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Joginder Singh Dec 2024
विश्वास का टूटना
अप्रत्याशित ही
आदमी का
दुर्घटनाग्रस्त हो जाना है।

और आदमी
यदि जीवन में
विश्वसनीय बना रहे
तो सफलता के पथ पर
आगे बढ़ते जाना है।

हमारे कर्म होने चाहिएं ऐसे
कि विश्वास
कभी विष में न बदले
वरना
अराजकता का दंश
हम सब को
मृतक सदृश बनाएगा।
यह सब के भीतर बेचैनी बढ़ाएगा ।
हमें ही क्या !
प्रकृति के समस्त जीवों को रुलाएगा !

दुनिया - जहान में
सभी की विश्वसनीयता बनी रहे
और हम सब अपनी अंतर्रात्मा की
आवाज़ सुनते रहें ,
ऐसे सब कर्म करते रहें
ताकि चारों ओर
सुख समृद्धि और सम्पन्नता की
बयार बहती रहे।

दोस्त !
अपना और उसका विश्वास
बचा कर रख
ताकि सभी को
मयस्सर हो सके सुख ,
किसी विरले को ही
झेलना पड़े दुःख - दर्द ।

१७/०१/२०१७.
Joginder Singh Dec 2024
क्या
दुनिया में
सच खोटे सिक्के
सरीखा हो गया है ?

क्या
दुनिया में
झूठ का वर्चस्व
कायम हो गया है ?
परन्तु
सच तो आदमी का
सुरक्षा कवच है ,
कोई विरला ही
इस पर
भरोसा करता है।

तुम सदैव
सच पर
भरोसा करोगे
तो यकीनन जीवन में
शांतिपूर्वक जीओगे।
अतः आज से ही तुम
झूठ बोलने से गुरेज करोगे,
जीवन में ‌शुचिता वरोगे।

बेशक!
आज ही तुम
अपने भीतर
दुनिया भर का  
दुःख दर्द समेट लो।

सच की उम्र
लंबी होती है।
झूठे की चोरी सीनाज़ोरी
थोड़े समय तक ही चलती है,
क्यों कि ज़िन्दगी
अपनी जड़ों से जुड़कर ही
आगे यात्रा पथ पर अग्रसर होती है।
यह कभी भी  
खोटे सिक्कों के सम्मुख
समर्पण नहीं करती है।
१८/०१/२०१७.
Joginder Singh Dec 2024
कभी कभी
जीवन के मोह में पड़कर
अनियंत्रित हो जाता हूं ,
अपने आप पर काबू खोकर ,
अराजक होकर ,
एक भंवर में खो सा जाता हूं
और  
खुद की
निगाहों में ,
एक कायर
लगने लगता हूं ,
ऐसे में
एक हूक सी उठती है हृदय से
कुछ न कर पाने की ,
अच्छी खासी ज़िंदगी के
बोझ बन जाने की ,
खुद ‌को  न समझ पाने की ।

अचानक
अप्रत्याशित
उपेक्षित
अनपेक्षित घटनाक्रम की
करने लगता हूं
इंतज़ार ,
कभी तो पड़ेगी
समय की गर्द से सनी
मैली हुई देह पर
चेतना के बादल से
निस्सृत
कोई बौछार
मन की मैल धोती हुई ,
जीवन की मलिनता को
निर्मल करती हुई।
मन के भीतर से
कभी कभी सुन पड़ती है
अंतर्मन की आवाज़
जो रह रहकर
अंतर्मंथन की प्रेरणा देती है,
स्वयं से
अंतर्साक्षात्कार ‌के लिए
करती है धीरे धीरे तैयार।
स्वयं पर
नियंत्रण रखने को कहती है।
यह अंतर्ध्वनि
जीवन पथ
सतत् प्रशस्त होते रहने का
देती है आश्वासन।
फिर यह अचानक से अंतर्ध्यान हो जाती है
और वैयक्तिक सोच को
ज़मीनी हक़ीक़त की सच्चाई से
जोड़ जाती है।
सच! इस समय
इंसान को
अपने जीवन की
अर्थवत्ता
समझ में आ जाती है।
उसकी समझ यकायक बढ़ जाती है।
०९/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
ज़ंग
तबाही का मंज़र
पेश करती है।
यह
कायर के भीतर
खौफ पैदा करती है।
यह
बहुतों को
मौत की नींद सुलाती है।
कभी कभी
ज़ंग
अमन के नाम पर
इंसाफ़ पसन्दों को
रुलाती है।

यह
जब लंबी  
खींच जाती है,
तब यह
बहुतों को
देती है जीवन से मुक्ति।

और
सब से ‌बढ़कर
ज़ंग हथियारों को जंग
नहीं लगने देती,
बेशक
दुनिया बदरंग होकर
लगने लगती है
एकदम से
गई बीती ।

आजकल
ज़ंगें क्यों ‌हो
रही हैं?
कभी
सोच विचार किया है ‌आपने ?
जब हथियार नहीं बिकते ,
तब हथियारों के
सौदागरों की
साज़िश के तहत
मतभेदों और मनभेदों को
बढ़ाया जाता है।
व्यक्तियों, लोगों ,देशों को
परस्पर लड़वाया जाता है।

ज़ंगों ,युद्धों , लड़ाइयों से
देश दुनिया में
विकास के पहियों को
रुकवा कर
विनाश के पथ पर बढ़ाया जाता है।

आओ हम सब यह संकल्प करें
कि जीवन में
ज़ंग से करेंगे गुरेज
ताकि दुनिया और ज़िन्दगी को
रखा जा सके सही सलामत।
ज़ंग कभी न बन सके
तबाही की अलामत।
१८/०१/२०१७.
Joginder Singh Dec 2024
जीवन में
बेशक चलो
सभी से हंसी-मजाक करते हुए ,
प्यार और लगाव से बतियाते हुए ,
क़दम क़दम पर
स्वयं को
जीवन के उतार चढ़ाव से भरे सफर में
हरदम चेताते हुए ।
पर
हर्गिज न बोलो
कभी किसी से
बड़बोले बोल ।
यह
जीवन
अनिश्चितताओं से भरा हुआ है ,
क्या पता?
कब क्या घट जाए?
कहीं बीच सफ़र
ढोल की पोल खुल जाए ।
अतः सोच समझ कर बोलना चाहिए।
कठिनाइयों का सामना
बहादुरी से किया जाना चाहिए।

भूलकर भी मत बोल ,
कभी भी बड़बोले बोल।
कुछ भी कहो,
मगर कहने से पहले
उसे अंतर्घट में लो तोल।
इस जहान में
जीवन की गरिमा बची रहे ,
इस अनमोल जीवन में
अस्तित्व को कोई झिंझोड़ न सके,
आदमी अपनी अस्मिता कायम  रख सकें ,
इसकी खातिर हमेशा
बड़बोले बोलों से बचा जाना चाहिए।
ऐसे बिना सोचे-समझे
कुछ भी कहने से
ख़ुद का पर्दाफाश होता है।
और दुनिया को
हंसी ठिठोली का अवसर मिलता है,
ऐसे में
आत्म सम्मान मिट्टी में मिल जाता है,
आत्म विश्वास भी डांवाडोल हो जाता है।
यही नहीं, आदमी देर तक
भीतर ही भीतर
लज्जित और शर्मिंदा होता रहता है।

०८/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
जीवन में
कुछ लोग बिना परिश्रम किए
चर्चित रहना चाहते हैं ।
वे बगैर किए धरे
सुर्ख़ियों में बने रहना चाहते हैं।
भला ऐसा घटित होता है कभी।

उनकी चाहत को
महसूस कर
कभी कभी सोचता हूं कि आजकल
भाड़े के टट्टू
क्यों बनते जा रहे हैं निखट्टू ?
ये दिहाड़ियां करते हुए
कभी कभार
अधिक दिहाड़ी मिलने पर
झट से पाला बदल लेते हैं।
अपने निखट्टूपन को
एक अवसर में बदल जाते हैं।
जिसका काम होता है प्रभावित ,
उसे भीतर तक चिड़चिड़ा बना देते हैं।

उन्हें जब कोई
क्रोध में आकर
भाड़े का टट्टू कहता है ,
तो उनमें बेहिसाब गुस्सा
भर जाता है।
वे तिलमिलाए हुए
उत्पात करने पर
उतारू हो जाते हैं।
वे भाड़े के टट्टू नहीं
बल्कि
टैटू की तरह
दिखाई देना चाहते हैं।
सभी के बीच
अपनी पैठ बनाना चाहते हैं ।
वे हमेशा चर्चाओं में
बने रहना चाहते हैं।
वे इसी चाहत के वशीभूत होकर
जीवन भर भटकते रहते हैं।
आखिरकार थक-हारकर
शीशे की तरह
चकनाचूर होते जाते हैं।

१२/०१/२०१७.
Joginder Singh Dec 2024
न्याय प्रसाद
और
अन्याय प्रसाद
के बीच जारी है द्वंद्व ।

न्याय प्रसाद
सबका भला चाहता है ,
वह सत्य का बनना  
चाहता है पैरोकार ,
ताकि मिटे जीवन में से
अत्याचार , अनाचार, दुराचार।

अन्याय प्रसाद
सतत् बढ़ाना चाहता है
जीवन के हरेक क्षेत्र में
अपना रसूख और असर।
वह साम ,दाम ,दंड , भेद के बलबूते
अपना दबदबा रखना चाहता है क़ायम ।

इधर न्यायालय में
न्याय प्रसाद
अन्याय प्रसाद से पूरी ताकत से
लड़ रहा है ,
उधर जीवन में
अन्याय प्रसाद
न्याय प्रसाद का विरोध
डटकर कर रहा है।
आम आदमी क्या खास आदमी तक
इन दोनों की
आपसी खींचतान के बीच
पिस रहा है,
घिस घिसकर मर रहा है।
जैसे चलती चक्की में गेहूं के साथ
घुन भी पिस रही हो ।
१२/०१/२०१७.
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