कितना सही कहते हैं ... हमारे लोग आदमी कितनी भी रवायती पढ़ाई लिखाई कर ले, वह निरा अव्यावहारिक बना रहता है, जब तक कि वह नौकरी अथवा काम-धंधे में क़दम न रख लें, वह पढ़ा लिखा नौसीखिया कहलाता है, जीवन में धक्के खाता रहता है ।
आज देश में युद्ध अराजक शक्तियों के कारण थोपा गया है , देश को पड़ोसी देश ने धोखा दिया है। फलत: देश में आपातकाल लागू है। यदि यह न हो तो हर ऐरा गैराज नत्थू खैरा बेकाबू होकर अराजकता का नाच नचा दे, देश दुनिया और समाज की व्यवस्था को पंगु बना दे, विकास के पहिए को चरमरा दे। ऐसे हालात में देश क्या करें ? क्यों न वह हरेक आम और खास पर सख़्ती बढ़ा दें ! सभी को अनुशासन का पाठ पढ़ा दे, जीवन की गतिशीलता को बढ़ा दें, आपातकाल में ढंग से रहना सिखा दे।
आपातकाल आफत काल कतई नहीं है बल्कि यह वह अवसर है जिससे सब कुछ सही हो सकता है, देश दुनिया और समाज अपने गंतव्य तक सफलता पूर्वक पहुंच सकता है, भले ही जीवन धारा में कुछ उतार चढ़ाव आएं सब अपने लक्ष्य को हासिल कर पाएं।
आपातकाल अनुशासन पर्व बन सकता है , यह सभी को सकारात्मक बनाता है । यह कठिनाइयों के बीच जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा बनकर जन गण को नित्य नूतन दिशा में जाने की प्रतीति कराता है। बेशक यह देश का ताना-बाना हिला दे सत्ता के गलियारों में तानाशाही के रंग ढंग दिखला दे । निकम्मों को दिन में तारे दिखला दे।
आपातकाल की सीख कोई नहीं है भीख बल्कि यह भीड़ तंत्र को काबू में रखने का गुर और गुण है इसे मुसीबत समझना ही आज बना एक अवगुण है। फलत: देश आपातकाल झेलने को है विवश। इस पर किसका है वश ? ११/०५/२०२५.