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आज जब देश दुनिया
अराजकता के मुहाने पर खड़ी है
एक समस्या मेरे जेहन में चिंता बनी हुई है।
सब लोग इतिहास को
फुटबाल बना कर अपने अपने ढंग से खेल रहे हैं।
सब धक्कामुक्की ,  जोर-जबरदस्ती कर
अपनी बात मनवाने में लगे हैं।
सब स्वयं को विजेता सिद्ध करना चाहते हैं।
अपना नैरेटिव गढ़ना चाहते हैं।
वे गड़े मुर्दे कब्रों से निकालना चाहते हैं।
ऐसे हालात में
एक पड़ोसी देश के मान्यनीय मंत्री महोदय ने
सच कह कर बवाल मचा दिया।
हंगामेदार शख़्सों को सुप्तावस्था से जगा दिया।
उन्होंने आक्रमणकारी महमूद गजनवी की
बाबत अपना नज़रिया बताया और
अपने वतनवासियों को चेताया कि
अब सच को छुपाया जाना नहीं चाहिए।
इस की बाबत यथार्थ को स्वीकारा जाना चाहिए।

इतना सुनते ही वहां बवाल हो गया।
इतिहास के बारे में अबूझ सवाल खड़ा हो गया।
इतिहास की अस्मिता के सामने अचानक
अप्रत्याशित रूप से एक प्रश्नचिह्न लगा देखा गया।
मैंने इस घटनाक्रम को लेकर सोचा कि
अब और अधिक देर नहीं होनी चाहिए।
इतिहास का सच जनता जनार्दन के सम्मुख आना चाहिए।
इतिहास के विशेषज्ञों और मर्मज्ञों द्वारा
उपेक्षित इतिहास बोध को पुनर्जीवित करने के निमित्त
इतिहास का पुनर्लेखन किया जाना चाहिए
ताकि इतिहास अतीत का आईना बन सके।
इसके उजास से
अराजकता और उदासीनता को
घर आने से रोका जा सके।
सब अपने को गौरवान्वित महसूस कर सकें।

आखिरकार सच का सूरज
बादलों के बीच से बाहर निकल ही आता है ,
जब संवेदनशील राजनेता
इतिहास की बाबत सच को उजागर कर देता है।
वह जाने अनजाने सबको भौंचक्का कर ही देता है।
इतिहास अब चिंतन मनन का विषय बन गया है।
यह जिज्ञासुओं के दिलों की धड़कन भी बन गया है।
इसके सच की अनुभूति कर गर्व से सीना तन गया है।
०२/०१/२०२५.
Who is a perfect person ,
a reformer or a performer in the world?
The performance speaks itself
despite  talking about the achievements in an effective way.
While reformer gives simply a justification  regarding the demerits and merits of a social setup.
He can try to rectify the issue with expressing his voice in the public .
I think none is perfect in life.
Only the performance speaks itself accurately in one's life.
The performer always survives in the ups and downs of ever changing world.
सबसे मुश्किल है ,
सभी से बना कर रखना।
सबसे आसान है ,
समूह से दूर रखकर ,
खुद को अकेले करना।
सबसे महत्वपूर्ण है ,
लगातार पड़ते व्यवधानों के बावजूद
संवाद स्थापना की
दिशा में आगे बढ़ना।
इसके लिए
अपनी लड़ाई आप लड़ना।
इस सब से अपनी हार की
आशंका को निज से दूर रखना।
इन सब से अपरिहार्य है
जीवन में हरदम मुस्कुराते रहना ,
आलोचना और डांट को
खुशी खुशी सहने के लिए
अपने भीतर हिम्मत और साहस जुटाना।
डांट डपट आलोचना को
जीवन का भोजन समझते हुए
अपना हाजमा दुरुस्त बनाना।

इस जीवन में
सबसे मुश्किल है
खुद को बगैर लक्ष्य के
ज़िन्दा रख पाना।
सबसे आसान है
स्वयं को भूलकर
जीवन की आरामगाह में रहना,
निज को सुरक्षित रखना,
कुछ भी करने से बचना।
सबसे अपरिहार्य है
सबको अपनी मौजूदगी का
बराबर अहसास करवाते रहना।
अपने घर परिवार और समाज के हितों के रक्षार्थ
अपने सर्वस्व को समर्पित कर पाना।
अतः सबके लिए अपरिहार्य है
अपने भीतर की यात्रा करते हुए
सब्र के अमृत कलश को ढूंढते रहना।
असंतोष की अग्नि को
अपने तन और मन से दूर रख पाना,
ताकि आदमी भूल पाएं
जीवन में डरते हुए मरना,
इस अनमोल जीवन को व्यर्थ कर जाना।
इन सबसे महत्वपूर्ण है
सभी का सकारात्मक सोच को वर पाना।
२८/०५/२००५.
जीवन का अंत
कभी भी हो सकता है।
क्या पता कब
काल अपने रथ पर
होकर सवार
द्वार पर दस्तक देने
आ जाए ?
...और हमें
उनके साथ
जीवन से प्रस्थान
करना पड़ जाए।

इसी बीच जीवन
मतवातर बतियाता है सबसे
सभी को अपनी चेतना से
साक्षात्कार करवाता हुआ ,
काल के रथ पर
चढ़ने के लिए
स्वयं को हर पल
तैयार रखने के लिए ,
यात्रा पथ पर आगे बढ़ाने के लिए !

इससे पहले कि
यह यात्रा वेला आए ,
जीवन बतियाता
रहता है सबसे धीरे-धीरे।

रह रहकर
जीवन बतियाता रहता है
यह जीवन धारा में
खुशबू और उजास
बिखेर कर
सबको चेतन बनाता है।
काल के आगमन से पूर्व
हमें सचेत करता रहता है।

यह ठीक है कि
मृत्यु हमें विश्राम करवाने के लिए
अपने मालिक काल के
रथ पर होकर सवार
हर पल तेजी से
हमारी ओर आ रही है
इससे पहले कि हमें
काल के रथ पर बैठना पड़े ,
हम अपने अधूरे कार्यों को पूरा करें।
कहीं यह न हो, हमें अधूरे कार्य छोड़ जाना पड़े।
१५/१०/२००७.
हम विस्मृति के अवशेष से बंधे
कहां याद रख पाते हैं ?
उन बंधु बांधवों को
जो कभी हम से ,
इस हद तक थे जुड़े
कि हर संकट की घड़ी में
डट कर हो जाते थे खड़े ।
आज वे स्मृति पटल पर
जीवन की अविस्मरणीय उपस्थिति दर्शा कर
हमें यदा-कदा अपने भीतर व्याप्त
जीवन धारा की रह रह कर
अपने अस्तित्व का अहसास करवाते हैं।
उनकी बातों को याद करते हुए
अक्सर हम सोचते हैं कि
उनमें कुछ तो ख़ास रहा होगा
जो वे आज भी
हमारे भीतर जीवन का ओज बने हुए बसते हैं,
अपनी दैहिक अनुपस्थिति के बावजूद
वे हर पल हमारी प्रेरणा और प्रेरक ऊर्जा बनते हैं,
जिनकी अद्भुत छत्र छाया में
असंख्य लोग आगे ही आगे बढ़ते हैं।
ऐसी आकर्षण से भरपूर विभूतियों को
हम मन ही मन नमन करते हैं।
उनके प्रेरणा पुंज और ख़ास आभा मंडल के सम्मुख
हम सदैव उन जैसी कर्मठता को
जीवन में अपनाने
और उनकी सोच को आगे बढ़ाने की नीयत से
मंगल कामनाओं से सज्जित पुष्पांजलि
स्मृति शेष होने पर अर्पित करते हैं।
वे खास किस्म की मानसिक दृढ़ता से परिपूर्ण व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी सोच से
आदमी की दशा और दिशा बदल दी,
तभी हम उन्हें रह रह कर याद करते हैं।
हम उन जैसा होने व बनने का प्रयास किया करते हैं ।
०१/०१/२०२५.
संवाद के
अभाव में
झेलना पड़ता है
संताप।
इस बाबत
क्या कहेंगे आप ?
आप मौन रहेंगे
या खुल कर
मन की बात कहेंगे
या फिर तटस्थ
बने रहेंगे।

संवादहीन रहकर
तनाव को झेलते रहेंगे।

आप मुखर होकर
सब के सामने रखें
मन की बात।
करना न पड़े
किसी को मतवातर
मनो मस्तिष्क को
खोखला करता हुआ
तनाव निर्मित दबाव ,
आत्मघात के लिए
होना न पड़े
किसी को बाध्य ,
बेशक संवाद रचना
अहंकार जनित आडंबर के दौर में
हो चुका है कष्ट साध्य।

मतभेद और मनभेद
भुलाकर
संवाद रचने का
करते रहिए
जीवनपर्यंत प्रयास
ताकि उड़ा न पाए
कोई कमअक्ल उपहास।
और...हां... छोड़िए अब
जीवन में करना
व्यर्थ का वाद विवाद
कायम किया जा सके
सार्थकतापूर्ण संवाद ही नहीं,
अंतर्संवाद भी बेहिचक , ख़ुशी ख़ुशी।
०१/०१/२०२५.
पिछले साल
यही कोई पांच महीने हुए
मुझे सेवानिवृत्ति दे दी गई ।
इस मौके पर
मुझे भव्य विदाई पार्टी दी गई ,
मेरी सच्ची झूठी प्रशंसा भी की गई ।
मैं खुश था कि
अब मैं अपने जीवन को
मन मुताबिक जी सकूंगा ,
खुलकर अपनी बात रख सकूंगा ।

मैंने भी अपने चिरपरिचितों को
खुशी खुशी पार्टियां दीं ।
फिर यकायक
मुझे इससे विरक्ति हो गई ,
मेरे भीतर असंतुष्टि भरती गई ।

घर वापसी का अहसास
कुछ समय अच्छा लगा।
अब मैं वापिस
अपनी अनुशासित दिनचर्या पाना चाहता हूँ।

समय भी
नए साल की
पूर्व संध्या पर
सेवानिवृत्त कर
दिया जाता है।
उसकी विदायगी का
दुनिया भर में
आडंबर रचा जाता है,
फिर आधी रात को
नए साल को
खुश आमद कहने के लिए
जोशोखरोश से
जश्न मनाया जाता है ,
फिर अगला नया साल आने तक
नवागन्तुक साल को भी
भुला दिया जाता है।

विगत वर्ष से
मैंने पूर्ववत जीवन से सीख लेकर
कविताएं पढ़ना और लिखना
शुरू कर दिया है , उम्मीद है
मैं इस माध्यम से
समय से संवाद रचा लूंगा।
विगत वर्षों को याद करते हुए
उनसे भी वर्तमान और भविष्य के
सम्बन्ध में कुछ राय मशवरा करूंगा
ताकि मैं भी जीवन से विदायगी लेते हुए
शब्दों के रूप में समय की वसीयत और विरासत को
अपनी समझ के अनुसार
कुछ अनूठे रूप में
अपनी भावी पीढ़ी को सौंप समय धारा में
विलीन हो सकूं...अनंत में , अनंत को खोज सकूं।
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