लुच्चे को अच्छी लगती है अय्याशी। यह वह राह है जहां आदमी क्या औरत सीख ही जाता करना बदमाशी। आज कल गलत रास्ते पर लोग देखा-देखी चल पड़ते हैं , बिन आई मौत को जाने अनजाने चुन लेते हैं , अचानक गर्त में गिर पड़ते हैं , किरदार को भूल कर अपने भीतर का अमन चैन गंवा दिया करते हैं। वे दिन रात नंगे होने से , भेद खुलने से हरदम डरते हैं। नहीं पता उन्हें कि कुछ लोग मुखौटा पहने हुए उन्हें नचाते हैं , उन्हें भरमाते हैं। वे सहानुभूति की आड़ में चुपचाप हर पल शोषण कर जाते हैं। अच्छा है जीवन में कभी कभी बेहयाई की चादर ओढ़ लो ताकि जीवन भर कठपुतली न बने रहो और देर तक शोषित व वंचित न बने रहो। कम से कम अपना जीवन अपनी शर्तों पर जी सको। यूं ही पग पग पर न डरो। कभी तो बहादुरी से जीओ। दोस्त , यदि संभव हो तो अय्याशी से बचो , अपनी संभावना को न डसो क्यों कि आदमी को एक अवगुण भी अर्श से गिरा देता है , उसकी हस्ती को फर्श पर पहुंचा देता है। यह नाम ,पहचान ,वजूद को मिट्टी में मिला देता है।