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Joginder Singh Nov 2024
आज
देश नियंता पर
लगा रहा है कोई आरोप
तानाशाह होने का ।

उसे नहीं है पता ,
देश दुनिया संक्रमण काल से गुजर रही ।
बदमाश
सदाशयता पर हावी
होना चाहते हैं ,
उसे
घर की दासी समझते हैं ।
देश की बागडोर संभालना,
नहीं कोई है सरल काम,
इसकी राह में
मुश्किलें आती हैं तमाम ,
अगर उनसे ना सुलझा जाए,
तो अपूर्ण रह जाते सारे काम।
मुझे कभी-कभी
अपना पिता भी एक तानाशाह
जैसा लगता है ।
पर नहीं है वह एक तानाशाह ,
इस सच को हर कोई जानता है !
जानबूझकर अपनी अकड़ दिखाता है !!
जनता में सत्ताधारी की गलत छवि बनाता है।
संविधान खतरे में है ,जैसी बातें कहकर
जनता जनार्दन को मूर्ख बनाता है ।
क्या ऐसा करना
विपक्षी नेता को
सत्ता का सिंहासन दिला पाता है ?
बल्कि
ऐसा करने वाला
देश को गर्त में  पहुंचाता है।
वह आरोप लगाने से पहले
अपने  गिरेबान में झांके ।
तत्पश्चात
सत्ता के नेतृत्व कर्ता को
तानाशाह  कहे ,
अपनी तानाशाही पर नियंत्रण करे।

आज असली तानाशाह
आरोप लगाने वाले हैं।
क्या ऐसा कर के
वे सत्ता के नटवरलाल
बनना चाहते हैं ?
मुझे बताओ।
आज मुझे बताओ।
असली तानाशाह कौन?
सत्ता पर काबिज व्यक्ति
या फिर आरोप लगाने वाला,
एक झूठा  नारेटिव सेट करने वाला ?
मुझे बताओ। मुझे बताओ ।मुझे बताओ।
असली तानाशाह कौन ?
यदि इसका उत्तर पास है आपके,
शीघ्रता से मुझे बताओ।
अन्यथा गूंगे बहरे हो जाओ।
अब और नहीं
जीवन को उलझाओ।
Joginder Singh Nov 2024
न कर अब
अधिक देर तक
निज को झकझोरती
स्व से ज़ोर आजमाइश।
पता नहीं कब
सपने धूल में मिल जाएं?
अचानक
दम तोड़ दे
सुख से सनी,
रंगों से रंगी,
जीवन की रंगीनियों से सजीं ,
अन्तर्मन से जुड़ीं
ख्वाहिशें।


जीवन अनिश्चित है
सो अब न कर
अपने आप से ज़ोर आजमाइश।
नियंत्रित रहेगा तो ही
पूरी होंगी एक एक करके ख्वाहिशें।
इन ख्वाहिशों और ख्वाबों की खातिर
न बना खुद को,
अब और अधिक शातिर ।
कभी तो बाज आ, स्व नियंत्रण की जद में आ जा।
ज़्यादा हील हुज्जत न कर, खुद को काबू में किया कर।
यह जीवन अपनी शर्तों पर, अपने ढंग से जीया कर।
Joginder Singh Nov 2024
अचानक
एकदम से
अप्रत्याशित
चेतन ने आगाह किया
और मुझसे कहा,
" अरे! क्या कर रहे हो?
खुद से क्यों डर रहे हो?
इधर उधर दौड़ धूप कर
छिद्रान्वेषण भर कर रहे हो।
अपना जीवन क्यों जाया कर रहे हो?"
बस तब से मैं बदल गया।
मुझे एक लक्ष्य स्व सुधार का मिल गया।
Joginder Singh Nov 2024
पापी था ,
पाप कर गया,
धुर अंदर तक धार्मिक भी था,
इसलिए शीघ्र ही
डर भी गया।
सो मैं आंतरिक चेतना की
भगवत कृपा से ,
पश्चातापी बन गया।
मेरा जीवन नरकमय
होने से बच गया।
Joginder Singh Nov 2024
मुझे
पाश्चात्य जगत
आकर्षित
करता रहा है,
अपने अंतर्द्वंद्वों से इतर
वह मुझ में
जीवन चेतना और नैतिकता भी
भर रहा है।
आज वह अद्भुत जगत क्यों
परस्पर लड़ रहा है ?
वह
संपन्नता,खुशहाली की
प्रेरणा बना रहा है,
अब क्यों वह
नफरत कीआग से
जल रहा है?
वहाँ का नेतृत्व
क्या कर  रहा है ?
जन साधारण के भीतर
डर भर रहा है।
वहां भी
यहां की तरह
भाई भाई परस्पर
लड़ रहे हैं।
मानव जीवन नर्क बनता
जा रहा है।
दोस्त! कुछ समझ
आ रहा है ?
यह जीवन अपने
अंतर्द्वंद्वों की वज़ह से
निष्फल बीता जा रहा है।
Joginder Singh Nov 2024
चुनाव जनतंत्र का आधार है।
इसमें होना चाहिए सुधार है।
जिन्हें देश से प्यार है,
वह इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते।
आज चुनाव का जनतंत्र में,
है कोई विकल्प नहीं ।
इसमें ना हो धांधली ,
यह हमारा संकल्प नहीं।
दोस्तों ,चुनाव हमें चुनना सिखाता है।
देश प्रेम की मजबूती दिखलाता है।
चुनो ,चुनो, चुनो ,सही प्रतिनिधि चुनो।
कभी ईमानदार नेता चुनने से ना डरो ।
यदि कोई चुनाव में झूठ ,मकर, फ़रेबी करता है,
उसके खिलाफ धरना प्रदर्शन करो।
कभी भी अपना मत देने से पीछे ना हटो ।
Joginder Singh Nov 2024
गंगा प्रसाद
अक्सर सोचता है,
आज
अपना गंगा प्रसाद,
रह रह कर यह सोचता है
कि दंगा फसाद  
और नफरत से फैली आग,
दोनों के मूल में
छिपा रहता है विवाद ।
यह विवाद
संवाद में बदलना चाहिए ।
अपना गंगा प्रसाद
इस बाबत सोचता है ।
विवाद
हों ही न!
ऐसा होना चाहिए
जन गण का प्रयास!
दंगा फसाद
नहीं होता अनायास
इसके पीछे होता है
धीरे-धीरे बढ़ता असंतोष
और अविश्वास।
या फिर
सत्य को झूठलाने ,
जनता को बहकाने की खातिर
रची गई साजिश!
जो कर देती
कभी-कभी
व्यक्ति देश समाज को अपाहिज ।
दंगे फसाद के पीछे
कौन सक्रिय  रहता है ?
इस बाबत सोचते सोचते
गंगा प्रसाद सरीखा आदमी
कभी-कभी
निष्क्रिय हो जाता है।
नकारात्मक सोच का शिकार होकर
आज का आदमी
अपने पैरों पर
कुल्हाड़ी मार लेता है ।
११/८/२०२०.
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