सच की कड़वाहट भुगतकर भी
चला वो पथिक सत्पथ पर,
दुर्गुणाें से सुदूर रहने का
आह्वान समग्र लेकर,
निर्भिक, मुश्किलों से बेपरवाह
आशाएं प्रबल और मन तत्पर |
राह में चन्द लोग मिले
वेष, स्वभाव व आचरण से भिन्न,
उनके संकुचित आकलन व तद्प्रभाव से
पथिक का लक्ष्य होने लगा डगमग,
परिवेश प्रतिकुल, परिस्थितियाँ दुर्गम
द्वन्दयुक्त हो उसने निर्णय लिया विषम |
भाव कदाचित तठष्ट था, मनःस्थिति भी साफ
चाहे जो भी हो अब इसका परिणाम,
बीड़ा उसने जो उठाया आईना दिखाने का
कलयुगी करवट ले समय बदला सा नजर आया,
बनावटी आन की आड़ में अवगुण भी क्षम्य था
स्पष्टवादिता तो बस एक कथनात्मक प्रसंग था |
आत्मनिरीक्षर कर पथिक हुआ विवश
नहीं रहा कोई और रास्ता उसके समक्ष,
संशय से विमुक्त हो वह हो गया उदंड
लक्ष्यप्राप्ति की भावना से भी बेअसर,
अतएव कर्तव्यबोध ने उसे खगाला
बुलन्द हो उसने तत्परिस्थिति को सँभाला |
स्थिति साफ थी, ये नई शुरूआत थी
भटके लोगों के लिए सबक का पर्याय थी,
आडम्बर से परे और सटीक पहलुओं से जुड़ी
दैनिक प्रयत्नों के लिये एक प्रेरक सौगात थी,
पथिक फलीभुत था जीवन दर्शन के आयामों से
जो मिल पाया था उसे कटूसत्य को अपनाने से ||
राकेश पान्डेय