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May 6
लुच्चे को अच्छी लगती है
अय्याशी।
यह वह राह है
जहां आदमी क्या औरत
सीख ही जाता
करना बदमाशी।
आज कल गलत रास्ते पर
लोग
देखा-देखी
चल पड़ते हैं ,
बिन आई मौत को
जाने अनजाने
चुन लेते हैं ,
अचानक
गर्त में गिर पड़ते हैं ,
किरदार को
भूल कर
अपने भीतर का
अमन चैन गंवा दिया करते हैं।
वे दिन रात नंगे होने से ,
भेद खुलने से
हरदम डरते हैं।
नहीं पता उन्हें कि
कुछ लोग मुखौटा पहने हुए
उन्हें नचाते हैं ,
उन्हें भरमाते हैं।
वे सहानुभूति की आड़ में
चुपचाप हर पल शोषण कर जाते हैं।
अच्छा है
जीवन में
कभी कभी
बेहयाई की चादर ओढ़ लो
ताकि जीवन भर
कठपुतली न बने रहो
और
देर तक शोषित व वंचित न बने रहो।
कम से कम अपना जीवन
अपनी शर्तों पर जी सको।
यूं ही पग पग पर न डरो।
कभी तो बहादुरी से जीओ।
दोस्त ,
यदि संभव हो तो
अय्याशी से बचो ,
अपनी संभावना को न डसो
क्यों कि
आदमी को
एक अवगुण भी
अर्श से
गिरा देता है ,
उसकी हस्ती को
फर्श पर पहुंचा देता है।
यह नाम ,पहचान ,वजूद को
मिट्टी में मिला देता है।


०६/०५/२०२५.
Written by
Joginder Singh
74
 
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