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जीवन में कभी कभी
चल ही जाता है तीर तुक्का !
आदमी हो जाता है अचंभित और हक्का बक्का !!
ऐसा होता है प्रतीत कि
आदमी ने जीवन में मैदान मार लिया हो।
शत्रु को बस
खेल खेल में कर दिया हो चित्त।
पर पता नहीं था
जीतने से पहले
कब होना पड़ जाएगा चारों खाने चित्त ?
१२/०४/२०२५.
ज़िन्दगी में
दुराव छिपाव का
सिलसिला
बहुत पुराना है ,
यदि ये न हो तो
ज़िन्दगी
नीरस हो जाती है ,
सरसता
गायब हो जाती है।

ज़िन्दगी में
भूल कर भी न बनिए
कभी खुली किताब ,
यह खुलापन
कभी कभी किसी को
बेशक
अच्छा लगे ,
पर पीठ पीछे
ख़ूब भद्द पीटे।
अतः दुराव छिपाव
अत्यंत ज़रूरी है ,
इसे
जानने के
चक्कर में पड़कर
जीवन यात्रा में
रोमांच बना रहता है ,
आदमी  क्या औरत तक
जीवन में
परस्पर
एक दूसरे से
नोक झोंक
करते रहते हैं।
वे अक्सर
दुराव छिपाव रख कर
रोमांचित होते रहते हैं।
यदि देव योग से
कभी भेद खुल जाए
तो बहाने बनाने पड़ जाते हैं।
१२/०४/२०२५..
अभी अभी
पढ़ा है कि
देश दुनिया में
फेक न्यूज़ मेकर्स की
भरमार है।
जो अराजकता को
बढ़ावा देते हैं  
और
कर देते हैं
जन साधारण को
भ्रामक जानकारी से
बीमार,
बात बात पर
भड़कने वाले !
लड़ने झगड़ने पर
उतारू!

ऐसी फेक न्यूज़ से
बनते हैं फेक व्यूज़ !
त्रासदी है कि
ग़लत धारणा
बेशक
बाज़ार में
अधिक समय तक
नहीं टिकती ,
यह चेतना की
खिड़की को
कर देती हैं बंद!
आदमी
अपने को
मानता रहता है
चुस्त चालाक व अक्लमंद।
वह इसके सच से
कभी रूबरू नहीं हो पाता,
वह झूठ को ही है
सच समझता रहता।
ऐसे लोगों से कैसे बचा जाए ?
सोचिए समझिए ज़रा
फेक न्यूज को कैसे नकारा जाए ?
ताकि अपने को सच से जोड़े रखा जा सके।
किसी भी किस्म की
भ्रम दुविधा से बचा जा सके।
१२/०४/२०२५.
हार मिलने पर
उदास होना स्वाभाविक है।
यह कभी कभी
जख्मों को
हरा कर देती है।
यह मन में
पीड़ा भी पैदा करती है ,
जिससे बेचैनी देर तक बनी रहती है।
मन के कैनवास पर
अपनी हार को
किस रंग में
अभिव्यक्त करूं ?
इस बाबत जब भी सोचता हूँ ,
ठिठक कर रह जाता हूँ।
क्या हार का रंग
बदरंग होता है ,
जो कभी मातमी माहौल का
अहसास कराता है ,
तो कभी मिट्टी रंगी तितलियों में
बदल जाता है ,
भीतर मंडराता रहता है।
कभी कभी
हार को उपहार देने का मन करता है,
अपनी हरेक हार के बाद
आत्म साक्षात्कार की खातिर
भीतर उतरता हूँ ,
अपने परों की मजबूती को
तोलता हूँ
ताकि फिर से
जीवन संघर्ष कर सकूं
हार के बदरंग के बाद
तितली के रंगों को
मन के कैनवास पर उतार सकूँ !
हार ,जीत , हास परिहास , आम और ख़ास का
कोलाज निर्मित कर सकूँ ,
उस पर एक कल्पना का संसार उतार सकूँ।
क्या सभी के पास
हार का रंग बदरंग होता है या फिर अलग अलग !
जो करता रहा है  आदमी की कल्पना को वास्तविकता से अलग थलग !!
१२/०४/२०२५.
अभी अभी
मोबाइल पर
मैसेज आया कि
आप की प्लान की
वैधता आज समाप्त होनेवाली है।
कृपया रिचार्ज करें।
इसे पढ़ा और सोचा मैंने
कि अवैध की वैधता क्या ?
और करवट बदल कर
मैं सो गया।
अपनी सोच में खो गया !
इस मोबाइल की लत ने
सारी प्राइवेसी छीन ली है।
मेरे डाटा की जानकारी
कहां कहां नहीं पड़ी है ?
कब क्या करता है?
किस किस से चैटिंग करता है ?
किसी ज्योतिषी को
बेशक पता न हो ,
पर सर्विस प्रोवाइडर
सब कुछ जानता है।
मेरा अब कुछ अब खुला है।
अब जो कुछ देखा मैंने,
उसे आधार बना कर
पाठ्य सामग्री मिलती है।
मेरी मर्जी भी अब
घर बाहर कभी कभी चलती है।
आजकल क्या दुनिया
इसी ढर्रे पर आगे बढ़ती है ?
सारी दुनिया ठगी गई लगती है !
निजता ढूंढे नहीं मिलती है !!
११/०४/२०२५.
कितना अच्छा हो
इस उतार चढ़ाव भरे दौर में
हम सब आगे बढ़ते रहें,
हमारे मन प्रदूषण से दूर रहें,
हम परस्पर सहयोग और सहानुभूति से रहें।

जब कभी भी
आदमी के भीतर
थोड़ा सा लोभ, काम,लालच,ईर्ष्या
घर करता है ,
वह जीवन पथ पर
रूकावटें खड़ी कर लेता है।
आदमी और आदमी के बीच
एक दीवार खड़ी हो जाती है ,
वह सब कुछ को
संदेह और शक के
घेरे में लेकर देखने लगता है।
उसके भीतर कुढ़न बढ़ जाती है।
कल तक जो रिश्ते
प्यार और सुरक्षा देते लगते थे
वे घुटन बढ़ाते होते हैं प्रतीत।
सब कुछ समाप्त होता हुआ लगता है ,
जिससे भीतर ही भीतर
डर भरता चला जाता है।
संबंध दरकने लगते हैं।

आओ हम सब अपना जीवन
ईमानदारी और पारदर्शिता से व्यतीत करें ,
ताकि संबंध बचे रहें,
सब निर्द्वंद रहकर
जीवन को गरिमा  
और सुखपूर्वक जीएं।
दीर्घायु होकर सात्विकता के साथ
जीवन यात्रा
निर्विघ्न सम्पन्न करें।
हम सब
संबंधों में जीवन की
खुशबू की अनुभूति कर सकें।
११/०४/२०२५.
मैं जिस कमरे में
बैठा हूँ,
वहाँ प्लास्टिक से बना
बहुत सा सामान पड़ा है ।

इस का प्रयोग
किसी हद तक
कम किया जा सकता है ,
पर इसे बिल्कुल
बंद नहीं किया जा सकता।
प्लास्टिक का बदल हमें ढूंढना होगा ,
वरना वातावरण तबाही की ओर
बढ़ता नज़र आएगा ,
आदमी परेशानी और संकट से
घिरा देखा जाएगा।
हम इसका प्रयोग कम से कम करें।
इसके विकल्पों पर काम करना
समय रहते शुरू करें।
सब से पहले
जूट और पटसन के बैग्स खरीदें
और अपना खरीदा सामान
उसमें रखें।
कम से कम
ये बैग्स
कई बार प्रयुक्त हो
सकते हैं,
हम प्लास्टिक के खिलाफ़
बिगुल बजाने का आगाज कर
आगे बढ़ सकते हैं ,
अपनी इस छोटी सी कमज़ोरी पर
जीत प्राप्त कर सकते हैं।

प्लास्टिक के लिफाफों और दूसरी सामग्री से
सड़क निर्मित करने की शुरुआत कर सकते हैं।
इस सड़क पर
आगे बढ़ कर
प्लास्टिक रहित जीवन की बाबत सोच सकते हैं।
अच्छा रहे
हमारे उद्योग प्लास्टिक निर्मित
वस्तुओं का उत्पादन कम से कम करें।
इन की जगह अन्य धातुओं से निर्मित
पदार्थों का प्रचलन बढ़ाएं
ताकि हम प्लास्टिक प्रदूषण से बचा पाएं।
इसके साथ साथ ही
हम जरूरत भर
पदार्थों का उत्पादन करें।
आवश्यकता से अधिक औद्योगिक उत्पादन भी
प्रदूषण बढ़ाता है ,
इस बाबत भौतिकवादी समाज
क्या कभी रोक लगा पाता है ?
मुझे याद है
पहले घर में दूध
कांच की बॉटल्स में आता था
और अब पॉलिथीन निर्मित
पैकेट्स में,
यही नहीं लस्सी,दही ,और बहुत सी
खाद्य पदार्थ भी
प्लास्टिक और पॉलिथीन निर्मित
पैकेट्स में पैक होकर आते हैं ,
जो शहर और गांवों को
प्रदूषित करते नजर आते हैं ।
लोग भी लापरवाही से
इन्हें इधर उधर फेंकते दिख पड़ते हैं।
क्यों न इन पर भी कानून का डंडा पड़े ?
कम से कम चालान तो प्रदूषण फैलाने वाले का कटे।
आदमी के भीतर तक
अनुशासन होने की आदत बने
ताकि वह प्रदूषित जीवनचर्या के पाप का भागी न बने।
वह दाग़ी न लगे।
मैं जिस कमरे में बैठा हूँ ,
वहाँ प्लास्टिक से निर्मित
बहुत सा सामान पड़ा है,
जिसे टाला जा सकता था।
क्यों न हम लकड़ीऔर लोहे आदि से बने
सामान का प्रयोग बढ़ाए,
ताकि कुछ हद तक
अपने शहरों, कस्बों,गांवों आदि को
प्लास्टिक के प्रदूषण से मुक्त रख सकें !
समय धारा के संग आगे बढ़ कर सार्थकता वर सकें !!
१०/०४/२०२५.
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