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इस बार का बजट
क्या ग़ज़ब का है जी!
टैक्स देने वालों की मौज हो गई।
उन्हें भारी भरकम छूट मिली।
पहले मैं लाख के करीब टैक्स अदा करता था।
अगले साल यह शून्य पर आ जाएगा।
जीवन में होता है
कभी कभी करिश्मा ।
यह बजट कुछ ऐसा ही
जलवा दिखा गया।
इस बार का बजट
ऐसा कुछ
अहसास करा गया।
लगता है ,
आने वाले चुनावों में
यह भरोसेमंद सत्ता पक्ष के हाथों
ताकतवर विपक्ष की  
विकेट उड़ा गया ,
कहीं भीतर तक
अराजकता की राजनीति में
सहम भर गया !
हारने की आशंका भर गया !!
मुफ़्त के उपहारों से भी
बेहतरीन तोहफ़ा
जन साधारण को दे गया।

उम्मीद है ,
यह बजट विकास को गति देगा।
अगली बार का बजट भी
चुनावों में
मुफ्तखोरी पर
अंकुश लगाएगा।
तभी देश सालों से
चली आ रही
वित्तीय घाटे की रीति  और नीति पर
न चलकर
वित्तीय संतुलन की राह को
अपनाने की परंपरा पर आगे बढ़ पाएगा।
उम्मीद है कि
मेरा जैसा आम व्यक्ति
जो अभी अभी के बजट से
टैक्स मुक्त हुआ है ,
जो टैक्स फ्री नहीं रहना चाहता,
जैसा नागरिक भी
निकट भविष्य में,
आगामी सालों में
टैक्स  फिर से दे पाएगा ,
देश की आर्थिकता में
पहले की तरह
अपना अंशदान दे पाएगा।
साथ ही
यह भी उम्मीद है कि
समाज का सबसे गरीब व्यक्ति भी
जिसे लोग अक्सर
गया गुजरा आदमी  कह देते हैं,
वह भी कभी
आगामी सालों में
अपनी मेहनत से
और अपने वित्तीय कौशल में सुधार कर
निकट भविष्य में
हरेक नागरिक
फिर से टैक्स के दायरे में
आना चाहेगा ,
देश दुनिया और समाज में
सुख समृद्धि संपन्नता का आगमन लाएगा।
इस बार का बजट
किसी अप्रत्याशित घटनाक्रम से कम नहीं,
जिसने सब को
अचरज में ला दिया।
बजट में भरपूर बचत का तड़का लगा दिया।
इस बार के बजट ने
सच में ही
आम और ख़ास तक को चौंका दिया।
०२/०१/२०२५.
साल २०२५-२०२६ का भारत सरकार के वित्तीय बजट पर एक प्रतिक्रिया वश।
देश दुनिया और समाज
खूब तरक्की कर रहा है,
अच्छी बात है
परन्तु चिंतनीय है कि
चारों तरफ़
गन्दगी के ढेर बढ़ रहे हैं,
लोग बीमार होकर
असमय मर रहे हैं।
हमें मुगालता है कि
हम विकास कर रहे हैं।
यह कभी नहीं सोच पाते कि
भीतर तक सड़ रहे हैं,
घुट घुट कर मर रहे हैं।

यही नहीं
आसपास फैला
कूड़ा कर्कट कचरा,
स्वास्थ्य के लिए बना है खतरा।
इस ओर हम अक्सर दे नहीं पाते ध्यान,
जब कोई हमारी आवाज़ नहीं सुनता,
भीतर तक होते परेशान।
चाहते कोई तो करे ,
परेशानियों का समाधान।
आओ हम सब मिलकर
कूड़ा कर्कट प्रबंधन से जुड़ें
ताकि बची रहें
सुख समृद्धि और सम्पन्नता की जड़ें,
सब सकारात्मक जीवन की ओर बढ़ें।

कूड़ा कर्कट प्रबंधन का
है एक सीधा सादा सरल तरीका,
हम अपनाएं जीवन में
सादगीपूर्ण जीवन जीने का सलीका।
हम कूड़ा कर्कट तत्क्षण समेट लें ,
कोई इसे आकर उठाएगा ,
आसपास साफ़ सुथरा बनाएगा।
हम करें न इसका इन्तज़ार,
हम स्वयं ही इसे यथास्थान पहुंचा दें।
यही नहीं, कूड़े कर्कट को भी उपयोगी बनाएं।
इसके लिए समुचित प्रोद्यौगिकी को अपनाएं।
इस सबसे बढ़कर हम
अपने मनोमस्तिष्क को
भूलकर भी कभी कूड़ा दान न बनाएं ,
ताकि आदमी को कचोटे न कभी कोई कमी।
हम सभी अपना ध्यान जीवन में
कूड़ा कर्कट प्रबंधन में लगाएं।
मतवातर
बढ़ता जा रहा
कूड़े कर्कट के ढेर
कभी जी का जंजाल न बन पाएं ,
आदमी कभी तो
सुख का सांस ले पाएं।
०१/०२/२०२५.
ज़िंदगी भर
मैं बगैर सोच विचार किए
बोलता ही गया।
कभी नहीं बोलने से पीछे हटा,
फलत: अपनी ऊर्जा को
नष्ट करता रहा,
निज की राह
बाधित करता रहा।
निरंतर निरंकुश होकर
स्वयं को रह रह कर
कष्ट में डाले रहा।
आज मैं कल की
निस्बत कुछ समझदार हूं।
कल मैं एक क्षण भी
चुपचाप नहीं बैठ सका था ,
मैंने अपना पर्दाफाश
साक्षात्कार कर्त्ता के सम्मुख
कर दिया था।
मैं वह सब भी कह गया
जिसे लोग छिपाते हैं,
और कामयाब कहलाते हैं।
ज़्यादा बोलना
किसी कमअक्ली से
कम नहीं।
यह कतई सही नहीं।
आदमी को चुप रहना चाहिए,
उसे चुपचाप बने रहने का
सतत प्रयास करना चाहिए
ताकि आदमी जीवन की अर्थवत्ता को जान ले,
स्वयं की संभावना को समय रहते पहचान ले।
आज
अभी अभी
बस यात्रा के दौरान
मैंने मौन रहने का महत्व जाना है।
सोशल मीडिया के माध्यम से
मौन के फ़ायदे के बारे में
ज्ञानार्जन किया है,
अपने जीवन में
ज्ञान की बाबत
चिंतन मनन कर
अपने आप से संवाद रचाया है।
अभी अभी
मैंने मौन को
अपनाने का फैसला किया है कि
अब से मैं कम बोलूंगा,
अपनी ऊर्जा से
खिलवाड़ नहीं ‌करूंगा ,
जीवन में मौन रहकर
आगे बढ़ने का प्रयास करूंगा,
कभी तो जीवन में अर्थवत्ता को अनुभूत कर सकूंगा,
सच के पथ पर अग्रसर होने से पीछे नहीं हटूंगा।
जीवन रण में मैं सदैव डटा रहूंगा।
कभी भी भूलकर किसी की शिकायत नहीं करूंगा।
कल और आज के
जीवन में घटित हुए घटनाक्रम ने
मुझे तनिक अक्लमंद बनाया है,
जीवन में अक्लबंद बने रहने के लिए चेताया है।
यही जीवन की सीख है,
जो यात्रा पथ पर
क़दम क़दम पर
अग्रसर होने से मिलती है,
यह आदमी के अंतर्घट में
चेतना की अमृत तुल्य बूंदें भरती है ,
जीवन में आकर्षण का संचार करती है।
३२/०१/२०२५.
सहसा
जब कोई अचानक
भीतर ही भीतर
कसमसाकर
पल पल टूटता जाए ,
जीवन से रूठता जाए ,
साहस कहीं पीछे छूटता जाए ,
तब आप ही बताइए
आदमी क्या करे ?
क्या वह जीवन में स्वयं को
आगे बढ़ने से रोक ले ?
क्यों न वह निज में बदलाव करे ?
और वह अपनी समस्त ऊर्जा को
लक्ष्य सिद्धि की खातिर
कर्मठ बनने में खपा दे ,
जब तक वह निज को न थका दे ।
जीवन में साहसी बनकर
सुख समृद्धि की ओर बढ़ा जा सकता है ,
जीवन पथ की दुश्वारियों से लड़ा जा सकता है ,
सहसा साहस भीतर भर कर डटा जा सकता है।
जीवन पथ पर संकट के बादल मंडराते रहते हैं।
साहस और सहजता से उनका सामना किया जाता है , संघर्ष के दौर में टिके रह कर विजेता बना जा सकता है।
३०/०१/२०२५.
आज के दिन  
तीस जनवरी की तारीख को
अचानक
देशवासियों को
झेलना पड़ा था आघात ,
जब किसी ने
राजनीति के चाणक्य को
दिया था
चिर निद्रा में सुला ,
सत्य अहिंसा और सत्ता के
केन्द्रबिन्दु रहे
महात्मा पर
गोलियां चला ।
वज़ह
स्पष्ट थी ,
आदमी के भीतर बसी ,
अकड़ और हठधर्मिता ,
छीन लेती है
आदमी का विवेक।

दोनों पक्ष
स्वयं को
मानते हैं सही।  
वे नहीं चाहते करना
अपने दृष्टिकोण में
समयोचित सुधार करना,
फलत: झेलते हुए पीड़ा,
दोनों ही समाप्त हो जाते हैं,
अपने आगे बढ़ने की संभावना के सम्मुख
प्रश्नचिह्न अंकित कर जाते हैं।

राजनीति के चाणक्य की
सलाह
कभी भी राजनीतिज्ञों ने
दिल से मानी नहीं,
फलत:
महात्मा को कुर्बानी देनी पड़ी।

आज देश
अराजकता के मुहाने पर खड़ा है।
देश अपनी टीस को भूलकर
तीस जनवरी को
सायरन की आवाज़ के साथ  
मौन श्रद्धांजलि देने को होता है उद्यत।
सब शीघ्रातिशीघ्र आदर्शों को भूलकर
अपनी जीवनचर्या में व्यस्त हो जाते हैं ।
वे ‌फिर से नव वर्ष के आगमन
और तीस जनवरी के इंतजार में रहते हैं
ताकि फिर से महात्मा को याद किया जा सके,
उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी जा सके।
मुझे क्या सभी को
तीस जनवरी का व्यग्रता से
रहता है इंतज़ार
ताकि महात्मा को याद कर सकें ,
बेशक उनके आदर्शों से सब मुंह मोड़े रहें।
३०/०२/२०२५.
,
आदमी के पीछे
यदि कुंठा
किसी पिशाच सरीखी होकर
पड़ जाए तो आदमी
कहां जाए ?
उसे हरेक दिशा में
अंधेरा नज़र आए !
मन के भीतर
मतवातर
सन्नाटा पसरता जाए !!
कुंठित आदमी
अपने आसपास
नागफनी सरीखी
कांटेदार वनस्पति को
जाने अनजाने रोपता है।
उसका संगी साथी भी
भय के आवरण से भीतर तक
जकड़ा हुआ
उसे अत्याचार करने से
रोक नहीं पाता है।
वह अपार कष्ट सहता जाता है !
कभी मन की बात नहीं कह पाता है !!
मित्रवर ! जीवन को सहजता से जीयो।
असमय कुंठित होकर स्वयं को न डसो।
२९/०१/२०२५.
सुख में वृद्धि कैसे हो ?
दुःख में कमी कैसे हो ?
सुख और दुःख में
आदमी कैसे तटस्थ रहे ?
वह जीवन धारा में ‌बहकर
लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु
स्वयं को संतुलित कैसे करे ?

जब कभी इस बाबत सोचता हूं
तो आता है नज़र ,
आज का आदमी है प्रखर।
वह नींद में भी
कभी कभी सोच विचार कर
अत्यधिक चिंतित और विचारमग्न रहकर
कर लेता है खुद को बीमार।
वह नींद में चलने फिरने लगता है।
उसके जीवन में चोट लगने की
संभावना बढ़ जाती है।
जागने पर वह बहुत कुछ भूला रहता है।

नींद में चलना कतई ठीक नहीं।
यह आदमी को कहीं भी पहुंचा देता है।
यह आदमी को कभी कभार नुकसान पहुंचा देता है।
इस पर काबू पाया जा सकता है।
आदमी को जीवन में ठोकर लगने से पहले ही
सजग करते हुए बचाया जा सकता है।

वैसे नींद में चलना कोई ख़तरनाक बीमारी नहीं।
यह किसी को भी हो सकती है,
बचपन में ज्यादा और वयस्कों में बहुत कम।
यदि किसी को
नींद में चलने की बाबत
बताया जाता है
तो वह हैरान रह जाता है,
जब तक उसे प्रमाणित किया जाता नहीं।
और यह है भी सही,
कौन नींद में चलने के आरोप को सहे ?
वैसे सच है कि अज्ञान की नींद में सोया हुआ
व्यक्ति और समाज तक
तकलीफ़ के बावजूद
मतवातर आगे बढ़ते देखे गए हैं।
नींद में चलने वाला आदमी भी  
अचेतावस्था में आगे बढ़ता है।
बेशक ‌जागने पर
वह अपनी इस अवस्था की बाबत
सिरे से इंकार करे।
नींद में चलना बिल्कुल स्वाभाविक है,
बेशक यह चेतन व्यक्ति को अच्छा न लगे।
जीवन धारा हरेक अवस्था में आगे बढ़ी है,
यह रोके से न कभी रुकी है।
यह सोई ही कब थी ?
जो अपनी नींद से जगने पर
हड़बड़ाए आदमी सी जगी है।
नींद में चलना स्वप्न में जीवन जीने जैसा है।
स्वप्न भंग हुआ नहीं कि
सब कुछ नष्ट प्रायः और भूल-भुलैया में खोने सरीखा ,
कुछ कुछ फीका
और
कुछ कुछ तेज़ मिर्ची सा तीखा और तल्ख।
२९/०१/२०२५.
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