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Joginder Singh Dec 2024
क्या कभी सोचा आपने
आखिर हम क्यों लड़ते हैं ?
छोटी छोटी बातों पर
लड़ने झगड़ने बिगड़ने लगते हैं ।
जिन बातों को नजर अंदाज किया जाना चाहिए ,
उनसे चिपके रहकर
तिल का ताड़ बना देते हैं।
कभी कभी राई को पहाड़ बना देते हैं।
यही नहीं बात का बतंगड़ बनाने से नहीं चूकते।
आखिर क्या हासिल करने के वास्ते
हम अच्छे भले रास्ते से
अपना ध्यान हटा कर
जीवन में भटकते हैं।
कभी कभी अकेले होकर
छुप छुप कर सिसकते हैं।

क्या पाने के लिए हम लड़ते हैं ?
लड़कर हम किससे जीतते हैं ?
उससे , इससे , या फिर स्वयं से !
आखिकार हम सब थकते , टूटते, हारते हैं ,
फिर भी जीवन भर ज़िद्दी बने भटकते रहते हैं ।

क्या हम सभी कभी समझदार होंगे भी ?
या कुत्ते बिल्लियों की तरह लड़ते और बहसते रहेंगे !
लोग हमें अपनी हँसी और स्वार्थपरकता का
शिकार बनाकर
हमें मूर्ख बनाने में कामयाब होते रहेंगे ।
उम्मीद है कि कभी हम
अपने को संभाल खुद के पैरों पर खड़े होंगे।
शायद तभी हमारे लड़ाई झगड़े ख़त्म होंगे।

३०/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
यह जीवन जितना दिखता है सरल ,
उतना ही है यह जटिल।
इसमें जीने की खातिर
चली जाती हैं चालें बड़ी कुटिलता से
ताकि जीवन धारा को सतत्
ज़ारी रखा जा सके।
इसे उपलब्धियों के साथ
आगे ही आगे बढ़ाया जा सके।

जिन्दगी की राह में
यदि अड़चनें आती हैं बार बार
तब भी आप धीरज और सब्र संतोष को
संघर्ष और सूझ बूझ से बनाए रखें।
अपने भीतर सुधार और परिष्कार की
गुंजाइश बनाते हुए
आगे बढ़ने के करते रहें प्रयास,
ताकि क़दम क़दम पर
जिन्दगी की राह हमें
उपहार स्वरूप कराती रहे
आशा और संभावना से जुड़े
समय समय पर
जीवन के सार्थक होने का अहसास।

जिंदगी की राह
मुश्किलों और दुश्वारियों से है भरी हुई,
इस पर चलते हुए
फिसले नहीं कि
सब कुछ तबाह
और नष्ट,
मिलने लगता कष्ट।

इस राह पर आगे बढ़ते हुए
हरएक को रहना चाहिए सतर्क ,
जिन्दगी को सलीके से जीने के लिए
गढ़ने ही पड़ते हैं अपने लिए अनूठे तर्क ,
इनके अभाव में हो सकती है इसकी राह गर्क।
जिन्दगी की राह को आसान करने के लिए दिन रात
करनी पड़ती है मेहनत
और तब कहीं जाकर सफलता मिल पाती है,
अन्यथा कभी कभी इस की राह में रूकावटें बढ़ जाती हैं,
और जिंदगी के तमाम उतार चढ़ावों के बावजूद
हासिल कुछ नहीं होता , आदमी हाथ मलते रह जाते हैं।
३०/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
कार्टूनिस्ट
कमाल के साथ रखते हैं
प्रखर करने वाला विचार ,
यह जीवन के किसी भी क्षेत्र से
जुड़ा हो सकता है समाजोपयोगी से लेकर
राजनीतिक परिवर्तन तक।

अभी अभी
एक कार्टून ने
मेरे दिमाग से पूर्वाग्रह और दुराग्रह का
कचरा व कूड़ा कर्कट
कर दिया है साफ़ !

मुझे आम आदमी की
बेवजह से की गई
जद्दोजहद और कश्मकश
और
समान हालात में
नेतृत्वकर्ता के
लिए गये फैसले का बोध
कार्टून के माध्यम से
क्रिस्टल क्लियर हद तक
हुआ है स्पष्ट।

पशु को आगे बढ़ाने की
कोशिश में
आम आदमी ने
पशु को मारा , पीटा और लताड़ा ,
जबकि
नेतृत्वकर्ता ने
उसे चारे का लालच देकर ,
उसके सामने खाद्य सामग्री लटकाकर ,
उसे आगे बढ़ने के लिए
बड़ी आसानी से किया प्रोत्साहित।

इस एक कार्टून को देखकर
मुझे एक व्यंग्य चित्र का
आया था ध्यान ,
जो था कुछ इस प्रकार का, कि
भैंस को सूखा चारा खिलाने के निमित्त
ताकि कि उसका लग सके खाने में चित्त ।
भैंस की आंखों पर ,
हरे शीशों वाला चश्मा लगाया गया था।
इस चित्र और आज देखे कार्टून ने
मुझे इतना समझा दिया है कि
कोई भी समस्या बड़ी नहीं होती ,
उसे हल करने की युक्ति
आदमी के मन मस्तिष्क में होनी चाहिए।

अब अचानक मुझे
समकालीन राजनीतिक परिदृश्य में
सत्ता पक्ष और प्रति पक्ष द्वारा
जनसाधारण से
मुफ़्त की रेवड़ियां बांटने ,
लोक लुभावन नीतियों की बाबत
अथक प्रयास करने का सच
सहज ही समझ आ गया।
दोनों पक्षों का यह मानना है कि
हम करेंगे
अपने मतदाताओं से
मुफ़्त में
सुखसुविधा और "विटामिन एम " देने का वायदा !
ताकि मिल सके जीवन में सबको हलवा मांडा ज़्यादा !!
२९/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
उन्हें शिकवा शिक़ायत है कि आजकल
राजनीति गन्दगी भरपूर होती जा रही है।
मुझे उनका यह मलाल सही लगता है मगर
जेहन में कौंधता है एक ख्याल
जो उठाता रहा है भीतर मेरे बवाल और सवाल।

राजनीति किस कालखंड में शुचिता से जुड़ी रही?
क्या यह आजतक छल बल कपट प्रपंच की बांदी नहीं रही?
राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी  
भेड़ की खाल ओढ़े भेड़िए रहे हैं,
जो जीवन के सच को आम आदमी की निस्बत
अच्छे से समझते हैं
और वे सलीके से
देश दुनिया को शतरंज की बिसात बनाकर
अपना अद्भुत खेल खेलते हैं,
शह और मात से
निर्लिप्त रहकर अपनी मौजूदगी का अहसास
निरंतर करवाते हैं ,
देश दुनिया को अपना रसूख और असर
दिखाते रहते हैं।
आज आदमी की अस्मिता
राजनीति की दिशा और दशा से
बहुत करीब से जुड़ी हुई है।
हमारे भविष्य की उज्ज्वल संभावना
राजनीतिक परिदृश्य से बंधी हुई है।
यही नहीं
तृतीय विश्व युद्ध तक का आगमन
और विकास के समानांतर विनाश का होना
जैसे वांछित अवांछित घटनाक्रम
राजनीतिक हलचलों से जुड़े हुए हैं ,
जिससे राजा और रंक सब बंधे हुए हैं ,
भले ही वे भला करने के लिए कसमसाते रहते हैं।
राजनीति और राज्यनीति को जोड़े बग़ैर
देश दुनिया में सकारात्मक सोच का लाना असंभव है।
यह जीवन में राजनीतिक हस्तक्षेप करने का दौर है,
भले ही यह सब किसी को अच्छा न लगे।
यहां राजनीति के मैदान में कोई नहीं होते अपने और सगे।
२९/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
देश दुनिया में से
ग़रीबी
तब तक
नहीं हटेगी ,
जब तक
खुद मुफलिसी से
जूझने वाले
नहीं चाहेंगे ।
वे अपने भीतर
इससे लड़ने का साहस नहीं
जुटायेंगे ।
तभी देश दुनिया
ग़रीबी उन्मूलन अभियान
चला पायेंगे।
वैसे हमारे समय का
कड़वा सच है कि
यदि देश दुनिया में ग़रीबी न रहेगी
तो बहुत से
तथाकथित सभ्य समाजों में
खलबली मच जाएगी ,
उनकी तमाम गतिविधियों पर
रोक लग जाएगी।
सच कहूं तो
दुनिया
जो सरहदों में बंटी हुई है
वह एकीकृत होती नज़र आयेगी।
सब लोगों में
आत्मिक विकास एवं आंतरिक शांति की
ललक बढ़ जाएगी।
देश दुनिया सुख समृद्धि संपन्नता सौहार्दपूर्ण माहौल में
अपने को जागृत करती हुई नजर आएंगी।
ज़ंग की चाहत और आकांक्षा पर
पूर्ण रूपेण रोक लग जाएगी।
यह असम्भव दिवास्वप्न नहीं,
इस ग़रीबी उन्मूलन की दिशा में
सभी एक एक करके बढ़ें तो सही।
२९/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
अब
सबसे ख़तरनाक आदमी
सच बोलने वाला
हो गया है
और
झूठ का दामन
पकड़कर
आगे बढ़ने वाला
आदर्श
हो गया है।

क्या करें लो
आजकल
ज़मीर
कहीं भागकर
गहरी नींद में
सो गया है
और
सच्चा
झूठों की भीड़ में
खो गया है।

आजकल
सच्चा मानुष
अपने भीतर
मतवातर
डर भरता
रहता है ,
जबकि
झुके मानुष की
सोहबत से
सुख मिलता है।

आजकल
भले ही
आदमी को
अपने साथी की
हकीकत
अच्छे से
पता हो ,
उसके जीवन में
पास रहने से
सुरक्षित होने का
आश्वासन भरा
अहसास
बना रहता है।

बेशक
जीवन मतवातर
समय की चक्की में
पिसता सा लगे
और
आदमी सबकी
निगाहों से
खुद को छुपाते हुए
अंदर ही अंदर
सिसकियां भरता रहे ,
वह चाहकर भी
झूठे का दामन
कभी छोड़ेगा नहीं!
जीवन का पल्लू
कभी झाड़ेगा नहीं!
वह उसे बीच
मझधार
छोड़कर
कभी भागेगा नहीं!

आजकल
यही अहसास बहुत है
जीवन को अच्छे से
जीने के लिए।
कभी-कभी पीने,
खुलकर हंसने के लिए।
बेशक हरेक हंसी के बाद
खुद को ठगने का अहसास
चेतना पर हावी हो जाए।
फलत:
आजकल
आदमी सतत्
झूठे के संग
घिसटता रहता है!
उसके जीवन से
चुपके चुपके से
सच का आधार
खिसकता रहता है!!
वह जीवन में
उत्तरोत्तर अकेला
पड़ता जाता है।
आजकल हर कोई
सच्चे को तिरस्कृत कर
झूठे से प्रीत रचाना
चाहता है क्योंकि जीवन
भावनाओं में बहकर
कब ढंग से चलता है ?
स्वार्थ का वृक्ष ही
अब ज़्यादा फलता-फूलता है।
आदमी आजकल
अल्पकालिक लाभ
अधिक देखता है,
भले ही बहुत जल्दी
जीवन में पछताना पड़े।
सबसे अपना मुंह छिपाना पड़े।
२८/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
कभी कभी
आदमी के विवेक का मर जाना ,
बात बात पर उसके द्वारा बहाने बनाना ,
सारी हदें पार करते हुए
अनैतिकता का बिगुल बजाना
क्या आदमी को है शोभता ?
इससे तो अच्छा है वह
शर्म महसूस करे ।
इधर उधर बेशर्मी से कहकहे न लगाता फिरे ।
जीवन धारा में बहते हुए
आदमी का सारी हदें पार कर जाना
रहा है उसका शुगल पुराना।
इसे अच्छे से समझता है यह ज़माना ।


कितना अच्छा हो ,
आदमी नैतिक मूल्यों के साथ खड़ा हो ।

नैतिकता के पथ पर
मतवातर
आदमी चलने का
सदा चाहवान रहे ।
वह जीवन पथ पर
चलते हुए सदैव
नैतिकता का आधार निर्मित करे।

नैतिक जीवन को अपनाकर
नीति चरित्र को श्रृंगार पाती है ।
अनैतिक आचरण करना
यह आज के प्रखर मानुष को
कतई शोभता नहीं है।
फिर भी उसे कोई शुभ चिंतक और सहृदय
रोकता क्यों नहीं है ?
इसके लिए भी साहस चाहिए ।
जो किसी के पास नहीं ,
बेशक धन बल और बाहुबल भले पास हो ,
पर यदि पास स्वाभिमान नहीं ,
तो जीवन में संचित सब कुछ व्यर्थ !
पता नहीं कब बना पाएगा आदमी स्वयं को समर्थ ?

यह सब आदमी के ज़मीर के
सो जाने से होता है घटित ।
इस असहज अवस्था में
सब अट्टहास लगा सकते हैं ।
वे जीवन को विद्रूप बना सकते हैं।
सब  ठहाके लगा सकते हैं,
पर नहीं सकते भूल से भी रो।
सब को यह पढ़ाया गया है ,
गहरे तक यह अहसास कराया गया है ,
...कि रोना बुजदिली है ,
और इस अहसास ने
उन्हें भीगी बिल्ली बना कर रख दिया है।
ऊपर ऊपर से वे शेर नज़र आते हैं,
भीतर तक वे घबराए हुए हैं।
इसके साथ ही भीतर तक
वे स्व निर्मित भ्रम और कुहासे से घिरे हैं ।
उनके जीवन में अस्पष्टता घर कर गई है।

आज ज़माने भर को , है भली भांति विदित
इन्सान और खुद की बुजदिली की बाबत !
इसलिए वे सब मिलकर उड़ाते हैं
अच्छों अच्छों का उपहास।
एक सच के खिलाफ़ बुनी साज़िश के तहत ।
उन्हें अपने बुजदिल होने का है क़दम क़दम पर अहसास।
फिर कैसे न उड़ाएं ?
...अच्छे ही नहीं बुरे और अपनो तक का उपहास।
वे हंसते हंसते, हंसाते हंसाते,समय को काट रहे हैं।
समय उन्हें धीरे धीरे निरर्थकता के अहसास से मार रहा है।
वे इस सच को देखते हैं, महसूस करते हैं,
मगर कहेंगे कुछ नहीं।
यार मार करने के तजुर्बे ने
उन्हें काइयां और चालाक बना दिया है।
बुजदिली के अहसास के साथ जीना सीखा दिया है।
२७/१२/२०२४.
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