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Joginder Singh Nov 2024
देश
अलगाव
नहीं चाहता ।

देश
विकास को
वरना है चाहता ।


कोई कोई
घटना दुर्घटना
गले की फांस बनकर
देश को तकलीफ़ है देती।
करने लगती
उसके विश्वास पर चोट ,
हर एक चेहरे पर
नज़र आने लगती खोट ।


देश
अलगाव
नहीं चाहता ।


देश
दुराव छिपाव
कतई नहीं चाहता।


काश !
देश के हर बाशिंदे का चेहरा
पाक साफ़ रह पाता ।
फिर कैसे नहीं
हरेक जीवात्मा
प्रसन्नता को वर पाती?
अपनी जड़ों और मंसूबों को समझ पाती ?


काश !
सबने देश की आकांक्षा,
अंतर्व्यथा को समझा होता
तो अलगाव का बखेड़ा
खड़ा ही न होता ।
देश में संतुलित विकास  होता ।

२६/०२/२०१७.
Joginder Singh Nov 2024
तारीफ की चाशनी
सरीखे तार से बंधी है
यहां हर एक की जिंदगी।

तुम हो कि ...
ना चाह कर भी बंधे हो
सिद्धांत के खूंटे से!
चाहकर भी
तारीफ़ के पुल बांधने से
कतराते हो!!
पल पल कसमसाते हो!!!


तारीफ़ कर
तारीफ़ सुन
नहीं रहेगा कभी भी
गुमसुम !
यह था ग़ैबी हुक्म !!


सो उसे मानता हूं ।
तारीफ़ करता हूं,
जाने अनजाने
रीतों में,
गए बीतों में
खुशियां भरता हूं।
जीव जीव के भीतर के
डर हरता हूं ।
तार तार हो चुके
दिलों से जुड़ता हूं ,
छोटे-छोटे क़दम रख
आगे आगे बढ़ता हूं ।

क्या तुम मेरा
अनुसरण नहीं करोगे ?
स्वयं को
तारीफ़ का पात्र
सिद्ध नहीं करोगे ?
या फिर
स्व निर्मित आतंक के
गड़बड़ झाले से
त्रस्त रहोगे ?
खुद की अस्मिता को
तार तार करते
इधर-उधर
कराहते फिरोगे ?
उद्देश्यविहीन से !
तारीफ के जादुई
तिलिस्म से डरे डरे !!


दोस्त !
तारीफ़ का तिलिस्म वर!!
एक नई तारीख का
इंतज़ार निरंतर कर !!

०५/०२/२०१३.
Joginder Singh Nov 2024
अभी मुमकिन नहीं
कम से कम.... मेरे लिए
खुली किताब बन पाऊं!
निर्भीक रहकर
जीवन जी जाऊं !!
समय के साथ
अपने लिए खड़ाऊं हो पाऊं!
उसके साथ अपने अतीत को याद कर पाऊं!!


अभी
मुमकिन है
खुद को जान जाऊं!
अपनी कमियों को सुधारता जाऊं !!
सतत् अपनी कमियों को कम करता जाऊं !!
जो मुमकिन है ,
वह मेरा सच है ।
जो नामुमकिन है
कम से कम.... मेरे लिए
झूठ है।
उतना ही मिथ्या
जितना रात्रि को देखा गया सपना,
जो हकीकत की दुनिया में
खत्म हो जाता है ,
ठीक वैसा ही
जैसे मैं चाहता हूं
सारे काम हों सही-सही।
हकीकत यह है कि
कुछ काम सही ढंग से हो पाते हैं,
और कुछ अधूरे ही रह जाते हैं।

मैं मुमकिन कामों को पूरा करना चाहता हूं ,
भले ही मेरे हिस्से में असफलता हाथ आए ।
बेशक विजयश्री कहीं पीछे छूट जाए !
क़दम दर क़दम नाकामी हाथ आए!!
दोस्तों को मेरी सोहबत भले न भाए !!

मेरी चाहत है,
मुमकिन ही मेरा स्वप्न बने ।
बेशक नामुमकिन
मरने के बाद राह का कांटा बने।

दोस्त,
मुमकिन ही हमारा संवाद बने  ,
नामुमकिन की काली छाया हमसे न जुड़े ।


२७/०८/२०१६.
Joginder Singh Nov 2024
चापलूस
कभी भी चले हुए
कारतूस नहीं होते।
जब वे चलते हैं
तो बड़ी तबाही करते हैं ।

यह यक़ीन जानिए।
वे जिसकी की जी हजूरी करते हैं,
उसे ही सब से पहले चलता करते हैं।
चापलूस से बचिए।
अपना काम संभल कर कीजिए।
मेहनतकश को प्रोत्साहित जरूर कीजिए।
उसे समुचित मेहनताना दीजिए।


जो कुछ आप काम करते हैं।
जिनके दम पर आप आगे बढ़ें हैं।
नाम और दाम कमाते हैं।
वह सारा काम कोल्हू के बैल करते हैं,
दिन रात अविराम मेहनत करते हैं।

चापलूस उनकी राह में रोड़े अटकाते हैं,
मौका मिलने पर निंदा चुगली कर उन्हें भगाते हैं।

आप बेशक चापलूसी करने वाले से खुश रहते हैं।
आप यह भी जानते हैं, वह जिंदा बम भी हैं,
पिस्तौल भी हैं और कारतूस भी।
वे चल भी जाते हैं और चलवा भी देते हैं।
आप कभी एक बम , पिस्तौल,कारतूस में बदल जाते हैं।
अपने वफादार को नुक्सान पहुंचा देते हैं,
इसे आप भी नहीं जान पाते।

आप चापलूसों से बच सकें तो बचिए।
कम से कम खुद को तो न एक कठपुतली बनाएं।

हो सके तो चापलूस की जासूसी करवाएं।
उसके खतरनाक मनसूबों से खुद को समय रहते बचाएं।
चापलूस सब को खुश रखते हैं,
बेशक बढ़िया कारगुज़ारी तो कोहलू के बैल ही कर पाते हैं।

निर्णय आप को करना है।
इन बमों ,पिस्तौलों और कारतूसों का क्या करना है ?
ये चापलूस बड़े शातिर और ख़तरनाक हैं।....
...और साथ अव्वल दर्जे के नाकाबिल,नाबरदाश्त, नालायक जी...वे जी,जी, करने वाले उस्ताद भी।
ये उस्तरे से होते हैं,
देखते ही देखते अपने काम को अंजाम दे देते हैं।
ये बड़ों बड़ों को औंधे मुंह गिरा देते हैं जी ।
Joginder Singh Nov 2024
जीवन
जिस धरा पर टिका है,
उस पर जिन्दगी के तीन पड़ाव
धूप छांव बने हुए
निरन्तर आते और जाते रहते हैं।
फ़र्क बस इतना है कि
ये पड़ाव कभी भी अपने को नहीं दोहराते हैं।

उमर के ये तीन पड़ाव
जरूरी नहीं कि
सब को नसीब हों।
कुछ पहले,
कुछ पहले और दूसरे,
और कुछ सौभाग्यशाली
तीनों पड़ावों से गुज़र पाते हैं।

सच है
यह जरूरी नहीं कि
ये सभी की जिन्दगी में आएं
और जीवन धारा से जुड़ पाएं ।

लंबी उमर तक
धरा पर बने रहना,
जीवन धारा के संग बहना।
किसी किसी के हिस्से में आता है,
वरना यहां क्षणभंगुर जीवन निरन्तर बदलता है।
Joginder Singh Nov 2024
Today my mind reminds me .
A fact associated with my past.And it haunts me even today,and may be in future also .

Someone advised me for conversion due to my slowness in life.
But I remain as I was.
I remain same as I haven't learnt crookedness in life.


Conversion is more dangerous than reservation.
Converted mind's are facing still difficulties and inequality after conversion.
Joginder Singh Nov 2024
ਵੀਰੋ, ਕੀਰਤੀਆਂ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਰਹੇ।
ਹਰ ਵਰ੍ਹੇ ਇੱਕ ਮਈ ਦਾ ਦਿਹਾੜਾ ਇਹ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਕਹੇ।
ਅਫ਼ਸੋਸ ਇਸ ਸੱਚਾਈ ਨੂੰ ਕੋਈ ਵਿਰਲਾ ਸਾਥੀ ਹੀ ਸੁਣੇ।
ਇੱਕ ਹੋਰ ਵੱਡਾ ਅਫ਼ਸੋਸ ਕੋਈ ਕੋਈ ਇਸ ਤੇ ਅਮਲ ਕਰੇ।


ਵੀਰੋ, ਕੀਰਤੀਆਂ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿਰੋਧੀਆਂ ਕੋਲ ਗਿਰਵੀ ਨਾ ਰੱਖੋ।
ਉਨੀਂਦੇ ਮਿਹਨਤ ਕਸ਼ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਜਗਾਈ ਤੁਸੀਂ ਰੱਖੋ।
ਅਜੇ ਸੱਚੇ ਸੁੱਚੇ ਇਨਕਲਾਬ ਨੇ, ਹੋਂਦ ਚ ਆਉਣਾ ਹੈ ਸਮੇਂ ਦੀ ਕੁੱਖੋਂ,
ਤੁਸੀਂ ਕਾਮੇ , ਕੀਰਤੀਆਂ ਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ‌ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਖੁਦ ਨੂੰ ਜਗਾਈ ਰੱਖੋ।


ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਰਹੇ, ਸਮੇਂ ਸਾਨੂੰ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਬਤ ਸੁਚੇਤ ਕਰੇ।
ਸਾਥੀਓ ,ਸਮੇਂ ਸਾਨੂੰ ਹਰ ਵੇਲੇ ‌ ਦੂਜੇ ਸੱਚ ਵੀ ਕਹਿੰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।
ਇਸ ਕਾਇਨਾਤ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਵੀ ਜੀਵ ਵੇਲਾ ਨਾ ਰਹੇ।
ਹਰ ਕੋਈ ਮਿਹਨਤ ਚ ਦਿਨ ਰਾਤ ਰੁਝਿਆ ਰਹੇ।
28/04/2017.
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