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छुट्टी का दिन है
स्कूल आज बंद है।

उस नन्हें पिल्लै को दूध कौन पिलाएगा
दिन भर बच्चे उसे प्यार दिखाते हैं
अपने टिफिन से रोटी और कभी कभी
चाकलेट भी खिलाते हैं।

क्या उसकी माँ बंद गेट देख चली तो ना
जाएगी?
या फिर इधर उधर से अदंर आने की जुगत लगाएगी

आज स्कूल बंद है
वह अकेला भाई को भी ढूंढ रहा होगा
जो कल ही चल बसा
या तो वाहन का शिकार हुआ
या किसी अपने ही जाति का शिकार बना।

आज वह भूख के लिए भोजन और
खेलने के लिए भाई ढूंढ रहा होगा।
I sat in front of my Prabhu

Asking for the answers of questions left unsolved

I saw a smile in his eyes
Three girls of same age group were sitting in front of me

One of them tall and fair sitting in the middle looked just once at me
And started laughing
Tried very hard to stop
Not to laugh
Kept her hand and pressed her mouth
But could not stop

The other two girls from left and right looked at her
Now all were laughing together
Whole room filled with their laughter
Made the moments filled with joy
When I asked why are you laughing?
They felt embarassed
As they don't have any apparent reason

I too enjoyed and hold the moment in me
It was also laughing seizure for me
I too could not stop laughing
जब से
मैं भूल गया हूं
अपना मूल,
चुभ रहे हैं मुझे शूल ।

गिर रही है
मुझे पर
मतवातर
समय की धूल ।

अब
यौवन बीत चुका है,
भीतर से सब रीत गया है,
हाय ! यह जीवन बीत चला है,
लगता मैंने निज को छला है।
मित्र,
अब मैं सतत्
पछताता हूं,
कभी कभी तो
दिल बेचैन हो जाता है,
रह रह कर पिछली भूलों को
याद किया करता हूं,
खुद से लड़ा करता हूं।

अब हूं मैं एक बीमार भर ,
ढूंढ़ो बस एक तीमारदार,  
जो मुझे ढाढस देकर सुला दे!!
दुःख दर्द भरे अहसास भुला दे!!
या फिर मेरी जड़ता मिटा दे!!
भीतर दृढ़ इच्छाशक्ति जगा दे।!

८/५/२०२०.
पास रोटी, कपड़ा और मकान है

वे कविताएँ लिखने और पढ़ने में मशगूल हैं।

उन्हें कहाँ फुर्सत है जिनके हाथ मिट्टी से सने हैं।
टिक टिक
करती एक अर्न्तध्वनि
सुना रही है
एक अतृप्त प्यास बुला रही है।

दीपक की भातिं कुछ जल रहा है
जिसकी महक मन को खींच रही है।

सब कुछ तो ठीक है
फिर क्या ठीक नहीं है
जो असंतुष्टि की सीमा पर खींच रही है।

जीवन की मोमबत्ती जल रही है
समय पिघल रहा है
मन असंतोष में जल रहा है।

कुछ तो छूट रहा है
कहीं मन की गहरी छाप तो नहीं दिख रही
कहीं अनंत यात्रा के पदचिह्न तो नहीं दिख रहे।

कहीं अनंत नाद की प्रतिध्वनि तो प्रश्नचिह्न
नहीं खड़ा कर रही।
Alone
Watching me
Writing a thought
going deep inside me
To find any thing to bring a spark in me
To find all answers of piled up questions
To stirr me hard to pull up
the sleeping part
To say something to me
to show me path
To search my whole
To search my soul
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