देह क्या है
एक आकार ,
पंच तत्वों से
निर्मित
एक पुतला भर !
या फिर कुछ ज़्यादा !!
चेतन की देह में उपस्थिति भर!!
देह के भीतर व्यापा चेतन
कहां से मन को नियंत्रित कर पाता है ?
इस बाबत सोचते पर
आदमी मूक रह जाता है।
वह अपनी देह से नेह के जुड़े होने की
जब जब अनुभूति करता है,
वह अचंभित होता हुआ
तब तब अपनी काया के भीतर
विराट की उपस्थिति को समझ पाता है।
वह बस इस अहसास भर से
स्वयं को उर्जित पाता है
और अपनी संभावना को टटोल जाता है।
इससे पहले कि वह
आकर्षण के पाश में बंध कर
अपनी जीवन धारा को चलायमान रखने के निमित्त
दैहिक निमंत्रण की बाबत सोचना शुरू करे ,
वह स्वयं को दैहिक और मानसिक रूप से दृढ़ करे ,
और हां, वह दैहिक नियंत्रण के लिए
जी भर कर यौगिक क्रियाएं और व्यायाम करे
ताकि उसकी आस्था
जीवनदायिनी
चेतना के प्रति अक्षुण्ण बनी रहे।
यह जीवन में उतार चढ़ाव के समय भी
संतुलित दृष्टिकोण से पल्लवित और पोषित होती रहे,
जीवन धारा को आगे बढ़ाने में सक्षम बनी रहे।
जीवन पथ पर आगे बढ़ने के दौरान
कहीं कोई कमी न रहे ,
बल्कि इस देह में
ऊर्जा बनी रहे।
देह के निमंत्रण को स्वीकार करने से पूर्व
आदमी का देह पर नियंत्रण बना रहे,
ताकि सफलता मतवातर मिले।
यह जिंदगी सदैव महकती रहे।
यह खुशबू बिखेरती रहे।
यह अपने सार्थक होने की
प्रतीति करा सके।
१९/०१/२०२५.