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सरे राह
जब कभी भी
किसी की इज़्ज़त
नीलाम होने को होती है ,
तो उसकी देह और घर की देहरी से
निकलती हैं आहें कराहें ।

इसे
शायद ही कोई
सुन पाता है !
इज़्ज़त की नीलामी को
रोक पाता है !!


दोस्त ,
अपने कुकर्मों से
निजात पा ,
सत्कर्मों की राह पर
ख़ुद को लेकर जा
ताकि
अपना घर
नीलाम होने से सके बच
और
जीवन की खुशियों को
कोई
सके न डस ।

दोस्त!
सुन संभल जा ,
खुद और अस्मिता को
नीलाम होने से बचा।  

२१/०२/२०१४.
हो  सके
तो  विवाद  से  बच
ताकि
झुलसे  न  कभी
अंतर्सच ।

यदि
यह  घटित  हुआ
तो  निस्संदेह  समझ
जीवन  कलश  छलक  गया  !
जीवन  कलह से  ठगा गया  !

हो  सके
तो  जीवन  से   संवाद   रच  ,
ताकि   जीवन  में  बचा  रहे   सच  ।
प्राप्त होता रहे  सभी को  यश ....न  कि  अपयश  !

    २९/११/२००९.
शुक्र है
हम सबके सिर पर
संविधान की छतरी है।
हमें विरासत में मिली
गणतंत्र की गरिमा है।
अन्यथा देखिए और समझिए।
इस देश में
आदमी  की अस्मिता
टोपी धारी के इशारे पर
कब-कब  नहीं  बिखरी  है ?



शुक्र है
हम सबके अस्तित्व पर
तानी गई संविधान की छतरी है ,
वरना अधिकार के नाम पर
बहुत बार
नकटों ने
अपने  लटके-झटकों से
आदमी की नाक कतरी है ।



शुक्र है
इस बार भी नाक बची रह गई ,
संविधान की कृपा से
देश की अस्मिता
इस वर्ष भी बची रह गई ।


मैं संकल्प करता हूं कि
इस गणतंत्र दिवस से
अगले गणतंत्र दिवस तक,
यही नहीं स्वतंत्रता दिवस से
अगले साल स्वतंत्रता दिवस पर,
हर बार देश और जनता से किया गया वायदा
दोहराता रहूंगा, अपने आप को यह याद दिलाता रहूंगा कि
देश तभी बचा रहेगा, जब सभी नागरिक कर्मठ बनेंगे।

मैं अपने साथियों के साथ
देशभर के नागरिकों को
संविधान का अध्ययन करने
और उन और उसके अनुसार अपना जीवन यापन करने
के लिए पुरज़ोर अपील करता रहूंगा।
समय-समय पर उनमें साहस भरता रहूंगा।
स्वयं को और अपनी मित्र मंडली को
विचार संपन्न बनाता रहूंगा।


देश विदेश में घटित हलचलों को
संवैधानिक दृष्टि से पढ़ते हुए
अपने चिंतन का विषय बनाऊंगा।
हर एक संकट के दौर में
खुद को संविधान की छतरी के नीचे बैठा पाऊंगा।

मैं
संविधान को
गीता सदृश पढ़ता रहूंगा,
देशकाल ,हालात अनुसार
संविधान की समीक्षा मैं करता रहूंगा ,
मां-बाप और समाज की
नज़रों में
शर्मिंदा होने से बचता रहूंगा ।


मैं हमेशा संविधान की छतरी तले रहूंगा।
हर वर्ष 26 जनवरी को
संविधान निर्माताओं की देन को याद करूंगा ।
संवैधानिक मूल्यों का पालन कर आगे बढूंगा।

२३/०१/२०११.
अच्छी सोच का मालिक
कभी-कभी अभद्र भाषा का करता है प्रयोग ,
तो इसकी ख़िलाफत की खातिर ,
आसपास , जहां , तहां,  वहां ,
चारों तरफ़ , कहां-कहां नहीं मचता शोर ।
सच कहूं, लोग  इस शोर को सुनकर नहीं होते बोर ।
आज की ज़िंदगी में यह संकट है घनघोर ।
जनाब ,इस समस्या की बाबत कीजिए विचार विमर्श।

ताकि अच्छी सोच का मालिक
जीवन भर अच्छा ही बना रहे ।
वह जीवन की खुशहाली में योगदान देता रहे ।
यदि आप ऐसा ही चाहते हैं ,जनाब !
तो कभी भूले से भी उसे न दीजिए कभी गालियां।
उसे अपशब्दों, फब्तियों,तानों,
लानत मलामत से कभी भी न नवाजें।
उसे न करें कभी परेशान।
उसके दिलों दिमाग को ठेस पहुंचाना,
उसकी अस्मिता पर प्रश्नचिह्न अंकित करना।
उस  पर इल्ज़ाम लगा कर बेवजह शर्मिंदा करना,
जैसे मन को ठेस लगाने वाले अनचाहे उपहार न दीजिए ।
कभी-कभी उसे भी अपना लाड़ ,दुलार ,प्यार दीजिए ।
आदमी के भीतर
उम्मीद बनी रहे मतवातर ,
तो आदमजात करती नहीं
कोई शिकवा, गिला ,शिकायत ।

अगर
कभी भूल से
जिंदगी करने लगे ,
ज़रूरत के वक्त
बहस मुबाहिसा
तो भी भीतर तक  
आदमी रहता है शांत ,
वह बना रहता धीर प्रशांत ।

वह कोई बलवा
नहीं करता।
उम्मीद उसे
ज़िंदादिल बनाए रखती है,
'कुछ अच्छा होगा। ',
यह आस
उसे कर्मठ बनाए रखती है ।
जीवन की गति को बनाए रखती है ।
३०/११/२०२४.
Sometimes I need
complete silence to write a poem for Time.
He usually demands to check the potential of creativity in poets
and creators.

In such moments,
I   starts  addressing to The Time...,
Respected Time.
I have no words to express my feelings regarding you.
You are the origin of my all activities.
It is your will to encourage me as a poet otherwise I am not more than like a parrot who repeats some phonetic sounds after practising a whole series of repeating, some words only.

It is true that I can't choose  to write
a poem in copy paste style.

I have respect for you
because you have provided me a complete freedom to express myself and surroundings.
I have no choice.
And you are talking with me
about alternatives of love.
It surprises me oftentimes.
My mind warns me sometimes,
you are wasting your time in life to make search for alternative of love as well as hate in life.
Don't spoil your native natural life style.
It keeps your face to smile in hard times,dear.
Is it clear in your mind,dear?
Your present life is a mirror of past life,dear.
Do you heard my words, dear.
You need a very sharp mind to cut the silence and sounds of past  life.
Try to live in the present,
as you are well aware about the significance of time in an individual 's struggle full life.
You can't revind your past life.
Past life is far away from your present life,dear.
So live like a brave person in present life.
Present itself is a wonderful and unique present 🎁 for all of us.
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