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इस दुनिया का
सब से खतरनाक मनुष्य
अशिष्ट व्यक्ति होता है,

जो अपने व्यवहार से
आम आदमी और ख़ास आदमी तक को
कर देता है शर्मिन्दा।
वह अचानक
सामने वाले की इज्ज़त
अपने असभ्य व्यवहार से
कर देता है तार तार!
सभ्यता का लबादा उतार देता है।
अपने मतलब की जिन्दगी जीता है।

अभी अभी
मेरे शहर के बाईस बी सेक्टर के
भीड़ भरे बाज़ार में
एक शख़्श
अपने दोनों हाथों में
एक तख्ती उठाए
रक्तदान के लिए प्रेरित करते हुए
घर घर गली गली घूमते देखा गया है।
उसकी तख्ती पर लिखा है,
" रक्त दानी विशिष्ट व्यक्ति होता है,
जो प्राण रक्षक होता है।"
यह देख कर मुझे अशिष्ट व्यक्ति का
आ गया है ध्यान !
जो कभी भूले से भी नहीं दे सकता
किसी जरूरतमंद को प्राण दान !
बल्कि वह अपने अहम् की खातिर
बन जाता है शातिर
और हर सकता है
छोटी-छोटी बात के लिए प्राण।

इसलिए मुझे लगता है कि
अशिष्ट व्यवहार करने वाला
न केवल असभ्य बल्कि वह
होता है सबसे ख़तरनाक
जो जीवन में कभी कभी
न केवल अपनी नाक कटा सकता है,
यदि उसका वश चले
तो वह अच्छे भले व्यक्ति को
मौत के घाट उतरवा सकता है।
अशिष्ट व्यक्ति से समय रहते किनारा कीजिए!
खुद को जीवनदान दीजिए !!
०६/०३/२०२५.
काश! यह जीवन
एक तीर्थ यात्रा समझ कर
जीना सीख पाता
तो नारकीय जीवन से
बच जाता।
इधर उधर न भटकता फिरता।
चिंता और तनाव से बचा रहता।
जीवन के लक्ष्य को भी
हासिल कर लेता।
अब पछतावा भी न होता।
पछतावा
विगत की गलतियों का
परछावा भर है।
आदमी समय रहते
संभल जाए ,
यही इसका हल है।
पछताने और इसकी वज़ह को
समझ कर
समय रहते
निदान करने से
आदमी का बढ़ जाता
आत्मबल है।
जो बनता जीने का
संबल है।
०५/०३/२०२५.
चारों ओर बुराइयों को देख
व्यर्थ की बहसबाजी में उलझने से
अच्छा है कि कोई पहल की जाए ,
सोच समझ कर बुराई के हर पहलू को जाना जाए ,
और तत्पश्चात उसे दूर करने के प्रयास किए जाएं।
बुरे को बुरा , अच्छे को अच्छा कहने में
कोई हर्ज़ नहीं , बस सब अपने फ़र्ज़ समझें तो सही।
फ़र्ज़ पर टिके रहना वाला ,
कथनी और करनी का अंतर मिटाने वाला
अक्सर जीवन के कठिन हालातों से जूझ पाता है।
वह जीवन के उतार चढ़ावों के बावजूद
सकारात्मक सोच के साथ पहल कर पाता है।
वह जीवन की भाग दौड़ में विजेता बनकर
नए बदलाव लेकर आता है।
अपनी अनूठी पहल के बूते
पहले स्थान को हासिल कर जाता है।
वह जीवन के संघर्षों में अग्रणी होकर
अपनी पहचान बना जाता है।
पहले पहले पहल करने वाला
जीवन के सत्य को जान लेने से
बौद्धिक रूप से प्रखर बन जाता है।
वह स्वतः मान सम्मान का
अधिकारी बन जाता है।
वह जन जीवन से खुद को जोड़ जाता है।
वह हरदम अपने पर भरोसा करके
अपनी उपस्थिति का अहसास करवाता रहता है।
पहल करने वाला प्रखर होता है ,
वह अपनी संभावना खोजने के लिए
सदैव तत्पर रहता है।
०५/०३/२०२५.
कलयुग है ,
आजकल भाई
आपस में
छोटी छोटी बातों पर
लड़ पड़ते हैं ,
वे मरने मारने पर
उतारू हो जाते हैं !
काला उर्फ़ सुरिंदर ने
दो दिन पहले
बातों बातों में कहा था कि
जो भाई शादी से पहले
एक दूसरे की रक्षा में
गैरो से लड़ने को रहते हैं तैयार !
वही भाई समय आने पर
एक दूसरे को मारने पर
हो जाते हैं आमादा,
एक दूसरे के पर्दे उतार
शर्मसार कर देते हैं।
अब रामायण काल नहीं रहा !
लक्ष्मण सा भाई विरला ही मिलता है।
बल्कि भाई भाई का ख़ून कर
बन जाया करता है क़ातिल।

अभी यह सब सुने महज दो दिन हुए हैं कि
इसे प्रत्यक्ष घटित होते
अख़बार के माध्यम से जान भी लिया।
अख़बार में एक खबर सुर्खी बन छपी है ,
" ढाबे पर ट्रक चालक ने शराब के नशे में
बड़े भाई को पीट पीटकर मार डाला..."

सनातन में "रामायण " में
आदर्श भाइयों के बारे में
उनके परस्पर प्रेम और सौहार्दपूर्ण
जीवन बाबत दर्शाया गया है।
वहीं "महाभारत" में
कौरवों और पांडवों के बीच
भाइयों भाइयों में होने वाले
विवाद और संवाद की बाबत
विस्तार से कथा के रूप में
बताया गया है,
आदमी की समझ को
बढ़ाने की खातिर
एक मंच सजाया गया है।

मैं इस बाबत सोचता हूँ
तो आता है ख्याल।
आज कथनी और करनी के अंतर ने ,
रिश्तों में स्वार्थ के हावी होने ने
भाई को भाई का वैरी बना दिया है।
स्वार्थ के रिश्तों ने
रामायण के आदर्श भाइयों को
महाभारत करने के लिए उकसाया है।
पता नहीं कहाँ भाई भाई का प्यार जा छुपाया है ?
आदर्श परिवार को भटकाव के रास्ते पर दिया है छोड़ !
पता नहीं कब तक भाई
अपने रिश्ते को एक जुट रख पाएंगे !
या फिर वे भेड़चाल का शिकार होकर
आपस में लड़ कर समाप्त हो जाएंगे !!
आज भाईचारा बचाना बेहद ज़रूरी है ,
ताकि समाज बचा रहे !
देश स्वाभिमान से आगे बढ़ सके !!
०४/०३/२०२५.
बचपन में
मां थपकी दे दे कर
बुला देती थी
निंदिया रानी को ,
देने सुख और आराम।
अब मां रही नहीं,
वे काल के प्रवाह में बह गईं।
अब बुढ़ापे में
निंदिया रानी
अक्सर झपकी बन
रह रह कर देती है सुला,
किसी हद तक
अवसाद देती है मिटा।
अब निंदिया रानी
लगने लगी है मां,
जो देने लगती है
सुख और आराम की छाया!
जिससे हो जाती है ऊर्जित
जीवन की भाग दौड़ में थकी काया !!
अब निंदिया रानी बन गई है मां!
जो सुकून भरी थपकी दे दे कर ,
मां की याद दिलाने लगती है,
सच में मां के बगैर
जिन्दगी आधी अधूरी सी लगती है।
अब निंदिया रानी अक्सर
कुंठा और तनाव से दिलाने निजात
मीठी मीठी झपकी की दे देती है सौगात।
आजकल निंदिया रानी मां सी बन कर
जीवन यात्रा में सुख की प्रतीति कराती है,
यह आदमी को बुढ़ापे में
असमय बीमार होने से बचाया करती है।
०४/०३/२०२५.
आदमी
कभी कभी
अपनी किसी
आंतरिक कमी की
वज़ह से विदूषक जैसा
व्यवहार न चाहकर भी करता है ,
भले ही वह बाद में पछताता रहे अर्से तक।
भय और भयावह अंजाम की दस्तक मन में बनी रहे।

विदूषक भले ही
हमें पहले पहल मूर्ख लगे
पर असल में वह इतना समझदार
और चौकन्ना होता है कि उसे डराया न जा सके ,
वह हरदम रहता है सतर्क ,अपने समस्त तर्क बल के साथ।
विदूषक सदैव तर्क के साथ क़दम रखता है ,
बेशक उसके तर्क आप को हँसाने और गुदगुदाने वाले लगें।

आओ हम विदूषक की मनःस्थिति को समझें।
उसकी भाव भंगिमाओं का भरपूर आनंद लेते हुए बढ़ें।
कभी न कभी आदमी एक विदूषक सरीखा लगने लगता है।
पर वह सदैव सधे कदमों से
जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश करता है ,
यही सब उसके व्यक्तित्व के भीतर कशिश भरता है।
उसे निरर्थकता में भी सार्थकता खोजने का हुनर आता है!
तभी वह बड़ी तन्मयता से
तनाव और कुंठा ग्रस्त व्यक्ति के भीतर
हंसी और गुदगुदाहट भर पाता है।
ऐसा करके वह आदमी को तनावरहित कर जाता है !
यही नहीं वह खुद को भी उपचारित कर पाता है !!
०३/०३/२०२५.
जीवन यात्रा में
कब लग जाए विराम ?
कोई कह नहीं सकता !
और आगे जाने का
बंद हो जाए रास्ता।
आदमी समय रहते
अपनी क्षमता को बढ़ाए,
ताकि जीवन यात्रा
निर्विघ्न सम्पन्न हो जाए।
मन में कोई पछतावा न रह जाए।
सभी जीवन धारा के अनुरूप
स्वयं को ढाल कर
इस यात्रा को सुखद बनाएं।
हरदम मुस्कान और सुकून के साथ
जीवन यात्रा को गंतव्य तक पहुँचाएं।
०३/०३/२०२५.
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