अजी जिन्दगी का किस्सा है अजीबोगरीब,
जैसे जैसे दर्द बढ़ता है , यह आती है करीब!
दास्तान ए जिन्दगी को सुलाने के लिए
कितनी साज़िशें रची हैं , है न रकीब !
जिन्दगी को जानने की होड़ में लगे हैं लोग ,
जीतते हारते सब बढ़े हैं , अपने अपने नसीब ।
जिन्दगी एक अजब शह है , बना देती फ़कीर ,
इसमें उलझा क्यों हैं ? अरे ! सुन ज़रा ऱफ़ीक़ !
यह वह पहेली है , जो सुलझती नहीं कभी ,
खुद को चेताना चाहा ,पर जेहन समझता नहीं।
२१/०६/२००७.