बाप कैसा भी हो,
बच्चा करता है उसे पर विश्वास
वह किसी भी हद तक जाकर
बिना झिझक देता है मन की बात बता।
एक झलक प्यारे पापा की देख
अपना दुख देता दक्षिण भुला ,
पापा के प्यार को अनुभूत कर
बहादुर देता है दिखला।
मां। कैसी भी हो
बच्ची करती है उसे पर विश्वास
वह किसी भी हद तक जाकर
बिना झिझक देती है मन की बात बता ।
प्यारी मम्मी का स्पर्श कर महसूस
अपनी उदासी को देती है भुला ।
अभाव तक को देती है बिसरा ।
परंतु
समय की आंधी के आगे
किसकी चल?
अचानक अप्रत्याशित आकर वह
छीन लेती है कभी
मां-बाप की ठंडी छाया बच्चों से ।
सच ! उसे समय
जीवन होता प्रतीत
क्रूर व हृदय विहीन बच्चों को !
समय की मरहम
सब कुछ देती है भूल बिसरा ,
जीवन के घेरों में ,चलना देती सीखा ।
समय की चाल के साथ-साथ
बच्चे धीरे-धीरे होते जाते हैं बड़े
मैं ढूंढना शुरू कर देते हैं
ममत्व भरी मां की छाया ,
सघन घने वृक्ष सा बाप का साया ,
आसपास के समाज में विचरते हुए,
पड़ोसी और पड़ोसिनों से सुख,
सुरक्षा के अहसास की आस !
पर बहुत कम दफा मिल पाता है,
अभाव ग्रस्त बच्चों को , समाज से,
बिछुड़ चुके बचपन का दुर्लभ प्यार ,
पर उन्हें हर दर से ही मिलता
कसक , घृणा और तिरस्कार।
यह जीवन का सत्य है,
और जीवन धारा का कथ्य है ।
बच्चा बड़े होने तक भी ,
बच्ची बड़ी होने पर भी ,
सतत्...बिना रुके...
अविराम...निरन्तर ... लगातार...
ढूंढ़ते रहते हैं -- बचपन से बिछुड़े सुख !
पर... अक्सर... प्रायः...
सांझ से प्रातः काल तक
सपनों की दुनिया तक में
सतत् मिलते रहते हैं दुःख ही दुःख!
जीवन में हर पल बढ़ती ही जाती है
सुख ढूंढ़ पाने की भूख ।
पर ...
एक दिन
बच्चों के सिर से
ढल जाती है समय की धूप।
वे जिंदगी भर
पड़ोसी पड़ोसिनों में खोये
रिश्तों को ढूंढ़ते रह जाते हैं, पर
मां की ममता
और पिता के सुरक्षित साये से
ये बच्चे वंचित ही रहते है,
लगातार अकेलेपन के दंश सहते हैं।
कुदरत इनकी कसक को करना चाहती है दूर।
अतः वह एक स्वप्निल दुनिया में ले जाकर
करती रहती है इन बच्चों की कसक और तड़प को शांत।
उधर उनके दिवंगत मां बाप
बिछड़ने के बावजूद चाहते सदैव उनका भला।
सो वे स्मृतिलीन
आत्माएं
अपने बच्चों के सपनों में
बार-बार आकर देखतीं हैं संदेश कि
तुम अकेले नहीं हो, बच्चो!
हम सदैव तुम्हारे आजू बाजू रहती आईं हैं।
अतः डरने की ज़रूरत नहीं है ।
जीवन सदैव सतत रहता है चलायमान।
हमारे विश्राम लेने से मत होना कभी उदास।
समय-समय पर
तुम्हारी हताशा और निराशा को
करने समाप्त
हम तुम्हारे मार्गदर्शन के लिए
सदैव तुम्हारे सपनों में आती रहेंगी।
तुम्हें समय-समय पर संकटों से बचाती रहेंगी।
बच्चे बच्चे अपने मां-बाप को
स्वप्न की अवस्था में देखकर हो जाते पुलकित,
वे स्वयं को महसूसते सुरक्षित ।
बच्चो ,
ढलती धूप के साए भी
अंधेरा होने पर
जीव जगत के सोने पर
स्वप्न का हिस्सा बनकर
बच्चों को
तसल्ली व उत्साह देने के निमित्त
स्वपन में बिना कोई आवाज़ किए
आज उपस्थित होते हैं
बच्चों के सम्मुख
अनुभूति बनकर।
सच ! सचमुच ही!!
जीवन खिलखिलाता हुआ
बच्चों की नींद में
उन्हें स्वप्निल अवस्था में ले जाता हुआ
हो जाता है उपस्थित।
यह उनके मनों में
खिलती धूप का संदेश लेकर !
जीवन में उजास बनकर !
आशा के दीप बनकर !
प्यार के सूरज का उजास होकर!!
उनसे बतियाने लगता है,
मुझे लड़ दुलार करने लगता है।
सच ! ऐसे में...
सोए बच्चों के चेहरे पर
स्वत: जाती है मुस्कान तैर !
अभाव की कसक जाती धुल !!
दिवंगत मां-बाप के साए भी
लौट जाते अपने लोक में
संतुष्ट होकर। ब्रह्मलीन ।
यह सब घटनाक्रम ,देख और महसूस।
प्रकृति भी भर जाती सुख संतोष के अहसास से।
वह निरंतर देखा करती है
ऐसी अनगिनत कथा यात्राओं का बनना ,बिगड़ना
हमारे आसपास से।
वह कहती कुछ नहीं,
मैं देखना चाहती सबको सही।
२८/०९/२००८.