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दुनिया
निन्यानवे के फेर में
पड़ कर
आगे बढ़ रही है ,
खूब तरक्की
कर रही है!
जबकि
आदमी
इसी निन्यानवे के
फेर में
फंस कर
अपना सुख और सुकून
गंवा बैठा है ,
वह यह क्या
कर गया है ?
किस सुख की खातिर
शातिर बन गया है ?
जीवन का सच है कि
सुख
धन की तरह
किसी एक को होकर
नहीं रहा,
वह यायावर बना  
सतत्
यात्रा कर रहा।
आज
वह आपके पास
तो हो सकता है कि
कल
वह किसी धुर विरोधी के
पास
अपनी उपस्थिति का
करा रहा
अहसास हो।
वह उड़ा रहा
निन्यानवे के फेर का
उपहास हो।
जीवन में
निन्यानवे के फेर में रहा ,
कभी सुख का
एक पल कभी
जोड़ नहीं सका ,
बेशक सूम बना रहा ,
परिवार की आंख में
किरकिरी बना रहा !
सबको बुरा लगता रहा !
यह दर्द चुपचाप सहता रहा !!
१०/०४/२०२५.
हेट करते करते
डेटिंग
शुरू हो जाए,
इसकी मांगिए
दुआएं !

आज ज़माना
अपना दस्तूर भूला है ,
यहाँ अब सारे रीति रिवाज
उल्टा दिए गए हैं ,
शादी से पहले जो होते थे शेर कभी ,
आज मेमने बना दिए गए हैं !

अभी अभी
रद्दी में फेंक दिए
गए अख़बार में से
पढ़ी है एक ख़बर,
" नौ साल पहले हुई थी लव मैरिज ;
पति लन्दन गया तो....ने नया प्रेमी बनाया ,
लौटने पर हत्या कर पन्द्रह टुकड़े किए "
सोच रहा हूँ
आजकल ऐसा क्या हो गया है ?
लव मैरिज शादी के बाद
बन जाती है
जंग का मैदान !
यह संबंधों को ढोती हुई
जाती है हाँफ !
ज़िन्दगी होती जाती फ्लॉप !
यह एक मिस कैरेज ही तो है ,
जिसमें खुशियों का शिशु
असमय मार दिया जाता है !
वासना के कारण
पति परमेश्वर को
परमेश्वर से मुलाकात के लिए
षडयंत्र कर
भेज दिया जाता है !
ज़मीर और किरदार तक
सस्ते में बेच दिया जाता है !
आप ही बताइए
क्या आप को ऐसा समाज चाहिए ?
जहां वासना जी का जंजाल बन गई है ,
पति-पत्नी ,
दोनों के अहम् के टकराव की
वज़ह से ज़िंदगी नरक बन गई है।
आदमी के चेहरे से
मुस्कान छीनती चली गई है।
जीवन चक्र से
सौरभ और सौंदर्य हो गया है लुप्त !
संवेदना और सहानुभूति भी हैं अब लुप्त !!
किसी हद तक सभी जबरन सुला दिए गए !
संबंध , रिश्ते नाते तक भुला दिए गए !!
०९/०४/२०२५.
समझो !
मान लो कि
आप के  मोबाइल रीचार्ज के खाते में
इंटरनेट कनेक्टिविटी का पैक
हो जाए समाप्त
अचानक।
आप इस स्थिति में भी
नहीं कि झटपट से
डेटा पैक ले सकें ,
आप डेटा लोन भी लेना नहीं चाहते।
लगता है
ऐसे में
खेला हो गया ,
पैक अप हो गया।
सुख सुकून
कहीं खो गया।
अगर आदमी ठान ले
अब और भुलावे में नहीं रहना है,
इस सब झमेले से पिंड छुड़ाना है,
अचानक चमत्कार हो जाता है,
आदमी इंटरनेट कनेक्टिविटी के
जाल से निकल
क्षण भर के लिए
सुख पा जाता है।
परंतु यह क्या ?
आदमी
फिर से
इंटरनेट पैक लेने की
जुगत लड़ाता है।
वह दोबारा से कैदी बन जाता है,
बगैर हथकड़ियों के,
एक खुली कैद का सताया हुआ।
भीतर तक
नेट कनेक्टिविटी के
नशे का शिकार!
नेट के मायने भी
जाल होते हैं,
इस जाल में फंसे
लोग वीडियो देख देख कर ,
वीडियो बना बना कर,
आजकल बहुत खुश होते हैं ,
देखें, हम लाइक्स देख कर
कितने पगला जाते हैं !
आधुनिक जीवन के
मकड़जाल में फंसे रह जाते हैं!
अब छुटकारा मुश्किल है ,
अक्ल पर पर्दा पड़ चुका है।
आदमी भीतर तक थक चुका है।
०८/०४/२०२५.
कुछ हासिल न होने की सूरत में
आदमी की सूरत
बिगड़ जाती है ,
तन मन के भीतर
तड़प होने लगती है,
जो न केवल बेचैनी को बढ़ाती है ,
बल्कि भीतर तक
होने लगता है
अशांत,
जैसे शांत झील में
किसी ने
अचानक
कोई कंकर
भावावेश में आकर
दिया हो फैंक...!
यह सब उदासी के
बढ़ने का बनता है सबब ,
स्वतः प्रतिक्रिया वश
आदमी
उदासीन होता जाता है ,
वह जीवन में
आनंद लेने और देने से
करने लगता है गुरेज़ ,
ऐसा
अक्सर होने पर
वह थकान को
किया  करता है महसूस।
उसके भीतर
असंतुष्टि घर कर जाती है ,
यह अवस्था ही
तड़प बनकर
वजूद के आगे
एक सवाल खड़ा करती है,
उसे कटघरे में खड़ा कर
उद्वेलित किया करती है।

जिजीविषा से युक्त
आदमी  और उसकी मनोवृत्ति
हमेशा इस अज़ाब से
मुक्त
होना चाहते हैं।
उसे जीवन भर
निष्क्रिय रह कर तड़पना
और मतवातर
मरणासन्न होते चले जाने का दंश
झकझोरता है।
उसे कभी भी
तड़प तड़प कर
जीना नहीं मंजूर !
अतः
वह इस तड़पने की
जकड़न से
हर सूरत में
बचना चाहता है ,
वह सार्थक सोच से जुड़कर
सकारात्मक दिशा में
बढ़ना चाहता है।
वह अपनी संभावना को
टटोलना चाहता है।
वह अपनी सीरत को
सतत संघर्ष युक्त कर
बदलना चाहता है ,
ताकि वह जीवन पथ पर
निर्विघ्न बढ़ सके !
और एक दिन
वह स्वयं को पढ़ सके !
और वह भली भांति जान सके कि
आखिर  वह
जीवन धारा से
क्या अपेक्षा करता है ?
कौन है ,
जो उसे उपेक्षित
रखना चाहता है ?
और जो उसकी तड़प की
वज़ह बना है।
वह बस संघर्ष करना चाहता है ,
अपने भीतर
जिजीविषा की
उपस्थिति
और इसकी अनुभूति से  
उत्पन्न संवेदना को
जानना भर चाहता है।
वह तड़प, तड़प कर
अब जिन्दा नहीं रहना चाहता ,
वह जीवन यात्रा में
गंतव्य तक
यथाशीघ्र
पहुंचने का आकांक्षी है बस!
इससे पहले कि...
यह तड़प सर्वस्व कर ले हड़प।
वह दृढ़ निश्चय करके
अपने हालातों का
मूल्यांकन कर जीवन के
उज्ज्वल पक्षों पर
दृष्टिपात कर
अपना स्वतंत्र दृष्टिकोण
विकसित कर जीना चाहता है।
०७/०४/२०२५.
बहुत बार उज्ज्वल भविष्य के
बारे में सोचने और बताने से पहले ही
चाय के प्याले में
तूफ़ान आ गया है ,
सारे पूर्वानुमान
संभावनाओं के नव चयनित जादूगर के
कयास लगभग असफल रहने से
बाज़ार नीचे की तरफ़
बैठ गया है ,
निवेशक को
अचानक धक्का लगा है ,
वह सहम गया है !
कहाँ तो अच्छे दिन आने वाले थे !!
लोग स्वप्न नगरी की ओर उड़ान भरने को तैयार थे !!
अब लोग धरना प्रदर्शन पर उतारू हैं।
क्या आर्थिकता को बीमार करने वाले दिन सब पर भारू हैं ?
इससे पहले कि
कुछ बुरा घटे ,
हम अराजकता की
तरफ़ बढ़ने से
स्वयं को रोक लें ,
ताकि सब
सुख समृद्धि और संपन्नता से
खुद को जोड़ सकें।
०७/०४/२०२५.
सब एक दौड़ में
ले रहे हैं हिस्सा।
कौन किस से आगे जा पाए ?
इसका ढूंढें कैसे उपाय ?
इसकी बाबत सोच सोच कर
बहुत से लोग
भुला बैठे अपना सुख चैन।
चिंता और तनाव से
चिता की राह पर
असमय चल पड़े हैं,
क्या वे स्वयं को नहीं छल रहे हैं ?
यही बनती है अक्सर आदमी की हार की वज़ह।
ढूंढे से भी नहीं मिल पाती इस हारने के दंश की दवा।
ऊपर से दिन रात चलने वाली
एक दूसरे से आगे निकलने , हराने , विजेता कहलाने की होड़ ,
आदमी को सतत् बीमार कर रही है।
आधी से ज्यादा लोगों की आर्थिकता पर
यह व्यर्थ की दौड़ धूप और भागम भाग
चोट कर रही है।
इसकी मरहम भी समय पर नहीं मिल रही है।
यह सारी गतिविधि
आदमी को बेदम करती जा रही है।
दम बचा रहा तो ही हैं हम !
बस ! इस छोटी सी बात को समझ लें हम !
तब ही सब अस्तित्व की लड़ाई जीत पाएंगे हम !
वरना निरंतर हारने की मनोदशा में जाकर हम !
कब तक अपने को सुरक्षित रख पाएंगे हम ?
फिर तो जीवन में
बढ़ता ही जाएगा
कहीं न पहुँचने की टीस से उत्पन्न गम।
इस समस्या की बाबत
ठंडे दिल से सोचो ।
पागलपन की दौड़ से
समय रहते  ख़ुद को बाहर निकालो।
ख़ुद को  
अनियंत्रित हो जाने से रोको।
०७/०४/२०२५.
यह सहानुभूति ही है
जिसने मानवीय संवेदना को
जीवंतता भरपूर रखा है,
रिश्तों को पाक साफ़ रखा है।
वरना आदमी
कभी कभी
वासना का कीड़ा बनकर
लोक लाज त्याग देता है ,
बेवफ़ाई के झूले में
झूलने और झूमने लगता है।

प्रेम विवाह के बावजूद
आजकल बहुधा
पति पत्नी के बीच
तीसरा आदमी निजता को
खंडित कर देता है ,
फलस्वरूप
तलाक़ हलाक़
करने का खेल
चुपके चुपके से
खेलता है,
कांच का नाज़ुक दिल
दरक जाता है।
दुनियादारी से भरोसा उठ जाता है।
इसका दर्द आँखें छलकने से
बाहर आता है।
इस समय आदमी
फीकी मुस्कराहट के साथ
अपने भीतर की कड़वाहट को
एक कराहट के साथ झेल लेता है।
अभी अभी
अख़बार में झकझोर देने वाली खबर पढ़ी है।
तलाकशुदा पत्नी को
जब पहले पति की लाइलाज बीमारी की
बाबत विदित हुआ
तो उसने गुज़ारा भत्ता लेने से
इंकार कर दिया।
यह सहानुभूति ही है
जिसने रिश्ते को
अनूठे रंग ढंग से याद किया ।
अपने रिश्ते की पाकीज़गी की खातिर त्याग किया।
सहानुभूति और संवेदना से
भरा यह रिश्ता
अंधेरे में एक जुगनू सा
टिमटिमाता रहना चाहिए।
वासना की खातिर
जीवनसाथी को छोड़ा नहीं जाना चाहिए।
परस्पर सहानुभूति रखने वालों को
यह सच समझ आना चाहिए।
छोटी मोटी भटकनों को
यदि हो सके तो नजरअंदाज करना चाहिए।
मन ही मन अपनी ग़लती को सुधारने का प्रयास किया जाना चाहिए।
वरना जीवन और घर ताश के पत्तों से निर्मित आशियाने की तरह
थोड़ी सी हवा चलने ,ठेस लगने से बिखर जाता है।
आदमी और उसकी हमसफ़र कभी संभल नहीं पाते हैं।
जीवन यात्रा से सुख और सुकून लापता हो जाता है।
अच्छा है कि हम अपने संबंधों और रिश्तों में सहानुभूति को स्थान दें ,
ताकि समय रहते टूटने से बच सकें
और जीवन में सच की खोज कर सकें।
०६/०४/२०२५.
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