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Joginder Singh Nov 2024
Whole world is busy to face
numerous challenges.
One of these is adversity.
Poverty, unemployment, instability,chaos,communal killings,illiteracy and many more adversities are running to win this unhumantic  race .

Friends,keep your eyes and windows of mind open to welcome the changes which will become our fate.

Your mind is like a gateway of universe.
Please educate it from time to time.
So that we all can create beautiful as well as timeless songs.
I am sure
that our forthcoming generation will sing such self written songs
to show and prove that anarchists always failed to execute their concipracies.
.
Joginder Singh Nov 2024
अर्से पहले
मेरे मुहल्ले में
आया करते थे कभी कभी
तमाशा दिखलाने
मदारी और बाज़ीगर
मनोरंजन करने
और धन कमाने
ताकि परिवार का
हो सके भरण पोषण।

मैं उस समय बच्चा था
उनके साथ चल पड़ता था
किसी और कूचे गली में
तमाशा देखने के निमित्त।
उस समय जीवन लगता था
एकदम शांत चित्त।
आसपास,देश समाज की हलचलों से अनभिज्ञ।

अब समय बदल चुका है
रंग तमाशे का दौर हो चुका समाप्त।
उस समय का बालक
अब एक सेवानिवृत्त बूढ़ा
वरिष्ठ नागरिक हो चुका है,
एक भरपूर जीवन जी चुका है।

अब गली कूचे मुहल्ले
पहले सी हलचलों से
हो चुके हैं मुक्त,
शहर और कस्बे में,
यहां तक कि गांवों में भी
संयुक्त परिवार  
कोई विरले,विरले बचे हैं
एकल परिवार उनका स्थान ले चुके हैं।
इन छोटे और एकाकी परिवारों में
रिश्ते और रास्ते बिखर गए हैं
स्वार्थ का सर्प अपना फन उठाए
अब व्यक्ति व्यक्ति को भयभीत रहा है कर
और कभी कभी कष्ट,दर्द के रूबरू देता है कर।


आजकल
मेरे देश,घर,समाज, परिवार के सिर पर
हर पल लटकी रहती तलवार
मतवातर कर्ज़,मर्ज का बोझ
लगातार रहा है बढ़
मन में फैला रहता डर
असमय व्यवस्था के दरकने की व्यापी है शंका,आशंका।

ऐसे में
आप ही बताएं,
देश ,समाज , परिवार को
एकजुट, इकठ्ठा रखने का
कोई कारगर उपाय।

डीप स्टेट का आतंक
चारों और फैल रहा है ,
विपक्ष मदारी बना हुआ
खेल रहा है खेल,
रच रहा है सतत साज़िश,
सत्ता पर आसीन नेतृत्व को
धूल चटाने के लिए
कर रहा है षडयंत्र
ताकि रहे न कोई स्वतंत्र
और देश पर फिर से
विदेशी ताकतें करने लगें राज।
वे साधन सम्पन्न लोग
वर्तमान
सत्ता के सिंहासन पर आसीन
नेता का अक्स
एक तानाशाह के रूप में
करने लगे हैं चित्रित।

अब आगे क्या कहूँ?
पीठासीन तानाशाह,
और सत्ता से हटाए तानाशाह की
आपसी तकरार पर
कोई ढंग का फैसला कीजिए।
लोकतंत्र को ठगतंत्र से मुक्ति दिलवाइए।
आओ !सब मिलकर
इन हालातों को अपने अनुकूल बनाएं।
वैसे तानाशाहों का तमाशा ज़ारी है।
लगता है ...
अब तक तो
अपने प्यारे वतन पर
गैरों ने कब्ज़ा करने की,की हुई तैयारी है।
जनता के संघर्ष करने की अब आई बारी है।
उम्मीद है...
इस तमाशे से देश,समाज
बहुत जल्दी बाहर आएगा।
आम आदमी निकट भविष्य में
अपने भीतर सोए विजेता को बाहर लाएगा,
देश और  दुनिया पर
मंडराते संकट से
निजात दिलवाएगा।
कोई न कोई
इस आपातकाल को नेस्तनाबूद करने का
साहस जुटाएगा।
तभी सांस में सांस आएगा।
समय
इस दौर की कहानी
इतिहास का हिस्सा बन
सभी को सुनाएगा ताकि लोग
स्वार्थ की आंधी से
अपने अपने घर,परिवार बचा सकें।
निर्विघ्न कहीं भी आ जा सकें।
Joginder Singh Nov 2024
निठल्ले बैठे रह कर
हम कहां पहुंचेंगे ?
अपने भीतर व्याप्त विचारों को  
कब साकार करेंगे?
आज
सुख का पौधा
सूख गया है,
अहंकार जनित गर्मी ने
दिया है उसे सुखा।
आज का मानस
आता है नज़र
तन,मन,धन से भूखा!
कैसे नहीं उसकी जीवन बगिया में पड़ेगा सूखा?
आज दिख रहा वह,लालच के दरिया में बह रहा।
बाहर भीतर से मुरझाया हुआ, सूखा, कुमलहाया सा।

सुन मेरे भाई!
लोभ लालच की प्रवृति ने
नैसर्गिक सुख तुम से छीन लिए हैं ,
आज सब असमंजस में पड़े हुए हैं।

चेतना
सुख का वह बीज है ,
जो मनुष्य को जीवन्त बनाए रखती है।
मनुष्यता का परचम लहराए रखती है।

यह बने हमारी आस्था का केंद्र।
यह सुख की चाहत सब में भर,
करे सभी को संचालित
नहीं जानते कि सुखी रहने की चाहत,से ही
मनुष्य की क्रियाएं,प्रतिक्रियाएं, कामनाएं होती हैं चालित।
लेने परीक्षा तुम्हारी
वासना के कांटे
सुख की राह में बिछाए गए हैं।
भांति भांति के लोभ, लालच दे कर
लोग यहां भरमाए  गए हैं।
नहीं है अच्छी बात,
चेतना को विस्मृति के गर्त में पहुंचा कर,
पहचान छिपाना
और अच्छी भली राह से भटक जाना ।

अच्छा रहेगा, अब
शनै:शनै:
अपनी लोलुपता को घटाना,
धीरे धीरे
अपनी अहंकार जनित
जिद को जड़ से मिटाना।
जिससे रोक लग सके
मनुष्य की  अपनी जड़ें भूलने की प्रवृत्ति पर।

बहुत जरूरी है कि
मनुष्य वृक्ष होने से पहले ही
अपना मूल पहचाने,
वह अपनी जड़ों को जाने।

यही सार्थक रहेगा कि आज मानव
विचारों की कंकरियों के ढेर के मध्य
अपनी जीवंतता से साक्षात्कार  कर पाए।
Joginder Singh Nov 2024
चेतना
कभी नहीं कहती
किसी से
कभी भी
कि ढूंढों,
सभी में कमी।
बल्कि वह तो कमियों को  
दूर करती है,
भीतर और बाहर से
दृढ़ करती है।

चेतना ने
कभी न कहा,
  "चेत ना। "
वह तो हर पल
कहती रहती है,
" रहो चेतन,
ताकि तन रहे
हर पल प्रसन्न।"

सुनो,
सदैव जीवन से निकली
जीवंतता की
ध्वनियों को।

खोजो,
अपनी अन्तश्चेतना की
ध्वनियों को,
ताकि हर पल
चेतना के संग
महसूस कर सको,
आगे बढ़ सको,
जीवन धारा से
निकलीं उमंग भरी
तरंगों को,पल पल,
जीवन धारा की कल कल को
सुनकर
तुम निकल पड़ो
साधना के पथ पर
जीव मर्म,युग धर्म
आत्मसात कर
अंतर्द्वंद्वों से दूर रह
स्वयं को तटस्थ कर
महसूस करो
अंतर्ध्वनियों को,  
चेतना की उपस्थिति को।

अब सब कुछ
भूल भाल कर
ढूंढ लो निज की विकास स्थली।
शक्ति तुम्हारे भीतर वास कर रही।
उस की महता को जानो।
सनातन की महिमा का गुणगान करो।
अपने भीतर को  गेरूआ से रंग दो।
नाचो,खूब नाचो।
अपने भीतर को
अनायास
उजास से भर दो।
साथ ही
जीवन के रंगों से
होली खेलकर
अपनी मातृभूमि को
शक्ति से सज्जित कर दो।
ताकि जीवन बदरंग न लगे!
हर रंग जीवन धारा में फबे!!

१७/०७/२०१६.
Joginder Singh Nov 2024
To make life easy and smooth
Parents, guardians are keeping themselves busy from early morning to till late night.
So I salute them all.
Because,they are all in all next to God.They are our true survivors.


Can you heard the mesmerizing sound of wonderful flute?

Answer is in yes or no.
Parent's constantly working ability play  a special role in our lives.
So dear!
Let us salute to
them
for providing rhythm and stability in life.
Joginder Singh Nov 2024
उस्ताद जी,
माना कि आप अपने काम में व्यस्त रहते हो,
खूब मेहनत करते हो,
जीवन में मस्त रहते हो।
पर कभी कभी तो
अपने कस्टमर की
जली कटी सुनते हो।
आप कारसाज हो,
बड़ी बेकरारी से काम निपटाते हो,
काम बिगड़ जाने पर
सिर धुनते हो, पछताते हो।

ऐसा क्यों?
बड़े जल्दबाज हो।
क्षमा करना जी ।
मेरे उस्ताद हो।
मुआफ करना , चेला करने चला, गुस्ताखी जी।
अब नहीं देखी जाती,खाना  खराबी जी।
काम के दौरान आप बने न शराबी जी।
अब अपनी बात कहता हूं।
दिन रात गाली गलौज सुनता हूं।
कभी कभी तो बिना गलती किए पिटता हूं।
आप के साथ साथ मैं भी सिर धुनता हूं।
अंदर ही अंदर खुद को भुनता हूं।


सुनिए उस्ताद, कभी कभी खाद पानी देने में कंजूसी न करें,
वरना चेला...हाथ से गया समझो ,जी ।
कौन सुने ? ‌‌
रोज की खिच खिच,चील,पों जी।
आप के मेहरबान ने...आफर दिया है जी।

समय कम है उस्ताद
अब जलेबी की तरह
साफ़ साफ़ सीधी बात जी।


जल्दबाजी में न लिया करें
कोई फ़ैसला।
जो कर दे
जीभ का स्वाद कसैला।

हरदम  चेले चपटे  के नट बोल्ट न कसें।
वो भी इन्सान है,,....बेशक कांगड़ी पहलवान है।

सुनो, उस्ताद...
जल्दबाजी काम बिगाड़े
इससे तो जीती बाजी भी हार में बदल जाती है जी।
विजयोन्माद और खुमारी तक उतर जाती है।
उस्ताद साहब,
सौ बातों की एक बात...
जल्दबाजी होवे है अंधी दौड़ जी।
यदि धीमी शुरुआत कर ली जाए,
तो आदमी जीत लिया करता, हार के कगार पर पहुंची बाजी...!

आपका अपना बेटा
भौंदूंमल।
Joginder Singh Nov 2024
गुनाह
जाने अनजाने हो जाए
तो आदमी करे क्या?
मन पर
बोझ पड़ जाए
तो आदमी करे क्या?
वो पगला जाए क्या??

आदमी
आदमियत का परिचय दे ।
अपने गुनाह
स्वीकार लें
तो ही अच्छा!
समय रहते
अपने आप को संभाल ले,
तो ही अच्छा!
गुनाह
आदमी को
रहने नहीं देते सच्चा।

यह ठीक नहीं
आदमी गुनाह करे
और चिकना घड़ा बन जाए ।
वह कतई न पछताए
बल्कि चोरी सीनाज़ोरी पर उतर आए
तो भी बुरा,
आदमी
बना रहता ताउम्र अधूरा।
अरे भाई!
तुम बेशक गुनाहगार हो,
पर मेरे दोस्त हो।
मित्र वर, सुनो एक अर्ज़
हम भूले न अपने फ़र्ज़
आजकल भूले जा रहे दायित्व
इनको निभाया जाना चाहिए।
सो समय रहते
हम गलती सुधार लें।

सुन, संभलना सीख
यह जीवन नहीं कोई भीख

यह मौका है बंदगी का,
यह अवसर है दरिंदगी से
निजात पाने का ।
परम के आगे शीश नवाने का।
आओ, प्रार्थना कर लें।
जाने अनजाने जो गुनाह हुए हैं हम से ,
उनके लिए आज प्रायश्चित कर लें ।
अपने सीने के अंदर दबे पड़े बोझ को हल्का कर लें।
   ९/६/२०१६.

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