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Joginder Singh Nov 2024
आज
अचानक मां की याद आई ,
मेरी आंखें भर आईं।
मां
आखिरी समय में
कुछ-कुछ
जिद्दी हो गईं थीं
मानो
उन्हें इस
जगमग जगमग करते जगत से
विरक्ति हो गई हो।
उन्हें समस्त
सांसारिक चमक दमक
फीकी और बेकार
लगने लगी हो।
वह
तस्वीर खिंचवाने से
कतराने लगी थीं।

आज
अचानक
नए वर्ष के दिन
बस में यात्रा करते हुए
उगते सूरज का
अक्स
खिड़की के शीशे में देखकर,
इसके साथ ही
अपनी काया में
बुढ़ापे के लक्षण महसूस कर
अपनी देह के भग्नावशेष
दर्पण में देख
मैं रह गया था सन्न !
मुझे मां की याद आई थी ।
मेरी आंखें भर आईं थीं ।
वर्षों बाद
अब अचानक
मां की व्यथा
मेरी समझ में आई थी।
मां क्यों तस्वीर खिंचवाने से
कतराईं थीं।
मां
मौत की परछाई को
आसपास मंडराते देख
आगत की आहट को समझ पाई थीं।
शायद यही वजह रही हो
मां के जिद्दी हो जाने की ।
मेरी चेतना में
अचानक मां की जो तस्वीर उभरी थी
उसे मैंने नमन किया ।
देखते ही देखते
मां की वह स्मृति अदृश्य हुई।
आंखें खुलीं
तो मुझे एहसास हुआ
कि मैं बस में हूं
और
मेरा गंतव्य आ गया है।
मैं बस से उतरने की तैयारी करने लगा ।
मां मेरी स्मृतियों में सदैव बसी हैं।
मेरी आंखें भरी हैं।
Joginder Singh Nov 2024
जिन्दगी
जी रहा है
वह भी
जो रहा सदैव
अभावग्रस्त
करता रहा
सतत् संघर्ष ।


जिन्दगी
जी रहा है
वह भी
जो रहा सदैव
खुशहाल।
पर रखा उसने
बहुतों को
फटेहाल!
लोभ , मद,मोह के
जाल में फंसा कर
किया बेहाल।



जिन्दगी
तुम भी रहे
हो जी,
अपने अभावों की
वज़ह से
मतवातर
रहते
हमेशा
खीझे हुए।
सोचो
ऐसा क्यों?
क्या
चेतना गई सो? ऐसा क्यों?
ऐसा क्यों ?
चेतना को
जागृत करो।
अपने जीवन लक्ष्य की
ओर बढ़ो।
१९/०२/२०१३.
Joginder Singh Nov 2024
हमें
जीवन में
समय की पाबंदी चाहिए,
सच्चे और झूठे की जुगलबंदी चाहिए।

समय
कोहिनूर से कम नहीं,
इसे बिताते हुए अक्लमंदी चाहिए।
कुछ लोग
भटकते रहते हैं,
उन्हें जिंदगी में हदबंदी चाहिए।
आज
भटकाव
और अटकाव के इस दौर में
ठहराव  से बचने के लिए
हर किसी को अपने स्व की
घेराबंदी कर लेनी चाहिए,
ताकि मन की शांति बनी रहे,
मन के भीतर आत्म विश्वास बना रहे।
गर्दनें स्वाभिमान से हरदम तनी रहें।

२३/०२/२०१७.
Joginder Singh Nov 2024
काश!
यह जगत
होता एक तपोवन
न कि जंगल भर,
जहां संवेदनाएं रहीं मर,
नहीं बची अब जीने की ललक।

तपोवन में
बनी रहनी चाहिए शांति।
मित्र,
जीवन में
कोई कार्य ऐसा न करें,
जिससे उत्पन्न हो भ्रांति
जो हर ले
सुध बुध और अंतर्मन की शांति ।
२६/०२/२०१७.
Joginder Singh Nov 2024
बेबी डॉल
डाल डाल पर
जीवन से
लाड लड़ाती हुई
आँखें झपका रही है।
जीवन में
सुन्दरता, मनमोहकता के
रंग बिखेर रही है।
बेबी डॉल
आकर्षण का जादू
नस नस में
जगा रही है।
वह अपने ही सम्मोहन से
मंत्र मुग्ध हुई
जीवन से संवाद
रचा रही है।

आजकल
वह खोई खोई रहती है!
दिन रात विरह के गीत गाती है!!
दिनों दिन
अकेलेपन में
खोती जाती है।


हमें
एक बेबी डॉल की तलाश है
जिस में बसती जीवन की श्वास हो!
उसके पास ही कहीं
खिला पलाश हो!!
जिसके इर्द गिर्द
मंडराता मधुमास हो!!!
२८/०२/२०१
Joginder Singh Nov 2024
सब करते हैं
प्यार
किसी  न किसी से।
कोई पैसे से ,
कोई सुंदरता से ,
कोई अपनो से,
कोई कोई गैरों तक से,
कोई खुद से ही बस
मुझे उन सब पर
आता है तरस!

सब
करते हैं प्यार,
गाते हैं मल्हार,
अभिव्यक्ति कर
सकते हैं
लाड दुलार की भी,
पर जो करता है
अपने प्यार की खातिर
सहज ही त्याग भी
उसी के पास रहता है
प्यार का सच्चा आधार जी।

यह हमेशा
करता है गहरी मार जी ।
क्या तुम हो
इस सब के लिए तैयार जी।
सच है,
सब करते हैं प्यार जी।
काश! सब जान पाएं
प्यार के साइड इफेक्ट्स को ,
इन्हें  सहन करने के लिए
खुद को करें तैयार जी।

तभी जान पाएंगे हम
प्यार आकर्षण भर नहीं है,
यह होता है
अंतरंगता से भरपूर
दिली लगाव जी।
इसे पाने के लिए
करना पड़ता है
जीवनपर्यंत त्याग जी।
प्यार असल में है
भावनाओं और संवेदनाओं का फाग जी।
साथ ही दिल का गाया राग भी।

२८/०२/२०१७.
Joginder Singh Nov 2024
जब सोचा मैंने
अचानक
विदूषक
अर्से से हंसी-मजाक नहीं कर रहा।
मैं बड़ी देर तक
उसकी इस मनोदशा को महसूस कर
बहुत बेचैन रहा।
वह जगत तमाशे से
अब तक क्यों दूर रहा ?
वह दुनियादारी के पचड़े में
अभी तक क्यों फंसा नहीं है ?


फिर भी
आज ही क्यों
उसकी हंसी हुई है गायब ।
जरूर कुछ गड़बड़झाला है!
क्या दुनिया के रंगमंच से
अपना यार
जो लुटाता रहा है सब पर प्यार,
रोनी सूरत के साथ प्यारा,सब से न्यारा
विदूषक प्रस्थान करने वाला है?

मैं जो भी उल जलूल, फिजूल
विदूषक की बाबत सोच रहा था।
मेरी कल्पना
कहीं से भी
सत्य के पास नहीं थी।
वह महज कपाल कल्पित रही होगी।
एकदम निराधार।

सच तो यह था कि
अचानक
विदूषक ने
खुद के बारे में सोचा,
मैं अर्से से हंसा नहीं हूं,

तभी पास ही
दीवार पर लटके दर्पण को
विदूषक के दर्प को
खंडित करने की युक्ति सूझी।
उसने विदूषक भाई से
हंसी ठिठोली करनी चाही।

सुना है
कि दर्पण व्यक्ति के
अंतर्वैयक्तिक भावों को पकड़ लेता है,
उसको कहीं गहरे से जकड़ लेता है।

यहीं
विदूषक खा गया मात।
दर्पण ने दिखला दी थी अपनी करामात।
उसके वह राज जान गया,
अतः विदूषक हुआ उदास।
और उसकी हंसी छीनी गई थी।


कृपया
विदूषक को हंसाइए।
उसके चेहरे पर मुस्कान लेकर आइए।
आप स्वयं एक विदूषक बन जाइए।
३१/०५/२०२०.
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