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दुनिया से बात करनी हैं तो आप अंग्रेज़ी बोले,
मैं हिंदी का बेटा हूँ, हिंदी से प्रेम करता हूँ।

तारिक़ अज़ीम तनहा
39 · Mar 2018
Untitled
जो दुश्मन थी, मेरी जां, आज उनकी जां हो गयी,
हाय! क्या सितम हैं के दुनिया भी हमनवां हो गयी!

उसे फिर पड़े कहाँ चैन ढूंढे सेहरा में मजनू सा बनके,
शानो पे जिसके तेरी जवानी-ओ-जुल्फ परेशां हो गयी।

कहीं बहुत दूर कोई नगमासरा हैं, सुख़न भी हैं खूब,
सुनके बहरो-सुख़न-ए-नगमा-फ़िदा-ए-जां हो गयी।

शगुफ्ता हैं कालिबे-बुतां, बू-ए-जिस्म करे मदहोश,
देखके उनकी नाज़ो-अदा ये चश्म भी हैरां हो गयी।

वां वो लुटाए जावे हुस्न के सदके ना आवे है कब्र पर,
यां ख़ाक-ख़ाक कुंजे-जिस्म, मुहब्बत निहां हो गयी।

तारिक़ अज़ीम तनहा

— The End —