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यह मेरे जीवन की पहली कविता है मैं 12 साल का होते होआ भी मैंने कोशिश की और मेरी कोशिश सफल हो गयी ध्यान से सुनियेगा -
मुझको मेरी माँ है प्यारी,
लाखों में ये है न्यारी |
माँ बच्चे को स्कूल तक छोड़ कर आती है ,
और फिर वाही औलाद  अपनी माँ को वृधाश्रम तक छोड़ कर आती है |
एसी औलाद  का क्या फायेदा ये तो एक दम बेकार है ,
इसलिए कहते  है जो न माने हुकम माँ बाप का उसकी तो हर चीज में हार है|
हर आदमी को करना चाहिए ममा बाप का मान ,
क्योंकि  अगर उन्हें दोगे मान,
तभी मिलेगा तुम्हे सम्मान |
पैसे खर्च करते रहते है बेकार चीजो पर,
थोड़े से पैसे मांग लिए माँ ने अगर,
तो कहेंगे क्या करेगी तू  पैसे लेकर|
जाओ ऋषीकेश ,वरानसी ,हरिद्वार में,
तीर्थ मिल जायेगा तुम्हे माँ बाप के पैर में|
अब  बताइए  माँ  और बेटे में क्या दिफ्फ्रेंस है,
नही छोड़ा मैंने एस कोई सेस्पेंसे है|
जो माँ  बाप का रखे ध्यान असली औलाद उसे  कहते है
और जो हो जाये बेटे के लिए कुर्बान,
माँ  उसे कहते है-माँ  उसे कहते है|
                                                             ­                                               यशेश

— The End —