जब से
मैं भूल गया हूं
अपना मूल,
चुभ रहे हैं मुझे शूल ।
गिर रही है
मुझे पर
मतवातर
समय की धूल ।
अब
यौवन बीत चुका है,
भीतर से सब रीत गया है,
हाय ! यह जीवन बीत चला है,
लगता मैंने निज को छला है।
मित्र,
अब मैं सतत्
पछताता हूं,
कभी कभी तो
दिल बेचैन हो जाता है,
रह रह कर पिछली भूलों को
याद किया करता हूं,
खुद से लड़ा करता हूं।
अब हूं मैं एक बीमार भर ,
ढूंढ़ो बस एक तीमारदार,
जो मुझे ढाढस देकर सुला दे!!
दुःख दर्द भरे अहसास भुला दे!!
या फिर मेरी जड़ता मिटा दे!!
भीतर दृढ़ इच्छाशक्ति जगा दे।!
८/५/२०२०.