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rajni gupta Aug 2020
माँ
सिर्फ शब्द नहीं आवाज नहीं ,साज़ के जैसे बजती है,
माँ एक ऐसा दर्पण है, जिसमे दुनिया दिखती है,
कोमलता हर रोम रोम मे, फिर भी मुश्किल से लड़ती है,
हो ना जाऐ हमको कुछ छोटी-छोटी बातों से डरती है,
पावनता का मंदिर जिसमे, जैसे पूजा की थाली है,
मुस्कान तो जैसे लगती उसकी, फूलों की बगिया वाली है,
तपती धूप मे पानी के झरने सी,दिखती धूप सुनहरी सी,
विश्वास की जैसे नींव है वो ,मन का एक सुकून है वो,
कहीं समंदर की लहरों के जैसी तूफानी सी,तो कहीं नदियों के शांत वो पानी सी,
माँ के आशीर्वाद बिना, सारी दुनिया बेगानी सी,
अस्तित्व प्रेम का,प्रेम जगत की, जीती जागती कहानी सी,
माँ के आँचल के छाँव तले सारी दुनिया पलती है,
माँ ऐसा अनुराग है जिसमे भेदभाव की जगह नहीं,
सिर्फ शब्द नहीं ........................................
rajni gupta Aug 2020
मेरी किस्मत मे मेरे ख्वाबों का बसेरा  ही नहीं,
मेरे अँधेरों पे उजालों का साया ही नहीं,
क्यूँ दूर हो जाती है मेरी मंजिल अक्सर ,
जब भी दीप जलाऊँ तभी आंधियों का मंज़र,
किसी की ख्वाहिश लेकिन शायद ये ख्वाहिश ही है,
किसी साहिल को क्यूँ तलाश अपने किनारों की है,
किनारे आते- आते ही कश्ती डूब जाती है ,
इश्क मोहब्बत अपने लिए थी ही नहीं यारों,
हम तो गुड्डा- गुड़ियों की शादियों मे खुश हुआ करते थे,
यूं बना कर ताश के पत्तों के मकां ,
हवाओं के रूख को देखा करते थे !!
rajni gupta Aug 2020
मन एक उड़ता पंछी होता है,
उड़ते ख्वाबों का रैन बसेरा  होता है,
उमड़ घुमड़ कर महलती चाहतों का सबेरा होता है,
जाने कितने सवालों का घेरा  होता है ,
ये बावरा मन ना जाने कितनी बार अकेला होता है,  
किसी की चाहत को सोचता है किसी को यादों मे खोजता है ,
कभी बारिश की बूंदों मे तो कभी हवाओं मे खेलता है,
ये बावरा मन .............................
कभी उड़ता आकाश मे पतंगों सा,कभी सागर की लहरों सा ,
कभी मुस्कान प्रेमी की तो कभी प्रेमिका के आँचल सा ढलता है ,
ये बावरा मन .....................................

— The End —