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Joginder Singh Nov 2024
कभी
किसी
चिड़िया को
चिड़चिड़ाते
देखा है?
नहीं तो!
फिर तो तुम
दिल से चहका करो।
कभी बहका न करो।
ओ चिड़चिड़े! ओए...चि...डे...
भीतर कुछ कुढ़न हुई ,
जैसे अचानक चुभे सूई ।

अचानक
घर के आंगन में
एक चिड़िया कीट खाती हुई
दिख पड़ी।
लगा मुझे कि वह
मुझसे कह रही है,..
'अरे चिड़चिड़े !चहक जरा।
चहकने से , जीवन रहता, महक भरा।
एकदम चहल पहल भरा।'

यह सब मेरा भ्रम था।
शायद मन के भीतर से
कोई चिड़िया चहक उठी थी।
मेरी उदासीनता कुछ खत्म हुई थी ।
मैंने अपने मन की आवाज जो सुन ली थी ।

मैंने अपनी आंखें खोलीं।
घर के आंगन में धूप खिली थी।
वह चिड़िया किसी कल्पना लोक में चली गई थी।

१९/०६/२०१८.
Joginder Singh Nov 2024
झूठ बोलने वाला,
मुझे कतई भाता नहीं ।
ऐसा व्यक्ति मुझे विद्रूप लगता रहा है।
उससे बात करना तो दूर,
उसकी उपस्थिति तक को मैंने
बड़ी मुश्किल से सहा है।

उसका चलना ,फिरना ,नाचना,भागना।
उसकी सद्भावना या दुर्भावना ।
सब कुछ ही तो
मेरे भीतर
गुस्सा जगाती रही हैं।

आज अचानक एहसास हुआ,
कई दिनों से वह
नज़र नहीं आया !
इतना सोचना था कि
वह झट से मेरे सामने
हंसता ,मुस्कुराता, खिलखिलाता आ गया।
मुझ से बोला वह,
"अरे चुटकुले! आईना देख ।
मैं चेहरा हूं तेरा।
मुझसे कब तक नज़र चुरायेगा?
मुझे कदम-कदम पर
अनदेखा करता जाएगा।
झूठ बोलना आजकल ज़रूरी है
आज बना है यह युग धर्म,
कि चोरी सीनाज़ोरी करने वाले
जीवन में आगे बढ़ते हैं!
सत्यवादी तो बस यहां!
दिन-रात भूखे मरते हैं!
सो तू भी झूठ बोला कर,
जी भरकर कुफ्र तोला कर।"

मुझे अपना नामकरण अच्छा लगा था।
आईने को देख मेरा चेहरा खिल उठा था।
आईना भी मुझे इंगित कर बोल उठा था,
"अरे चुटकुले! अपना चेहरा देख।
रोनी सूरत ना बनाया कर।
खुद को कभी चुटकुला ना बनाया कर।
कभी-कभी तो अपना जी बहलाया कर।
किसी में कमियां ना ढूंढा कर,
बल्कि उनकी खूबियों को ढूंढ कर,
सराहा  कर।
उनसे ईर्ष्या भूल कर भी न किया कर।
कभी तो खुलकर जीया कर।
तब तू नहीं लगेगा जोकर।"
यह सब सुनकर मुझे अच्छा लगा।
मैंने खुद को हल्का-फुल्का महसूस किया।
Joginder Singh Nov 2024
मौत
एक दहशत ही तो है
इससे असमय
जिंदगी जाती है सो ,
सुख के अहसास
अनायास
मुरझा जाते हैं,
सारे सपने
कुचले जाते हैं ।

मौत की दहशत
चेतना में
इतनी थी कि
आंखों के सामने
एक चिड़िया मर गई।
वह मरते मरते भी
मौत का अहसास
चेतना के अंदर भर गई।
चुपचाप
मरने की वीडियो क्लिपिंग
मेरे भीतर रख गई।

१९/०६/२०१८.
Joginder Singh Nov 2024
मेरे भीतर गहरे
उतर रही है
मौत से जन्मीं
दहशत।

दुनिया में फैली
क़त्ल ओ' ग़ैरत देख
चेतना
मेरी हुई सन्न!
व्याप गया है
मेरे इर्द-गिर्द सन्नाटा!


लगता है
कोई अदृश्य हाथ
मारेगा मेरे मुंह पर
झट से सन्न करता हुआ
ज़ोर से झापड़ ।

कोई और मुझे
खौफ़जदा करने के लिए
मेरे इर्द-गिर्द
मचाएगा उत्पात।

और कोई उपद्रवी
हाथ में दहशत की तलवार लिए
झट से मेरा सिर कलम कर देगा।
मेरे भीतर की
समस्त चेतना को,
संवेदना से अलग करने के निमित्त
वह हत्यारा मुझे मार कर
मेरी देह से नेह का नाता तोड़ जाएगा।
झट से सिर और धड़ को अलग कर जाएगा ।

सच! उस समय आसपास सन्नाटा पसर जाएगा।
सब के भीतर समय
एक खौफनाक खंज़र बनकर
दहशत का मंज़र भरता जाएगा ।
सच्चे और झूठे का पता
किसे चल पाएगा ?
एक और आदमी अपना सफ़र पूरा कर जाएगा ।
कुछ अर्से बाद वह यादों में ही जिंदा रह पाएगा।

कोई उसे याद करेगा, यह भी जरूरी नहीं।
बिना लड़े मरना,कतई उसे मंजूर नहीं ।
सो खुद को लड़ने के लिए तैयार करो।
  १०/०५/२०२०.
Joginder Singh Nov 2024
आज का आदमी
दौड़ धूप में उलझ
कल और कल के बीच
फंसा हुआ सा
लगा रहा है
अस्तित्व अपने पर ग्रहण।


आज की दुनिया में
नाकामयाब को
लगता है
हर कोई एक जालसाज़!
कुटिल व दग़ाबाज़!!


वज़ह....
आज के आदमी की
धड़कन ,
कलयुग के दौर में
हो चुकी है
एक भटकन भर,
पल पल आज आदमी रहा मर।


आज आदमी
अपने आप में
एक मशीन हो गया है।
'कल' युग में उसका
सुख, चैन,करार
सर्वस्व
भेड़ चाल के कारण
कहीं खो गया है।


ख़ुद को न समझ पाना
उसके सम्मुख
आज
एक  संगीन जुर्म सा
हो गया है।


जिस दिन
वह समय की नदिया की
कल  कल से
खुद को जोड़ेगा,
वह  उस दिन
दुर्दिनों के दौर में भी
सुख,सुविधा, ऐश्वर्य को भोगेगा।
फिर कभी
नहीं
वह लोभ लालच का
शिकार होकर ,
अधिक देर तक
अंधी दौड़ का
अनुसरण कर भागेगा।
Joginder Singh Nov 2024
पहला रंग
शब्दशः/

शब्दशः व्यथा अपनी को
मैंने सहजता से व्यक्त किया ,
फिर भी कुछ कहने को बचा रहा।


      दूसरा रंग

रुलना /

ढोल की पोल
खुलनी थी , खुल गई!
अच्छी खासी ज़िंदगी रुल गई।
मैं अवाक मुंह बाए बैठा रहा।
यह क्या मेरे साथ हुआ !!


    तीसरा रंग


   अंततः/

अंततः अंत आ ही गया ‌!
खिला था जो फूल कल ,
वो आज मुरझा ही गया!!

१४/०५/२०२०.
Joginder Singh Nov 2024
I have just learnt the meaning of failure in life.
Five months ago,
while visiting a school,
I read all of sudden on the wall....
F.A.I.L.
The narration of failure was dancing in my mind.
I further start reading the lines written on the wall.
F....is first
Be competitive and attain success in life.
It will bring moments of pride in your
miserable life.
So don't cry over petty happenings in life.

A....is attempt.
Think a little about your initiatives taken in life.
And follow the message of success in the sentence,as mentioned here....
To gain try again and again,till you attain gains in life.
I means....in.
The world arround you is like an inn.
You have come here only to win over
the difficulties facing in life.
I can also represent the ego of a person which is  root cause of the failure.
L..... represents the desires to learn in life.
And learning, constantly brings prideful moments in life.

At the same time,
I was mingling the past, present and too some extent my futuristic dreams of life.
I know very well about of my dreams.Some are based on the solid grounds of harsh realities, and some are ground less, totally based on imagination and fancy.

Now my consciousness warns me...
"Don't ignore your failures...
Learn something positive from your unsuccessfulness in life.

So that you should be able to feel,...
What is the secret behind the
unbreakable successes of successful persons in a nation's life.
Always remember  that failures work as the motivations ,which are part and parcel of our lives. "
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