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Joginder Singh Nov 2024
ज़िंदगी के सफर में
ठोकर लग गई,फलत: चोट लगी।
बेहिसाब दर्द है,रोओ मत,
जीवन धारा के भंवर में
स्वयं को खोओ मत।
ठोकरें और चोटें
जीवन जीने की सीख देती हैं।
जीवन की बहती धारा को बदल देती हैं।
बस! ये तो प्यार, विश्वास,हमदर्दी की मरहम मांगतीं हैं।
Joginder Singh Nov 2024
वह
यह सोचते हुए सोया
कि पता नहीं
कब इस जीवन में
वासना दहन होगा ?
होगा भी कि नहीं?

फिर वह कभी उठा ही नहीं।
जीवन में आगे बढ़ा भी नहीं।
दोस्त,
वासना जरूरी है,
इस बिन जीवन यात्रा अधूरी है।
Joginder Singh Nov 2024
आज
बिटिया ने अपना सारा स्नेह
भोजन परोसते समय
प्यार भरी मनुहार के साथ
ढेर सी सब्जी
थाली में डाल कर किया।
मेरे मुख से
बरबस ही
  समस्त स्नेह भाव
एक अद्भुत वाक्य बन प्रस्फुटित हुआ,
" अब सारा प्यार मेरी थाली में
उड़ेल दोगी क्या!"
पास ही उसके पापा बैठे थे, विनोद,
जिन्हें
मैं
कभी-कभी
मनोविनोद के नाम से
संबोधित करता हूं!
यह पल
मुझे
प्यार का सार बता गया।
इसके साथ ही
संसार का सार भी समझा गया।
सच! इस पल को जीकर
मैं भाव विभोर हुआ ।
Joginder Singh Nov 2024
आज
मैं अपने
परम प्रिय
मित्र और पुत्र
विनोद के घर में हूं ।

कल
मेरे परम आदरणीय,आदर्श अध्यापक,
मार्गदर्शक,
प्रेरणा पुंज,
अध्ययनशील
कुंदन भाई साहब जी की
अंत्येष्टि में
शामिल होना पड़ा।  
अधिक देर होने की वजह से
एक आदर्श परिवार में रात बितानी पड़ी है।

आधी रात को
नींद उचट जाने के कारण
जग रहा हूं,
विनोद और उसके परिवार की
बाबत सोच रहा हूं ।
उन दिनों   जब मैं संकटग्रस्त था
नौकरी के दौरान
सहयोगियों के
अहम् और षड्यंत्र का
शिकार बना था,
फलत:
मेरा तबादला  
एक दूरस्थ, पिछड़े इलाके में
किया गया था,
वहां मेरा मन इतना रमा था कि
नौकरी के
अधिकांश साल
उस गांव टकारला को दे दिए थे।
वहीं मुझे मास्टर कुंदन लाल,
विनोद कुमार और ... बहुत सारे जीवनानुभव हुए ।
आदर्श अध्यापक और  आदर्श परिवार की बाबत
जीवन के धरातल पर
समझने का
सुअवसर मिला।

इस परिवार में
अब पांच जीव हैं,  
पहले से कुछ कम,

जीवन के  उतार चढ़ाव ने
कुछ सदस्यों को काल ने
अपने भीतर समा लिया,
इस परिवार को   कष्ट उठाने पड़े ,
आज यह परिवार
एक आदर्श परिवार
कहलाता है,
कारण ...

सभी सदस्यों के मध्य
परस्पर तालमेल है,
वे आपस में कभी लड़ते नहीं,
धन का अपव्यय
करते नहीं,
अन्याय के  खिलाफ डटे रहते हैं।
पति पत्नी , दोनों
तीनों बच्चों को सुशिक्षित
बनाने के लिए
दिन रात
कोल्हू के बैल बने
चौबीसों घंटे मेहनत करके
जीविकोपार्जन करते हैं
और मुझ जैसे अतिथियों का
खिले मन से स्वागत करते हैं ।
ऐसे परिवार ही
देश, समाज, दुनिया को
समृद्ध करते हैं,
वे कर्मठता की मिसाल बन कर
जीवन में टिकाव लेकर आते हैं।
हमारी धरती स्वर्ग सम बने,
सुख की चादर सब पर तने, जैसे आदर्शों को
व्यावहारिक बनाते हैं।
ऐसे परिवार
संक्रमण काल की इस दुनिया में
कभी राम राज्य भी बनेगा,
सतत् इस बाबत आश्वस्त करते हैं।
आदर्श परिवार निर्मित करने की परिपाटी चला कर
राष्ट्र आगे बढ़ते हैं।
Joginder Singh Nov 2024
खरा
कभी नहीं सोचता
कि खोट मन में रही होगी
सो पहन लिया था
उसने अचानक मुखौटा ।
मगर
खोटा क्या कभी सोचता है
कि खोट करने से
वह दिखने लगेगा
छोटा ,
सभी के सम्मुख ही नहीं ,
स्वयं के समक्ष भी ।

वह हमेशा
हरि हरि कहता है,
एक दिन खरा बन पाता है ।
फिर वह हर बार
पूर्ववत विश्वास पर
अडिग रहते हुए
खरी खरी बातें
सभी से कहता है।

मगर
खोटा।
खोट को भी शुद्ध बताता है,
वह खोट में भी
शुद्धता की बात करता है ,
और अपनी साख गवां देता है।
मगर विदूषक पैनी नज़र रखता है,
वह अपने अंतर्मुखी स्वभाव से
मुखौटे का सच
जान जाता है।

वह कभी हां की मुद्रा में सिर हिलाकर,
और कभी न की मुद्रा में सिर हिलाकर,
मतवातर हां और न की मुद्राओं में सिर हिला,हिला कर
खोटे के अंतर्मन में भ्रम उत्पन्न कर देता है।
खोटा अपने मकड़जाल में फंसकर सच उगल देता है।

अपने इस हुनर के दम पर
विदूषक हरदिल अजीज बन पाता है।

वह सभी के सम्मुख
दिल से ठहाके लगाने लगता है,
यही नहीं वह सभी से ठहाके लगवाता है।
इस तरह
विदूषक
सभी को आनंदित कर जाता है।

   ०९/०५/२०२०
Joginder Singh Nov 2024
अचानक
उसने सोचा था कि
उसने बड़े प्रयासों के बाद
भीतर व्यापे
भय को
बड़ी मुश्किल से
भगाया था।

पर
एक भूल से
वो लौट
आया था!

फिर उसने
बड़ी देर तक
उसे दर बदर कर
भटकाया था!!

भयभीत
भय पर
कैसे पाएं काबू?
यह सभी को जीवन
सिखाना चाहता है,
पर
कोई विरला ही,
भय के झूले में
झूल झूल कर
सोया आत्मविश्वास
जगा पाता है।
खोया आत्मविश्वास
ढूंढ़ पाता है।

यही हे जीवन की सीख ।
यह जीने से मिलती है,
भीख मांगने से नहीं।
जीवन चाहता है
हर कोई स्वयं को सही करे।
अपने अंतर्मन को शुद्ध करे।
Joginder Singh Nov 2024
हैं! मास्टर कुंदन जी चले गए।
अभी कल ही तो मिले थे,
उन्होंने चलते चलते हाथ हिलाया था,
मैं मोटरसाइकिल पर
अपने मित्र के साथ घर जा रहा था,
और मुझे थोड़ी जल्दी थी,
सो मैने भी
प्रतिक्रिया वश अपने हाथ को टाटा के अंदाज में
हिलाया था,
वे चिर परिचित अंदाज में मुस्कराए थे,
मैं भी अपने गंतव्य की ओर बढ़ गया था।

आज
ख़बर मिली,मास्टर जी
अपनी मंजिल की ओर चले गए,
दिल के दौरे से
उनका देहांत हुआ।

एक विचार पुंज शांत हुआ।
पर मेरा मन अशांत हुआ,
अब कर रहा मैं,
उन के लिए
परम से
अपने चरणों में लेने के लिए
अनुरोध भरी याचना ,
और दुआ भी
क्यों कि
वे सच्चे और अच्छे थे,
करते थे यथा शक्ति मदद ,
सही  में थे मेहरबान !
दुर्दिनों और संकट में
सहायता के साथ साथ
नेक और व्याहारिक सलाह भी दी थी।।

सोचता हूँ
उनकी बाबत तो यही  अंतर्ध्वनि
मन के भीतर से आती है
कि
मास्टर कुंदन लाल सचमुच गुदड़ी के लाल थे,
एक नेक और सच्चे इंसान थे,
सहकर्मियों और विद्यार्थियों की
हरपल मदद के लिए रहते थे तैयार।
और हां,वे मेरी तरह
बाइसाइकिल पर घूमने,
संवेदना को ढूंढने के शौकीन थे।
वे रंगीन दुनिया को
एक साधु की नजर से देखते थे, सचमुच वे प्रखर थे।
...और अखबार पढ़ने,तर्क सम्मत अपने विचार व्यक्त करने में
निष्णात।
इलाके में सादगी,मिलनसारिता के लिए विख्यात।
उन जैसा बनना बहुत कठिन है जी।
मस्त मौला मास्टर की तरह
ईमानदार और समझदार ,
अपने नाम कुंदन लाल के अनुरूप
वे सचमुच कुंदन थे ,
जो ऊर्जा,जिजीविषा,सद्भावना से भरपूर।
आज वे  हम सब से चले गए बहुत दूर,
ईश्वर का साक्षात्कार करने के लिए,
परम सत्ता से ढेर सारी बातें करने, और
दुनिया जहां की खबरें परमात्मा तक पहुंचाने के लिए।
वे सारी उमर सादा जीवन,उच्च  विचार, के आदर्श को
आत्मसात करते हुए अपना जीवन जी कर गए।
सब को अकेला छोड़ गए
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