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मुझे सच में
पता नहीं था कि
जिगरी यार
कर जाएगा
यार मार।
वह बरगला ले जाएगा
मेरा प्यार।
सच !
अब मुझे
यारी दोस्ती पर
एतबार नहीं रहा।
आजतक
अर्से तक
अंदर ही अंदर
एक अनाम दर्द सहता रहा ,
जब रहा नहीं गया
तो थक हार कर
अपना दुखड़ा कहा।
यार मार
किसी भी मामले में
जज़्बात की हत्या से कम नहीं,
यार मार करने में कोई किसी से कम नहीं।
आज यह बन चुकी रवायत है,
मुझे इस बाबत ही आप सभी से करनी शिकायत है।
दोस्त!
यार मार से बच ,
कभी तो अपना किरदार गढ़
और जीवन धारा में
सार्थक दिशा में बढ़ ,
भूल कर भी
किसी से अपेक्षा न रख ,
न ही अपने भीतर के इन्सान से लड़।
सच से रूबरू होने की खातिर
दिल से प्रयास कर।
ताकि फिर से यार मार करने से बच सके!
जीवन में प्यार के मायने को समझ सके!!
३०/०४/२०२५.
धीर गंभीर ही
बन सकते हैं युद्धवीर।
युद्ध की उत्तेजना को
जो अपने भीतर जज़्ब कर लेते हैं ,
मन ही मन में
शत्रु से लड़ने की
योजना को गढ़ लेते हैं ,
ऐसे योद्धा युद्धवीर कहलाते हैं।
ऐसे युद्धवीरों को सलाम।
ऐसे रण बांकुरों को
कोटि कोटि प्रणाम।
युद्धवीर धैर्य धारण कर
जीवन रण को लड़ते हैं।
वे अनेक उतार चढ़ावों के बावजूद
अपना डंका बजाते हैं ,
शत्रु की लंका को
अंगद बन कर जलाते हैं।
तुम भी जीवन रण में
युद्धवीर बनो।
भीतर और बाहर के शत्रुओं से
दो दो हाथ करो।
धैर्य और शौर्य के बल पर
शत्रु के मनसूबों को
धराशाई करो ,
चुपके चुपके
शत्रु खेमे में सेंध लगाकर
डर भर दो।
उन्हें गोरिल्ला युद्धनीति से
हक्का बक्का कर दो।
उन्हें अपनी रणनीति से
धूल चटा दो।
30/04/2025.
हम जंग के बाद भी
देश दुनिया और समाज में
टिके रहें ।
इसलिए अपरिहार्य है
हम युद्धाभ्यास के लिए
स्वयं को तैयार करें।

यह ठीक है कि
युद्ध देश विशेष की
सेनाएं लड़ती हैं।
उन्हें युद्धाभ्यास करने की
जरूरत होती है ,
परन्तु युद्ध में
सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए
आम जन बल का उत्साहवर्धन
बेहद ज़रूरी है।

युद्ध सीधे तौर पर
आपातकाल को न्योता देना है।
यह मंहगाई को
आमंत्रण देना भी है।
आज यह अस्तित्व रक्षा के लिए
अपरिहार्य लग रहा है।
आओ हम शपथ लें कि
हम संयमित रहकर
जीवन यापन करेंगे ,
अपने खर्चे कम करेंगे।
इससे जो धनराशि बचेगी ,
उसे राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के हेतु
दान करेंगे।
यही नहीं ,
यदि जरूरत पड़ी तो
देश की अस्मिता की खातिर
स्वयं को कुर्बान करेंगे।
हम संकटकाल में
कार सेवा करते हुए
अपने जीवन को सार्थक करेंगे।
हम सर्वस्व के हितार्थ
युद्ध स्तर पर
सकारात्मक और सार्थक पहल करेंगे।
हम युद्धोपरांत
स्व राष्ट्र और पर राष्ट्र के कल्याणार्थ
नव निर्माण का कार्य  करेंगे
और युद्ध की भरपाई भी
तन ,धन ,मन से करेंगे
ताकि जीवन धारा पूर्ववत बह सके।
शांति की बयार देश दुनिया में बहे।
कोई भी अन्याय सहने को अभिशप्त न रहे।
३०/०४/२०२५.
कर्म चक्र
समय से पहले
कभी भी
आगे बढ़ने की
प्रेरणा नहीं देता।
आदमी
कितना ही
ज़ोर लगा लें ,
मन को समझा लें।
मन है कि यह
साधे नहीं सधता।
यह अड़ियल
बना रहता है।
अकारण
तना रहता है ,
खूब नाच नचाता है।

समय आने पर
यह भटकना
छोड़ देता है ,
अटकना और मचलना
रोक कर
यह स्वयं को
अभिव्यक्त करने की
पुरजोर कोशिश करता है ,
अपने भीतर कशिश भरता है।
ठीक इसी क्षण
आदमी के
प्रारब्ध का शुभारंभ होता है।
हर रुका हुआ काम
सम्पन्न होने लगता है ,
जिससे तन मन में
प्रसन्नता भरती जाती है।
यह आगे बढ़ने के
अवसरों को ढंग से
बटोर पाती है।
यह सब कुछ न केवल
आदमी को सतत्
कामयाबी की अनुभूति कराता है ,
बल्कि सुख समृद्धि और सम्पन्नता के
जीवन में आगमन से
व्यक्ति जीवन दिशा  को
भी बदल जाता है।
यही प्रारब्ध का शुभारंभ है ,
जहां सदैव रहते आए
उत्साह ,जोश और उमंग  की तरंगें हैं।
इन्हीं के बीच सुन पड़ती
जीवन की अंतर्ध्वनियां हैं।
३०/०४/२०२५.
बूढ़ा हो चुका हूँ ।
अभी भी
मन के भीतर
गंगा जमुनी तहज़ीब का
जुनून बरकरार है ।
भीतर की मानसिकता
घुटने टेकने
क्षमा मांगने वाली रही है ,
फलत:अब तक
मार खाता रहा हूँ ।

अभी अभी
पहलगाम का
दुखांत सामने आया है ,
जिसने मुझे
मेरे अंत का मंज़र
दिखाया है।
अगर अब भी इस
गंगा जमुनी तहज़ीब के
जाल में फंसा रहा
तो यकीनन बहेलिए के
जाल में ,
उस द्वारा फेंके गए
दानों के लोभ में
ख़ुद को फंसा हुआ पाऊंगा,
कभी छूट भी नहीं पाऊंगा।
बस उस के जाल में
फड़फड़ाता रह जाऊंगा।
शाम तक
रात के भोजन का
निवाला बनने के निमित्त
हांडी पर पकाया जाऊंगा।
यह ख्याल
अभी अभी
जेहन में आया है।
मुझे शत्रु बोध की
अनुभूति होनी चाहिए।
मुझे मिथ्या सहानुभूति
कतई नहीं चाहिए।
कब तक अबोध बना रहूंगा ?
बूढ़ा होने के बावजूद
बच्चों सा तिलिस्मी माया जाल में
फंसा हुआ तिलमिलाता रहूंगा।
कब मेरे भीतर शत्रु बोध पैदा होगा ?
.... और ‌मैं अस्तित्व रक्षा में सफल रहूंगा।
आप भी अपने भीतर शत्रु बोध  को जागृत कीजिए।
अपने प्रयासों से जिजीविषा को तीव्रता से अनुभूत कीजिए।
सुख समृद्धि और सम्पन्नता से नाता जोड़ लीजिए।
२९/०४/२०२५.
शब्द ब्रह्म का मूल है
पर यही शब्द
बिना विचारे प्रयुक्त हो
तो कभी कभी
लगने लगता है
अपशब्द !
जो कर देता है
अचानक हतप्रभ !
आदमी एकदम से
भौंचक्का रह जाता है।
उसे पहले पहल
कुछ भी समझ
नहीं आता है ,
जब भी समझ आता है,
वह खिन्न नजर आता है।
लगता है कि उसे अचानक
किसी ने चुभो दिए हों शूल।
शब्द अपने मंतव्य को
ठीक से व्यक्त कर दे ,
बस इसे ध्यान में रखकर
शब्द को प्रयुक्त कीजिए।
बिना विचारे इस शब्द ब्रह्म का
इस्तेमाल भ्रम फैलाने के लिए
हरगिज़ हरगिज़ न कीजिए।
इसे सोच समझकर प्रयुक्त करें ,
ताकि यह भूले से भी कभी
अपशब्द बनता हुआ न लगे !
आदमी को चाहिए कि
ये सदैव मरहम बनकर काम करें!
बल्कि ये अशांत मानस को
शीतलता का अहसास करा कर शांत करें।
२८/०४/२०२५.
ज़िन्दगी के बहाव में
आदमी कुछ भी न कर पाए
वह बस बहता चला जाए
आदमी ऐसे में क्या करे ?
क्या वह हाथ पांव मारना छोड़ दे ?
अपनी डोर परमात्मा की रज़ा पर छोड़ दे !
क्यों न वह संघर्ष करे !
विपरीत हालातों के
अनुकूल होने तक
वह धैर्य बनाए रखे।
दुर्दिन सदैव रहते नहीं।
बेशक ज़िन्दगी में
कुछ भी न हो रहा हो सही।
आदमी अपने आप को सकारात्मक
बनाए रखे  तो सही।
जीवन यात्रा में हरेक जीव
अपने गंतव्य तक पहुंचता है।
यह स्वयं का दृढ़ विश्वास ही है
जो जीवन के वृक्ष को सतत सींचता है।
कुछ भी सही न होने के बावजूद
आदमी जीवन धारा के साथ बहता चले,
वह निराशा और हताशा से बचता हुआ
खुद से संवाद रचाता हुआ
निरन्तर आगे बढ़ता रहे ,
ताकि गतिशीलता बनी रहे ,
जीवन में जड़ता बाधा न बन सके।
जब कुछ भी सही न हो !
तब भी आदमी हिम्मत और हौंसला बनाए रखे ,
वह स्वयं को निरन्तर चलायमान रखे।
चलते चलते दुर्गम रास्ते भी
आसान लगने लग जाते हैं।
गतिशील कदम मंजिल पर पहुँच ही जाते हैं।
२८/०४/२०२५.
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