Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
May 7
बचपन में
उम्र पांच साल रही होगी
साल उन्नीस सौ इकहत्तर
महीना दिसंबर
शहर चंडीगढ़
सायरन की आवाज़ सुन कर
सब चौकन्ने हो जाते
रात हुई तो रोशनी,आग सब बंद
लोग भी अपने घर में बंद हो जाते
एक दिन रात्रि के समय
सायरन बजा  
लोग चौकन्ने और सतर्क
कंप्लीट ब्लैक आउट
मैं , मां और बहन
सब घर में कैद
सीढ़ियों के नीचे
लुक छुप कर बैठे
तभी  
बाहर को झांका
तो आसमान में रंग बिरंगी
रोशनियों को देख कर
दीवाली के होने का भ्रम हुआ
यह बाद में विदित हुआ कि
यह रंग बिरंगी रोशनी तो शत्रु के हवाई जहाज को
निशाना बनाने वाले तोप के गोलों से हुई थी।
उन दिनों मैं अबोध था ,
ब्लैक आउट डेज
मेरे इर्द गिर्द बगैर ख़ौफ़ पैदा किए निकल गए।
उन दिनों पाकिस्तानी जासूस पकड़े जाने की ख़बर
मुझे परी कथा की तरह लगती थी।
मैने इस बाबत दो चार बार
अपनी मां से चर्चा की थी।

मुझे यह भी याद है भली भांति
यदि कोई ब्लैक आउट डेज के समय
घर पर गलती से बल्ब जलता छोड़ता
तो उसी समय कोई पत्थर दनदनाता आता
और झट से बल्ब को तोड़ देता ,
वह नहीं टूटता तो खिड़की का कांच ही तोड़ देता।
बल्ब झट से ऑफ करना पड़ता।
गालियां जो सुनने को मिलतीं ,वो अलग।
वे दिन अजब थे, कुछ लोग डर और अज़ाब से भरे थे।
लोग देशप्रेम से ओतप्रोत चौकीदार बन देश सेवा को तत्पर रहते थे।

ये ब्लैकआउट डेज
बड़ा होने के बाद भी स्वप्नों में
आ आ कर मुझे सताते रहे हैं।
मेरे भीतर डर दहशत वहशत जगाते रहे हैं।
आज छप्पन साल बाद
शहर में ब्लैक आउट की रिहर्सल की गई है।
एक बार फिर सायरन बजा।
रोशनी बंद की गई।
किसी किसी के घर की रोशनी बंद नहीं थी।
उन्हें क्या ही कहा जाए ?
आज आधी रात ऑपरेशन सिंदूर किया गया।
देश की सेनाओं ने दहशतगर्दों के नौ ठिकानों पर हमला किया।
कल पड़ोसी देश भी निश्चय ही हवाई हमले करेगा।
कभी न कभी ब्लैकआउट भी होगा।
यदि इस समय किसी ने लापरवाही की तो क्या होगा ?
ब्लैकआउट धन,जान माल की सुरक्षा के लिए है।
इस बाबत सब जागरूक हों तो सही।
आजकल पार्कों में सोलर लाइटें लगी हैं।
सी सी टी वी कैमरे भी गलियों, दुकानों,मकानों ,चौराहों पर
चौकीदार का काम कर रहें हैं।
इन के साथ रोशनी का प्रबंध भी किया गया है ,
जो अंधेरा होते ही स्वयंमेव रोशन हो जाते हैं।
आप ही बताइए ब्लैकआउट के समय इनका क्या करें ?
इन पर जरूरत पड़ने पर रोक कैसे लगे ?
क्या इन पर काला लिफाफा बांध दिया जाए ?
फिलहाल कुछ काले दिनों के लिए !
स्थिति सामान्य होने पर काले लिफ़ाफ़ों को हटा दिया जाए !
जैसे जीवन में कुछ बड़े होने तक
ब्लैक आउट डेज अपने आप स्मृतियों में धुंधलाते चले गए।
और आपातकाल में ये फिर से शुभ चिंतक बन कर लौट आए हैं।
०७/०५/२०२५.
Written by
Joginder Singh
72
   ---
Please log in to view and add comments on poems