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आदमी के भीतर
बहुत सारी संभावनाएं
निहित हैं और उन को उभारना
चरित्र पर करता है निर्भर।
है न !
एक बात विचित्र
बूढ़े आदमी के भीतर
स्मृति विस्मृति के मिश्रण से
निर्मित हो जाता है
एक कोलाज ,
जो जीवन के आज को
दर्शाता है ,
कोई विरला इससे
रूबरू हो पाता है ,
बूढ़े आदमी की व्यथा कथा को
समझ पाता है,
उसके अंदर व्याप्त
समय के आधार पर
वृद्धावस्था की मानसिकता को
कहीं गहरे से जान पाता है।

और इस सबसे ज़रूरी है कि
बूढ़े आदमी के भीतर
सदैव रहना चाहिए
एक मासूमियत से लबरेज़ बच्चा
जो जीवन यात्रा के दौरान
इक्ट्ठा किए झूठ बोलने से हुए निर्मित
धूल मिट्टी घट्टे को झाड़कर
कर सके क़दम दर क़दम
आदमी की जीवन धारा को
साफ़ सुथरा और स्वच्छ।
आदमी दिखाई दे सके
नख से शिख तक सच्चा!
ताकि निश्चिंतता से
आदमी अपनी भूमिका को
ढंग से निभाते हुए
कर सके प्रस्थान!
बिल्कुल उस निश्छलता के साथ
जिसके साथ अर्से पहले
हुआ था उसका आगमन।
अब भी करे वह उसी निर्भीकता से गमन।
भीतर बस आगमन गमन का खेल
लुका छिपी के रहस्य और रोमांच सहित चलता है।
इस मनोदशा में राहत
उनींदी अवस्था में
सपन देख मिलती है।
बूढ़े के भीतर एक परिपक्व दुनिया बसती है।
क्या उसके इर्द-गिर्द की दुनिया
इस सच की बाबत कुछ जानती है ?
या फिर वह बातें बनाने में मशगूल रहती है !
०४/०१/२०२४.
हार के बाद हार फिर एक बार फिर हार
हार को हराना है हमें, फिर से विजेता
स्वयं को बनाना है हमें ।
बस! बहुत हुआ!
अब गिरते , गिरते भी
स्वयं को संतुलित रखना है हमें।
क़दम से क़दम मिलाकर चलना है हमें।
गिरने के दौर में , बुलन्द बनाना है एक दूसरे को हमें।

आज दुर्दिनों का दौर है भले
भीतर निराशा हताशा है भले ही
हमें मतवातर आत्मावलोकन करना है
तत्पश्चात स्वयं को संतुलित और समायोजित करना है,
हमें हर हाल में स्वयं को सिद्ध करना है
लड़े बग़ैर नहीं हार माननी है
हमें विजेता बन कर सब में उत्साह जगाना है,
हार जीत का अहसास बस एक सिलसिला पुराना है।
हमें हर हाल में स्वयं को आगे बढ़ाना है ,
जीत में हार, हार में जीत सरीखी खेलभावना को
अपने जीवन दर्शन में निरंतर आत्मसात करते हुए
खुद को जिताना ही नहीं,वरन सर्वस्व को
विजेता बनाकर दिखाना है।
हार पर प्रहार करते हुए, ‌
विजय पथ पर जीवन यात्रा को आगे बढ़ाना है।
हार के बाद हार,फिर एक हार ,और हार को बेंध जाना है। जीवन धारा को संघर्ष की ओर
मोड़ कर विजयी बनाना है हमें।
अपने भीतर एक विजेता की
जिजीविषा को उभारना है हमें।
हार गया ,पर , गया बीता नहीं हुआ मैं !
अंतर्मन की इस अंतर्ध्वनि को गौर से सब सुनें !!
ताकि सभी की गर्दनें रहें सदैव तनी हुईं।
०३/०१/२०२५.
रिश्ते निभाना सीखते हुए ,
जीवन जाता है बीत।
यह सब को
बहुत
देर में समझ
आते आते आता है,
जीवन का सुनहरी दौर
अति तीव्रता से
जाता बीत।
आदमी
खाली हाथ
मलता रह जाता है ,
वह पछताता हुआ
मन मसोस
कर रह
जाता
है , 
आओ
हम रिश्ते
निभाने की
दिशा में सतर्क
रहते हुए
इस पथ पर आगे बढ़ें।
रिश्तों को न ढोएं ,
बल्कि इसमें
प्यार और दुलार भरें।
इसके लिए
भीतर लगाव के
साथ  जीवन को जीने का
आगाज़ करें,
कभी भी
न लड़ें
अपनी बात
खुलकर कहें
और अपने इर्द-गिर्द
व्याप्त स्वार्थ की
अंधी दौड़ से  
बचें।
हमेशा सच की
राह पर चलें
ताकि  
बुराई से
बच सकें।
अपने भीतर
सुरक्षा,
सुख चैन का अहसास
भरपूर मात्रा में
भर सकें।
निडर बन सकें,
धीरे-धीरे धीरज धरें,
शांत मना बन सकें।
०३/०१/२०२५.
अभी अभी
मोबाइल सन्देश से
पता चला है कि
देश भर में
नवीनतम आंकड़ों के अनुसार  
पहले की तुलना में,
गुरबत में आई है कमी।
कोविड से लड़ने में देश रहा है सफल।
उसका सुफल है देश भर में
ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वालों
की संख्या दिन-प्रतिदिन घट रही है,
फलत: गुरबत में कमी दे
रही है दिखाई ।
आम आदमी की समझ और
जागरूकता
अब तेजी से बढ़ रही है।
अर्थव्यवस्था भी
अब तेजी पकड़ती जा रही है।
ग़रीबों के उत्थान हेतु
सरकार आमजन और सम्पन्न वर्ग के मध्य
एक सेतु की भूमिका निभा रही है।

देश दुनिया और समाज में
कोई कमी न रहे,
देश दुनिया
संसार भर में फैले
भ्रष्टाचार के पोषकों से बचें।
फिर कैसे नहीं लोग
गुरबत छोड़ कर
सुख समृद्धि और सम्पन्नता को वरें ?
इस बाबत हम-सब
सकारात्मक सोच को अपनाकर आगे बढ़ें।
०३/०१/२०२५.
अख़बार के
एक ही पन्ने पर
छपी है  दो खबरें।
दोनों का संबंध
सड़क हादसों से है ,
एक सकारात्मक है
और दूसरी नकारात्मक,
पर ...!

शुरूआत सकारात्मक खबर से,
"देशभर में सड़क हादसों में ११.९ प्रतिशत इजाफा,
चंडीगढ़ में १९ प्रतिशत कमी ।..."
आंकड़ों की इस बाजीगरी को पढ़ और समझ
आया मुझे समय में व्याप्त चेतना का ध्यान,
हम क्यों नहीं करते इस समय बोध का
रोज़मर्रा की दिनचर्या में , सम्मान ?
ताकि सभी सुरक्षित रहें,
काल कवलित होने से बच सकें।
मेरे मन में सिटी ब्यूटीफुल की
ट्रैफिक व्यवस्था के प्रति सम्मान भावना बढ़ गई।
काश! ऐसी ट्रैफिक व्यवस्था देश भर में दिखे ,
जिसने की ट्रैफिक रूल्स की अवहेलना
उसका चेतावनी के साथ चालान भी कटे।
यही नहीं , इस चालान राशि में से
एकत्रित की गई
धन राशि में से
न केवल सड़क सुरक्षा जागरूकता कार्यक्रम को चलाया जाना चाहिए बल्कि इससे
ट्रैफिक व्यवस्था से संबंधित उत्पादों को भी खरीदा जाए बल्कि आम आदमी तक को  
ट्रैफिक संचालन से जोड़ा जाना चाहिए ,
ताकि देश की आर्थिकता को भी बल मिल सके।

इसी पन्ने पर दूसरी ख़बर थोड़ी नकारात्मक है ,
" धुंध में साइन बोर्ड से टकराया बाइक सवार ,
अस्पताल में मौत ।"

क्यों न सड़क सुरक्षा के निमित्त
आसपास निर्मित कर दिए जाएं  बैरियर ?
जो धुंध के समय ट्रैफिक को
स्वत: कम रफ़्तार से आगे बढ़ाएं ,
ताकि बाइक सवार डिवाइडर से टकराने से बच जाएं।
वैसे भी बाइक सवार यदि ड्रेस कोड को भी अपना लें,
तब भी किसी हद तक
हो सकता है  
दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाव।
धुंध के समय
ज़रूरी होने पर ही
घर और दफ्तर से निकलें बाहर,
इस समय स्वयं पर
अघोषित कर्फ्यू लगा लेना ही है पर्याप्त।
एक ही पन्ने पर
बहुत कुछ अप्रत्याशित
छप जाता है ,
उसे पढ़ना और गुनना
अपरिहार्य हो जाता है ,
बशर्ते किसी की
पढ़ने लिखने और उसे
अभिव्यक्त करने में रुचि हो।
कभी तो वह
छोटी-छोटी बातों पर
ध्यान केंद्रित करे,
जीवन में आगे बढ़ सके।
०३/०१/२०२५.
नया साल इस बार
अच्छे से तैयार होकर आया है।
सबके लिए सकारात्मक सोच से भरे
नए नए विचारों को जीवन धारा में
संयोजित करने का संकल्प लेकर आया है।
अभी अभी पढ़े है मैंने दो मन के भीतर
भरोसा जगाने वाले दो समाचार।
पहला समाचार कुछ इस प्रकार है कि
"अब जेलों में कैदियों और उनके बच्चों को
शिक्षित करेंगे जेबीटी अध्यापक,
(बेरोज़गारी के दौर में ) १५ को मिली नियमित नियुक्ति "
इससे पहले इन पदों पर अस्थाई नियुक्ति होती थी,
अब हुई है नियमित भर्ती।
उम्मीद है देश दुनिया में कार्यरत सरकारें
ऐसी सकारात्मक सोच और योजनाओं को
अपने यहां भी लागू कर पाएंगी,
बेरोज़गारी के खिलाफ़ अपने नागरिकों में
जन चेतना की अलख जगाएंगी ।
देश दुनिया और समाज को जागरूक करते हुए
' वसुधैव कुटुम्बकम् ' के उज्ज्वल पथ पर आगे बढ़ाएंगी।

दूसरा समाचार भी कुछ इस प्रकार है कि
पंचनद प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे
मिड-डे-मील योजना के तहत
सर्दियों के अवकाश के बाद
जनवरी माह के लिए
कड़ाके की ठंड से बचने को ध्यान में रखते हुए
देसी घी से तैयार हलवे और पौष्टिकता से भरपूर खीर का
लुत्फ़ उठा पाएंगे।
अपने भीतर उमंग तरंग और व्यवस्था के सम्मान भाव
जगाते हुए स्वास्थ्यवर्धक योजना का लाभ उठा पाएंगे।

तीसरा समाचार भी कुछ इस प्रकार रहना चाहिए कि
सभी लोग नख से शिख तक जागरूक हो गए हैं,
वे अपने भीतर लक्ष्य सिद्धि के भाव जगा कर
देश, दुनिया और समाज को
सुख समृद्धि, संपन्नता और सौहार्दपूर्ण माहौल की
निर्मित करने की दिशा में बढ़ रहे हैं।
हालांकि यह समाचार मेरे बावरे मन की उपज है।
यह कपोल कल्पित है ।
क्या पता कोई चमत्कार हो जाए !
एक दिन यह भी सच्चाई में बदल जाए !!
फिर कैसे कोई जीवन धारा में पिछड़ जाए ?.... और...
जीवन में अराजकता की आंधी को फैलाने की सोच पाए ?
काश! सभी अपने भीतर सकारात्मक होने की
लग्न और चाहत जगा पाएं।
इसी जीवन में समरसता के साथ जीवन यापन कर पाएं।
०३/०१/२०२५.
कभी कभी
नींद
देरी से
खुलती है,
दुनिया
जगी होती है।
सुबह सुबह
अख़बार पढ़ने की
तलब उठती है
पर
अख़बार  पढ़ने को
न मिले ,
उसे कोई उठा ले।
अख़बार ढूंढ़ने पर भी न मिल सके
तो मन में
बढ़ जाती है बेचैनी ,
होने लगती है परेशानी।

अख़बार की चोरी
धन बल की चोरी से
लगने लगती है बड़ी ,
दुनिया लगती है रुकी हुई
और ज़िन्दगी होती है प्रतीत
बाहर भीतर से थकी हुई।
ऐसे में
कुछ कुछ पछतावा होता है,
मन में फिर कभी देरी से
न उठने का ख्याल उभरता है,
मन में जो खालीपन का भाव पैदा हुआ था,
वह धीरे-धीरे भरने लगता है ,
जीवन पूर्ववत चलने लगता है।
अख़बार चोरी का अहसास
कम होने लगता है।
०३/०१/२०२५.
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