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Joginder Singh Nov 2024
बाप   कैसा भी हो,
बच्चा   करता है उसे पर विश्वास
वह किसी भी हद तक जाकर
बिना झिझक देता है मन की बात बता।
एक झलक प्यारे पापा की देख
अपना दुख देता दक्षिण भुला ,
पापा के प्यार को अनुभूत कर
बहादुर देता है दिखला।



मां।   कैसी भी हो
बच्ची करती है उसे पर विश्वास
वह किसी भी हद तक जाकर
बिना झिझक देती है मन की बात बता ।
प्यारी मम्मी का स्पर्श कर महसूस
अपनी उदासी को  देती है भुला ।
अभाव तक को देती है बिसरा ।



परंतु
समय की आंधी के आगे
किसकी चल?
अचानक अप्रत्याशित आकर वह
छीन लेती है कभी
मां-बाप की ठंडी छाया बच्चों से ।


सच ! उसे समय
जीवन होता प्रतीत
क्रूर व हृदय विहीन बच्चों को !


समय की मरहम
सब कुछ देती है भूल बिसरा ,
जीवन के घेरों में  ,चलना देती सीखा ।




समय की चाल के साथ-साथ
बच्चे धीरे-धीरे होते जाते हैं बड़े
मैं ढूंढना शुरू कर देते हैं
ममत्व भरी मां की छाया ,
सघन घने वृक्ष सा ‌बाप का साया ,
आसपास के समाज में विचरते हुए,
पड़ोसी और पड़ोसिनों से सुख,
सुरक्षा के अहसास की आस !
पर बहुत कम दफा मिल पाता है,
अभाव ग्रस्त बच्चों को , समाज से,
बिछुड़ चुके बचपन का दुर्लभ प्यार ,
पर उन्हें हर दर से ही मिलता
कसक , घृणा और तिरस्कार।


यह जीवन का सत्य है,
और जीवन धारा का कथ्य है ।
बच्चा     बड़े होने तक भी ,
बच्ची      बड़ी होने पर भी ,
सतत्...बिना रुके...
अविराम...निरन्तर ... लगातार...
ढूंढ़ते रहते हैं -- बचपन से बिछुड़े  सुख !
पर... अक्सर... प्रायः...
सांझ से प्रातः काल तक
सपनों की दुनिया तक में
सतत् मिलते रहते हैं दुःख ही दुःख!
जीवन में हर पल बढ़ती ही जाती है
सुख ढूंढ़ पाने की भूख ।
पर ...
एक दिन
बच्चों के सिर से
ढल जाती है समय की धूप।
वे जिंदगी भर  
पड़ोसी पड़ोसिनों में खोये
रिश्तों को ढूंढ़ते रह जाते हैं, पर
मां की ममता
और पिता के सुरक्षित साये से
ये बच्चे  वंचित ही रहते है,
लगातार अकेलेपन के दंश सहते हैं।


कुदरत इनकी कसक को करना चाहती है दूर।
अतः वह एक स्वप्निल दुनिया में ले जाकर
करती रहती है इन बच्चों की कसक और तड़प को शांत।


उधर उनके दिवंगत मां बाप
बिछड़ने के बावजूद चाहते सदैव उनका भला।
सो वे स्मृतिलीन
आत्माएं
अपने बच्चों के सपनों में
बार-बार आकर देखतीं हैं संदेश कि
तुम अकेले नहीं हो, बच्चो!
हम सदैव तुम्हारे आजू बाजू रहती आईं हैं।
अतः डरने की ज़रूरत नहीं है ।
जीवन सदैव सतत रहता है चलायमान।
हमारे विश्राम लेने से मत होना कभी उदास।
समय-समय पर
तुम्हारी हताशा और निराशा को
करने समाप्त
हम तुम्हारे मार्गदर्शन के लिए
सदैव तुम्हारे सपनों में आती रहेंगी।
तुम्हें समय-समय पर संकटों से बचाती रहेंगी।


बच्चे बच्चे अपने मां-बाप को
स्वप्न की अवस्था में देखकर हो जाते पुलकित,
वे स्वयं को महसूसते सुरक्षित ।


बच्चो ,
ढलती धूप के साए भी
अंधेरा होने पर
जीव जगत के सोने पर
स्वप्न का हिस्सा बनकर
बच्चों को
तसल्ली व उत्साह देने के निमित्त
स्वपन में बिना कोई आवाज़ किए
आज उपस्थित होते हैं
बच्चों के सम्मुख
अनुभूति बनकर।


सच ! सचमुच ही!!
जीवन खिलखिलाता हुआ
बच्चों की नींद में
उन्हें स्वप्निल अवस्था में ले जाता हुआ
हो जाता है उपस्थित।
यह उनके मनों में
खिलती धूप का संदेश लेकर !
जीवन में उजास बनकर !
आशा के दीप बनकर !
प्यार के सूरज का उजास होकर!!
उनसे बतियाने लगता है,
मुझे लड़ दुलार करने लगता है।
सच ! ऐसे में...
सोए बच्चों के चेहरे पर
स्वत: जाती है मुस्कान तैर !
अभाव की कसक जाती धुल !!
दिवंगत मां-बाप के साए भी
लौट जाते अपने लोक में
संतुष्ट होकर। ब्रह्मलीन ।
यह सब घटनाक्रम ,देख और महसूस।
प्रकृति भी भर जाती सुख संतोष के अहसास से।
वह निरंतर देखा करती है
ऐसी अनगिनत कथा यात्राओं का बनना ,बिगड़ना
हमारे आसपास से।
वह कहती कुछ नहीं,
मैं देखना चाहती सबको सही।
२८/०९/२००८.
Joginder Singh Nov 2024
यह सच है कि
समय की घड़ी की
टिक टिक टिक के साथ,
वह कभी न चल सका ,
बीच रास्ते हांफने लगा ।
एक सच यह भी है
कि अपनी सफलता को लेकर
सदैव रहा आशंकित और डरा हुआ,
लगता रहा है उसे,
अब घर ,परिवार ,
समाज में
केवल
बचा रह गया है छल कपट ।
दिल और दिमाग में
छाया हुआ है डर ,
जो अंधेरे में रहकर,
मतवातर हो रहा है सघन ।
एक भयभीत करने वाली धुंध
पल प्रति पल कर रही भीतर घर,
बाहर भीतर सब कुछ अस्पष्ट !
वह हरदम है भटकने को विवश!!
फलत: वह है पग पग पर है
हैरान और परेशान !


सोचता हूं कि  
क्या वह
घर से बेघर होकर ,
एक ख़ानाबदोश बना हुआ ,
भटकता  रहेगा जीवन भर ?
क्या यही उसके जीवन का सच है?
क्या कोई बन पाएगा
उसका मुक्ति पथ का साथी ?
जिसे खोजते खोजते सारी उम्र खपा दी !०६/०१/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
रात सपने में
मुझे एक मदारी दिखा
जो 'मंदारिन ' बोलता था!
वह जी भर कर कुफ्र तोलता था!!
अपनी धमकियों से वह
मेरे भीतर डर भर गया ।
कहीं
गहराई में
एक आवाज सुनी ,
'.. डर गया सो मर गया...'  
मैं डरपोक !
कायम कैसे रखूं अपने होश ?
भीतर कैसे भरूं जिजीविषा और जोश?
यह सब सोचता रह गया ।
देखते ही देखते
सपने का तिलिस्म सब ढह गया।
जागा तो सोचा मैंने
अरे !मदारी तो
सामर्थ्यवान बनने के लिए कह गया।
अब तक मेरा देश
कैसे जुल्मों सितम सह गया?
Joginder Singh Nov 2024
The Dust
Here and there
a lot of dust has been spread
in the form of mischievous thoughts
as well as conspicuous material.
Now it is your choice to select or reject.
Friend! Do not make your brain simply like a dustbin.
Because you are a special soul
who has taken birth to win
in spite of difficulties and living in a cunning and calculative world.
You must keep yourself away from the dust and dusty persons.
It can damage your persona.
Joginder Singh Nov 2024
तुम मुझे बार-बार छेड़ते हो ,
क्या है ?
तुम मुझे हाथ में पड़े अखबार की तरह
तोड़ते मरोड़ते हो ,
क्या है ?
तुम मुझे जीवन से
अनुपयोगी समझ कर फेंकना चाहते हो ,
यह सब क्या है ?


पहले तुम मुझे
क़दम क़दम पर
जीवन के रंग
दिखाना चाहते थे ,
और अब एकदम तटस्थ ,
त्रस्त और उदासीन से गए हो ,
यह सब क्या है ?

और अब
तुम्हारे रंग ढंग
कुछ बदले बदले नज़र आते हैं ।
तुम मुझे गीत सुनाते हो।
कभी हंसाते और रुलाते हो ।
कभी अपनी कहानी सुनाते हो।

आखिर तुम चाहते क्या हो ?

मैं तुम्हारे इशारों पर
नाचूं, गाऊं , हंसूं,रोऊं।
तुम ही बता दो , क्या करूं?

मैं अब
'क्या है ? ' नहीं कहूंगी।
यह तुम्हारे जीवन के प्रति
तुम्हारे प्यार और लगाव को दर्शाता है।
मुझे जीवन से जोड़ जाता है।
मेरे जीवन को नया मोड़ दे जाता है।

सच कहूं , तो यह वह सब है ,
जो हर कोई अपने जीवन में चाहता है।
इसकी खातिर अपने मन में कोमलता के भाव जगाता है।

अरे यार!
अब कह भी दो ना !
व्यक्त कर दो मन के सब उदगार।
अब कह ही दो , अपना अनकहा सच ।
मैं तुम्हारे मुख से
कुछ अनूठा और अनोखा
सुनने को  हूं बेचैन ।

अब चुप क्यों हो?
गूंगे क्यों बने हुए हो?
अच्छा जी! अब कितने सीधे सादे , भोले बने हो ।

क्या यही प्यार हे?
इसके इर्द गिर्द घूम रहा संसार है।
यही जीवन की ऊष्मा और ऊर्जा का राज़ है।
ऐसा  कुछ कुछ
एक दिन
अचानक
मेरे इर्द-गिर्द फैली
जीवन धारा ने
मुझे गुदगुदाने की ग़र्ज से कहा।
प्रतिक्रियावश मैं सुख की नींद सो गया !
जीवन के इस सुहाने सपने में खो गया!!
२९/११/२०२४.
Joginder Singh Nov 2024
महंगाई ने
न केवल किया है,
जनसाधारण को
भीतर तक परेशान ,
बल्कि
इसने पहुंचाया है
आर्थिकता को भारी-भरकम
नुक्सान ।

दिन पर दिन
बढ़ती महंगाई ,
ऊपर से
घटती कमाई ,
मन के अंदर भर
रही आक्रोश ,
इस सब की बाबत
सोच विचार करने के बाद
आया याद ,
हमारी सरकार
जन कल्याण के कार्यक्रम
चलाती है,
इसकी खातिर बड़े बड़े ऋण भी
जुटाती है।
इस ऋण का ब्याज भी
चुकाती है।
ऊपर से
हर साल लोक लुभावन
योजनाएं जारी रखते हुए
घाटे का बजट भी पेश
करती है।


यही नहीं
शासन-प्रशासन के खर्चे भी बढ़ते
जा रहे हैं ।
भ्रष्टाचार का दैत्य भी अब
सब की जेबें
फटाफट ,सटासट
काट रहा है।

चुनाव का बढ़ता खर्च
आर्थिकता को
तीखी मिर्च पाउडर सा रहा है चुभ।

यही नहीं बढ़ता
व्यापार घाटा ,
आर्थिकता के मोर्चे पर
पैदा कर रहा है
व्यक्ति और देश समाज में
सन्नाटा।


ऊपर से तुर्रा यह
कर्ज़ा लेकर ऐश कर लो।
कल का कुछ पता नहीं।
व्यक्ति और सरकार
आमदनी से ज़्यादा खर्च करते हैं,
भला ऐसे क्या खज़ाने भरते हैं?

फिर कैसे मंहगाई घटेगी?
यह तो एक आर्थिक दुष्चक्र की
वज़ह बनेगी।
जनता जनार्दन कैसे
मंहगाई के दुष्चक्र से बचेगी ?
देखना , शीघ्र ही इसके चलते
देश दुनिया में अराजकता और अशांति बढ़ेगी।
व्यक्ति और व्यक्ति के भीतर असंतोष की आग जलेगी।

२९/११/२०२४.
Joginder Singh Nov 2024
आज सड़क पर
जीवन के रंग मंच पर
जिंदाबाद मुर्दाबाद की नारेबाजी
सुनकर लगता है,
अब कर रही है
जांबाज़ों की फ़ौज ,
अपने ही देश के
ठगों, डाकुओं, लुटेरों के ख़िलाफ़ ,
अपनी आखिरी जंग
लड़ने की तैयारी।

पर
मन में एक आशंका है,
भीतर तक
डर लगता है ,
कहीं सत्ता के बाजीगरों
और देश के गद्दारों का
आपस में  न हो जाए गठजोड़ ।

और और देश में होने लगे
व्यापक स्तर पर तोड़-फोड़।
कहीं चोर रास्ते से हुई उठा पटक
कर न दे विफल ,
हकों की खातिर होने वाली
जन संघर्षों और जन क्रान्ति को।
कहीं
सुनने न पड़ें
ये शब्द  कि...,
' जांबाज़ों ने जीती बाज़ी,
आंतरिक कलह ,
क्लेश की वज़ह से
आखिरी पड़ाव में
पहुंच कर हारी।'

देश मेरे , यह कैसी लाचारी है?
जनता ने आज
जीती बाजी हारी है ।
इस जनतंत्र में बेशक जनता कभी-कभी
जनता जनार्दन कहलाती है, ... लोकतंत्र की रीढ़ !
पर आज जनता 'अलोक तंत्र' का होकर शिकार ,
रही है अपनी अपनी जिंदगी को किसी तरह से घसीट।
अब जनता दे रही है  दिखाई, एकदम निरीह और असहाय।
महानगर की सड़कों पर भटकती,
लूट खसोट , बलात्कार, अन्याय से पीड़ित ,
एक पगली  सी होकर , शोषण का शिकार।

देश उठो, अपना विरोध दर्ज करो ।
समय रहते अपने फ़र्ज़ पूरे करो।
ना कि निष्क्रिय रहकर, एक मर्ज  सरीखे दिखो।
अपने ही घर में निर्वासित जिंदगी बिता रहे
अपने  नागरिकों के भीतर
नई उमंग तरंग, उत्साह, जोश , जिजीविषा भरो।
उन्हें संघर्षों और क्रांति पथ पर
आगे बढ़ने हेतु तैयार करो।  
  २६/११/२००८.
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