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The feeling of belongingness keeps us
fit and fertile in the race of survival.
Otherwise we all behave
like passionless animals
who moves aimlessly in life.
A sense of security is always required in life.
Belongingness  usually provides us such protection
and keeps us secured.
04/05/2025.
आदमी पर
आरोप लगने
कोई नई बात नहीं।
बेशक वह कितना भी सही
क्यों न रहा हो ?
आरोप
आर से लगें
या पार से लगें ,
ये बस किसी आधार पर लगें।
झूठे और मिथ्या आरोप
किसी पर मढ़े न जाएं।
आरोप प्रत्यारोप की रस्सी पर
आदमी संतुलन बना कर चले
ताकि वह अचानक
कभी औंधे मुंह नहीं गिरे।
जीवन पर्यन्त
वह कालिख रहित  बना रहे।
वह पतन के गड्ढे में गिरने से
सुरक्षित बना रहे
और वह जीवन पथ पर डटा रहे।
वह निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास करता रहे।
०४/०५/२०२५.
आदमी को
मयस्सर होती रहे
ज़िन्दगी में
कामयाबी दर कामयाबी
बनी रहती भीतर
ठसक।
जैसे ही कामयाबी का
सिलसिला
कहीं पीछे छूटा ,
लगने लगता कि भाग्य भी
अचानक ही रूठा।
आदमी की
न चाहकर भी
टूट जाती ठसक।
भीतर ही भीतर
बढ़ती जाती कसक।
बेचैनी के बढ़ने से
झुंझलाहट बढ़ जाती !
ज़िन्दगी में उलझनें भी बढ़ने लगती !
ज़िन्दगी जी का जंजाल बन कर तड़पाने लगती !
ज़िन्दगी में भागदौड़ यकायक बढ़ जाती ,
आदमी एक अंतर्जाल में फंसता चला है जाता।
वह दिन हो या रात,
कभी भी सुकून का अहसास नहीं कर पाता।
०४/०५/२०२५.
वैसे तो लोग और देश
आपस में लड़ते हैं,
कभी हारते हैं तो कभी जीतते भी हैं।
मेरा देश आज़ादी के बाद
चार युद्ध लड़ चुका है ,
वह अपने पड़ोसी से शांति चाहता रहा है।
पर उसे अशांति ही मिलती रही है।

अब पांचवीं लड़ाई की तैयारी है ।
यह कभी भी शुरू हो सकती है।
कोई भी देश जीते या फिर हारे।
अवाम हर हाल में बदहाल होगी।
देश की प्रगति दशकों पीछे जाएगी।
फिर भी किसी को सुध बुध नहीं आएगी।
कुछ वर्ष ठहर कर क्या फिर से युद्ध लड़ा जाएगा ?
नेतृत्व का अहम् विकास को धराशाई करता नजर आएगा।
जीता हुआ देश हारे  हुए देश को चिढ़ाएगा।
हमारा अपना देश दुर्दिन और दुर्दशा झेलता देखा जाएगा।
व्यवस्था परिवर्तन के बावजूद किसी के हाथ पल्ले कुछ नहीं आएगा।
०३/०५/२०२५.
कभी चिकन
खाने वाला नेक भी होगा
ऐसा कभी सोचा नहीं।
अर्से से चर्चा में है
उत्तर पूर्वी हिस्से को
मुख्य भूमि से अलगाने के निमित्त
चूज़े की गर्दन पर
आक्रमण करवाया जाए।
देश की अस्मिता को दबाया जाए।
यही नहीं
विस्तृत बांग्ला देश का सपना भी
अब कुछ विघटनकारी ताकतों द्वारा देखा जा रहा है।
उत्तर पूर्वी भू भाग को आतंक की चपेट में
लाने के प्रयास भी हो रहे हैं।
म्यांमार के विद्रोहियों को भी उकसाया जा रहा है।
क्यों न भारत भी
बांग्ला देश को
उसकी ही जुबान में
उत्तर दे।
उन्हें संदेश मिठाई खाने को विवश करे ।
ताकि  खुद भी
वह चिकन नैक बनने की संभावना से बचे।
वह अकारण शांतिप्रिय देश के
आत्म सम्मान से खिलवाड़ न करे।
किसी देश को खंडित करने के मंसूबों से गुरेज़ करे ।
03/05/2025.
आजकल
लोग अपने पास
नगदी नहीं रखते।
वे अदायगी आन लाइन करते हैं।
क्या इससे जेबकतरों का धंधा
मंदा नहीं पड़ गया होगा ?
जेब खाली
तो कहां से बजेगी ताली ?
इस बाबत
एक पिता ने
अपनी पुत्री से प्रश्न किया।
तत्काल उत्तर मिला ,
" अरे पापा! अब चोर भी
हाइटेक हो गए हैं।
वे चोरी के नए नए ढंग खोजते हैं।
अब साइबर ठगी का जमाना है।
अतः सब को संभल कर रहना है।"
यह सब सुनकर पिता दंग रह गया।
वह सोचता रह गया कि
जमाना अब
देखते ही देखते
बहुत आगे तक बह गया है।
दक़ियानूसी का मारा
आदमी भी अब
यकायक
अचम्भित,
ठगा हुआ सा रह गया है।
आज का आदमी
समय की धारा में
तीव्र गति से
आगे बढ़ने को उद्यत है।
समय की दौड़ में
पीछे रह गया
मानुष अत्यंत व्यग्र है !
वह अत्याधिक उग्र है !!
०२/०५/२०२५.
एक अराजक समय में
जीवन बिताते हुए
पड़ोस अच्छा होने के बावजूद
हरदम मनमुटाव होने का खटका बना रहता है ,
जबकि मेरे पड़ोसी
सहयोग और सद्भाव बनाए रखें हैं।
मैं अपनी मानसिकता की बाबत क्या कहूं ?
यह भी सच है कि यदि कोई
विनम्रता पूर्वक आग्रह करे,
तो मैं सहर्ष अपार कष्ट सहने को तैयार हूं
और कोई बेवजह धौंस पट्टी जमाना चाहे
तो उसे मुंह तोड़ जवाब दूं ,
अन्याय हरगिज़ न सहन करूं।

एक अराजक समय में
जीवन गुजारने के लिए
मेरे देशवासी मजबूर हैं ,
बेशक उनके इरादे बेहद मजबूत हैं।
आंतक और आंतकवाद से
जूझते हुए उन्होंने संताप झेला है।
इस वजह से उनका जीवन बना झमेला है।
मेरे दो पड़ोसी देश
आज बने हुए
चोर चोर मौसेरे भाई हैं।
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