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लाभ की उत्कंठा
अपनी सीमा को लांघ कर
लोभ को उत्पन्न कर
व्यक्ति के व्यक्तित्व पर
चुपचाप करती रहती है
आघात प्रतिघात।
जैसे जैसे व्यक्ति लाभान्वित होता है ,
वैसे वैसे लालच भी बढ़ता है
और यह विवेक को भी हर लेता है।
समझिए कि व्यक्ति अक्ल से अंधा हो जाता है।
उसके भीतर अज्ञान का अंधेरा पसरता जाता है।
वह एक दिन सभ्यता का लुटेरा बन जाता है।
वह हर रंग ढंग से लाभ कमाना चाहता है।
बेशक उसे धनार्जन के लिए कुछ भी करना पड़े।
नख से शिखर तक कुत्सित , दुराचारी , अंहकारी  बनना पड़े ।
लाभ और लोभ की खातिर किसी भी हद तक शातिर बनना पड़े।
यहां तक कि अपने आप से भी लड़ना और झगड़ना पड़े।
०२/०५/२०२५.
युद्ध
अभी विधिवत
शुरू हुआ नहीं कि
युद्ध विराम की ,
की जा रही है बात
कौन है वह देश ?
जो नहीं चाहता कि
युद्ध हो।

अभी
जन आक्रोश
उफान पर है ,
यदि किसी दबाव वश
हमला नहीं हुआ ,
तब अवश्य
जन विश्वास ख़तरे में है।
इसे कैसे खंडित होने से
बचाया जाए ?
इस बाबत भी
सोचा जाए।
मन के भीतर
उमड़ते-घुमड़ते
तूफ़ान को न रोका जाए ।
आओ मंज़िल की ओर बढ़ा जाए।
युद्ध भूमि में डटा जाए
बेशक मौत दे दे मात !
यह भी होगी
वक्त के हाथों से
सब के लिए
अद्भुत सौगात!

अब युद्ध अपरिहार्य है !
युद्धवीर !
क्या तुम्हें यह स्वीकार्य है ?
कुछ कर गुजरने से पहले
युद्ध विराम
हरगिज़ नहीं चाहिए।
इस बाबत
नेतृत्व को भी
समझना चाहिए।
शांति स्थापना के लिए
युद्ध की नियति कोई नई नहीं।
इस सत्य को सब समझें तो सही।
०२/०५/२०२५.
असली आज़ादी को
कौन
मौन रहकर
भोग पाता है ?
एक योगी या फिर कोई भोगी ?? ‌
या फिर
जिसने जीवन में
शेरनी का दूध पिया है ?
अभी अभी
पढ़ा है कि
दुनिया में
कोई विरला ही होता है ,
जिसे असल में
यानी कि सचमुच
शेरनी का दूध पीने का
सौभाग्य मिला हो।
एक या दो चम्मच से ज्यादा
शेरनी का दूध
पीने से
यह आदमी को यमपुरी की राह ले जा सकता है
क्यों कि
इस दूध की तासीर गर्म है ,
इसे पचाना है जरा मुश्किल।
वैसे भी दूध पर पहला हक
पशु के शावक का है ,
जिससे उन्हें वंचित रखा जाता है।

बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर जी ने
शिक्षा को
शेरनी का दूध कहा है।
यदि इस दूध को
शोषित मानस पीये
और स्वयं को
इस योग्य बना ले
कि वह अपना संतुलित विकास कर ले
तो वह अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत होकर
सिंहनाद करने में हो सकता है सक्षम।
वह समर्थ बनकर
देश दुनिया और समाज का
कह सकता है भला।
ऐसा शिक्षा रूपी
शेरनी का दूध पीकर
सब निर्भीक बनें ,
ताकि सभी आत्म सम्मान से जीवनयापन कर सकें,
जीवन रण को
संघर्ष के बलबूते
समस्त वंचित जन जीत सकें।
आओ आज हम सब इस बाबत मंगल कामना करें।
कोई भी शिक्षा से महरूम न रहे।
सब
स्वपोषित साधनों से
सजगता और जागरूकता को फैलाकर ,
शेर सरीखे बनकर
देश , दुनिया और समाज को
सुख , समृद्धि और सम्पन्नता की राह पर ले जाएं ,
जीवन पथ पर किसी को भी हारना न पड़े।
ऐसे लक्ष्य को
हासिल करने के निमित्त
सब एकजुट होकर आगे बढ़ें।
०२/०५/२०२५.
अब कभी किसी से
मिलने का मन करता है ,
तो उससे मुलाकात करने का
सबसे बढ़िया ढंग
दूरभाष
या फिर
मोबाइल फोन से
वार्तालाप करना है।

मुलाकात आजकल
संक्षिप्त ही होती है ,
मतलब की बात की ,
अपना पक्ष रखा
और अपनी राह ली।

पहले आदमी में
आत्मीयता भरी रहती थी ,
अब जीवन की दौड़ धूप ने
आदमी को अति व्यस्त
कर दिया है ,
उसे किसी हद तक
स्वार्थी बना दिया है ,
मतलबपरस्ती ने
आदमी के भीतर को
नीरसता से भर दिया है ,
और जीवन में
मुलाकात के आकर्षण को
लिया है छीन।
मिलने और मिलाने के
जादू को कर दिया है क्षीण।
आदमी अब मुलायम करने से
बहुधा बचना चाहता है।
ले देकर पास उसके बचा है यह विकल्प
मन किया तो मोबाइल फोन पर
बतिया लिया जाए।
दर्शन की अति उत्कंठा होने पर
वीडियो कान्फ्रेंसिंग से
संवाद रचा लिया जाए।
हींग लगे न फिटकरी
रंग भी चोखा होय , की तर्ज़ पर
घर बैठे बैठे बिना कोई कष्ट उठाए
बगैर अतिथि बने
मुलाकात कर ली जाए
और हाल चाल पूछ कर
अपने जीवन में
दौड़ धूप कर
अपनी उपस्थिति दर्ज की जाए।
मुलाकात आजकल
सिमट कर रह गई है ,
जीवन की अत्याधिक
दौड़ धूप
मनुष्य की
समस्त आत्मीयता को
खा गई है।
इस बाबत अब
क्या बात करूं ?
मन के आकाश में
उदासीनता की बदली
छाई हुई है।
मुलाकात की चाहत
छुई-मुई सी हुई ,हुई
मुरझाई और उदास है।
जाने कहां गया
जीवन में से मधुमास है ?
फलत: जीवन धारा
लगने लगी कुछ उदास है !
अब लुप्त हुआ हास परिहास है !!
०२/०५/२०२५.
जीवन
एक यात्रा है।
इसे ईमानदार रह कर
जारी रखा जाना चाहिए।
इस दौरान
लोभ लालच और बेईमानी से
हरपल बचा जाए
तो ही अच्छा।
जीवन यात्रा के दौरान
आदमी बनाए रखें
आत्म सम्मान।
वह करें जीवन की बाबत
चिंतन मनन
और जीवन के आदर्शों का अनुकरण करे
ताकि जीवन यात्रा का समापन
सुखद अहसास के साथ हो !
जीवन की परिणति
सार्थक और सकारात्मक सोच के साथ हो !!
आदमी
फिर से
एक नई यात्रा की तैयारी कर सके।
वह जन्म दर जन्म
आध्यात्मिक उन्नति करता रहे।
०२/०५/२५.
युद्ध से
पहले
देर तक  
खामोशी बनी रहे।
यहाँ तक कि
हवा भी न बहे।
बस हर पल
यह लगे कि
कुछ निर्णायक होने वाला है।
अन्याय का साम्राज्य
शीघ्र ध्वस्त होने वाला है।
उसे मुक्ति से पहले
चिंतन मनन करने दो।
शायद युद्ध रुक जाए।
देश दुनिया और समाज संभल पाएं।
वरना महाविनाश सुनिश्चित है।
अनिश्चितता के बादल छाएंगे
और ये दिशा भ्रम की
प्रतीति कराए
बिना नहीं रहेंगे।
ठीक
कुछ इसी क्षण
खामोशी टूटेगी
और युद्ध का आगाज़ होगा ,
भीतर सहम भर चुका होगा ,
आदमी बेरहम बन रहा होगा धीरे धीरे।
वह युद्ध का शंखनाद
सुनने को व्यग्र हो रहा होगा।
अस्त व्यस्तता और अराजकता के माहौल में
सन्नाटा
सब के भीतर  पसर कर
वह भी युद्ध से पहले
जी भर कर सो लेना चाहता है।
फिर पता नहीं !
कब सुकून  मिले ?
मिलेगा भी कि नहीं ?
भयंकर पीड़ा
और विनाश
युद्ध से पूर्व ही
सर्वनाश होने की
प्रतीति कराने को हैं व्यग्र।
हर कोई उग्र दिख पड़ता है ।
पता नहीं यह विनाशकारी युद्ध कब रुकेगा ?
युद्ध से पूर्व की ख़ामोशी
सभी से कहना चाहती है
परन्तु सब युद्ध के उन्माद में डूबे हैं।
कौन उसकी सुने ?
वैसे भी ख़ामोशी से संवाद रचा पाना
कतई आसान नहीं।
युद्ध की आहट
सन्न करने वाला सन्नाटा
या कोई बुद्ध ही समझ पाता है।
किसी हद तक संयम रख पाता है।
०१/०५/२०२५.
Sometimes
Cancellation is far better
in spite to pursue a cause because
nobody likes inconvenience.
30/04/2025.
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