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व्यक्ति को
विशेष
बनाता है ,
मन के भीतर व्याप्त
जिम्मेदारी का
अहसास!
व्यक्ति
स्वयं को
समझता है खास।
अभी अभी
सुबह सुबह
पढ़ी है एक ख़बर
मेरे शहर का
एक बालक
जूडो की चैंपियनशिप में
जीत कर लाया है
एक सिल्वर मेडल।
वह बड़ा होकर
माँ को देना चाहता है
एक घर की सौगात !
छोटे भाई को
बनाना चाहता है
एक अच्छा इंसान !
उम्र उसकी अभी है
बारह साल ,
वह रखना चाहता है
माँ और छोटे भाई का ख्याल।
जिम्मेदारी की भावना
उसे बना देती है ख़ास।
उसे है जीवन की
मर्यादा का अहसास।
मैं चाहता हूँ कि
मेरा शहर उसके स्वप्न को
पूरा करने में मददगार बने
ताकि विशिष्टता का भाव
उसके भीतर सदैव बना रहे।
जीवन संघर्ष में वह विजयी बने।
सार्थकता के पुष्प
उसके इर्द गिर्द खिलते रहें !
उसे प्रफुल्लित करते रहें !!
विशेष विशिष्ट बने!
जीवन की सुगंध
उसका मार्ग प्रशस्त करती रहे।
२१/०१/२०२५.
किसे नहीं जीवन
अच्छा लगेगा ?
जब जीवन के प्रति
मतवातर आकर्षण जगेगा।
मृत्यंजय क्यों कभी कभी
मौत के आगोश में चला जाता है?
जिसका नाम मृत्यु को जीतने वाला हो ,
वह क्यों जीवन के संघर्षों से हार जाता है?
अभी अभी पढ़ी है एक ख़बर कि
मृत्युंजय ने फंदा लगा लिया।
वह जीवन से कुछ निराश और हताश था।
आओ हम करें प्रयास
कि सब पल प्रति पल
बनाए रखें जीवन में
सकारात्मक घटनाक्रम की आस
ताकि आसपास हो सके उजास,
भीतर भी सुख ,समृद्धि और संपन्नता का
सतत होता रहे अहसास।
अचानक शिवशक्ति को
अपने नाम मृत्यंजय में समाहित
करने वाला जीवात्मा
असमय जीवन में न जाए हार।
वह जीवन को अपनी उपस्थिति से
आह्लादित करने में सक्षम बना रहे।
वह अचानक सभी को
शोकाकुल न कर सके।
वह जीवन को हंसते हंसते वर सके।
२०/०१/२०२५.
अपनी तकलीफ़ को
बता पाना नहीं है
कोई आसान काम।
सुख में खोया आदमी
नहीं दे सकता  
दूसरों के दुःख,दर्द, तकलीफ़ की
ओर ध्यान।
वह रहता अंतर्मगन।
वह आवागमन के झंझटों से दूर रहना चाहता है।
वह अपनी दुनिया में खोया रहता है,
उसका अंतर्मन अपने आप में तल्लीन रहता है।
छोटा बच्चा रोकर
अपनी तकलीफ़ बताता है।
किसान मजदूर धरना प्रदर्शन करने से
सरकार को अपनी तकलीफें बताना चाहते हैं।
और बहुत से लोग तकलीफ़ बताता तो दूर ,
वे संकुचा कर रह जाते हैं।
वे अपनी तकलीफ़ कह नहीं पाते हैं।
वे इस पीड़ा को सहते हुए
और ज्यादा जख्मी होते रहते हैं।
कहीं आप भी तो उन जैसे तो नहीं ?
आप मुखर बनिए।
जीवन में अपनी तकलीफ़ बताना सीखिए।
20/01/2025.
दविंदर ने
एक दिन अचानक
पहले पहल
शिवालिक की नीम पहाड़ी इलाके में
भ्रमण करते हुए
दिखाया था एक कीड़ा
जो गोबर को गोल गोल कर
रहा था धकेल।
आज उस का एक चित्र देखा।
उस की बाबत लिखा था कि
यह गोबर की गंध से
होता है आकर्षित
और इसे गोलाकार में
लपेटता हुआ
अपने बिल में ले जाने को
होता है उद्यत
पर गोबर की गेंद नुमा यह गोला
आकार में बिल के छेद से बन
जाता है कुछ थोड़ा सा बड़ा
वह इसे बिल में धकेलने की करता है कोशिशें
पर अंत में थक हार कर
अपनी बिल में घुस जाता है।
इस घटनाक्रम की तुलना
आदमी की अंतरप्रवृत्ति से की गई थी।
इस पर मुझे दविंदर का ध्यान आया था ।
मैंने भी खुद को गोबर की गंध से आकर्षित हुए
कीट की तरह जीवन को बिताया था
और अंततः मैं एक दिन सेवा निवृत्त हो घर लौट आया था
पर मैं ढंग से अपने इकट्ठे किए गोबर के गोले अर्थात् संचित सामान को सहेज नहीं पाया था।
मैं खाली हाथ लौट पाया था
जस का तस गोबरैला बना हुआ सा।
२०/०१/२०२५.
The waves of ups and downs
in life
makes us
feel quite happy and exciting
while surfing in the ocean of emotions.

All such adventurous situations and  sufferings in life
make the journey of life
too some extent challenging.
Surfing 🌊 on the waves of sufferings
proves the life worth living.
It is just the fun of wandering and giggling.
देह क्या है
एक आकार ,
पंच तत्वों से
निर्मित
एक पुतला भर !
या फिर कुछ ज़्यादा !!
चेतन की देह में उपस्थिति भर!!
देह के भीतर व्यापा चेतन
कहां से मन को नियंत्रित कर पाता है ?
इस बाबत सोचते पर
आदमी मूक रह जाता है।
वह अपनी देह से नेह के जुड़े होने की
जब जब अनुभूति करता है,
वह अचंभित होता हुआ
तब तब अपनी काया के भीतर
विराट की उपस्थिति को समझ पाता है।
वह बस इस अहसास भर से  
स्वयं को उर्जित पाता है
और अपनी संभावना को टटोल जाता है।
इससे पहले कि वह
आकर्षण के पाश में बंध कर
अपनी जीवन धारा को चलायमान रखने के निमित्त
दैहिक निमंत्रण की बाबत सोचना शुरू करे ,
वह स्वयं को दैहिक और मानसिक रूप से दृढ़ करे ,
और हां, वह दैहिक नियंत्रण के लिए
जी भर कर यौगिक क्रियाएं और व्यायाम करे
ताकि उसकी आस्था
जीवनदायिनी
चेतना के प्रति अक्षुण्ण बनी रहे।
यह जीवन में उतार चढ़ाव के समय भी
संतुलित दृष्टिकोण से पल्लवित और पोषित होती रहे,
जीवन धारा को आगे बढ़ाने में सक्षम बनी रहे।
जीवन पथ पर आगे बढ़ने के दौरान
कहीं कोई कमी न रहे ,
बल्कि  इस देह में
ऊर्जा बनी रहे।

देह के निमंत्रण को स्वीकार करने से पूर्व
आदमी का देह पर नियंत्रण बना रहे,
ताकि सफलता मतवातर मिले।
यह जिंदगी सदैव महकती रहे।
यह खुशबू बिखेरती रहे।
यह अपने सार्थक होने की
प्रतीति करा सके।
१९/०१/२०२५.
अचानक
किसी भावावेग में
आकर
आदमी
क्रूरता की
सभी हदें
पार कर जाए
और होश में आने के बाद
भागता फिरे
निरन्तर
वह बेशक पछताए,
परंतु
गुजरा समय लौट कर न आए।
इससे बचने का
ढूंढना चाहे कोई उपाय।
उसका बचना मुश्किल है।
वह कैसे अपना बचाव करे ?
अच्छा है कि वह किसी दुर्ग में
छुपने की बजाय
परिस्थितियों का सामना करे।
कानून और न्याय व्यवस्था के सम्मुख
आत्म समर्पण करे।

अगर छिपने के लिए
मिल भी जाए कोई दुर्ग जैसी सुरक्षित जगह का अहसास
तब भी एक पछतावा सदा करता रहता है पीछा।
एक सवाल मन में रह रह कर करता रहेगा बवाल ,
अब बचाव करूं या भागने की फिराक में रहूं ?
अच्छा रहेगा कि
आदमी खुद को निडर करे
और सजा के लिए खुद को तैयार करे ।
आत्म समर्पण एक बेहतर विकल्प है ,
अपनी गलती को सुधारने का प्रयास ही बेहतर है
जिससे एक बेहतर कल मिल सके ,
ताकि आदमी भविष्य में खुल कर जी सके।
१९/०१/२०२५.
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