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स्कूल, कॉलेज , यूनिवर्सिटी में
दाखिला लेने के लिए
कभी कभी अभ्यर्थी को देना पड़ता है
साक्षात्कार।
यही हाल  होता है
नौकरी ढूंढते ,
बिजनेस डील करते समय ,
आजकल
साक्षात्कार
बेहद ज़रूरी हो गया है।
आज अभी अभी
हम गुड़िया के अम्मी अब्बा
उसकी वैवाहिक जीवन का
आगाज़ करवाने के गर्ज से
देकर आए हैं साक्षात्कार
लड़के के अम्मी अब्बा के सम्मुख।
देखें क्या नतीजा निकलता है !
अभी अभी हमारा हुआ है इंटरव्यू !
फिर  लड़के वाले आयेंगे !
तत्पश्चात लड़का और लड़की
परस्पर साक्षात्कार की प्रक्रिया से गुज़र कर
एक निष्कर्ष तक पहुंचेंगे।
आज साक्षात्कार जीवन में
हरेक को क़दम क़दम पर देना पड़ता है ,
तभी जीवन चक्र आगे बढ़ पाता है।
देखिए जिन्दगी में समय क्या क्या गुल खिलाता है !
वह किस किस की झोली में क्या कुछ भरेगा  ,
यह कोई भी नहीं जानता ,
साक्षात्कार कर्ता तक नहीं !
इंटरव्यू में कभी कभी कुछ भी सही नहीं होता।
आदमी सोचता है कि काश ! थोड़ी तैयारी और कर लेता।
तब शायद चित्त भी मेरा और पट भी मेरा होता।
२७/०४/२०२५.
पहलगाम के
नृशंस हत्याकांड के बाद
आज के रविवार
पी. एम. सर
अपनी मन की बात को
सुरक्षा के संदर्भ में
आगे बढ़ाएंगे।
देखें , उन द्वारा व्यक्त विचार
घायल राष्ट्र को
कितना मरहम लगाते हैं।
वे देश भक्ति के जज्बात को
किस तरह भविष्य की रणनीति से जोड़ेंगे।
वे राष्ट्र की अस्मिता को
किस दृष्टिकोण से
देश के नागरिकों के सम्मुख रखेंगे।
देश अब भी किसी पड़ोसी देश का अहित
नहीं करना चाहता।
वह तो अपनी सरहदों को
सुरक्षित देखना चाहता।
वह देश दुनिया में अमन चैन का परचम
लहराते देखना चाहता ।
हाँ, देश यह जरूर चाहेगा कि
राष्ट्र के आंतरिक शत्रुओं पर
लगाम कसी जाए
ताकि देश भर में
आंतरिक एकता को दृढ़ किया जा सके,
सुख , समृद्धि और संपन्नता भरपूर
राष्ट्र को बनाया जा सके।
उसका हरेक नागरिक
उसकी आन बान शान को बढ़ा सके।
मन की बात में निहित अंतर्ध्वनि को सब सुनें ,
यहां तक कि पड़ोसी देशों के नागरिक भी ,
ताकि सभी देशों के नागरिक
हालात के अनुरूप खुद को ढाल सकें।
वे अपने अपने राष्ट्र की ढाल बनने में सक्षम हो सकें।
देश में अमन शांति कायम रहें ।
बेशक सब अपने अपने स्तर पर
सजग और चौकन्ने बने रहें।
२७/०४/२०२५.
आतंकी भी
इंसान होते हैं
बेशक वे भटके हुए हैं
उनसे हमदर्दी होनी चाहिए
क्यों उन्हें बेवजह कोसते हो ?
उनके आतंकी बनने के पीछे की वज़ह
जानना भी ज़रूरी है।
कोई मज़बूरी रही होगी।
उस विवशता को दूर करना
मुनासिब रहेगा
ताकि किसी को
अपने देश और कौम के खिलाफ़
हथियार उठाने न पड़ें।
बल्कि वे देश दुनिया और समाज की
खिदमत में हो सकें खड़े।
बेशक उन से सभी को हमदर्दी होनी चाहिए।
इसे ज़ाहिर करने से पहले अपनी अकल के घोड़े
तनिक दौड़ा लेने चाहिए।
इसने कितने ही लोगों के वजूद को
नेस्तनाबूद किया होगा।
उनके जाने से उनके परिवार पर
मुसीबतों का पहाड़ टूटा होगा।
कितनी बेवाएं, कितने यतीम बच्चे ,
कितनों के बूढ़े माँ बाप
जिगर के टुकड़ों के
यकायक मर जाने से रोए होंगे।
इस बाबत सोचा है कभी ?
वे चाहते तो खुद को रख सकते थे सही।
अब ये कैद में हैं।
आप चाहते हैं इन्हें फांसी न हो ।
कानून थोड़ी नरमी दिखाए।
मेरे भाई ! ऐसा क्यों ?
क्या आपका किरदार और जमीर गया सो ?
कृपया पहले इसे जगाएं ।
फिर हमदर्दी भरा कोई बहाना बनाएं।
इस जन्नत से भी हसीन कायनात को
इंसानी खुदगर्ज़ी , नफ़रत, मारधाड़,
चोरी सीनाजोरी की लत से दोजख न बनाएं।
बस आप खुद को सही बनाएं।
यह दुनिया ख़ुदबखुद जन्नत सी नजर आएगी।
खौफ के साए भी सिमटते दिख पड़ेंगे ।
बस आप ज़रा
बेवजह हमदर्द दिखने से
गुरेज़ करेंगे तो...
तभी जिन्दगी पटरी पर आती लगेगी।
डरे हुए  ,फीके पड़े चेहरों पर
फिर से
प्यार और विश्वास की चमक दिख पड़ेगी।
यह कायनात
ख़ुदा से गुफ्तगू करती हुई लगेगी।
हमदर्दी और दुआ भी
किसी दवा की तरह शिफा करेगी।
२६/०४/२०२५.
मैं हूँ सनातनी
नहीं चाहता कभी भी
कोई तनातनी।

मेरा धर्म कर्मों के
हिसाब किताब पर आधारित है,
यह  भी माना जाता है
जीवन में सब कुछ पूर्व निर्धारित है।
हम सब
जिन में
अन्य धर्मों के
मतावलंबी भी शामिल हैं ,
इस जीवन में
आध्यात्मिक उन्नति के लिए
आए यात्री मात्र हैं ,
जो अपने कर्मों में
सुधार करने के निमित्त
स्वेच्छा से आए हैं,
ये कतई जबरन नहीं लाए गए हैं।
यह बेशक मृत्युलोक है,
पर कर्म भूमि भी है।
इस जन्म के कर्म  
अगले जन्म का आधार बनते हैं।
इसी सिलसिले को सब आगे बढ़ाते हैं।
कभी हम उन्नति करते हैं
और कभी पतन का शिकार बनते हैं।
यह जन्मों का सिलसिला
हमारी आध्यात्मिक उन्नति पर
जाकर रुकेगा ,
तभी ईश्वरीय चेतना का हिस्सा
आत्मा बनेगी ,
उसे मुक्ति मिलेगी
अर्थात् चेतना परम चेतना में
समाहित होकर मोक्ष को होगी प्राप्त ,
जन्म मरण से मुक्ति मिलेगी।
पर इस क्षण
बहुत सी नव्य आत्माएं
अपनी यात्रा को
शुरू कर रहीं होंगी।
यह एक अद्भुत स्थिति है,
जिससे गुजरना कण कण की नियति है।
ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ एनर्जी
अर्थात् ऊर्जा का रूपांतरण ही तो
सृष्टि का खेल है।
सब का पिता
ईश्वर या अल्लाह है।
एक ही है परम चेतना ,
जिसे इस्लाम ,ब्रह्मवादियों,अन्य मतावलंबियों ने माना है।
हम सनातनी द्वैत और अद्वैत की बात करते हैं
तो बस इसलिए कि
हम भी एक ईश्वरवादी हैं,
पार ब्रह्म की बात करते करते
हम समय की धारणा को भी
अपने भीतर पाते हैं,
यह दशावतार के रूप में
जीवन के विकास क्रम को समझाने
लगता है हमें।
अनेक अवतार बस जीवनोत्सव के
प्रतीक भर हैं।
कुछ अन्य मतावलंबी इसे
अनेक ईश्वर वाद से जोड़ कर
हमें अपना विरोधी समझते हैं।
हम भी एक सत्ता के उपासक हैं
पर थोड़ा हट कर।
जल से जीवन उत्पन्न हुआ,
ईश्वर मत्स्यावतार के रूप में दिख पड़ा।
जैसे जैसे चेतना विकसित हुई ,  
उसी क्रम में अन्य अवतार भी अनुभूत हुए।
राम और कृष्ण , महावीर और बुद्ध ,हमारी चेतना में एक ही हैं।
वे महज अलग अलग समय में
मानवता के प्रतिनिधि भर रहे हैं।
उनके भीतर ईश्वरीय चेतना के कारण उनकी आराधना होती है।
यही नहीं गुरु नानक से लेकर दशमेश गुरु गोविंदसिंह में भी
उस एकेश्वरवादी परम सत्ता के दर्शन होते हैं।
इसी आधार पर निर्गुण और सगुण की उपासना हो रही है ।
देखा जाए तो वैचारिक धरातल पर परमसत्ता एक ही है।
सभी इस सत्य को समझें तो सही।
हमारे यहां कोई भेद भाव नहीं।
हम सनातनी हैं ,
शाश्वत सच की बात करते हैं ।
हमारा आहार व्यवहार
कार्य कारण पर आधारित हैं ,
हमारे ऋषि मुनि हवा में तीर नहीं छोड़ते।
उनके पास हरेक परंपरा का एक आधार है।
यही नहीं यदि कोई बौद्धिक प्रखर चेतना हमें पराजित कर दे ,
तो हम उसके चिंतन को भी मान्य करते हैं।
यही कारण है कि हमारी चेतना सदैव सक्रिय रही है ,
इसमें हरेक मजहब ,धर्म को स्थान देने की परंपरा रही है।
यदि हम पर जबरन धर्म या मजहब थोपने की किसी ने कोशिश की है
तो प्रतिरोध क्षमता भी भीतर भरपूर रही है।
हम महा बलिदानी और स्वाभिमानी रहे हैं।
हम सनातनी चेतना के साथ सदैव आगे बढ़े हैं।
हमारे चेहरे मोहरे काल सरिता में बह रही महाचेतना ने गढ़ें हैं।
तर्क चेतना के बूते कोई भी हम पर विजय पा सकता है ,
कोई शक्ति और तलवार के दम पर हमें बांधना और साधना चाहे, यह स्वीकार्य नहीं।
हम सनातनी प्रतिरोध के लिए भी खड़े हैं, एकजुट होने को उद्यत।


बेशक हम विनम्र हैं,
हम अपने हालात को
अच्छे से समझते हैं,
अस्तित्व की खातिर
हम सब सनातनी
आगे बढ़ने को हैं तत्पर।
एकजुटता से क्या हो सकता है बेहतर ?
इस की खातिर त्याग करना गए हैं सीख।
हम नहीं बने रहना चाहते लकीर के फ़कीर अब।
समय के साथ साथ आगे बढ़ने के लिए मुस्तैद।
२६/०४/२०२५.
In the world of invention and research
technique plays a vital role nowadays.
So merely academic qualification
usually fails in life.
One must be skill friendly to exist
in a stressful ,
struggle full ,
competitive world.
To master
the learning regarding technique,
one must remain vigilant towards activities
involved around it.
If you failed
to take initiative intime ,
there is always a possibility to compromise,and than
you have to make adjustments throughout your life ,
so it is better
to understand the working pattern of the machine
which you have to operate  
during production hours.
You must be careful all the time for quick and unique success.
24/04/2087.
Today's world
Seems me
A unique product of wise persons
Who always remain
Back Benchers in their respective lives
In the struggle of life to survive
During the journey of the life.

Back Benchers
Always enjoy their lives
Without stress.
Because they keep themselves
In the corner without any limelight.

All are welcome
In the unique world of
Back Benchers.
They are less known champions of
Contemporary times.
25/04/2024.
किसी से जाति पूछते समय
मैं हो जाया करता था असहज,
जब काम के दौरान
किसी कॉलम को भरने के समय
जाति से संबंधित कोड भरने का जिम्मा रहता था ।
मुझे लगता रहा है आज तक
जाति व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है ,
इसे आम बोलचाल में न ही पूछा जाए।
जाने अनजाने किसी की संवेदना को क्यों कुरेदा जाए ?
आज जब विपक्ष द्वारा जातिगत जनगणना का मुद्दा
रह रह कर उठाने का प्रयास किया जा रहा है।
सत्ता पक्ष द्वारा इसे पूछने वाले की जाति को पूछा जा रहा है।
तर्क है कि पहले खुद की जाति बताई जाए ,
इसके बाद ही कोई जाति से संबंधित बात की जाए।

देश की एकता में जाति व्यवस्था बाधक है।
मगर इस से पिंड छुड़ाना फिलहाल असंभव है।
यह उम्मीद भी है कि आने वाले समय में
युवा पीढ़ी इस जाति के कोढ़ का इलाज़ ढूंढ ही लेगी ।
वह समानता और सद्भावना से मनुष्यता को चुनेगी।
हमारी पीढ़ियां सर्वप्रथम सुख समृद्धि और संपन्नता को वरेंगी।
इसके बाद ही बाकी कुछ को वरीयता मिलेगी।
उम्मीद है कि वर्तमान के संदर्भ में
जाति व्यवस्था स्वयं में
समयानुरूप सुधार करेगी ,
तभी देश दुनिया और समाज में
आदमजात की ज़िन्दगी सुरक्षित
और उसके आगे बढ़ने की
संभावना बनी रहेगी।
अन्यथा अराजकता हावी होकर
सर्वस्व को लील लेगी।
फिर कैसे नहीं
चहुं ओर विनाश लीला होगी ?
यह ज़िन्दगी रुकी सी  लगने लगेगी !
आगे बढ़ने की अंधी दौड़
कब कब नहीं पागलपन कराती रहेगी ?
अतः आम हालात में
जाति पूछने से किया
जाना चाहिए संकोच ,
वरना झेलना पड़ सकता है विरोध।
२६/०४/२०२५.
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