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May 7
कोई भी
युद्ध को अपने कन्धों पर
ढोना नहीं चाहता।
फिर भी यह
कालचक्र का हिस्सा बनकर,
विध्वंस का किस्सा बनकर,
तबाही के मंज़र दिखलाने
लौट लौट कर है आता।
यह शांति व्यवस्था पर
करारा प्रहार है।
विडंबना है कि इसके बग़ैर
शान्ति कायम नहीं रह सकती।
युद्ध की मार से
सहन शक्ति स्वयंमेव विकसित हो जाती।

युद्ध शांति के लिए
अपरिहार्य है।
क्या तुम्हें यह स्वीकार्य है ?
हथियार भी पड़े पड़े
कभी कभी हो जाते हैं बेकार ।
युद्ध के भय से ही
विध्वंसक हथियार विकसित हुए हैं।
इनके साए में ही सब सुरक्षित रहते हैं।
युद्ध विहीन और हथियार विहीन
दुनिया के स्वप्न देखने वाले
भले नामचीन बन जाएं ,
वे प्रबुद्ध कहलाएं।
वे एक काल्पनिक दुनिया में रहते हैं।
उनकी वज़ह से
लोग असुरक्षित हो जाते हैं।
वे नृशंसता व विनाश का कारण बन जाते हैं।
यदि देश दुनिया को शान्ति चाहिए
तो युद्ध के लिए
सभी को रहना चाहिए तैयार।
शान्ति के नाम पर
कायरता को
गले लगाना सचमुच है बेकार।
यह आत्म संहार
जैसा कृत्य है।
संघर्ष करने से पीछे हटना
दासता स्वीकारने जैसा है।
यह बिना लड़े हारने
जैसा दुष्कृत्य है।
यह बिना तनख्वाह का
भृत्य होने जैसा है।
ऐसे दास का सब उपहास उड़ाते हैं।
गुलाम
कभी सुखी नहीं रह पाते।
यही नहीं
वे ढंग से जीना भी नहीं सीख पाते।
वे सदैव भिखारी तुल्य ही है बने रहते।
वे हमेशा दुःख, तकलीफ़ ,
बेआरामी से जूझने को बाध्य रहते।
इससे अच्छा है कि वे युद्धाभ्यास में लिप्त हो जाते।
यह सच है कि युद्ध के बाद
सदैव शांति काल का होता है आगमन।
युद्ध परिवर्तन का आगाज भी करते हैं।
साथ ही ये देश दुनिया का परिदृश्य बदल देते हैं।
०७/०५/२०२५.
Written by
Joginder Singh
68
 
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