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छोटी और लाडली कार को
होली का कोई हुड़दंगी
चोट पहुँचा गया
जब अचानक,
दर्द से बेहाल
अंदर से
आवाज़
आई तब,
"होली मुबारक !"
मन में
उस समय
क्रोध उत्पन्न हुआ ,
मैं थोड़ा सा खिन्न हुआ !
मैंने खुद से  कहा ,
" कमबख्त पाँच हज़ार की
चपत लगा गया !
होली के दिन
मन के भीतर
सुख सुविधा से उत्पन्न
अहंकार की वाट लगा गया !"
मेरी तो होली हो ली जी!
अब सी सी कर के
क्या मिलेगा जी!
यह सोच मन को समझा लिया
और पल भर में
दुनियादारी में
मन लगा
लिया।
१४/०३/२०२५.
यदि कोई अच्छा हो या बुरा ,
वह पूरा हो या आधा अधूरा।
उसे कोसना कतई ठीक नहीं ,
संभव है वह धूरा बने कभी।

हर जीव यहाँ धरा पर है कुछ विशेष
अच्छे के निमित्त,हुआ हो वह अवतरित।
हो सकता है वह अभी भटक रहा हो ,
उसे मंज़िल पर पहुंचाओ, करें पथ प्रदर्शित।

सब लक्ष्य सिद्धि को हासिल कर सकें ,
आओ , हम उनकी राह को आसान करें।
हम उनकी संभावना को सदैव टटोलते रहें ,
इसके लिए सब मतवातर प्रयास करते रहें।

किसी को कोसना और कुछ करने से से रोकना,
कदापि सही नहीं, हम प्रोत्साहित करें तो सही।
१४/०३/२०२५.
कभी कभी
रंगों से गुरेज़ करने वाले को
अपने ऊपर
रंगों की बौछार
सहन करनी पड़ती है।
यही होली की
मस्ती है।
अपने को एक कैनवास में
बदलना पड़ता है
कि कोई चुपके से आए ,
रंग लगाए ,
अपनी जगह बनाए ,
और रंग लगा
चोरी चोरी
खिसक जाए ,
इस डर से
कि कोई सिसक न जाए।
विरह में सिसकारी ,
मिलन में पिचकारी ,
होली के रंग ही तो हैं।
ये अबीर और गुलाल बनकर
कब अंतर्मन को रंग देते हैं !
पता ही नहीं चलता !!
कभी कभी
होली आती है
और हो ली होकर
निकल जाती है।
पता ही नहीं चलता !
जब तक मन में
मौज है,
उमंग तरंग है ,
खेल ली जाए होली ।
जीवन में रंगों और बेरंगों के
बीच चलती रहे
आँख मिचौली !
ऐसी  कामना कीजिए !
अबीर की सौगात
ख़ुशी ख़ुशी
जिन्दगी की झोली में
डालिए
और हो सके तो
आप अपने भीतर
जीवन के रंगों सहित
अपने भीतर झांकिए
ताकि अंतर्मन से मैल धुल जाए !
चेहरा भी मुस्कुराता हुआ खिल पाए !!
अब की होली सब डर
पीछे छोड़कर
मस्ती कर ली जाए!
क्या पता अनिश्चितता के दौर में
कब आदमी की
हस्ती मिट जाए!
क्या पता पछतावा भी
हाथ न आए !
क्यों न जिन्दगी खुलकर
जी ली जाए !
होली भी हो ली हो जाए !!
१४/०३/२०२५.
आदमी
जब तक
नासमझ बना
रहता है ,
छोटी छोटी बातों पर
अड़ा रहता है ।
जैसे ही
वह समझता है
जीवन का सच ,
वह एक सुरक्षा कवच में
सिमट जाता है ,
जिंदगी में
समय रहते
समझौता करना
सीख जाता है ,
सुखी और सुरक्षित
रहता है।
भूल कर भी
बात बात पर
अकड़ दिखाने से
करता है गुरेज।
वह जीवन की
समझ निरंतर
बढ़ाता रहता है।
एक समय आता है ,
वह समझौता
बेहद आसानी से
कर पाता है ,
वह बिना कोई हेर फेर किए
स्वयं को संतुलित और
समायोजित कर लेता है ,
शांत रहना सीख जाता है ,
दिल और दिमाग से
समझौताबाज़ बन जाता है।
वह किसी भी हद तक
सहनशील बना रहता है ,
फल स्वरूप जीवन भर
फलता फूलता जाता है ,
समझौता करने में
गनीमत समझता है।
अतः सुख का आकांक्षी
जीवन में समझौता कर ले ,  
समय रहते समझदारी वर ले।
यह सच है कि
यदि वह समय पर समझौता कर ले ,
तो स्वत: स्वयं को सुखी कर ले।
१४/०३/२०२५.
" हमें
जीवन में  
ज़ोर आजमाइश नहीं
बल्कि
जिन्दगी की
समझाइश चाहिए ।"
सभी से
कहना चाहता है
आदमी का इर्द गिर्द
और आसपास ,
ताकि कोई बेवजह
जिन्दगी में न हो कभी जिब्ह ,
उसके परिजन न हों कभी उदास।
पर कोई इस सच को
सुनना और मानना नहीं चाहता।
सब अपने को सच्चा मानते हैं
और अपने पूर्वाग्रहों की खातिर
अड़े खड़े हैं, वे स्वयं को
जीवन से भी बड़ा मानते हैं।
और जीवन उनकी हठधर्मिता को
निहायत गैर ज़रूरी मानता है ,
इसलिए
कभी कभी वह
नाराज़गी के रुप में
अपनी भृकुटि तानता है ,
पर जल्दी ही
चुप कर जाता है।
उसे आदमी की
इस कमअक्ली पर तरस आता है।
पर कौन
उसकी व्यथा को
समझ पाता है ?
क्या जीवन कभी
हताश और निराश होता है ?
वह स्वत: आगे बढ़ जाता है।
जीवन धारा का रुकना मना है।
जीवन यात्रा रुकी तो समय तक ख़त्म !
इसे जीवन भली भांति समझता है,
अतः वह आगे ही आगे बढ़ता रहता है।
समय भी उसके साथ क़दम ताल करता हुआ
अपने पथ पर  सतत अग्रसर रहता है।
जिन्दगी से मिठास
यकायक चली जाए
तो यह किसे भाए ?
यह फीकी चाय जैसी हो जाए।
कीजिए आप सब
अपने सम्मिलित प्रयासों से
जीवन में मधुरता लाने का उपाय।
जिन्दगी से मिठास
कभी भी यकायक
नहीं जाया करती ,
यह जाने से पहले
दिनचर्या से जुड़े
छोटे छोटे इशारे
अवश्य है किया करती।
यह भी सच है कि
जिन्दगी अपनी रफ़्तार
और अंदाज़ से
है सदैव
आगे बढ़ा करती।
आप से अनुरोध है कि
जीवन में
न किया कीजिए
सकारात्मक सोच का विरोध
बात बात पर
ताकि सहिष्णुता बची रहे ,
जिन्दगी में उमंग तरंग बची रहे।
जीवन की मिठास आसपास बनी रहे।
जीवन यात्रा में सुख समृद्धि की आस बनी रहे।
१३/०३/२०२५.
आज किसान बेचारा नज़र आता है।
वह शोषण का शिकार बनाया जा रहा है।
ऐसा क्यों ? सोचिए , इस बाबत कुछ करिए ज़रा।
किसान कब तक बना रहेगा बेचारा और बेसहारा ?

उसकी मदद कैसे हो ?
उसकी लाचारी कैसे दूर हो ?
यदि उस की उपज खेत से
सीधे बाज़ार भाव पर खरीद ली जाए ?
और थोड़ा खर्चा करके उपभोक्ता से वसूल ली जाए
तो क्या हो ?
कम से कम किसान इससे सुखी रहेगा।
उपभोक्ता अपने द्वारा की गई
अनावश्यक भोजन की बर्बादी को रोक ले ,
तो यकीनन देश की आर्थिकता दृढ़ होगी।
किसान की चिंताएं धीरे धीरे खत्म होंगी।
इसके साथ ही भ्रष्टाचार में भी शनै: शनै: कमी होगी।
किसान की मदद
उपभोक्ता की सदाशयता से
बिना किसी तनाव ,दुराव ,छिपाव के की जा सकती है।
इस राह पर बढ़ कर ही किसान और समाज की तक़दीर
बदली जा सकती है।
संपन्नता,सुख , समृद्धि और सुविधाएं
बगैर किसी देरी किए खोजी जा सकती हैं।
१३/०३/२०२५.
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