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Vanita vats Sep 2024
Imagination is
Struggling under
work load
Vanita vats Oct 2024
I was moving out with fast steps
As clock in shop was ticking
for close

I Stepped out to leave
"Mam"
I looked back
9 year old girl hiding behind
her mom
She was peeping and shying
I smiled and waved

Her younger brother
5 years old came running
and clung on me
Raised his hands and wrapped me
I lowered and embraced him
He was snuggling in my arms
I felt relaxed and floating
in pure love
"This hug sent me in meditation for a moment"
Vanita vats Nov 2024
Your poems

Pen will speak
Paper will absorbs
all your emotions
You get free for new expedition

One day
An explorer of the same path
Will find your poem
Connect with it to get relax
Yes, I am not alone
There was someone
Who went on same track
to explore the same phase of life
Met with the same situation
and get same repercussions
Yes, I am not alone
Vanita vats Oct 2024
Yes man
Is an endangered man
Will go very far with you
Become a boss one day

Can never become a mentor
Will not be admired
Used by controller

Will not inspire
Put every one in hook and corner whenever required

Leaders are true and genuine
Raised from tough life and experience
You
Vanita vats Oct 2024
You
Skid on the rangoli of my dream
The whole pattern scattered
Each colour mingled
Leaving traces of blue, green, red and orange with
your footmarks and my pain
You
Vanita vats Dec 2024
You
A beautiful book mark
Between the pages of book
of my life
Vanita vats Oct 2024
From my one wish
Mesmerized me
Each curve is exactly same
Vanita vats Oct 2024
Message looked at me
I took it
To make me smile
Vanita vats Nov 2024
नित
दिन भर की गरमी और भाग दौड़ से थकी
नन्ही मोतियों सरीखी ओस की बूदों से गुथी
रात की चादर उड़ा
अपनी प्रिया पृथ्वी को कर दुलार
कुछ गीत नए गुनगुना रहा
Vanita vats Nov 2024
माँ की याद आ रही है
फोन पर भी ठीक से बात नहीं हो रही है
उनकी सुनने की क्षमता भी कम हो रही है
कभी फोन जबाब दे जाता है
जो वो बदलना नहीं चाहतीं है
आज माँ की रह रह कर याद आ रही है।

भोजन को प्यार से परोसना और फिर खाते देख गर्वित महसूस करना
ये शायद माँ के हिस्से की कहानी है
प्यार और स्वाद की रवानगी है

सासु माँ भी गुजरी कहानी है
जो मेरे आस्तिव के गौरव की जबानी है
अब मुहल्ले में फेरी वाले की गठरी खुलवा कोई सूट पसंद नहीं करवाता
हाथों में मेंहदी लगवाने की मनुहार नहीं करता

आज मीठा बनाना ही है
आवाज नहीं आती
आज इस  माँ की भी याद आ रही है

हर माँ के रगं निराले हैं
बच्चों के सतरगीं सपनों का संसार बुनती है
उसके सुख दुःख में जीवन भर चढ़ती और उतरती है

इस उतार चढ़ाव में अचानक से बूढ़ी हो जाती है
फिर भी उनके सपनों के पूरा होने की बाट जोहती है
माँ माँ ही होती है।

जब तक बच्चों को समझ आती है
माँ दूर हो जाती है
उसकी परछाई पकड़ कर दुलारने की कोशिश व्यर्थ हो जाती है

माँ भगवान् की सुदंर कृतियों में से एक है
हर माँ को मेरा कोटि कोटि नमन है।
Vanita vats Nov 2024
छुट्टी का दिन है
स्कूल आज बंद है।

उस नन्हें पिल्लै को दूध कौन पिलाएगा
दिन भर बच्चे उसे प्यार दिखाते हैं
अपने टिफिन से रोटी और कभी कभी
चाकलेट भी खिलाते हैं।

क्या उसकी माँ बंद गेट देख चली तो ना
जाएगी?
या फिर इधर उधर से अदंर आने की जुगत लगाएगी

आज स्कूल बंद है
वह अकेला भाई को भी ढूंढ रहा होगा
जो कल ही चल बसा
या तो वाहन का शिकार हुआ
या किसी अपने ही जाति का शिकार बना।

आज वह भूख के लिए भोजन और
खेलने के लिए भाई ढूंढ रहा होगा।
Vanita vats Dec 2024
आज तुम्हारे मन की देहरी पर
अपना आशा दीप जलाऊंगीं
बाहर अनंत अधेरा है
उस रोशनी की ओर
कोई तो कदम बढाएगा
जो तुम्हारे अन्तर्मन पर दस्तक देगा
मुझे बंद अन्तर्मन की झीनी दरारों से
एक रोशनी नजर आती है।
कभी कोई मधुर गीत गाता है
तो कभी दर्द के स्वर में गुनगुनाता है
कभी कभी महीनों तक सन्नाटा पसरा रहता है।
आज तुम्हारे मन की देहरी पर दीप जलाऊंगीं
वहीं उस पसरे सन्नाटे में सिमट बैठ जाऊंगी
एक दिन तो तुम योगी बन साधना पूरी कर आओगे
इस संसार को अपने गीत सुना अमर हो जाओगे
उन पदचिह्नों की माटी से अपने मस्तक पर तिलक सजाऊँगी
Vanita vats Nov 2024
खिलखिलाते बच्चों की खुशबु ने
थके से चेहरों पर मुस्कान बिखेर दी
ज़िंदादिली की लकीरें खींच दी
Vanita vats Nov 2024
जाग कर नदी
भागती हुई सी करती
पिया पहाड़ का ऋंगार
नवीन उल्लास से भरी
कहीं अठखेलियाँ करती
तो कहीं पिया से
सकुचाती सी खड़ी
Vanita vats Nov 2024
अनमना सा मन
उनींदी सी महक
समय की तारों पर
गीत गुनगुनाता हुआ
कुछ मुसकराता सा

रात के चादं से चुरा
चांदनी की तारों से
सतरंगी सपनों की
चादर ओढ़ सिमट रहा है।
Vanita vats Nov 2024
पास रोटी, कपड़ा और मकान है

वे कविताएँ लिखने और पढ़ने में मशगूल हैं।

उन्हें कहाँ फुर्सत है जिनके हाथ मिट्टी से सने हैं।
Vanita vats Nov 2024
ये जोड़ी भी अजब गजब है
आजकल पिता जी कई बार डांट लगाते हैं
मोबाइल हाथ में देख घुड़की लगाते हैं
सुनना तो कम हो गया
दिखना भी कम हो जाएगा
ये नालायक समझ नहीं पाएगा।

कुछ देर बाद ही
खाने को पकड़ाते हैं
फिर दोनों चाय की चुस्कियों पर
दुनिया भर की राजनीति पर गरमाते हैं
किस देश में क्या हलचल है इनको सब खबर है।

कभी एक पल उलझते हैं
तो दूसरे पल सुलझते हैं
एक दूसरे के हमदर्द बनें रहते हैं।

इन सब में एक बात सुकून भरी है
दोनों डांट और नाराजगी के पीछे
छिपे सद्भाव को समझते हैं।
Vanita vats Nov 2024
तुम्हारे सूरज की किरणें
प्रेम की बूदों से गुथी
मन की चादर पर
इद्रंधनुष के रंग बिखेरती
मन को उल्लासित कर
आह्लादित कर
जीवन की झलक दिखलाती हैं।

तुम्हारे सूरज की किरणें
मन की धरा पर पड़ी बर्फ को पिघला
नवजीवन उत्सर्जित कर
हृदय की तंरगों को तरंगित कर
नए स्वरों को निर्मित कर
जीवन के गीत सुनाती हैं।
Vanita vats Nov 2024
बच्चे बहुत प्यारे होते हैं
खेल खेल में दिनचर्या दोहरा रहे होते हैं।

कभी गिरते हैं तो
माँ के  आंचल की गर्माहट ले फिसल जाते हैं।

कभी लड़ते झगड़ते हैं
तो दूसरे ही पल
दोस्तों से जा मिलते हैं
अपनी मुस्कुराहटों से हर पल निखरते हैं।
जीवन दर्शन के दर्शन इनके दर्शन में
झलकतें हैं

इनके बचपन के साथ हम  भी निरंतर संवरते हैं।
Vanita vats Jan 11
शक्ति की आराधना
शक्ति की उपासना
शक्ति का संघर्ष
शक्ति का विध्वंस
शक्ति ही चेतना
शक्ति ही सृष्टि
शक्ति ही जीवन
शक्ति हीनता ही मृत्यु
शक्ति से ही नवजीवन की संभावना
शक्ति ही आधार
शक्ति का सम्मान
जीवन का समाधान
Vanita vats Jan 4
तुम प्रसन्न रहो
यही कामना है
निरन्तर आगे बढ़ो
मुठ्ठियों में अपनी खुशियाँ समेटते रहो
ना जाने जीवन के किस मोड़ पर
वो खड़ी मिले
जो तुम्हारे सतरगीं सपनों सगं अपने सपनों की चादर बुनें
जिसे ओढ़ सो जाना
ईश्वर की नई कृतियां रचने
अपने हर दर्द को उन पर वार  भस्म कर देना
उस भस्म से श्रृंगार करना शिव का
तुम गण हो शिव के
जो हर भभूति कष्टों की गले लगाए बैठे रहते हैं
Vanita vats Nov 2024
टिक टिक
करती एक अर्न्तध्वनि
सुना रही है
एक अतृप्त प्यास बुला रही है।

दीपक की भातिं कुछ जल रहा है
जिसकी महक मन को खींच रही है।

सब कुछ तो ठीक है
फिर क्या ठीक नहीं है
जो असंतुष्टि की सीमा पर खींच रही है।

जीवन की मोमबत्ती जल रही है
समय पिघल रहा है
मन असंतोष में जल रहा है।

कुछ तो छूट रहा है
कहीं मन की गहरी छाप तो नहीं दिख रही
कहीं अनंत यात्रा के पदचिह्न तो नहीं दिख रहे।

कहीं अनंत नाद की प्रतिध्वनि तो प्रश्नचिह्न
नहीं खड़ा कर रही।
Vanita vats Nov 2024
सुबह की गुनगुनी धूप में
दो बुढ़े गुनगुना रहे हैं गीत जीवन के
हाथ थामें सुलझा रहें हैं उलझनें इस जीवन की

— The End —