इस दुनिया में
बहुत से लोग
श्रम करने से कतराते हैं ,
वे जीवन में
बिना संघर्ष किए
पिछड़ जाते हैं ,
फलत: क़दम क़दम पर
पछताते हैं ,
सुख सुविधा, सम्पन्नता से
रह जाते हैं वंचित !
बिना आलस्य त्यागे
कैसे सुख के लिए ,
भौतिक जीवन में उपलब्ध
विलासिता से जुड़े पदार्थ !
जीवन के मूलभूत साधन !
किए जा सकते हैं संचित?
इसीलिए
कर्मठता ज़रूरी है !
कर्मठ होने के लिए श्रम अपरिहार्य है ।
क्या यह जीवन सत्य तुम्हे स्वीकार्य है ?
श्रम करने में
कैसी शर्म ?
यह है जीवन का
मूलभूत धर्म !
आदमी
जो इससे कतराता है ,
वह जीवन पथ पर
सदैव थका हारा ,
हताश व निराश
नजर आता है।
श्रम के मायने क्या हैं ?
यह साधारण काम करना नहीं ,
बल्कि खुद को सही रखते हुए
सतत कठोर मेहनत करते रहना है।
यह जिजीविषा , सहानुभूति के बलबूते
जीवंतता और भविष्य को
वर्तमान को
अपनी मुठ्ठी में
बंद करने की कोशिश करना है।
सुख दुःख से निर्लेप रह कर
आगे ही आगे बढ़ना भी है।
श्रम के प्रति अगाध निष्ठा से
जीवन धारा को गति मिलती है !
इस सब की अंतिम परिणति
सद्गति के रूप में
परिलक्षित होती है !!
सही मायने में
श्रम ही जीवन का मर्म है।
यह ही अब युगीन धर्म है।
अतः श्रम करने में
कोई संकोच नहीं होना चाहिए।
इसे करने में नहीं होनी चाहिए
किसी भी किस्म की झिझक और शर्म।
सभी श्रम साधना को
अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं !
सहजता से खेल ही खेल में
अपने जीवन को
सुख समृद्धि और सम्पन्नता से
अलंकृत कर जाएं !!
सभी संभावना को टटोलते हुए
श्रम के आभूषण से
न केवल स्वयं को
बल्कि अपने आसपास को भी सजाएं !!
सजना संवरना एकदम प्राकृतिक वृत्ति है।
यदि श्रम करते हुए
जीवन को सजा लिया जाए ,
जीवन को सार्थक बना लिया जाए ,
तो इस जैसा अनुपम आभूषण
कोई दूसरा नहीं ।
जीव इसे अवश्य धारण करें।
जीवन को कृतार्थ
हर हाल में
श्रम साधना के बलबूते
इसको धारण करें ,
अपने आंतरिक सौंदर्य को द्विगुणित करें,
ताकि मानवता आगे बढ़ती लगे।
यह जीवों को उनके लक्ष्य तक पहुंचा सके।
२४/०४/२०२५.