नाम पर वह अलग हुआ,
कुछ खास तरक्की नहीं कर सका।
यही उसके अंदर का क्लेश है।
अशक्त देश किस पर हो आसक्त ?
क्या धर्म पर या फिर ठीक उल्टा आतंकी मंसूबों पर ?
वह कोई फ़ैसला नहीं कर पा रहा।
इसी वज़ह से खोखला देश
हिम्मत और हौंसला छोड़
आतंक और विघटनकारी ताकतों को
दे रहा मतवातर बढ़ावा।
वह भीतर ही भीतर विभक्त होने की राह पर है।
आज वह हार की कगार पर है।
०५/०५/२०२५.
Always dream about
a pollution free social setup.
Keep courage to say shut up
to pollutant minds in life
for cleanliness
and the safe journey of human beings.
05/05/2025.
अपनी मातृ भाषा में
क्रिकेट कमेन्ट्री सुनकर मज़ा आ गया !
इसका लुत्फ़ हंसी-मज़ाक से भी ज़्यादा आया !!
अब जब भी मन करेगा मैं इस खेल की
कमेन्ट्री हरियाणवी में सुनूंगा।
अपने भीतर खुशियां लबालब भरूंगा।
यदि आप हिंदी और हरियाणवी को समझते हैं
तो खेल की कमेन्ट्री हिंदी में न सुनकर
हरियाणवी में सुन लीजिए,
अपने भीतर भरपूर प्रसन्नता भर लीजिए ।
तनिक  जीवन में उदासी को भूल कर
थोड़ा बहुत हंसी मज़ाक का तड़का जीवन में लगा कर
अपनी स्वाभाविक खिलखिलाहट से दोस्ती कर लीजिए।
कम से कम थोड़े समय के लिए तनावमुक्त हो लीजिए।
इस जीवन में हंसी मज़ाक,
ठहाकों  और कहकहों का आनन्द अवश्य लीजिए।
यही नहीं अपने जीवन की कमेन्ट्री भी  
कभी कभी खुद किया कीजिए।
ज़िन्दगी को जिन्दादिली से जीने का तोहफा दीजिए।
०४/०५/२०२५.
तोड़ने शत्रुओं का गुरूर
अंदर ही अंदर
देश दुनिया की फिजाओं में
बदस्तूर
ज़ारी है युद्ध का फितूर।
देश कब हमला करेगा ?
करेगा भी कि नहीं ?
इस बाबत कोई भी
निश्चय पूर्वक  
कह नहीं सकता।
सब कुछ भविष्य के
गर्भ में है।
हां ,यह जरूर है कि
देश निश्चिंत हैं ...
शत्रु नाश होकर रहेगा।
उन्होंने सर्वप्रथम
कायराना हमला किया था।
देश भी निश्चय ही
पलटवार
अपना समय लेकर
अपने ढंग से करेगा,
शत्रु पक्ष
आगे से कुछ
करने से पहले
गहन सोच-विचार करेगा।
वह निश्चय ही कभी न कभी
बिन आई मौत मरेगा।
भीतर ही भीतर
देर तक डरता रहेगा।
खुद-ब-खुद
शत्रु को
उसका अपना ही आंतरिक डर
सर्पदंश सरीखा जख्म दे देगा।
फिर वह कैसे जीवित  रहेगा ?
असंतोष और असंयम ही
अब  उसकी पराजय की वज़ह बनेगा।
फिर कैसे वह लड़ने की हिमाकत करेगा ?
०४/०५/२०२५.
Next page