Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
आजकल
दुनिया असली से
नकली बनती जा रही है ,
आभासी दुनिया की
चकाचौंध भी
अब सभी को
लुभा रही है ,
यह दिन प्रति दिन
भरमा रही है।

इस दुनिया के
अपने ही ख़तरे हैं,
हम सब आभास करते हैं
कुछ सचमुच का होने का ,
पर यह होता नहीं , कहीं भी।
इसे असल दुनिया में
खोजने लगें
तो हासिल होता कुछ भी नहीं ,
फिर भी लगता सब कुछ ठीक और सही।
मैं आभासी अंतरंगता के
दौर से भी गुजर चुका हूँ,
खुद को खूब थका चुका हूँ।
सब कपोल कल्पित
किस्से कहानियों में वर्णित
रंग बिरंगी दुनिया के
आकर्षक और लुभावने पात्रों की तरह !
इर्द गिर्द मंडराते और घूमते दिखाई देते हैं !!
एक नशीली महिमा मंडित दुनिया की तरह !
जहां असलियत और सच्चाई के लिए
होती नहीं कोई जगह बेवजह।

आभासी दुनिया का सच
कब हो जाए गायब और गुम !
यह कर दे इंसान को गुमसुम !!
कुछ कहा नहीं जा सकता !
बहुत कुछ कभी सहा नहीं जा सकता !!

जैसे ही रीचार्ज खत्म
समझो आभासी दुनिया का तिलिस्म भी हुआ खत्म !
और जैसे ही इंटरनेट कनेक्शन हुआ डिस्कनेक्ट !
वैसे ही समझो अब कुछ खत्म और समाप्त !
समूल सत्यानाश ! सब कुछ तहस नहस !
जीते जी बेड़ा गर्क !
जिन्दगी बन जाती साक्षात नरक !

इस आभासी दुनिया के खिलाड़ी
एक आभासी दुनिया में रहकर संतुष्ट होते हैं !
वे किसी हद तक
स्व निर्मित कैद को भोगने को विवश होते हैं !
क्या कभी कल्पित वास्तविकता
हम सब को हड़प जाएगी ?
हाय!तब हमारी असली दुनिया कहाँ ठौर ठिकाना पाएगी?
१७/०१/२०२५.
ऋण लेकर
घी पीना ठीक नहीं ,
बेशक बहुत से लोग
खुशियों को बटोरने के लिए
इस विधि को अपनाते हैं।
वे इसे लौटाएंगे ही नहीं!
ऋणप्रदाता जो मर्ज़ी कर ले,
वे बेशर्मी से जीवन को जीते हैं।
ऋण लौटाने की कोई बात करे
तो वे लठ लेकर पीछे पड़ जाते हैं।
ऐसे लोगों से निपटने के लिए
बाउंसर्स, वकील, क़ानून की मदद ली जाती है ,
फिर भी अपेक्षित ऋण वसूली नहीं हो पाती है।

कुछ शरीफ़ इंसान अव्वल तो ऋण लेते ही नहीं,
यदि ले ही लिया तो उसे लौटाते हैं।
ऐसे लोगों से ही ऋण का व्यापार चलता है,
अर्थ व्यवस्था का पहिया विकास की ओर बढ़ता है।

ऋण लेना भी ज़रूरी है।
बशर्ते इसे समय पर लौटा दिया जाए।
ताकि यह निरन्तर लोगों के काम में आता जाए।

कभी कभी ऋण न लौटाने पर
सहन करना पड़ता है भारी अपमान।
धूल में मिल जाता है मान सम्मान ,
आदमी का ही नहीं देश दुनिया तक का।
देश दुनिया, समाज, परिवार,व्यक्ति को लगता है धक्का।
कोई भी उन पर लगा देता है पाबंदियां,
चुपके से पहना देता है अदृश्य बेड़ियां।
आज कमोबेश बहुतों ने इसे पहना हुआ है
और वे इस ऋण के मकड़जाल से हैं त्रस्त,
जिसने फैला दी है अराजकता,अस्त व्यस्तता,उथल पुथल।

हो सके तो इस ऋण मुक्ति के करें सब प्रयास !
ताकि मिल सके सभी को,
क्या व्यक्ति और क्या देश को, सुख की सांस !!
सभी को हो सके सुख समृद्धि और संपन्नता का अहसास!!
१७/०१/२०२५.
चोरी चोरी
चुपके चुपके
बहुत कुछ
घटता है छुप छुप के।
अगर अचानक कोई
रंगे हाथों पकड़ा जाता है,
तो उसका प्यार
या फिर लुकाव छुपाव
सबके सामने आ जाता है ,
स्वत: सब कुछ खुल कर
नजर आ जाता है ,
पर्दाफाश हो जाता है।
हरेक शरीफ़ और बदमाश तक
प्रायः इस अनावृत हो जाने की
घबराहट की जद में आ जाता है।
पर्दाफाश होने का डर
आदमी के
समाप्त होने तक
पीछा करता रहता है।
अच्छा रहेगा
आदमी दुष्कर्म न ही करे
ताकि कोई डर
अवचेतन मन में
दु:स्वप्न बनकर
मतवातर पीछा न करे।
16/01/2025.
उन्होंने मुझे देना चाहा
नव वर्ष की शुभ कामनाओं के साथ
एक आकर्षक कैलेंडर
परंतु मैंने शुभ कामनाओं को
अपने पास संभाल कर रख लिया और
कैलेंडर विनम्रता से लौटा दिया।
वज़ह छोटी व साफ़ थी कि
कैलेंडर पर आराध्य प्रभु की छवि अंकित थी।
साल ख़त्म हुआ नहीं कि
कैलेंडर अनुपयोगी हुआ।
वह शीघ्र अतिशीघ्र कूड़े कचरे के हवाले हुआ।
यह संभव नहीं कि उसे फ्रेम करवा कर संभाला जाए।
फिर क्यों जाने अनजाने
अपने आराध्य देवियों और देवताओं का
अपमान किया जाए ?
अच्छा रहेगा कि कैलेंडरों पर
धार्मिक और आस्था के स्मृति चिन्हों को
प्रकाशित न किया जाए।
उन पर रंगीन पेड़ पौधे,पुष्प,पक्षी,पशु और
बहुत कुछ सार्थकता से भरपूर जीवन धारा को
इंगित करता मनमोहक दृश्वावलियों को छापा जाए।
जो जीवन की सार्थकता का अहसास करवाए ,
मन में मतवातर प्रसन्नता के भावों को जगाए ।
१६/०१/२०२५.
सर्दियों की धूप
देती है
देह को,
देह में रहते नेह को
अपार सुख।
यही गुनगुनी धूप आदमी को
जिन्दगी में गुनगुनाने को
करती है मजबूर
कि उसके भीतर की
तमाम उदासी धीरे धीरे
होती जाती दूर।
सर्दियों की धूप भी
क्या होती है ख़ूब !
यह जीवन में
ऊर्जा भर जाती है,
तन और मन में
आशा और सद्भावना के
पुष्प खिला देती है ,
जीवन में संभावना की
महक का अहसास करा देती है।
ठंडी हवा के दौर में
यह धूप न केवल अच्छी लगती है
बल्कि यह भीतर तक
जीवन धारा से
आत्मीयता की ऊष्मा का बोध करवाने लगती है ,
जिससे
जिन्दगी आनंद से भरपूर लगने लगती है।
कभी कभी यह मन को मस्ताने लगती है।

सर्दियों की गुनगुनी धूप का जादू
जब सिर चढ़ कर बोलता है ,
तब आदमी का सर्वस्व आनंदित होता है ,
उसका रोम रोम भीतर तक पुलकित होता है।
ठंड से घिरे आदमियों के जीवन में
इस गुनगुनी धूप का आगमन
किसी वसंत के आने से कम नहीं।
यह जीवनदायिनी बन जाती है,
यह संजीवनी सरीखी होकर
जीवन को ऊष्मा और ऊर्जा से भरपूर कर देती है।
यह मन में सद्भावना का नव संचार भी करती है,
जिससे जीवन में सार्थकता की प्रतीति होने लगती है।
१६/०१/२०२५.
आज असंतोष की आग
हर किसी के भीतर
धधक रही है।
यह आग
दावानल सी होकर
निरन्तर बढ़ती जा रही है
और सुख समृद्धि और संपन्नता को
झुलसाती जा रही है।
यह कभी रुकेगी भी कि नहीं ?
इस बाबत कुछ कहा नहीं जा सकता ;
आदमी का लोभ,लालच, प्रलोभन
सतत दिन प्रति दिन बढ़ रहा है,
फलत: आदमी असंतोष की आग में
झुलसता जा रहा है।
वह इस अग्नि दहन से कैसे बचे ?
उसे कुछ समझ नहीं आ रहा है।
उसके भीतर अस्पष्टता का बादल घना होता जा रहा है।
यह कभी बरसेगा नहीं , यह भ्रम उत्पन्न करता जा रहा है।
असंतोष जनित आग निरन्तर रही धधक।
पता नहीं यह कब अचानक उठे एकदम भड़क ?
कुछ कहा नहीं जा सकता ।
इससे आत्म संयम से ही है बचा जा सकता।
और कोई रास्ता सूझ नहीं रहा।
मनो मस्तिष्क में इस आग से उत्पन्न धुंधलका
अस्पष्टता की हद तक बढ़ता जा रहा।
इस आग की तपिश से हरेक है घबरा रहा।
१६/०१/२०२५.
मन में कोई बात
कहने से रह जाए
तो होती है
कहीं गहरे तक
परेशानी।
कौन करता है
एक आध को छोड़कर
मनमानी ?
असल में है यह
नादानी।
इस दुनिया जहान में
बहुत से हिम्मती
सच का पक्ष
सबके समक्ष
रखने की खातिर
दे दिया करते हैं
अपना बलिदान।
अभी अभी सुनी है
हृदय विदारक
एक ख़बर कि
सच के पुरोधाओं को
पड़ोसी देश में
किया जा रहा है
प्रताड़ित।

यह सुन कर मैं सुन्न रह गया।
अभिव्यक्ति की आज़ादी का पक्षधर
आज चुप क्यों रह गया ?
शायद ज़िन्दगी सबको प्यारी है।
पर यह भी है एक कड़वा सच कि
बिना अभिव्यक्ति की आज़ादी के
सर्वस्व
बन जाया करता
भिखारी है।
यह सब चहुं ओर फैली
अराजकता
क्या व्यक्ति और क्या देश दुनिया
सब पर पड़ जाया करती भारी है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बंदिशें लगाना
आजकल बनती जा रही
देश दुनिया भर में व्याप्त
एक असाध्य बीमारी है।
१५/०१/२०२५.
Next page