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मजा
प्यास का तब ही है
जब प्यास लगी हो और पानी
पास न हो !
इसकी तीव्रता
इतनी हो कि बेचैनी
तीव्र से तीव्रतर होती जाए।
आदमी को
वातानुकूलित आबोहवा में
रेगिस्तान का अहसास दिलाए।
काश !
अचानक
कोई सहृदय
पानी लेकर आ जाए ,
बड़े प्यार से पिलाए ,
जीवन की मरूभूमि में
नखलिस्तान के ख़्वाब दिखा जाए।
सच बड़ी शिद्दत की प्यास लगी है ,
शायद कोई साकी जीवन में आ जाए ,
इस बेरहम प्यास से निजात दिला जाए।
यह भी संभावना है कि प्यास को ही बढ़ा जाए।
प्यास को मिराज़ के हवाले कर छूमंतर हो जाए...
...आदमी जीवन की सार्थकता को अनबुझी प्यास की
वज़ह से उड़ती रेत के हवाले होकर दबा दबा सा रह जाए।
२५/०४/२०२५.
बेशक
तमाशा देखना
सदैव सुखदाई होता है
परन्तु कभी कभी
तमाशबीन को
तमाचा लग
जाता है
जब कोई
शिकार व्यक्ति
अपनी जगहंसाई से
खफा होकर
प्रतिक्रिया वश
धुनाई कर देता है।
ऐसे में
तमाशबीन
अपने आप में
एक तमाशा
बन जाता है ,
उस पर स्वत:
हालात का
तमाचा पड़ जाता है।
उसका सारा उत्साह
ठंडा पड़ जाता है।
२५/०४/२०२५.
इस दुनिया में
बहुत से लोग
श्रम करने से कतराते हैं ,
वे जीवन में
बिना संघर्ष किए
पिछड़ जाते हैं ,
फलत: क़दम क़दम पर
पछताते हैं ,
सुख सुविधा, सम्पन्नता से
रह जाते हैं वंचित !
बिना आलस्य त्यागे
कैसे सुख के लिए ,
भौतिक जीवन में उपलब्ध
विलासिता से जुड़े पदार्थ !
जीवन के मूलभूत साधन !
किए जा सकते हैं संचित?
इसीलिए
कर्मठता ज़रूरी है !
कर्मठ होने के लिए श्रम अपरिहार्य है ।
क्या यह जीवन सत्य तुम्हे स्वीकार्य है ?

श्रम करने में
कैसी शर्म ?
यह है जीवन का
मूलभूत धर्म !

आदमी
जो इससे कतराता है ,
वह जीवन पथ पर
सदैव थका हारा ,
हताश व निराश
नजर आता है।

श्रम के मायने क्या हैं ?
यह साधारण काम करना नहीं ,
बल्कि खुद को सही रखते हुए
सतत  कठोर  मेहनत करते रहना है।
यह जिजीविषा , सहानुभूति के बलबूते
जीवंतता और भविष्य को
वर्तमान को
अपनी मुठ्ठी में
बंद करने की कोशिश करना है।
सुख दुःख से निर्लेप रह कर
आगे ही आगे बढ़ना भी है।

श्रम के प्रति अगाध निष्ठा से
जीवन धारा को गति मिलती है !
इस सब की अंतिम परिणति
सद्गति के रूप में
परिलक्षित होती है !!

सही मायने में
श्रम ही जीवन का मर्म है।
यह ही अब युगीन धर्म है।
अतः श्रम करने में
कोई संकोच नहीं होना चाहिए।
इसे करने में नहीं होनी चाहिए
किसी भी किस्म की झिझक और शर्म।

सभी श्रम साधना को
अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं !
सहजता से खेल ही खेल में
अपने जीवन को
सुख समृद्धि और सम्पन्नता से
अलंकृत कर जाएं  !!
सभी संभावना को टटोलते हुए
श्रम के आभूषण से
न केवल स्वयं को
बल्कि  अपने आसपास को भी सजाएं !!
सजना संवरना एकदम प्राकृतिक  वृत्ति है।
यदि श्रम करते हुए
जीवन को सजा लिया जाए ,
जीवन को सार्थक बना लिया ‌जाए ,
तो इस जैसा अनुपम आभूषण
कोई दूसरा नहीं ।
जीव इसे अवश्य धारण करें।
जीवन को कृतार्थ  
हर हाल में
श्रम साधना के बलबूते
इसको धारण करें ,
अपने आंतरिक सौंदर्य को द्विगुणित करें,
ताकि मानवता आगे बढ़ती लगे।
यह जीवों को उनके लक्ष्य तक पहुंचा सके।
२४/०४/२०२५.
वर्ल्ड अर्थ डे के दिन
आतंकियों ने
पहलगाम में
पर्यटकों को
मौत की नींद सुला दिया ,
एक बार फिर से
शान्ति की नींद सोए
प्रशासन और व्यवस्था को जगा दिया।
देश दुनिया क्या करे ?
क्या वे इसे विधि का विधान मान कर
चुपचाप ज़ुल्म ओ सितम को सहें ,
या फिर इसका प्रतिकार करें ?
देश दुनिया में आतंक
अर्से से कर रहा है
जन साधारण और खासमखास को तंग।
क्यों न जेहादियों को
शरिया कानून के तहत ही सज़ा दी जाए ?
उनके आकाओं को भी
जिंदा जीते जी बहत्तर हूरों के पास भेजा जाए !
उनको भोग विलास करते करते
लाइव टेलीकास्ट के माध्यम से
दुनिया को प्रतिशोध का रंग दिखाया जाए !!
या फिर पड़ोसियों को उनकी ही भाषा में
संदेश दिया जाए।
एक हत्या के बदले सौ की हत्या से
नृशंसता को प्रदर्शित किया जाए।
कल अचानक अप्रत्याशित ही
विश्व अर्थ डे को
अंततः अनर्थ डे  के रूप में मनाया गया।
इस निर्दोषों पर हुए हमले ने
राष्ट्र को झकझोर दिया।
बहुत से लोगों को भीतर तक तोड़ दिया।
क्या राष्ट्र कायरता का परिचय दे ?
पहले की तरह चुप कर जाए !
या फिर अहिंसा छोड़ कर
हिंसावादियों को
उनकी जानी पहचानी भाषा में
उत्तर देने का मन बनाए ?
अर्जुन सम  बनकर
दृढ़ संकल्प कर
गांडीव को उठाए ?
इसे चेतना का अटूट अंग बनाए ?
ताकि विनम्रता और सहनशीलता को
कोई कायरता न कह पाए।
अब आप ही बता दीजिए कोई उपाय।
२३/०४/२०२५.
लोग
कितना भी
जीवन में
खुलेपन पर
चर्चा परिचर्चा
कर लें ,
उनके हृदय में
कहीं न कहीं
गहरे तक
संकीर्णता रहती है ,
जिससे
जीवन में
व्याप्त खुशबू
फलने फूलने फैलने की
बजाय मतवातर
बदबू में
बदलती रहती है
जो धीरे-धीरे
तड़प में बदल कर
भटकाती है।
आओ ,
हम सब परस्पर
मिलजुल कर रहें।
हम सब जीवन पर्यन्त
संकीर्णता से बचें ,
दिल और दिमाग से
खुलापन अपनाते हुए
समानता से जुड़ें ,
देश दुनिया और समाज में
सुख समृद्धि और शांति के
बलबूते सकारात्मक सोच से
सतत सहर्ष आगे  बढ़ें।
संघर्षरत रहकर
जीवन के सच को
अनूभूत करें,
सब नव्यता का !
भव्यता का !!
आह्वान करें !!
सृजन पथ चुनें,
कभी भी विनाशक न बनें।
हमेशा सत्य के आराधक बनें।
२३/०४/२०२५.
आओ मिल बैठ कर
अपने समस्त
मनभेद और मतभेद
दूर कर लें।
जीवन में
खुशियों को
भर लें।
वरना जड़ता हमें
लड़ाई की ओर
लेकर जाती रहेगी।
हमें मतवातर
कमज़ोर बनाती रहेगी।
फिर कैसे होगा सुधार ?
आओ सर्वप्रथम
हम जड़ता पर करें प्रहार
ताकि हम जागृत हो सकें ,
एक रहकर जीना सीख सकें।
हम जागरूक बनें ,
जड़ता और निष्क्रियता से लड़ें।
सब समय रहते अवरोध दूर करें।
सब निज की जड़ता से डरें
और समय रहते उसका नाश करें।
सब अपने भीतर
सतत सुधार कर
जड़ता पर प्रहार करें !
स्वयं को चेतना युक्त करें !!
२२/०४/२०२५.
लोग सेवानिवृति के
मौके पर
खुशियां मनाते हैं ,
वे पार्टियां देते हैं ,
महफ़िल सजाते हैं।
यह सब बेकार है।
आदमी इस मौके पर
कुछ सार्थक करने की बाबत सोचे।
व्यर्थ ही सोच सोच कर खुद को न नोचे।
अभी कुछ समय पहले
मुझे मिला है
एक दुखद समाचार कि
मेरा एक कॉलेज के दौर का मित्र
सेवानिवृत्ति के कुछेक दिन बाद
गंवा बैठा सेवानिवृत्त
होने के आघात से अपने प्राण।
सोचता हूँ कि
यह सच है
रिटायरमेंट
आदमी को देती है
पहले पहल शोक और धक्का !
काम न होने से
एकाएक निठल्ला होने से
अंतर्मन में मचने लगता है हल्ला गुल्ला !
आदमी रह जाता अकेला
और हक्का बक्का !
इसलिए गुज़ारिश है कि
व्यक्ति सेवानिवृत्ति से पहले ही
अपनी रूचियों पर काम करना शुरू कर दे
ताकि जीवन में कुछ सार्थक करने का जुनून बना रहे ।
आदमी स्वयं को व्यस्त रख सके।
वह अस्त व्यस्त सा न किसी को लगे।
न ही वह थका और चुका बुझा हुआ दिखाई दे।
लगभग मुझे सेवानिवृत्त हुए आठ महीने हो गए हैं ,
मैं अपने को पढ़ने में व्यस्त रखता हूं ,
मन करे तो खुद को भी कला माध्यम से अभिव्यक्त करता हूँ।
मेरे पिता ने भी रिटायरमेंट के बाद
प्राकृतिक चिकित्सा का ज्ञानार्जन करने में खुद को व्यस्त किया था।
उन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांतों को खुद पर लागू किया था
और एक भरपूर जीवन को जीया है।
अतः आप सब से अनुरोध है ,
आप बेशक सक्रिय हैं,
परंतु आप समय रहते सेवानिवृत्ति की बाबत
किसी योजना पर काम कीजिए
ताकि सेवानिवृत्ति का मौका यादगार बने।
शरीर चिंता से न घुले बल्कि जीवन में संतुष्टि मिले।
सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन समाजोपयोगी और सार्थक बने।
२२/०४/२०२५.
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