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While seeing an image of Umangoat river
I was astonished!
The river seems me
looks like exactly a mirror passing through
the mesmerizing world of underwater.
Very very clean !!
and crystal clear water !!
It can remind you about the purity of Life,dear.
I am very eager to visit there!
For peace and prosperity establish buffer zones.
But during the period of deep crisis, buffer zones become the areas of trouble.
In such moments, I caught myself in a trap of disturbance.
I need complete silence to recover my losses .
I want for myself to create a buffer zone for self security and privacy.
Friend concentrate yourself
when Life wants to say you something unique,
while addressing you.

Hold your breath dear !
Nowadays days you are facing a fear of pollution, which is spreading its adversities arround you.

Forget about regret regarding this .
You have no control over it.

You are merely a victim of merciless world,which is dancing arround you.

Observe yourself and your hectic activities,which resulted in destructive reactions in your consciousness.
Think a bit today who is active and responsible for destruction.
Think about reconstruction of life with a presence of common sense in the mind.
Life expresses his own felt truths to motivate all, despite big or small from time to time.

Life demands from us to think and check the reconditioning of mind in the constantly changing circumstances of life.
हाल
न पूछो ,
हालात की
बाबत सोचो ।

धमकी दी नहीं ,
धमाका हुआ बस समझो ।
अब हालात हुए
वश से बाहर।
चुपचाप न रहो ,
हाथ पर हाथ रख कर
न बैठे रहो।
अब और अन्याय न सहो।
कुछ करो , कुछ तो करो ।
अब दंगाइयों पर
सख़्त कार्रवाई करो।

न करो चौकन्ना
घर में रह  रहे  
भीतरघात कर रहे  
आंतरिक शत्रुओं को
अब सबक सिखाना चाहिए।
उन पर अंकुश लगना चाहिए।

हर कार्रवाई के बाद
नेतृत्व को
मौन धारण करना चाहिए,
हालात सुधरने तक।

धमकी  न  दो ,
धमाके सुना दो ।
हो सके तो बग़ैर डरे ,
उन्हें गहरी नींद सुला दो ।
उन्हें मिट्टी में मिला दो ।
अब सही समय है कि
जीवन की खिड़की से
तमाम पर्दें हटा दिए जाएं ।
अपने तमाम मतभेद भूला दिए जाएं ।

अपने और गैरों के बीच से
सभी पर्दों को हटा दिया जाए ।
गफलतों और गलतफहमियों को
जड़ से ख़त्म कर दिया जाए ।
जीवन में पारदर्शिता लाई जाए ।
  २६/०२/२०१७.
मौनी बाबा को याद करते हुए ,
जीवन धारा के साथ बहते हुए ,
जब कभी किसी वृक्ष को कटते देखता हूं,
तब मुझे आता है यह विचार कि
ये मौनी बाबा सरीखे
तपस्वी होते हैं।
सारी उम्र
वे
धैर्य टूटने की हद तक
सदैव खड़े होकर
श्वास परश्वास की क्रिया को
दोहराते हुए
अपनी जीवन यात्रा को पूरा करते हैं !
मौन का संगीत रचते हैं !!


आओ हम उनकी देख रेख करें,
उनकी सेवा सुश्रुषा करते रहें ।

आओ,
हम उनकी आयु बढ़ाने के प्रयास करें ,
न कि उन्हें
अकारण धरा पर
बिछाने का दुस्साहस करें।

यदि वे
सतत चिंतनरत से
धरा पर रहते हैं खड़े
तो वे न केवल
आकाश रखेंगे साफ़,
हवा , बादल , वर्षा को भी
करते रहेंगे
आमंत्रित ।

बल्कि
वे हमारे प्राण रक्षक बनकर
हमारी श्रीवृद्धि में भी बनेंगे
सहायक।

ऐसे दानिश्वर से
कब तक हम छल कपट करते रहेंगे ?
यदि हम ऐसा करेंगे
तो यकीनन जीवन को
और ज्यादा नारकीय करेंगे।
व्यक्तिगत स्तर पर
'डा.फास्टस' की मौत को करेंगे।

पेड़
ऋषिकेश वाले
मौनी बाबा की याद
दिलाते हैं।
वे प्रति दानी होकर
साधारण जीवों से
कहीं आगे बढ़ जाते हैं,
यश की पताका फहरा पाते हैं।

मानव रूप में
मौनी बाबा
अख़बार पढ़ते देखें जाते हैं
पर शांत तपस्वी से पेड़
खड़े खड़े जीवन की ख़बर बन जाते हैं ,
पर कोई विरला ही
उनका मौन पाता है पढ़।
उनसे प्रेरणा प्राप्त करते हुए
जीवन पथ पर आगे बढ़ने का
जुटा पाता है साहस !
कर पाता है सात्विक प्रयास !!
  ०८/१०/२००७.
'शब्द जाल '
बहुत बार
साहित्य के समंदर में
तुमने फैंके हैं , मछुआरे !

कभी कविता के रूप में ,
तो कभी कथा के रंग में ,
निज की कुंठाओं को ढाल ।

अब तू न ही बुन
कोई मिथ्या शब्द जाल ,
इससे नहीं होगा कमाल
बल्कि तू जितना डर कर भागेगा ,
उतना ही अंतर्घट का वासी
तुम्हारा दोस्त तुम्हें डांटेगा ।

अब
अच्छा रहेगा
तुम स्वयं से
संवाद स्थापित करो ।
यह नहीं कि हर पल
उल्टा सीधा , आड़ी तिरछी
लकीरों वाला
कोई शब्द चित्र
जनता जनार्दन के
सम्मुख प्रस्तुत करो ।

तुम समझ लो कि
जन अब इतना बुद्धू भी नहीं रहा कि
तुम्हारे ख्याली पुलावों को
न समझता हो ,
और वह न ही  
शब्दजाल के झांसे में
आनेवाली
कोई मछ्ली है।'
ऐसा मुझसे चेतना ने कहा
और यह सुनकर
मैं चुप की नींद सो गया।
अपने को जागृत
रखने की दुविधा से ,
लड़ने की कोशिश में ,
मैं एक कछुआ सरीखा होकर
निज के खोल में सिमट कर रह गया था।
निज को सुरक्षित महसूस करना चाहता था।

मैं समय धारा के संग बह गया था।
बहुत कुछ अनकहा सह गया था।

  १४/१०/२००७.
सांझ का आगमन
मन के आकाश में हो गया है।
कुछ देर बाद
रात भी आ जाएगी।
जिंदगी आराम करने के लिए सो जाएगी।
जब कभी भी
शाम होती देखता हूं
तो मुझे जिंदगी की शाम
नज़दीक खड़ी होने का होता है अहसास।

पल दो पल के लिए
मैं सिर्फ पछता और छटपटा जाता हूं।

रात होने से पहले
संध्या
दिन के अंत का संकेत देती सी
जब यह उतरती है
दिन की छाती पर ,
तब दिल में
कुछ पीछे छूटने का
होता है अहसास ।
एक हल्का सा दर्द
दिल में उठता है।

मुझे संध्या के झुटपुटे में
अपनी कब्र
दिख पड़ती है,
एक कसक भीतर से उठती है।
अपनी ही सिसकारी की
भीतर से प्रतिध्वनि
सुन पड़ती है।
जो न केवल मेरे भीतर डर भरती है ,
बल्कि यह
अंत की आहट देती सी लगती है ।
  १०/०३/२०११.
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