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हरेक के भीतर
हल्के हल्के
धीरे धीरे
जब निरर्थकता का
होने लगता है बोध
तब आदमी को
निद्रा सुख को छोड़
जीवन के कठोर धरातल पर
उतरना पड़ता है,
सच का सामना
करना पड़ता है।
हर कदम अत्यन्त सोच समझ कर
उठाना पड़ता है,
खुद को गहन निद्रा से
जगाना पड़ता है।

उदासी का समय
मन को व्याकुल करने वाला होता है,
यही वह क्षण है,
जब खुद को
जीवन रण के लिए
आदमी तैयार करे ,
अपनी जड़ता और उदासीनता पर
प्रहार करे
ताकि आदमी
जीवन पथ पर बढ़ सके।
वह जीवन धारा को समझ पाए ,
और अपने  मन में
सद्भावना के पुष्प खिला जाए ,
जीवन यात्रा को गंतव्य तक ले जाए।

११/०२/२०२५.
यह उदासी ही है
जो जीवन को कभी कभी
विरक्ति की ओर ले जाती है ,
आदमी को थोड़ा ठहरना,
चिंतन मनन करना सिखाती है।

उस उदासी का क्या करें ?
जो हमें निष्क्रिय करे ,
जीवन धारा में बाधक बने।
क्यों न सब इस उदासी को
जीवन के आकर्षण में बदलने का
सब समयोचित प्रयास करें !
उदासी को देखने की दृष्टि में तब्दील करें !!
११/०२/२०२५.
चारों तरफ
अफरातफरी है।
लोग
प्रलोभन का होकर
शिकार ,
अनाधिकार
स्वयं को
सच्चा साबित
करने का कर
रहें हैं प्रयास।

अनायास
हमारे बीच
अश्लीलता
विवाद का मुद्दा
बन कर
अपनी उपस्थिति का
अहसास कराती है,
यह अप्रत्यक्ष तौर पर
समाज को
आईना दिखाती है।

हमारे आसपास
और मनों में
क्या कुछ अवांछित
घट रहा है ,
हमें विभाजित
कर रहा है।

कोई कुछ नहीं जानता।
यदि जानता भी तो कुछ भी नहीं कहता
क्योंकि
अश्लील कहे जाने का डर
भीतर ही भीतर
सताने लगता ,
जो सृजित हुआ है
उसे मिटाने को
बाध्य करता।

इर्द गिर्द
आसपास फैल
चुका है
मानसिक प्रदूषण
इस हद तक कि
पग पग पर  
साधारण जीवन स्थिति को भी
अश्लीलता के दायरे में
लाए जाने का खतरा
है बढ़ता जा रहा।
सवाल यह है कि
अश्लील क्या है ?
जो मन पर
एक साथ चोट करे ,
मन को गुदगुदाए और लुभाए ,
अंतरात्मा को भड़काए ,
इसके आकर्षण में
आदमी लगातार
फंसता जाए ,
उससे पीछा न छुड़ा पाए ,
अश्लीलता है।
यह टीका टिप्पणी,
गाली गलौज ,
अभद्र इशारे ,
नग्नता और बगैर नग्नता के
अपना स्थान बना लेती है ,
हमारी जागरूकता का
उपहास उड़ा देती है ,
अकल पर पर्दा डाल देती है।
यह अश्लीलता अच्छे भले को
महामूर्ख बन देती है,
आदमी को माफी मांगने ,
दंडित होने के लिए
न्यायालय की पहुँच में
ले जाती है।
कितना अच्छा हो ,
यदि आदमी के पास
मन को पढ़ने की सामर्थ्य होती
तब अश्लीलता इतनी तबाही मचाने में
असफल रहती ,
जितनी आजकल यह
अराजकता फैला रही है,
अच्छी भली जिंदगियां
इसकी जद में आकर
उत्पात मचाने को
आतुर नज़र आ रही हैं।
सच तो यह है कि
अश्लीलता हमारी सोच में
यदि जिन्दा है
तो इसका कारण
हमारे सोचने और जीवनयापन का तरीका है,
यदि हम प्रेमालाप, अपने यौन व्यवहार पर
नियंत्रण करना सीख जाएं
तो अश्लीलता
हमारे मन-मस्तिष्क में
कोई जगह न बना पाए ,
यह सृजन से जुड़
हमारी चेतना का कायाकल्प कर जाए।

अश्लीलता
आदमी के व्यवहार में
जिंदा रहती है,
आदमी
सभ्यता का मुखौटा
यदि शिष्टाचार वश ओढ़ना सीख ले ,
अश्लीलता विवादित न रह
गौण और नगण्य रह जाती है,
यह समाप्त प्रायः हो जाती है।
यह भी सच है कि
कभी कभी
यह हम सब पर हावी हो जाती है,
और हमारी चेतना को
शर्मसार कर जाती है,
हमें खुद की दृष्टि में
विदूषक सरीखा
और नितांत बौना बना देती है,
हमारी बौद्धिकता के सम्मुख
प्रश्नचिह्न अंकित कर देती है।
अश्लीलता
कभी कभी
हमें दमित और कुंठित सिद्ध करती है ,
यह मानव के चेहरे पर
अप्रत्याशित रूप से
तमाचा जड़ती है।
यह आदमी के जीवन में
तमाशा खड़ा कर देती है ,
उसे मुखौटा विहीन कर देती है,
यह बनी बनाई इज़्ज़त को
तार तार कर दिया करती है।
10/02/2025.
सचमुच
पहाड़ पर ‌जिन्दगी
पहाड़ सरीखी होती है
देखने में सरल
पर
उतनी ही कठिन
और संघर्षशील।
पहाड़ी मानस की
दिनचर्या
पहाड़ के वैभव को
अपने में
समेटे रहती है
और पहाड़ भी
पहाड़ी मानस से
बतियाता रहता है
कभी-कभी
ताकि
जीवन ऊर्जा और शक्ति,
जीवन के प्रति श्रद्धा और जिजीविषा
बनी रहे,
पहाड़ी मानस में
संघर्ष का संगीत
सदैव पल पल रचा बसा रहे।
पहाड़ी मानस मस्त मौला बना रहे।
जीवन में हर पल डटा रहे।

मैदान का आदमी
पहाड़ के सौंदर्य और वैभव के प्रति
होता रहा है आकर्षित,
वह पर्यटक बन
पहाड़ को समझना और जानना चाहता है
जबकि पहाड़ी मानस
पहाड़ को अपने भीतर समेटे
घर परिवार और रोज़गार के लिए
सुदूर मैदानों, मरूस्थलों और समन्दरों को ओर जाना।
कुदरत आदमी और अन्य जीवों के इर्द-गिर्द
चुपचाप सतत् सक्रिय रहकर
बुना करती है प्रवास का ताना-बाना,
उसके आगे नहीं चलता कोई ‌बहाना।
सब को किस्मत की सलीब ढोना पड़ती है,
जीवन धारा आगे ही आगे बढ़ती रहती है।
१०/०२/२०२५.
आदमी
आज का
कितनी भी
कर ले चालाकियां ,
वह रहेगा
भोलू का भोलू!
कोई भी अपने बुद्धि बल से
चतुर सुजान तक को
दे सकता है
मौका पड़ने पर धोखा।
भोलू जीवन में
धोखे खाता रहा है,
ठगी ठगौरी का शिकार
बनता रहा है,
मन ही मन
कसमसाकर
रह जाता रहा है ।
एक दिन
अचानक भोलू सोच रहा था
अपनी और दुनिया की बाबत
कि जब तक
वह जिन्दगी के
मेले में था,
खुश था,
मेले झमेले में था ,
उसकी दिनचर्या में था।

भीड़ भड़क्का !
धक्कम धक्का !!
वह रह जाता था
अक्सर हक्का बक्का !!
अब वह इस सब से
घबराता है।
भूल कर भी भीड़ का हिस्सा
बनना नहीं चाहता है।
०८/०२/२०२५.
इस धरा पर
जीवन कहाँ से आया ?
शायद कहीं कायनात में
छिपे उस क्षण से ,
जिससे सृष्टि में
उल्का पिंड और विभिन्न तत्वों के
उत्पन्न होने की
शुरूआत हुई।

सुनता हूँ
इस धरा पर
उल्का पिंडों से
धरा पर
जीवन का आविर्भाव हुआ।

यह भी सुनता हूँ कि
दशावतार की गाथा में
जीवन यात्रा का
छिपा हुआ है उद्गम।
यह सोच बड़ी है सूक्ष्म।
जीवों की जीवन यात्रा में
निहित है
जीवन का मर्म !
इसे समझना और पल्लवित करना
जीवन के उद्गम से लेकर
विकसित होने तक
बना हुआ है जीव धर्म।
हरेक जीव अपने अस्तित्व को
बनाए रखने के लिए
संतति को बढ़ाता है,
जिससे जीवन धारा विकसित होती है,
जीवन यात्रा
उत्तरोत्तर अपने आप
सतत
पीढ़ी दर पीढ़ी
आगे बढ़ती है,
जीवों को
जीवन की सार्थकता की
अनुभूति होती है।

चुपचाप
जीवन की गति
पूर्णता को प्राप्त करती है,
जीवन यात्रा आगे बढ़ती है।
०८/०२/२०२५.
Passion for Love is quite natural.
To control over these emotions
makes our life unnatural.
To lead a life without sentiments
brings miseries in life.
It is painful and harsh reality of human existence.
Passion for Love is the best gift 💕 for all.
It makes human beings most powerful.
07/01/2025.
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