शत्रु से लड़ने के दौर में महाराणा प्रताप चेतक पर सवार जंगल में भटकते हुए संघर्ष रत रहे घास की रोटियां खाकर जीवन यात्रा को ज़ारी रखा। भामाशाह जैसे दानवीर भी भारत के इतिहास में हुए।
जीतते जीतते भारत समझौते को राजी क्यों हुआ ? यह सब ठीक नहीं। हम अपने किरदार को सही करें। हम सब राणा प्रताप और भामाशाह प्रभृति बनकर समय की हल्दी घाटी में संघर्ष करें , जीवन पथ पर आगे बढ़ें। सहर्ष कुर्बानी दें। सर्वस्व बलिदान करने से कभी भी पीछे न हटें। हम हारी हुई मानसिकता दिखाकर आत्म समर्पण क्यों करें ? हम दिवालिया होने तक शत्रु से जी जान से लड़ें , आगे बढ़ें।
अभी भी समय हैं , हम अपनी शर्तों पर जीवन पथ पर अग्रसर हों , ना कि घुटने टेक पराजित हों। अब भी समय है अपनी ग़लती सुधारने का। शत्रु बोध कर शत्रुओं को ललकारने का ! युद्धवीर बनने का !! अपनी डगर पर चलने का !!! ११/०५/२०२५.