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Joginder Singh Dec 2024
जो
भटक गए हैं
राह अपनी से
वे सब
अपने भीतर
असंख्य पीड़ाएं समेटे हुए हैं ,
वे मेरे अपने ही बंधु बांधव हैं ,
मैं उन्हें कभी
तिरस्कृत नहीं कर पाऊंगा !
मैं उन्हें कभी
उपेक्षित नहीं रहने देना चाहूंगा !
उनकी आंखों में
रहते आए
सभ्य समाज में विचरकर
और अनगिनत कष्ट सहकर
दिन दूनी रात चौगुनी
तरक्की करने के सपने हैं ।

जो
भटक गए हैं
राह अपनी से
वे सब लौटेंगे
अपने घरों को...एक दिन ज़रूर
अचानक से
यथार्थ के भीतर झांकने की गर्ज़ से ,
वे कब तक भागेंगे अपने फ़र्ज़ से ,
आखिर कब तक ?
उन्हें लड़ना होगा
ग़रीबी, बेरोज़गारी के मर्ज़ से ।
वे कब तक
यायावर बने रहेंगे ?
भुखमरी को झेलते झेलते
कब तक भटकते रहेंगे ?
यह ठीक है कि
वे अपनी अपनी पीड़ाएं
सहने के लिए मजबूर हैं ।
वे कतई नहीं
कहलाना चाहते गए गुज़रे
भला वे कभी ज़िन्दगी के
कटु यथार्थ से
रह सकते दूर हैं !
भले ही वे
सदैव बने  रहे मजदूर हैं।
भला वे कब तक
रह सकते अपने सपनों से दूर हैं ।
उन्हें कब तक
बंधनों में रखा जा सकता है ?
दीन हीन मजबूर बना कर !
आखिरकार थक-हारकर
एक दिन
उन्हें अपने घरों की ओर
लौटना ही होगा ।
सभ्य समाज को
उन्हें उनकी अस्मिता से
जोड़ना ही होगा।

१६/१२/२०१६.
Joginder Singh Dec 2024
आज
किस से
रखूं आस कि
भूख लगने पर
वह डालेगा घास
मेरे सम्मुख ही नहीं
समय आने पर
खुद के सम्मुख भी...?

सुना है --
सच्चाई छिपती नहीं !
ज़िंदगी डरती नहीं !!

वह सतत अस्तित्व में रहेगी
भले ही मोहरे जाएं बदल !
समय के महारथी तक जाएं पिट !
बेबसी के आलम में
वे हाथ मलते आएं नज़र !
वे पांव पटकते जाएं ग़र्क !!

आज
किस से
रखूं आस कि
प्यास लगने पर
रखेगा कोई मेरे सम्मुख पानी
मेरे आगे ही नहीं ,
खुद के आगे भी...?

देखा महसूसा है --
असंतुष्टि के दौर में
तृप्ति कभी मिलती नहीं ,
तृषा कभी मिटती नहीं ,
तृष्णा कभी संतुष्ट होगी नहीं !
आदमी
खुद को कभी तो
समझे ज़रूर
ताकि तोड़ सके
अपने दुश्मन का गुरूर
आदमी का दुश्मन कोई ग़ैर नहीं
खुद उसका हमसाया है ,
यह भी समय की माया है।
.........
क्यों कि
हम तुम
बने रहते ,  मनचले होकर  , गधे हैं !
जब तक कोई हम पर
चाबुक फटकारता नहीं ,
भला हम सब कभी सधे हैं !
क़दम क़दम पर जिद्दी बनकर
रहते अड़े  और खड़े हैं
कभी न बदलने की ज़िद्द का दंभ पाले हुए।

०२/०८/२००७.
Joginder Singh Dec 2024
अच्छे का निधन
सबको कर देता है निर्धन !
सोच के स्तर पर
मृत्यु लगा जाती एक नश्तर ।
यही नहीं, वह मानव के कान के पास
अपनी अनुभूति का आभास करा कर
चुपचाप फुसफुसाते हुए कराती है अपनी प्रतीति कि-
" बांध ले भइया! अपना बोरिया बिस्तर ,
आत्मा करना चाहती है , अब धारण नए वस्त्र!"
मौत जीवन की सहचरी है ,
जिसने  जीवन में करुणा भरी है।
यह वह क्षण है ,
जब आत्मा अपने उद्गम की ओर
लौट जाती है।
यह हमें हतप्रभ कर जाती है ।

०६/०१/२०१७.
Joginder Singh Dec 2024
एक दिन
स्टंट करते-करते
मौत उन्हें लील जाएगी ।
वे तो रोमांच के घोड़े पर सवार थे !
बेशक वह मोटरसाइकिल सवार थे !

उन्हें क्या पता था?
कि रोमांचक स्टंट करते-करते
मौत उनका शिकार करने वाली है।
वह उन्हें धराशायी करने वाली है !
मौत तांडव करते हुए आई ,
और उन्हें अपने साथ
काल के समंदर में डूबा गई।
बेशक !उन्हें मौत की ताकत के बारे में पता नहीं था।
वे तो मौत को जिंदगी की तरह मज़ाक भर समझते थे।

जो लोग उनकी स्टंट बाज़ी को
बड़े ग़ौर से निहार रहे थे ।
वह भी तो सब कुछ से अनजान
उन्हें  स्टंट के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे।
वे भी ख़तरे के खिलाड़ियों के साथ
अपने भीतर रोमांच और उत्तेजना भर रहे थे।
उन्हें भी तो अंज़ाम का कुछ अहसास रहा होगा,
जो जिंदगी और मौत से मज़ाक कर रहे थे ,
और जो उनके करतबों को देख रहे थे।
अपने सामने मौत का तांडव देखकर
तमाशबीनों ने भी तो
अपने भीतर मौत का डर
पाल लिया था ।
अपनी आंखों के सामने
मौत का भयावह मंज़र देख लिया था ।


उन्हें तो अब मौत कभी  न  सता पाएगी ।
पर जिन्होंने मौत का 'लाइव टेलीकास्ट 'देखा ,
उनके भीतर श्वासों की अवधि पूरी होने तक,
मौत मतवातर
जिंदा लोगों में दहशत भरती जाएगी।
मरने का क्षण आने तक,
मृत्यु उन्हें सताएगी।
मौत की परछाइयां
रह रहकर आतंकित कर जाएंगी।
आप भी
दृश्य श्रव्य सामग्री के तौर पर
कभी-कभी
मौत और रोमांच का
ले सकते हैं मज़ा ज़रूर ,
पर रखिए ध्यान
कि यह मज़ा बनाता है आपको क्रूर,
इससे तो नहीं टूटेगा
स्टंटबाज़ों का क्या, किसी का भी गुरूर ।
देख देख कर यह सब मौत का तमाशा,
जाने अनजाने
घटता जाता
आदमी के भीतर और बाहर का नूर ।

आपको क्या पता?
जो कुछ भी आप देखते हैं ,
वह आपके अवचेतन का हिस्सा बन जाता है ।
आपको पता भी नहीं चलेगा कि
कब आप जाने अनजाने स्टंट कर जाएंगे ।
आपको यह भी नहीं पता चलेगा कि
आप मौत से जीत जाएंगे
या फिर इस इस खेल में ढेर हो जाएंगे !
१७/०१/२०१७.
Joginder Singh Dec 2024
मुझ में
कोई कमी है
तो मुझे बता ,
यूं ही
दुनिया के आगे
गा गा कर ,
ढोल पीट पीट कर
मुझे न सता ।

चुगलखोर!
हिम्मत है तो!
बीच मैदान आ !
अब अधिक बातें  न बना।
अपनी खूबियों और कमियों सहित
दो दो हाथ करके दिखा ,
ताकि बचे रह सकें
हम सब के हित !
हम रह सकें सुरक्षित!!
१७/०१/२०१७.
Joginder Singh Dec 2024
अगर तुम्हें
इंसाफ़ चाहिए
तो लड़ने का ,
अन्याय से
बेझिझक
जा भिड़ने का
कलेजा चाहिए ।
मुझे नहीं लगता
कि यह तुम में है ।
फिर तुम
किस मुंह से
इंसाफ़ मांगती हो ?
अपने भीतर
क्यों नहीं झांकते हो ?
क्यों किसी इंसाफ़ पसंद
फ़रिश्ते की राह ताकते हो ?
तुम सच की  
राह साफ़ करो।
जिससे सभी को
इंसाफ़ मयस्सर हो।
दोस्त , इस हक़ीक़त के
रू-ब-रू  हो तो सही।
सोचो , तुम किसी
फ़रिश्ते से यक़ीनन कम नहीं।

१७/०१/२०१७.
Joginder Singh Dec 2024
अब और नहीं
यह दुनिया
मजहबों , धर्मों के बलबूते
बांटो ।

पागलपन को रोको !
भले ही
पागलपन को ,
पागलपन से काटो ।

अब और नहीं
खुद को
मुखौटों में
बांटो।

अब और नहीं
कोई साज़िश
रचो।
कम अज कम
अपनी खुशियों को
वरो।
अब और अधिक
अत्याचार ,
अनाचार
करने से
डरो।

ओ ' तानाशाह!
तुम्हारे पागलपन ने
आज
दुनिया कर दी
तबाह।
१७/०१/२०१७.
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