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प्रेम उधारी को पसन्द नहीं करता।
कितना अच्छा हो
यदि प्रेम कभी-कभी
उधारी पर मिल जाए,
किसी का काम चल जाए।
आदमी क्या औरत और अन्य की
जरूरत पूरी हो जाए।
वासना उपासना में बदल पाए।

आजकल
दुनिया के बाजार में
प्रेम में उधारी बंद है ,
इसलिए
इसे पाने के लिए
लोग व्यग्र हैं,
हो रहे तंग हैं।
याद रखें
प्रेम की उधारी से
कभी सुख नहीं मिलता।
इससे केवल नैराश्य और आत्महत्या का रास्ता साफ दिखा करता ,
परन्तु इससे बंधा बंदा बंदी बनकर सदैव भटका है करता।
आप भी इससे बचें,
ताकि जीवन धारा को वर सकें।
१६/०४/२०२५.
आजकल
देश दुनिया में
शादी करने से
लोग कतरा रहे हैं ,
वे भगोड़े बन कर
जीवन बिताना चाह रहे हैं।
फिर भी
यदि दाल न गले
तो वे शादी से पहले
लिव इन को अपनाना चाह रहे हैं।
अभी अभी
सच को उजागर करता
एक कार्टून देखा कि
पति यदि काल कवलित हो जाए
तो पत्नी ,
सप्ताह बाद , महीने के बाद ,साल भर बाद भी
पति को याद करती रहती है।
जबकि पति
पत्नी के मरने के बाद
सप्ताह भर याद करता है ,
महीने तक जीवनसाथी तलाश लेता है
और साल बाद
पहली पत्नी को भूल भाल कर
अपनी ही दुनिया में खो जाता है।
यह व्यंग्य चित्र देखकर
मुझे शाहजहां के आखिरी दिनों का ख्याल आया,
जो ताजमहल को देखकर
अपनी बेगम मुमताज को याद करते रहे होंगे।
शाहजहां के लिए
ये दुर्दिन वाले दिन रहे होंगे,
मतवातर निहारने वाले दिन रहे होंगे।
आजकल
लोग जल्दी
वफादारियों और सरदारियों को
भूल जाते हैं,
तभी वे कपड़े बदलने जैसी
मानसिकता के साथ जी पाते हैं ,
वफादारियों और कसमें वायदे दरकिनार कर जाते हैं।
आज स्त्री और पुरुष
पिक, यूज एंड थ्रो कल्चर में
खोते जा रहे हैं ,
अपने खोटेपन को
लग्जरी सॉप की खुशबू में
धोते जा रहे हैं
ताकि किसी को
कुटिलता की भनक न लगे ,
फास्ट लाइफ और लाइफ स्टाइल की
चमक दमक बनी रहे।
बस जीवन की गाड़ी किसी तरह आगे बढ़ती रहे।
१५/०४/२०२५.
आज का आदमी
अपने साथ
डर का पिटारा
लेकर चलता है।
गफलतों ने
असंख्य डर
आदमी के मन की
उर्वर जमीन पर बो दिए हैं ,
जिनकी फसल
वह समय समय पर
लेता रहा है।
सवाल है कि
आज आदमी का
सबसे बड़ा डर क्या है ?
यह डर
असमय
किसी के द्वारा
वजूद पर
एक सवालिया निशान
लगाना है ,
बाकी डर .....
मौत ,  मुफलिसी ,तंगी तुरशी ,
मान सम्मान का अभाव तो
महज़ बहाने हैं,,,
जिनके साथ जीना
आजकल ज़रूरी है ,
यह बन गई मज़बूरी है,
जिसने निर्मित कर दी
हम सब के बीच दूरी है।
यही सबसे बड़ा डर होना चाहिए।
इस बाबत सभी को कुछ करना चाहिए।
१४/०४/२०२५.
बहुधा
जिनसे कभी
मिलने की संभावना तक
नहीं होती
वे अचानक
जीवन में आकर
आकर्षण का केंद्र
बनकर
जीवन को
हर्षोल्लास से
भर जाते हैं।
इसलिए
हमें जीवन धारा में
आ गए उतार चढ़ाव से
कभी भी व्यथित होने की
जरूरत नहीं है।
हमारे इर्द गिर्द
बहुत कुछ घटित हो रहा है।
यह संयोग ही है कि
हम इस घटनाक्रम की बाबत
चिंतन मनन कर पा रहे हैं।
संयोग वश
हम मिलते और बिछुड़ते हैं ,
चाहकर भी हम
अपनी मनमर्जी नहीं कर पा रहे हैं।
यह सब क्या है ?
क्या हम सब का
मनुष्य होना
और
कुछ का पशु होना
संयोग नहीं ?
या फिर
कर्मों का खेल है !
संयोग वश ही
हम परस्पर संवाद रचा पाते हैं ,
एक दूसरे को समझ
और समझा पाते हैं ,
फलत: समझौता कर जाते हैं।
आपदा प्रबंधन कर
अनमोल जीवन की रक्षा करने में
सफल हो जाते हैं।
सब जगह संयोग वश
जीवन में  
अदृश्य रूप से
घटनाक्रम घट रहा है,
जिससे सतत् कथाएं बन और मिट रही हैं ।
यही जीवन को दर्शनीय बनाता है।
१४/०४/२०२५.
ਅੱਜ ਅਚਾਨਕ ਕਿਸੇ ਦਾ ਫੋਨ ਆਇਆ ,
ਫੋਨ ਤੇ ਸੁਣਾਈ ਦਿੱਤਾ,
ਵਿਸਾਖੀ ਦੀ ਬਹੁਤ ਬਹੁਤ ਵਧਾਈ ।
ਮਨ ਵਿੱਚ ਖਿਆਲ ਆਇਆ,
ਮੈਂ ਕਿਵੇਂ ਵਿਸਾਖੀ ਨੂੰ ਭੁੱਲ ਗਿਆ ?
ਆਪਣੇ ਕੰਮ ਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਰੁੱਝਿਆ ਰਿਹਾ।
ਪਿੰਡ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ,
ਤਾਂ ਵਿਸਾਖੀ ਦੇ ਮੇਲੇ ਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ ਇੰਤਜ਼ਾਰ।
ਹੁਣ ਸ਼ਹਿਰ ਦੀ ਨਠ ਭੱਜ ਵਿੱਚ
ਵਿਸਰ ਜਾਂਦਾ ,
ਤੀਜ  ਤਿਉਹਾਰ ।

ਅੱਜ ਪਿੰਡ ਦੇ ਨੇੜੇ
ਸਾਧ ਦੀ ਖੱਡ ਵਿੱਚ
ਮਨਾਇਆ ਗਿਆ ਹੋਵੇਗਾ  
ਵਿਸਾਖੀ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ।
ਉੱਥੇ ਮੇਲਾ ਵੀ ਲੱਗਿਆ ਹੋਵੇਗਾ।
ਮੈਂ ਝਮੇਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਫਸਿਆ ਰਿਹਾ ,
ਨਹਾਉਣ ਤੋਂ ਵੀ ਵਾਂਝਾ ਰਿਹਾ।
ਲੋਕ ਇਸ ਦਿਨ
ਕਰਦੇ ਹਨ  
ਨਦੀਆਂ , ਤਲਾਬਾਂ , ਸਰੋਵਰਾਂ ਵਿੱਚ ਇਸ਼ਨਾਨ।
    
ਅੱਜ ਅਚਾਨਕ ਕਿਸੇ ਦਾ ਫੋਨ ਆਇਆ,
ਫੋਨ ਤੇ ਸੁਣਾਈ ਦਿੱਤਾ ,
ਵਿਸਾਖੀ ਦੀ ਬਹੁਤ ਬਹੁਤ ਵਧਾਈ।
ਫਿਰ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰ ਪਿਆਰੇ ਨਾਲ
ਇਧਰ ਉਧਰ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਕੀਤੀਆਂ।
ਇਸ ਮੌਕੇ
ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੇ ਉੱਤੇ ਸ਼ਰਮ  ਵੀ ਆਈ।
ਕਿਉਂ ਮੈਂ ਵਿਸਰ ਬੈਠਿਆ
ਵਿਸਾਖੀ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ?
.....
ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ
ਆਪਣੇ ਵਿਰਾਸਤੀ ਖੇਤ ਖਲਿਆਣ ,
ਜਿੱਥੇ ਖੇਤਾਂ ਵਿੱਚ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਹਨ ਕਿਸਾਨ।
ਕਿਵੇਂ ਹੋਵੇਗਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਲਿਆਣ ?

13/04/2025.
आजकल
असुरक्षा के दौर में ,
आगे बढ़ने की होड़ में ,
जीवन में
सुरक्षा से जुड़े
मानकों का
रखा जाना चाहिए  ध्यान ,
ताकि सब सुरक्षित रहें !
कोई भी
असमय मौत का
न बने
कभी शिकार !
सुरक्षित जीवन
सभी का है अधिकार।
पशु  ,पंछी , वनस्पति और मनुष्य ,
सभी के मध्य
समन्वय और तालमेल बने।
इसकी खातिर
मनुष्यों को चाहिए
कि आज से
सब प्रयास करें।
सभी के
इर्द गिर्द ,भीतर और बाहर  
सुरक्षा का बोध जगे ,
इस बाबत सब जागरूक बनें।
सभी सुरक्षित जीवनचर्या को
सतत् अपनाने की ओर बढ़ें ,
ताकि
सुरक्षा की छतरी
सभी पर
तानी जा सके ,
असमय काल कवलित होने से
जीवों को
बचाया जा सके।

आज
सुरक्षित जीवन के हितार्थ
सभी को
न केवल जागरूक होना होगा
बल्कि
साथ साथ
जीवनपथ को
निष्कंटक बनाना होगा ,
तभी यह जीवन और धरा
बची रह पाएगी।
वरना धरा पर
विनाश लीला होती रहेगी ,
प्रकृति भी व्यथित होती रहेगी।
१३/०४/२०२५.
यह जीवन पथ
एक रंगमंच है , जहाँ
जहान तक को
किस्सा कहानी और कहानी का
विषय बनाकर
संवेदना को संप्रेषित करने के
मंतव्य से मन को हल्का करने में सक्षम खेल
नित्य प्रति दिन
हर पल ,
पलपल , हरेक क्षण
खेला जाता है ,
जहाँ पर
खेला हो जाता है !
जीव ठगा सा हतप्रभ
रह जाता है।
जीवन में
बेशक
कभी कभी
अच्छा होने का
नाटक करो
मगर कभी अच्छा होने का
प्रयास भी तो  किया करो
ताकि
दुनियावी झमेलों से
दूर रहकर,
जीवन के मंच पर
असमय
ठोकरें खाने से
बच सकें साधक ।
उनके जीवन में
किसी को
नीचा दिखाने के निमित्त
की गई हँसी ठिठोली
और हास परिहास
बनें न कभी भी बाधक।
सब जीव बन सकें
परम शक्ति के आराधक।
चेतना
समस्त सृष्टि में व्याप्त है ,
इसे जानने के प्रयासों के दौरान
भले ही
जीवन में  
कभी लगने लगे कि
अब सब समाप्ति के कगार पर है ,
मन में निराशा और हताशा भरती लगे ,
पर भूलो नहीं कि
जीवन में
कभी भी
कुछ भी समाप्त होता नहीं है,
बस पदार्थ अपनी अवस्था बदलता है।
कण कण में
जीवन नियंता और प्राणहंता
यहां वहां सब जगह
व्याप्त हैं।
फिर भी सोचो जरा कि
यह जीवन की अनुभूति  
भला हम से कभी
दूर रह पाएगी ?
बल्कि
यह जीवन के साथ भी
और बाद भी
चेतना बनकर
साथ रहेगी ,
जन्म जन्मांतर तक
हम सब को
कर्म चक्र से बांधें रखकर
समृद्ध करती रहेगी !
हमारा होना भी एक नाटक भर है ,
अतः इसे तन और मन से खेलो।
नाटक देखो ही नहीं , इसे जीयो भी ।
यहाँ सब कुशल अभिनेता हैं
और परम हम सब का निर्देशक!
और साथ ही दर्शक भी !
अपनी भूमिका को
निभाओ  दिल से!
जीवन को जीयो जी भर कर !
बेशक कभी कभी
नाटक भी करना पड़े
तो डरो कतई नहीं।
वर्तमान नाटक ही तो है !
अतीत यानिकि व्यतीत भी नाटक ही था!
आने वाले क्षण भी
नाटकीयता से भरपूर रहने वाले हैं !
भूल कर अपने समस्त डर !
निरन्तर आगे बढ़ना ही अब श्रेयस्कर है।
समय समर्थ है!
उसके सामने
कभी न कभी
गुप्त भेद भी प्रकट हो जाते हैं !!
अतः जीवन को भरपूर
नाटकीयता से जी लेना चाहिए।
कोई संकोच या बहानेबाजी से बचना चाहिए।
१३/०४/२०२५.
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