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अनंत काल से
दुनिया का नक्शा
राजनीतिक हलचलों की
वज़ह से
बदला गया है
पर जमीन और समन्दर
दिशाएं कौन बदल पाया है ?
कोई सम्राट और विश्व विजेता तक !
सब उन्माद और अभिमान के कारण भटके हुए हैं।
इतिहास की पुस्तकों में अटके हुए हैं।

आज मुझे
अपनी बिटिया के लिए
चार्ट पर
दुनिया का नक्शा
बनाना पड़ा।
मैं उलझ कर रह गया।
दुनिया का नक्शा
मुझे बहुत कुछ कह गया।

देश, समन्दर और जमीन,
नदियां, झीलें, झरने ,
पहाड़, मैदान, मरूस्थल, पठार
सब नक्शे में दर्शाए जाते हैं,
कागज़ के ऊपर बनाए और मिटाए जाते हैं,
मज़ा तो तब है
जब उनकी निर्मिति को
दिल से समझा जाए,
उन्हें बचाया जाए।
उन्हें देखने के लिए  
देश और दुनिया भर में घूमा जाए।
ऐसा चुपके-चुपके
दुनिया के नक्शे ने  
मुझसे गुज़ारिश की ,
मैंने भी मौन रहकर
दुनिया घूमने और मतभेद भुलाने की
आंकाक्षा अपने भीतर भरी,
और चुपचाप
अहसास की दुनिया में बह गया।
सच! दुनिया का नक्शा
मुझसे बरबस संवाद रचा गया।
संवेदना को बचाने के लिए
मूक याचना कर गया।
मुझे चेतन कर गया।
०७/०२/२०२५.
आज
लोगों को
कामयाब होने का
मिले
यदि कोई
मौका
तो वे कतई
करें न गुरेज
कुछ भी करने से,
अपनों को
धोखा देने से !
चोरी सीनाज़ोरी करने से !
छीना झपटी करने से !

आज का सच है
जो जितना बड़ा धोखेबाज़ ,
उतना कामयाब !
बेशक यह सही नहीं !
कुछ नासमझ इसे मानते हैं सही !
आगे निकलने का मौका
मयस्सर हो तो सही !
पाप और पुण्य का निकष
मरने के उपरांत देखा जाएगा।
आगे बढ़ने का मौका
कब कब हाथ आएगा ?
असफलता मिली तो जीवन रौंदा जाएगा !
०६/०२/२०२५.
जीवन भरपूर आनंद से जीना
एक स्वप्न सरीखा बन जाता है लोगों के लिए
इसलिए बेहद ज़रूरी है कि
जिंदगी को जीया जाए
जिंदादिल बने रहकर
संघर्षों के बीच
बने रहकर
जिजीविषा सहित
हरेक उतार चढ़ाव के साथ
भीतर और बाहर से
तने रहकर ,
हरपल खिले रहकर ।
यह सब सीखना है
तो गुलाब का जीवन चक्र देखिए ,
इस के रूप ,रंग ,गंध,  मुरझाने ,धरा में मिल जाने की
प्रक्रिया को अपने अहसास में भरकर !
ताकि जीवन यात्रा कर सके
आदमी एकदम से निर्भय होकर !!
कहीं आदमी असमय न मुरझा जाए ,
अतः अपरिहार्य है
जिन्दगी जीनी चाहिए
बंदगी करते हुए !!
अपने तन और मन की गंदगी को
अच्छे से साफ करते हुए !!
सकारात्मकता और स्वच्छता से जुड़ते हुए !!
जीवन पथ पर अग्रसर होकर
सतत सार्थकता का वरण करते हुए !!
ज़िंदगी जीओ बन्दगी करते हुए !!
स्वयं को संतुलित रखते हुए!!
०५/०२/२०२५.
समय
कभी रुक नहीं सकता
वह मतवातर
गतिशील रहता है ,
यदि वह रुक जाए ,
तो जीवन में ठहराव आ जाए।
जीवन का क्रम नष्ट भ्रष्ट हो जाए!
इसलिए
समय कभी
रुकता नहीं,
रुक सकता नहीं।
वह चाहता है
प्रकृति की व्यवस्था को
रखना सही।

आदमी का जीवन में
रुक जाना असहनीय होता है,
रुके रहना जैसा अहसास
जीवन को बोझिल कर देता है,
यह जीव के भीतर
थकावट भर देता है।
उसका सारा उत्साह और उमंग
बिखर जाता है ।
आदमी समय में
शीघ्र विलीन हो जाता है।
यही वज़ह है कि
समय कभी रुकता नहीं ।
वह कभी झुकता नहीं ,
बेशक वह जीवन में
उतार चढ़ाव लाकर
गर्व के उन्माद में डूबे आदमी को
झुकने के लिए बाध्य कर दे !
आदमी का जीवन कष्ट साध्य कर दे !!

काश! समय ठहर पाए!
आदमी को चुनौतियों के लिए
तैयार कर
आगे की राह सुगम बना पाए।
समय बेशक ठहरता नहीं,
इसे जितना जीया जाए , उतना कम है।
इसे सलीके से जीना ही
समय को जानने जैसा अति उत्तम है !
समय का ठहराव महज एक दिशा भ्रम है !!
०४/०२/२०२५.
आज मेरे भीतर अंतर्कलह है
मैं अपने पिता के साथ
सरकारी स्वास्थ्य विभाग द्वारा
संचालित सेवाओं का लाभ उठाने आया हूँ ।
बहुत से लोग सरकारी स्वास्थ्य सेवा से
असंतुष्ट प्राइवेट अस्पताल से
करवाना चाहते हैं इलाज़।
इसका कारण स्पष्ट है कि
उन्हें नहीं है विश्वास,
सरकारी चिकित्सा से
वे कर पाएंगे स्वास्थ्य लाभ।
वे प्राइवेट अस्पताल में
लूटे जाते हैं।
वहाँ के डॉक्टर भी तो
कभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में
इलाज़ करने की अनुभव प्राप्ति के बाद
प्राइवेट अस्पताल में
चिकित्सा कार्य को निभाते हैं।
अच्छा रहे , यदि आम आदमी समय रहते
सरकारी अस्पताल से
अपने रोग की
चिकित्सा करवाए,
ताकि वह अपनी जिन्दगी में
बेहतर और प्रभावी चिकित्सा विकल्प को तलाश पाए।

मेरे पिता खुद भी एक स्वास्थ्य विभाग से
जुड़े पदाधिकारी रहे हैं,
वे अपने विभाग के कार्यों की गुणवत्ता को
अच्छे से पहचानते हैं।
यदि सभी सरकारी चिकित्सा कार्यों का लाभ उठाएं
तो किसी हद तक आम आदमी
सुरक्षित जीवन की आस रख सकता है ,
सचेत रह कर जीवन में संघर्ष ज़ारी रख सकता है।

इस फरवरी महीने में
मेरे पिता जी नब्बे साल के हो जाएंगे ।
वे बहुत
ज़्यादा बीमार हैं
पर उनके भीतर की जिजीविषा ने
उन्हें जीवन की दुश्वारियों के बावजूद
हौंसले वाला बनाया हुआ है,
मरणासन्न स्थिति में
सकारात्मक विचारों से जोड़ कर
जीवन्त बनाया हुआ है।

उनके जीवन जीने के ढंग ने
मुझे यह सिखाया है कि
बुढ़ापे में कैसे आदमी अपनी कर्मठता से
जीवन को सक्रिय रूप से जी सकता है।
वह जिंदादिली से मौत के ख़ौफ़ को
अपने वजूद से दूर रख
स्वयं को शांत चित्त बनाए रख सकता है,
जबकि आम आदमी जल्दी घबरा जाता है,
वह समय आने से पहले
विचलित, हताश और निराश हो
अपने स्वजनों को दुखी कर देता है,
आप भी कष्ट झेलता है
और परिजनों को भी दुःख,तकलीफ व पीड़ा देता है।

सालों पहले सपरिवार पिता जी के साथ
पहाड़ों की सैर करने गया था।
वहाँ का एक नियम है कि
अगर चलते चलते सांस फूल जाए
तो मतवातर चलने की बजाए
थोड़ा रुक रुक कर आगे बढ़ो।
आज पिता को पहाड़ नहीं ,
मैदान में चलते हुए
उसी नियम का पालन करते देखता हूँ
तो मुझे खरगोश और कछुए की कहानी याद आती है,
लेकिन बदले संदर्भ में
कभी पिता जी खरगोश की तरह
तेज गति से मंज़िल की ओर बढ़ते थे
और आज वे बहुत धीरे धीरे चलते हैं,
सांस फूलने पर रुकते हैं,
दम लेते हैं और आगे बढ़ते हैं।
तकलीफ़ होने पर वे चिल्लाते नहीं,
बल्कि प्रभु का नाम लेते हैं ।
उनके आसपास घर परिवार के सदस्य
समझ जाते हैं कि वे पीड़ा में हैं।
सभी सदस्य चौकन्ने और शांत हो जाते हैं।
वे उनके साथ मन ही मन प्रार्थना करते हैं,
अब जीवन प्रभु तुम्हारे हाथ में है,
आप ही जीवन की डोर को संभालना,
और जीवात्मा को उसकी मंज़िल तक पहुँचा देना।
०३/०२/२०२५.
इस बार का बजट
क्या ग़ज़ब का है जी!
टैक्स देने वालों की मौज हो गई।
उन्हें भारी भरकम छूट मिली।
पहले मैं लाख के करीब टैक्स अदा करता था।
अगले साल यह शून्य पर आ जाएगा।
जीवन में होता है
कभी कभी करिश्मा ।
यह बजट कुछ ऐसा ही
जलवा दिखा गया।
इस बार का बजट
ऐसा कुछ
अहसास करा गया।
लगता है ,
आने वाले चुनावों में
यह भरोसेमंद सत्ता पक्ष के हाथों
ताकतवर विपक्ष की  
विकेट उड़ा गया ,
कहीं भीतर तक
अराजकता की राजनीति में
सहम भर गया !
हारने की आशंका भर गया !!
मुफ़्त के उपहारों से भी
बेहतरीन तोहफ़ा
जन साधारण को दे गया।

उम्मीद है ,
यह बजट विकास को गति देगा।
अगली बार का बजट भी
चुनावों में
मुफ्तखोरी पर
अंकुश लगाएगा।
तभी देश सालों से
चली आ रही
वित्तीय घाटे की रीति  और नीति पर
न चलकर
वित्तीय संतुलन की राह को
अपनाने की परंपरा पर आगे बढ़ पाएगा।
उम्मीद है कि
मेरा जैसा आम व्यक्ति
जो अभी अभी के बजट से
टैक्स मुक्त हुआ है ,
जो टैक्स फ्री नहीं रहना चाहता,
जैसा नागरिक भी
निकट भविष्य में,
आगामी सालों में
टैक्स  फिर से दे पाएगा ,
देश की आर्थिकता में
पहले की तरह
अपना अंशदान दे पाएगा।
साथ ही
यह भी उम्मीद है कि
समाज का सबसे गरीब व्यक्ति भी
जिसे लोग अक्सर
गया गुजरा आदमी  कह देते हैं,
वह भी कभी
आगामी सालों में
अपनी मेहनत से
और अपने वित्तीय कौशल में सुधार कर
निकट भविष्य में
हरेक नागरिक
फिर से टैक्स के दायरे में
आना चाहेगा ,
देश दुनिया और समाज में
सुख समृद्धि संपन्नता का आगमन लाएगा।
इस बार का बजट
किसी अप्रत्याशित घटनाक्रम से कम नहीं,
जिसने सब को
अचरज में ला दिया।
बजट में भरपूर बचत का तड़का लगा दिया।
इस बार के बजट ने
सच में ही
आम और ख़ास तक को चौंका दिया।
०२/०१/२०२५.
साल २०२५-२०२६ का भारत सरकार के वित्तीय बजट पर एक प्रतिक्रिया वश।
देश दुनिया और समाज
खूब तरक्की कर रहा है,
अच्छी बात है
परन्तु चिंतनीय है कि
चारों तरफ़
गन्दगी के ढेर बढ़ रहे हैं,
लोग बीमार होकर
असमय मर रहे हैं।
हमें मुगालता है कि
हम विकास कर रहे हैं।
यह कभी नहीं सोच पाते कि
भीतर तक सड़ रहे हैं,
घुट घुट कर मर रहे हैं।

यही नहीं
आसपास फैला
कूड़ा कर्कट कचरा,
स्वास्थ्य के लिए बना है खतरा।
इस ओर हम अक्सर दे नहीं पाते ध्यान,
जब कोई हमारी आवाज़ नहीं सुनता,
भीतर तक होते परेशान।
चाहते कोई तो करे ,
परेशानियों का समाधान।
आओ हम सब मिलकर
कूड़ा कर्कट प्रबंधन से जुड़ें
ताकि बची रहें
सुख समृद्धि और सम्पन्नता की जड़ें,
सब सकारात्मक जीवन की ओर बढ़ें।

कूड़ा कर्कट प्रबंधन का
है एक सीधा सादा सरल तरीका,
हम अपनाएं जीवन में
सादगीपूर्ण जीवन जीने का सलीका।
हम कूड़ा कर्कट तत्क्षण समेट लें ,
कोई इसे आकर उठाएगा ,
आसपास साफ़ सुथरा बनाएगा।
हम करें न इसका इन्तज़ार,
हम स्वयं ही इसे यथास्थान पहुंचा दें।
यही नहीं, कूड़े कर्कट को भी उपयोगी बनाएं।
इसके लिए समुचित प्रोद्यौगिकी को अपनाएं।
इस सबसे बढ़कर हम
अपने मनोमस्तिष्क को
भूलकर भी कभी कूड़ा दान न बनाएं ,
ताकि आदमी को कचोटे न कभी कोई कमी।
हम सभी अपना ध्यान जीवन में
कूड़ा कर्कट प्रबंधन में लगाएं।
मतवातर
बढ़ता जा रहा
कूड़े कर्कट के ढेर
कभी जी का जंजाल न बन पाएं ,
आदमी कभी तो
सुख का सांस ले पाएं।
०१/०२/२०२५.
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