वह हठी है
इस हद तक
कि सदा
अपनी बात
मनवा कर छोड़ता है।
उसके पास
अपना पक्ष रखने के लिए
तर्क तो होते ही हैं ,
बल्कि जरूरत पड़ने पर
वह कुतर्क, वाद विवाद का भी
सहारा लेने से
कभी पीछे नहीं हटता।
वह हठी है
और इस जिद्द के कारण
मेरी कभी उससे नहीं बनी है,
छोटी छोटी बातों को लेकर
हमारी आपस में ठनती रही है।
हठी के मुंह लगना क्या ?...
सोच कर मैं अपनी हार मानता रहा हूं।
वह अपने हठ की वज़ह से
अपने वजूद को
क़ायम रखने में सफल रहा है ,
इसके लिए वह कई बार
विरोधियों से
बिना किसी वज़ह से लड़ा है ,
तभी वह जीवन संघर्ष में टिक पाया है ,
अपनी मौजूदगी का अहसास करा पाया है।
उसकी हठ मुझे कभी अच्छी लगी नहीं ,
इसके बावजूद
मुझे उससे बहस कभी रुचि नहीं।
मेरा मानना है कि वह सदैव
जीवन में आगे बढ़ चढ़ कर
अपने को अभिव्यक्त करता रहे।
उसका बहस के लिए उतावला होना
उसके हठी स्वभाव को भले ही रुचता है ,
मुझे यह अखरता भी जरूर है ,
मगर उसके मुंह न लगना
मुझे उससे क़दम क़दम पर बचाता है।
हठी के मुंह लगने से सदैव बचो।
अपने सुख को
सब कुछ समझते हुए
तो न हरो।
बहस कर के
अपने सुख को तो न सुखाओ ।
इसे ध्यान में रखकर
मैं उस जैसे हठी के आगे
अकड़ने से परहेज़ करता हूं।
आप भी इसका ध्यान रखें कि
...हठी के मुंह लगना क्या ?
बेवजह जीवन पथ में लड़ भिड़कर अटकना क्या ?
इन से इतर खुद को समझ लो,
खुद को समझा लो,
बस यही काफी है।
कभी कभी
हठी से बहस करने
और उलझने की निस्बत
खुद ही आत्म समर्पण कर देना ,
अपनी हार मान लेना बुद्धिमत्ता है।
०५/०४/२०२५.